जो मशहूर हैं वो नीचे लिखी हैं और बाक़ी यहाँ दुसरे टैब में हैं
सहीफ़ए सज्जादिया दुआ 49 - दुश्मन की चाल को नाकामयाब करने के लिए
सहीफ़ए सज्जादिया दुआ 27 सरहद की हिफ़ाज़त के लिए
जौशन (जिस्म का ज़िरह बखतर) सग़ीर
मुनाजात 8 -कश्फ़ ज़ुल्म (जबर का ख़ात्मा)10 मुनाजात से ईमाम तक़ी (अ:स)
खौफ के लिए - दुआए इतिसाम ग़म से निजात के लिए /ख़ौफ़
परेशानी - मुश्किल
क़ैद से रिहाई
जँग में पढ़ी जाने वाली दुआ
हमारे ज़माने के ईमाम को याद रखें और इनसे मदद लें ईमाम मेहदी (अ:त:फ़) से मुतालिक इन दुआओं को पढ़ें
दुआ 139 ईमाम अली (अ:स) फ़रमाते हैं - अगर कोई शख्स ज़ालिम का निशाना बने, उसे चाहिए की, 2 रकअत नमाज़ पढ़े और सलाम के बाद 1000 मर्तबा सूरह अल' क़मर (सूरह न० 54) की 10वीं आयत की तिलावत करे इंशाअल्लाह, अल्लाह इसे ज़ुल्म से निजात देगा
2.अज़ान और अक़ामत के बीच एक सज्दा करें और कहें :
यह फ़ेल जबर से हिफ़ाज़त के लिए फायेदमंद है
हवाला :फ़लाह अस'साएल इब्ने तावुस वॉल्यूम 1, पेज 152 | अल वाफ़ी वॉल्यूम 7, पेज 389
‘सहीफ़ए ईमाम रज़ा (अ:स) की 8वीं दुआ से ली गयी "ख्व्वासे आयाते क़ुरआन ए करीमा :
पढ़ें 80 मर्तबा खालिस नियत और आजज़ी से इसके मानी समझते हुए ! इसे जुमेरात से शुरू करना है
दूसरी मुतफ़र्रिक़ दुआएँ
मोमिनीन की हिफाज़त/राहत के लिए पूरी दुन्या के मोमिनीन की राहत /हिफाज़त के लिए पढ़ें :- फ़ात्मा ज़हरा (स:अ) और उनके अहले ख़ाना पर 580 मर्तबा या 100 मर्तबा यह मख़सूस सलवात पढेँ.
اَلَّهُمَّ صَلّ عَلىٰ فَاطِمَةَ وَ اَبِيْهَا وَ بَعْلِهَا وَ بَنِيْهَا وَ سِرِِّ الْمُسْتَوْدِعِ فِيْهَا بِعَدَدِ مَا اَحَاطَ بِهِ عِلْمُكَ
अल्लाहुम्मा सल्ले अला फ़ातिमाता व अबीहा व बालिहा व बनीहा व सिर-रील मसतौदे फ़ीहा बे-अदा-दा मा अहाता बिहि इलमोका
ऐ अल्लाह ! फ़ातमा (स:अ) और इसके वालिद (स:अ:व) और इनके शौहर (अ::स) और इनके बेटों (अ::स) पर रहमत नाज़िल फ़रमा और इन (अ:स) और इनमें मौजूद राज़ के ज़रिये जो सिर्फ़ तेरे इल्म में है !
दुआए सीमात - जुमे को सूरज ढलने के वक़्त
ज़्यारत आले यासीन
हिफ़ाज़त के लिए फ़जर की नमाज़ के बाद सूरह मुजादिलह (सूरह न0 58) की तिलावत करें,जिसमे 22 आयात,हैं और इसकी हर आयत में लफ्ज़ "अल्लाह" है
दुआ 135 रोज़ाना 100 बार पढ़ें: ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह
अल्लाह के सिवा किसी और के पास कोई ताक़त नहीं है
दुश्मनों के नापाक इरादों से बचने के लिए रोज़ाना फ़जर की पहली रकत में सूरह अल्हम्द के बाद सूरह अल-फ़ील (सूरह न० 105) की तिलावत उस वाट तक करें जब तक खतरा टल न जाए
दुआ 138 दुश्मनों को नीस्त ओ नाबूद (बर्बाद) करने के लिए यह दुआ 3 दिन तक 500 मर्तबा पढ़ें
या मुज़िल्ला कुल्ले जब्बारिन अनीदीन बे-क़हरीन अज़ीमीन व सुल्तानेही
ऐ वो जो तमाम ज़िद्दी जाबीरों को अपनी आला ताक़त और मुकम्मल इख़्तयार से रुसवा करता है!
दुआ 140 -ईमाम मुसा बिन जाफ़र अल'काज़िम (अ:स) ने फ़रमाया :
अगर कोई शख्स ज़ुल्म का शिकार हो कर यह दुआ पढ़े तो इंशा अल्लाह अल्लाह ज़ालिम को तबाह कर देगा
या उ'द्दती इ'न्दा शिद्दती वा या गौसे इ'न्दा कुर्बती उह'रिसनी बी-अय'निकल्लती ला तनामु वकफीनी बिरुक्निकललज़ी ला युरामु या ज़'ल कुव्वतिल कवीय्यती वा या ज़'ल जलालिश शदीदी वा या ज़'ल इ'ज्जतिल्लती कुल्लु खल्किका लहा द'लीलुन सल्ले अ'ला मुह'म्मदिन वा आले मुह'म्मद वकफीनी ज़'आलिमी वन्तकिम ली मिन्हु
ए वो जो मुझे उन मुश्किलात का मुक़ाबला करने के लिए तैयार करता है जो मुझ पर आ पड़ी हैं, ए वो जो मेरे दिल पर बोझ डालने वाले ग़मों का बोझ कम करने में मेरी मदद करता है, अपनी नज़र (जो कभी नहीं सोती) मुझ पर रख, मुझे (मुश्किलात) का मुक़ाबला करने के क़ाबिल बना अपनी मज़बूत मदद से जो कभी गिराई नहीं जा सकती। ए वो जो सबसे ज़्यादा ताक़त का मालिक है, ए वो जो सबसे ज़्यादा जलाल का मालिक है, ए वो जो सबसे आला इज़्ज़त का मालिक है जिस के मुक़ाबले में तमाम मख़लूक़ात अदना और आज़िज़ हैं, मोहम्मद और मोहम्मद की आल पर रहमत भेज, मुझे ज़ालिम का मुक़ाबला करने के क़ाबिल बना और जो उस ने मुझ पर ज़ुल्म किया है उस की सज़ा दे
दुआ 141 इमाम जाफ़र बिन मुहम्मद अल सादिक़ (अलैहिस्सलाम) (as)ने फ़रमाया:
अगर कोई शख्स ज़ुल्म का शिकार हो कर दो रकात नमाज़ पढ़े, और सलाम के बाद सजदे में जाए और एक सांस में यह कहे
या रब्बाहू या रब्बाहू
ए परवरदिगार, ए परवरदिगार
और फिर पढ़ें सूरह अल-नज्म की आयत नंबर 50 से 54 तक , इंशा अल्लाह ज़ुल्म ख़त्म हो जाएगा
दुआ 137 सूरह अल-बरा-अत को जिस्म पर रखने से दुश्मनों की साज़िशों से महफूज़�रह�सकते हैं।
दुआ 142 यह दुआ दुश्मनों के मंसूबों को नाकाम बनाने में इतनी मयस्सर है कि इमाम हुसैन बिन अली ज़ैन अल-आबिदीन�(अलैहिस्सलाम), इमाम जाफर बिन मुहम्मद अस-सादिक़ (अलैहिस्सलाम) के मुताबिक, इसे बाक़ायदगी से पढ़ते थे।
बिस्मिल्लाहि वा बिल्लाहि वा मिनल्लाहि वा इलल्लाहि वा फी सबीलिल्लाहि अल्लाहुम्मा लका सलमतु नफ्सी वा इलैक वज्जहतु वज्ही वा इलैक फव्वज़तु अम्री वह्फ़िज़नी बिहिफ्ज़िल बीमानी मिन बैनी यदैय्या वा मिन खल्फी वा अ'न यमीनी वा अ'न शिमाली वा मिन फौकी वा मिन तहती वज़फ़ा अ'न्नी बिहौलिका वा कुव्वतिका फ-इन्नहु ला हौला वा ला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अ'लीय्यिल अ'ज़ीम
अल्लाह के नाम से, अल्लाह के साथ, अल्लाह से, अल्लाह की तरफ, और अल्लाह की राह में: ए अल्लाह, मैं खुद को आपके हवाले करता हूँ, मैं खुद को आपकी तरफ मोड़ता हूँ, मैं अपने मामलात को आपके सुपुर्द करता हूँ, पस मुझे ईमान की हिफाज़त के साथ महफूज़ रखें, मेरे आगे से, मेरे पीछे से, मेरी दायीं तरफ से, मेरी बायीं तरफ से, मेरे ऊपर से, मेरे नीचे से, और (बुराई) को मुझसे अपनी ताकत और कुदरत के साथ दूर रखें, क्योंकि बेशक, कोई ताकत और कोई कुव्वत नहीं सिवाए अल्लाह के, जो बुलंद और अज़ीम है।
अपनी आप को और अपनी जायदाद को महफूज़ रखने के लिए , रोज़ाना सूरह अल-क़द्र को जितना ज्यादा पढ़ सकते हैं पढ़ें, शुरू और आखिर में दरूद शरीफ के साथ।. दुआ 149 शेख कुलैनी, किताब अल-काफी में कहते हैं कि नबी पाक (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम) ने अपने पैरोक़ारों को नसीहत की कि बक़रह की आयात 1, 2, 3, 4,|255, 256, 257, - आयात अल-कुर्सी | 284, 285 और 286 की तिलावत करें की तिलावत करें, अपनी जायदाद की हिफ़ाज़त के लिए
दुआ 150 इब्न बाबवैयह अल-क़ुम्मी के मुताबिक, इमाम अली अबी तालिब ने फरमाया: जो भी सूरह अल-इखलास, सूरह अल-क़द्र और आयात अल-कुर्सी को हर रोज़ फज्र से पहले 11 बार पढ़ेगा,, इंशा अल्लाह उसकी जायदाद किसी भी किस्म के नुक्सान से महफूज़ रहेगी। इसके अलावा शैतान की तमाम कोशिशें उसे गुनाह की तरफ़ राज़िब करने में नाकाम होंगी।
दुआ 151 सूरह अल-माइदह जायदाद को नुक्सान और चोरी से महफूज़ रखती है। इस सूरह को लिख कर घर में या उस जगह रखें जहाँ नक़दी, क़ीमती चीजें और दस्तावेज़ात रखी हों।
दुआ 152 सूरह अल-बरात (तौबह) को लिख कर जिस्म पर रखने से चोरों से महफूज़ रहें। यह जायदाद को तबाही से भी बचाती है।
दुआ 145 दुश्मन की मौजूदगी में दर्ज़-ज़ैल दुआ को दो मर्तबा पढ़ें ताकि उसकी दुश्मनी को बेअसर किया जा सके।
मैं तुम्हारे गुस्से को ठंडा करता हूँ ऐ (दुश्मन का नाम) इस मदद के साथ; अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है।
أَطْفَيْتُ غَضَبَكَ يَا ... بِلَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ .
अत्फ़ैतु ग़ज़ाबका या (दुश्मन का नाम लें) बिल्ला इल्ला हा इल्लल्लाह मैं ने तुम्हारे ग़ुस्से को ठंडा कर दिया है, ए......अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है।
दुआ 146 महजल दावत में लिखा है कि जब मंसूर दवानीकी से मिलने का वक्त आया, इमाम जाफर बिन मुहम्मद अल-सादिक ने सूरह अल-क़द्र, या अल्लाह (सात मर्तबा) और मंदरज-ज़ैल दुआ पढ़ी।
إِنِّي اسْتَشْفِعُ إِلَيْكَ بِمُحَمَّدٍ وَ آلِهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِمْ وَ أَنْ تَغْلِبَهُ لِي
इन्नी अस्तश्फी-उ इलैका बि मुहम्मदिन वा आलिही सल्लल्लाहु अलैहिम वा अन तग़्लिबहू ली
बेशक, मैं आप से मुहम्मद और उनकी औलाद (उन पर रहमत भेजें) के नाम पर दरख़्वास्त करता हूँ और मेरी ख़ातिर इस (मेरे दुश्मन) पर ग़ल्बा अता फरमाएं।
दुआ 147 अगर आपने किसी इंसान के साथ ग़लत सुलूक किया है और आपको मौका नहीं मिला कि इसका अजाला करें और उस शख्स से माफी हासिल करें तो फिर आपके लिए सिर्फ़ एक रास्ता बाकी रह जाता है -अल्लाह से माफी मांगें जिसके पास ये इख़्तियार है कि आपकी तरफ से उस शख्स को माफ करे जिसको आपने नाराज़, सताया या हरासां किया है। अगर उस शख्स का आप पर कोई हक़ है तो अल्लाह उसे पूरी कर सकता है अगर वो आपकी दुआ क़बूल करे।
सूरह अल-इखलास 12 मर्तबा पढ़ें और फिर मंदरज-ज़ैल दुआ पढ़ें:
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ بِاسْمِكَ الْمَخْزُوْنِ الْمَكْنُونِ الطَّاهِرِ الْمُطَهَّرِ الْمُبَارَكِ
وَ أَسْأَلُكَ بِاسْمِكَ الْعَظِيمِ وَ سُلْطَانِكَ الْقَدِيمِ
يَا وَاهِبَ الْعَطَايَا وَ يَا مُطْلِقَ الْأَسَارَى وَ يَا فُكَاكَ الرِّقَابِ مِنَ النَّارِ اسْتَلُكَ
أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَ أَنْ تُخْرِجَنِي مِنَ الدُّنْيَا سَالِمًا وَ تُدْخِلَنِي الْجَنَّةَ آمِنًا
وَ أَنْ تُطْلِقَ رَقَبَتِي مِنَ النَّارِ
وَ أَنْ تَجْعَلَ دُعَائِي أَوَّلَهُ فَلَاحًا وَ أَوْسَطَهُ نَجَاحًا وَآخِرَةَ صَلَاحًا
إِنَّكَ أَنْتَ عَلامُ الْغُيُوبِ.
अल्लाहुम्मा इन्नी अस-अलुका बिस्मकिल मख्ज़ूनिल मकनूनित ताहिरिल मुतह्हरिल मुबाराकी वा अस-अलुका बिस्मिकल अज़ीमी वा सुल्तानिकल क़दीमी या वाहिबल अतााया वा या मुतलिकल उसारा वा या फुक्कार रिक़ाबी मिनन नारी अस-अलुका अन तुसल्लिया अला मुहम्मदिन वा आली मुहम्मद वा अन तुखरिजनी मिनद दुन्या सालिमन वा तुदखिलनिल जन्नता आमिनन वा अन तुतलिक़ा रक़ाबती मिनन नारी वा अन तजअला दु'आ'ई अव्वालहू फलाहन वा औसातहू नज्जाहन वा आखिरहू सलाहन इन्नका अंता अल्लामुल ग़ुयूब
ए मेरे अल्लाह, बेशक मैं तुझसे तेरे उस नाम के वसीले से सवाल करता हूँ जो महफूज़ और मुख़फ़ी है, पाक और पाक करने वाला, बाबरकत: और बार-बार मैं तुझसे तेरे अज़ीम नाम और तेरी अब्दी बादशाही के वसीले से सवाल करता हूँ, ए अता करने वाले, ए क़ैदियों को आज़ाद करने वाले, ए वो जो (गुनहगारों को माफ़ करके) गर्दनों को आग के अज़ाब से बचाने वाला है, मैं तुझसे सवाल करता हूँ कि मुहम्मद और मुहम्मद की आल पर रहमत भेज, मुझे इस दुनिया से आज़ाद होकर रुख़सत होने दे (बग़ैर किसी हक़ तल्फ़ी के) और मुझे अमन व सलामती के साथ जन्नत में दाख़िल कर, (ये मुमकिन है सिर्फ़ उस सूरत में) अगर तू मेरी गर्दन को आग से महफूज़ रखे। मेरी दुआ के आग़ाज़ को कामयाबी, दरमियान को निजात, और आख़िर को भलाई बना दे। बेशक तू ही ग़ैब का जानने वाला है।
मोमिनीन की हिफाज़त/राहत के लिए पूरी दुन्या के मोमिनीन की राहत /हिफाज़त के लिए पढ़ें :- फ़ात्मा ज़हरा (स:अ) और उनके अहले ख़ाना पर 580 मर्तबा या 100 मर्तबा यह मख़सूस सलवात पढेँ.
दुआए सीमात - जुमे को सूरज ढलने के वक़्त
ज़्यारत आले यासीन
हिफ़ाज़त के लिए फ़जर की नमाज़ के बाद सूरह मुजादिलह (सूरह न0 58) की तिलावत करें,जिसमे 22 आयात,हैं और इसकी हर आयत में लफ्ज़ "अल्लाह" है
दुआ 135 रोज़ाना 100 बार पढ़ें: ला हौला व ला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह
अल्लाह के सिवा किसी और के पास कोई ताक़त नहीं है
दुश्मनों के नापाक इरादों से बचने के लिए रोज़ाना फ़जर की पहली रकत में सूरह अल्हम्द के बाद सूरह अल-फ़ील (सूरह न० 105) की तिलावत उस वाट तक करें जब तक खतरा टल न जाए
दुआ 138 दुश्मनों को नीस्त ओ नाबूद (बर्बाद) करने के लिए यह दुआ 3 दिन तक 500 मर्तबा पढ़ें
या मुज़िल्ला कुल्ले जब्बारिन अनीदीन बे-क़हरीन अज़ीमीन व सुल्तानेही
ऐ वो जो तमाम ज़िद्दी जाबीरों को अपनी आला ताक़त और मुकम्मल इख़्तयार से रुसवा करता है!
दुआ 140 -ईमाम मुसा बिन जाफ़र अल'काज़िम (अ:स) ने फ़रमाया :
अगर कोई शख्स ज़ुल्म का शिकार हो कर यह दुआ पढ़े तो इंशा अल्लाह अल्लाह ज़ालिम को तबाह कर देगा
दुआ 141 इमाम जाफ़र बिन मुहम्मद अल सादिक़ (अलैहिस्सलाम) (as)ने फ़रमाया:
अगर कोई शख्स ज़ुल्म का शिकार हो कर दो रकात नमाज़ पढ़े, और सलाम के बाद सजदे में जाए और एक सांस में यह कहे
या रब्बाहू या रब्बाहू
ए परवरदिगार, ए परवरदिगार
और फिर पढ़ें सूरह अल-नज्म की आयत नंबर 50 से 54 तक , इंशा अल्लाह ज़ुल्म ख़त्म हो जाएगा
दुआ 137 सूरह अल-बरा-अत को जिस्म पर रखने से दुश्मनों की साज़िशों से महफूज़�रह�सकते हैं।
दुआ 142 यह दुआ दुश्मनों के मंसूबों को नाकाम बनाने में इतनी मयस्सर है कि इमाम हुसैन बिन अली ज़ैन अल-आबिदीन�(अलैहिस्सलाम), इमाम जाफर बिन मुहम्मद अस-सादिक़ (अलैहिस्सलाम) के मुताबिक, इसे बाक़ायदगी से पढ़ते थे।
अपनी आप को और अपनी जायदाद को महफूज़ रखने के लिए , रोज़ाना सूरह अल-क़द्र को जितना ज्यादा पढ़ सकते हैं पढ़ें, शुरू और आखिर में दरूद शरीफ के साथ।. दुआ 149 शेख कुलैनी, किताब अल-काफी में कहते हैं कि नबी पाक (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम) ने अपने पैरोक़ारों को नसीहत की कि बक़रह की आयात 1, 2, 3, 4,|255, 256, 257, - आयात अल-कुर्सी | 284, 285 और 286 की तिलावत करें की तिलावत करें, अपनी जायदाद की हिफ़ाज़त के लिए
दुआ 150 इब्न बाबवैयह अल-क़ुम्मी के मुताबिक, इमाम अली अबी तालिब ने फरमाया: जो भी सूरह अल-इखलास, सूरह अल-क़द्र और आयात अल-कुर्सी को हर रोज़ फज्र से पहले 11 बार पढ़ेगा,, इंशा अल्लाह उसकी जायदाद किसी भी किस्म के नुक्सान से महफूज़ रहेगी। इसके अलावा शैतान की तमाम कोशिशें उसे गुनाह की तरफ़ राज़िब करने में नाकाम होंगी।
दुआ 151 सूरह अल-माइदह जायदाद को नुक्सान और चोरी से महफूज़ रखती है। इस सूरह को लिख कर घर में या उस जगह रखें जहाँ नक़दी, क़ीमती चीजें और दस्तावेज़ात रखी हों।
दुआ 152 सूरह अल-बरात (तौबह) को लिख कर जिस्म पर रखने से चोरों से महफूज़ रहें। यह जायदाद को तबाही से भी बचाती है।
दुआ 145 दुश्मन की मौजूदगी में दर्ज़-ज़ैल दुआ को दो मर्तबा पढ़ें ताकि उसकी दुश्मनी को बेअसर किया जा सके।
मैं तुम्हारे गुस्से को ठंडा करता हूँ ऐ (दुश्मन का नाम) इस मदद के साथ; अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है।
दुआ 146 महजल दावत में लिखा है कि जब मंसूर दवानीकी से मिलने का वक्त आया, इमाम जाफर बिन मुहम्मद अल-सादिक ने सूरह अल-क़द्र, या अल्लाह (सात मर्तबा) और मंदरज-ज़ैल दुआ पढ़ी।
दुआ 147 अगर आपने किसी इंसान के साथ ग़लत सुलूक किया है और आपको मौका नहीं मिला कि इसका अजाला करें और उस शख्स से माफी हासिल करें तो फिर आपके लिए सिर्फ़ एक रास्ता बाकी रह जाता है -अल्लाह से माफी मांगें जिसके पास ये इख़्तियार है कि आपकी तरफ से उस शख्स को माफ करे जिसको आपने नाराज़, सताया या हरासां किया है। अगर उस शख्स का आप पर कोई हक़ है तो अल्लाह उसे पूरी कर सकता है अगर वो आपकी दुआ क़बूल करे।
सूरह अल-इखलास 12 मर्तबा पढ़ें और फिर मंदरज-ज़ैल दुआ पढ़ें:
وَ أَسْأَلُكَ بِاسْمِكَ الْعَظِيمِ وَ سُلْطَانِكَ الْقَدِيمِ
يَا وَاهِبَ الْعَطَايَا وَ يَا مُطْلِقَ الْأَسَارَى وَ يَا فُكَاكَ الرِّقَابِ مِنَ النَّارِ اسْتَلُكَ
أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَ أَنْ تُخْرِجَنِي مِنَ الدُّنْيَا سَالِمًا وَ تُدْخِلَنِي الْجَنَّةَ آمِنًا
وَ أَنْ تُطْلِقَ رَقَبَتِي مِنَ النَّارِ
وَ أَنْ تَجْعَلَ دُعَائِي أَوَّلَهُ فَلَاحًا وَ أَوْسَطَهُ نَجَاحًا وَآخِرَةَ صَلَاحًا
إِنَّكَ أَنْتَ عَلامُ الْغُيُوبِ.
सहीफ़ा रज़विया -
ज़ालिम की शरारत से निजात के लिए आठ दुआएं
(1) दुश्मन के खिलाफ़ दुआ
जब आप में से कोई दूसरे शख्स के खिलाफ़ दुआ करे तो उसे कहना चाहिए:,
اَللّٰهُمَّ اطْرُقْهُ بِلَيْلَةٍ لَا اُخْتَ لَهَا، وَ اَبِحْ حَرِيْـمَهٗ.
अल्लाहुम्मा अत'रुक्हु बि-लैलतिन ला उख्ता लहा, वा अबिह हरीमहु।
ऐ रब, उसे रात की ऐसी मुसीबत में मुबतला कर जिस की कोई मिसाल न हो, और उसके दिफ़ा को तबाह कर दे।[1]
[1]मकारिम अल- अखलाक़, जिल्द 2, सफा 149; बिहार अल-अनवार, जिल्द 95, सफा 222
(2) दुश्मन और दीगर मुश्किलात पर काबू पाने के लिए दुआ
जब मामून इमाम रज़ा (अ) पर नाराज़ हुआ, तो उन्होंने (अ) ये दुआ पढ़ी और उसका ग़ुस्सा ठंडा हो गया:
بِاللهِ اَسْتَفْتِحُ وَ بِاللهِ اَسْتَنْجِحُ وَ بِـمُحَمَّدٍ (صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَ اٰلِهٖ) اَتَوَجَّهُ. اَللّٰهُمَّ سَهِّلْ لِيْ حُزُوْنَةَ اَمْرِيْ كُلَّهٗ، وَ يَسِّرْ لِيْ صُعُوْبَتَهٗ؛ اِنَّكَ تَـمْحُوْ مَا تَشَآءُ وَ تُثْبِتُ، وَ عِنْدَكَ اُمُّ الْكِتَابِ.
बिल्लाहे अस्तफतेह व बिल्लाहे अस्तंजेह व बेमुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि) अतवज्जह। अल्लाहुम्मा सह्हिल ली हुज़ूनत अम्री कुल्लह, व यस्सिर ली सूऊबतह, इनक तमहू मा तशा ओ व तुस्बित, व इंदक उम्मुल किताब।
अल्लाह की मदद से, मैं फतह तलब करता हूँ, अल्लाह की ताक़त से, मैं कामयाबी हासिल करूंगा और मुहम्मद (स) के ज़रिये, मैं (अल्लाह की तरफ) रुख करता हूँ। ऐ रब, उसकी सख्त दिली को मेरे लिए नरम कर दे, और उसके मुश्किल रवैये से मुझे राहत दे; तू जो चाहे मिटा देता है और जो चाहे कायम रखता है। और तेरे पास असल किताब है
इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) ने फरमाया:
मुझे कभी भी किसी मामले पर ग़ुस्सा नहीं आया, कभी भी किसी माली और जंगी मुश्किलात में नहीं फंसा, जब भी मैंने ये दुआ पढ़ी, अल्लाह तआला ने मेरे ग़ुस्से को ठंडा कर दिया, मेरी मुश्किलात को आसान बना दिया, मेरे दुश्मन पर काबू दिया और मेरे मामलों में कामयाबी दी।[2]
[2]बिहारुल अनवार, जिल्द 94, सफा 315
(3) दुश्मन और उसकी शरारत से हिफ़ाज़त की दुआ
इमाम रज़ा (अ) ने दुश्मनों की शरारत से हिफ़ाज़त के लिए यह दुआ पढ़ने की सिफारिश की है:
اِسْتَسْلَمْتُ مَوْلَاىَ لَكَ وَ اَسْلَمْتُ نَفْسِىْ اِلَيْكَ وَ تَوَكَّلْتُ فِىْ كُلِّ اُمُوْرِىْ عَلَيْكَ وَ اَنَا عَبْدُكَ وَ ابْنُ عَبْدَيْكَ اَخْبَاْنِيْ اَللّٰهُمَّ فِىْ سِتْرِكَ عَنْ شِرَارِ خَلْقِكَ وَ اعْصِمْنِيْ مِنْ كُلِّ اَذًى وَ سُوْءٍ بِمَنِّكَ وَ اكْفِنِيْ شَرَّ كُلِّ ذِىْ شَرٍّ بِقُدْرَتِكَ اَللّٰهُمَّ مَنْ كَادَنِيْ اَوْ اَرَادَنِيْ فَاِنِّيْ اَدْرَاُ بِكَ فِىْ نَحْرِهٖ وَ اسْتَعِيْنُ بِكَ مِنْهُ وَ اَسْتَعِيْذُ مِنْهُ بِحَوْلِكَ وَ قُوَّتِكَ وَ شُدَّ عَنِّيْ اَيْدِىْ الظَّالِمِيْنَ إذْ كُنْتَ نَاصِرِىْ لَا اِلٰهَ اِلَّا اَنْتَ يَا اَرْحَمَ الرَّاحِمِيْنَ وَ اِلٰهَ الْعَالَمِيْنَ اَسْاَلُكَ كِفَايَةَ الْاَذٰی وَ الْعَافِيَةَ وَ الشِّفَآءَ وَ النَّصْرَ عَلَی الْاَعْدَآءِ وَ التَّوْفِيْقَ لِمَا تُحِبُّ رَبَّنَا وَ تَرْضٰی يَا اِلٰهَ الْعَالَمِيْنَ يَا جَبَّارَ السَّمٰوَاتِ وَ الْاَرَضِيْنَ يَا رَبَّ مُحَمَّدٍ وَ اٰلِهِ الطَّيِّبِيْنَ الطَّاهِرِيْنَ صَلَوَاتُكَ عَلَيْهِمْ اَجْمَعِيْنَ.
इस्तस्लामतो मौलाया लका वा असलमतो नफ्सी इलैका वा तवक्कलतो फी कुल्ले उमूरी अ�लैका वा अना अ�ब्दोका वबनो अ�ब्दैका अख़बानी। अल्लाहुम्मा फी सित्रेका अ�न शेरारे खल्केका वा� सिम्नी मिन कुल्ले अज़न वा सू-इन बेमान्नेका वक फ़ीनी शर्रे कुल्ले ज़ी शर्रिन। बेक़ुद्रतेका अल्लाहुम्मा मन कादनी अव अरादनी फ़ा-इन्नी अद्राओ बेका फी नहरेहि वस ता�इनु बेका मिन्हो वा अस्त�इज़ो मिन्हो बेहौलेका वा कुव्वतेका वा शुद्दा अ�न्नी अयदिज़ ज़ालमीना इज़ कुनता नासेरी ला इलाहा इल्ला अंता या अरहमर राहीमीन। वा इलाहल आ�लमीन। अस-अलोका किफ़ायतल अज़ा वल आ�फियत वश शेफ़ा-आ वन्नस्रे अ�लल आ-दा-ए वत तौफ़ीक़ा लिमा तुहिब्बो रब्बना वा तर्ज़ा या इलाहल आ�लमीन। या जब्बारस समावाति वल अरज़ीन। या रब्बा मुहम्मदिन वा आलेहित तयेबीनत ताहिरीन सलवातोका अ�लैहिम अज्मइ�न।
मैंने अपने आप को आपके हवाले कर दिया है, ऐ मेरे आका। और मैं अपने तमाम मामलात में आप पर भरोसा करता हूँ। और मैं आपका बन्दा हूँ और आपके दो बन्दों (वालिद और वालिदा) का बेटा हूँ। मुझे, ऐ अल्लाह! अपने पर्दे में अपनी मख़लूक के शर से छुपा ले और अपनी मेहरबानी से मुझे तमाम दर्द और बुराइयों से बचा ले और अपनी क़ुदरत से मुझे हर बुराई करने वाले की शर से बचा ले। ऐ अल्लाह! जो मेरे खिलाफ़ साज़िश करे या मेरी बुराई चाहे, तो यक़ीनन मुझे उसकी साज़िशों से बचा ले और मैं आपकी ताक़त और क़ुदरत से उसके खिलाफ़ आपकी मदद तलब करता हूँ और मेरे दुश्मनों के खिलाफ़ मेरे हाथों को मजबूत कर दे। जब आप मेरे मददगार हैं, तो आपके सिवा कोई माबूद नहीं, ऐ सबसे ज्यादा रहम करने वाले। और आलमीन के माबूद। मैं आपसे मुश्किल से निजात, सेहतयाबी, और दुश्मनों पर मदद की दरख़्वास्त करता हूँ। और वह कामयाबी जो आपको पसंद हो, ऐ हमारे रब और आपको राज़ी करे। ऐ आलमीन के माबूद। ऐ आसमानों और जमीनों के ज़बरदस्त। ऐ मुहम्मद और उनकी पाक व पाकीज़ा औलाद के रब। आपकी बरकतें उन सब पर हों।[3]
[3]महेज अल-दावात, सफा 358; अल-मिस्बाह, सफा 293; अल-बलद अल-अमीन, सफा 644; अल-मजमुआ अल-राएक मिन अजहार अल-हदाएक, जिल्द 1, सफा 381; बिहार अल-अनवार, जिल्द 94, सफा 379
(4) शरारती शख़्स से मुलाकात की हिफाज़त की दुआ इमाम अली रज़ा (अ) ने नसीहत की:
जब भी आप किसी ऐसे शख़्स से मिलें जिसकी शरारत से आपको डर हो, तो यह दुआ पढ़ें:
اَللّٰہُمَّ یَدُكَ فَوْقَ یَدِہٖ وَ سُلْطَانُكَ اَعْظَمُ مِنْ سُلْطَانِہٖ. اَللّٰہُمَّ اِنِّیْ اَدْرَاُ بِكَ فِیْ نَـحْرِہٖ وَ اَعُوْذُ بِكَ مِنْ شَرِّہٖ وَ اَسْتَعِیْنُ بِكَ عَلَیْہِ وَ اَلْجَاُ اِلَیْكَ مِمَّا اَشْفَقْتَ عَلٰی نَفْسِیْ مِنْہُ. اَللّٰہُمَّ فَكُنْ عِنْدَ ظَنِّیْ بِكَ فِیْمَا لَمْ اَجِدْ فِیْہِ مَفْزَعًا غَیْرُكَ وَ لَا مَلْجَأً سِوَاكَ فَقَدْ عَلِمْتَ اَنَّ عَدْلَكَ اَوْسَعُ مِنْ جَوْرِ الْجَآئِرِیْنَ وَ اِنْصَافَكَ مِنْ وَرَآءِ الظَّالِمِیْنَ فَاَجِرْنِیْ مِنْہُ یَا اِلٰہَ الْعَالَمِیْنَ بِحَقِّكَ عَلَیْكَ فَاِنَّ اَحَدًا لَا یَعْرِفُ حَقَّكَ حَسَبِ مَعْرِفَتِكَ بِحَقِّكَ. حَسْبِیْ اَنْتَ یَا اَللہُ حَسْبِیْ اَنْتَ یَا اَللہُ حَسْبِیْ اَنْتَ یَا اَللہُ وَ مَنْ یَتَوَكَّلْ عَلَیْكَ فَاَنْتَ حَسْبُہٗ بِذٰلِكَ جَرٰی وَعْدُكَ وَ نَطَقَ كِتَابُكَ وَ اَنْتَ اَوْفَی الضَّامِنِیْنَ. سُبْحَانَكَ رَبِّ الْعَالَمِيْنَ وَ صَلَّي اللهُ عَلٰي مُحَمَّدٍ وَ اٰلِہٖ.
अल्लाहुम्मा यदुका फ़व्का यदेहि वा सुल्तानोका आ-आ'ज़मो मिन सुल्तानेहि। अल्लाहुम्मा इन्नी अद्राओ बेका फ़ी नहरेहि वा आ-ऊज़ो बेका मिन शर्रेहि वा अस-ता-इ'नो बेका अ'लैहे वा अल-जा-ओ इलैका मिम्मा अश-फक़ता अ'ला नफ़्सी मिन्हो। अल्लाहुम्मा फ़ा-कुन इ'न्दा ज़न्नी बेका फ़ीमा लम अजेद फ़ीहे मफ़-ज़ा-आन ग़ैरुका वा ला माल-जा-आ सिवाका फ़क़द अ'लिमता अन्ना अ'द्लका औसा-ओ' मिन जौरिल जाआ-एरीना वा इंसा-फोका मिन वरा-इज़ ज़ालमीना फ़ा-अजीरनी मिन्हो या इलाहल आ'लमीना बे-हक्केका अ'लैका फ़ा-इन्ना अहदन ला या'रेफ़ो हक्केका हिसाबे मा'रेफतेका बे-हक्केका। हसबि अन्त या अल्लाहो हसबि अन्त या अल्लाहो हसबि अन्त या अल्लाहो वा मन यतवक्कल अ'लैका फ़ा-अन्ता हसबोहु बे-ज़ालिका जारा वा'दोका वा नतका किताबोका वा अन्ता अवफ़ज़ ज़ालमीन। सुभानका रब्बिल आ'लमीना वा सलल लाहो अ'ला मोहम्मदिन वा आलेहि।
ऐ अल्लाह! तेरा हाथ उसके हाथ से बुलंद है और तेरी बादशाही उसकी बादशाही से बर्तर है। ऐ अल्लाह! मैं तेरी मदद से उसकी गर्दन पर ज़र्ब लगाता हूँ, और मैं उसकी शरारत से तेरी पनाह मांगता हूँ, और मैं उसके खिलाफ तेरी मदद चाहता हूँ, और मैं उसके शर से अपने लिए तेरी हिफाज़त चाहता हूँ। ऐ अल्लाह! जब मैं तुझसे उस चीज़ में सोचता हूँ जिसमें मुझे सिवाय तेरे कोई मददगार नहीं मिलता और ना कोई पनाहगाह, तो यक़ीनन यह मालूम है कि तेरा इंसाफ़ ज़ालिमों के जुल्म से वसीअ है, और तेरा इंसाफ़ ज़ालिमों की पहुंच से बाहर है, तो मुझे उसका बदला दे, ऐ रब्बुल आलमीन, तेरे हक़ के ज़रिए से जो तेरे ऊपर है, तो यक़ीनन कोई भी नहीं जो तेरे हक़ को तेरी पहचान के मुताबिक़ न जानता हो। तो मुझे काफ़ी है ऐ अल्लाह! तो मुझे काफ़ी है ऐ अल्लाह! तो मुझे काफ़ी है ऐ अल्लाह! और जो भी तुझ पर भरोसा करता है तो तू उसके लिए काफ़ी है, यह तेरे वादे के मुताबिक हुआ, और तेरी किताब की बात के मुताबिक, और तू सबसे बड़ा ज़ामिन है। पाक है तू, रब्बुल आलमीन, और अल्लाह की रहमत हो मुहम्मद और उनकी औलाद पर।[4] [4]अल-मजमुआ अल-राएक मिन अजहार अल-हदाएक, जिल्द 1, सफा 319
(5) ज़ुल्म की शरारत से हिफ़ाज़त की दुआ :
इमाम रज़ा (अ) ने अपने वालिद (अ) के हवाले से फरमाया:
अबू जाफर दवानीकी (लानत अल्लाह अलैह) ने जाफर बिन मुहम्मद (अ) को कत्ल करने के इरादे से बुलाया। उसने तलवार तैयार की और एक खास चमड़े का टुकड़ा (जो लोगों को कत्ल करने के लिए फर्श पर बिछाया जाता था) तैयार किया। दवानीकी ने अल-रबीअ से कहा, 'जब मैं अपने हाथों को ताली बजाऊं तो उसका सर काट देना।
फिर जब जाफर बिन मुहम्मद (अ) दाखिल हुए, इमाम (अ) ने दवानीकी को दूर से देखा और इमाम के होंट हिल रहे थे। अबू जाफर (दवानीकी) अपनी जगह बैठा हुआ कह रहा था, 'ऐ अबू अब्दुल्लाह! खुश आमदीद। हमने आपको सिर्फ आपके कर्जों को अदा करने के लिए बुलाया है।
फिर उसने नरमी से उनके घर वालों के बारे में पूछा और मजीद कहा, 'अल्लाह (स) ने आपके कर्जों को अदा कर दिया है और आपका अजर मुक़र्रर कर दिया है। ऐ रबीअ, कुछ न करना जब तक जाफर अपने घर वापस न जाए।,
जब दवानीकी चला गया, रबीअ ने इमाम (अ) से कहा, 'ऐ अबू अब्दुल्लाह! क्या आपने तलवार और चमड़े को देखा जो आपके लिए तैयार किया गया था? आप क्या कह रहे थे जब आपके होंट हिल रहे थे?
इमाम जाफर सादिक (अ) ने फरमाया: '
जब मैंने उसकी आंखों में शरारत देखी तो मैंने कहा,
حَسْبِيَ الرَّبُّ مِنَ الْمَرْبُوْبِيْنَ وَ حَسْبِيَ الْـخَالِقُ مِنَ الْمَخْلُوْقِيْنَ وَ حَسْبِيَ الرَّازِقُ مِنَ الْمَرْزُوْقِيْنَ وَ حَسْبِيَ اللهُ رَبُّ الْعَالَمِيْنَ حَسْبِيْ مَنْ هُوَ حَسْبِيْ حَسْبِيْ مَنْ لَمْ يَزَلْ حَسْبِيْ حَسْبِيَ اللهُ لَا اِلٰهَ اِلَّا هُوَ عَلَيْهِ تَوَكَّلْتُ وَ هُوَ رَبُّ الْعَرْشِ الْعَظِيْمِ.
हस्बेयर रब्बो मीनल मारबूबेना वा हस्बेयल खालेको मीनल मखलूक़ेना वा हस्बेयार राज़ेको मीनल मरज़ूक़ेना वा हस्बेयल लाहो रब्बुल आलमीना हस्बी मन होवा हस्बी हस्बी मन लाम यज़ल हस्बी हस्बेयल लाहो ला इलााहा इल्ला होवा अ�लयहे तवक्कलतो वा होवा रब्बुल अ�र्शिल अ�ज़ीम
मेरे लिए काफी है रब उन सब पर जिन पर हुकूमरानी की जाती है। और मेरे लिए काफी है ख़ालिक अपनी मखलूकात के मुकाबले में। और�मेरे लिए काफी है रिज़क देने वाला अपने रिज़क पाने वालों के मुकाबले में।�मेरे लिए काफी है अल्लाह, जो तमाम जहानों का रब है।�मेरे लिए काफी है वो जो मिरे लिए काफी है।�मेरे लिए काफी है वो जो हमेशा मिरे लिए काफी रहा है। अल्लाह मुझे काफी है। उसके सिवा कोई माबूद नहीं। मैंने उसी पर भरोसा किया है, और वही अज़ीम अर्श का रब है।[5] [5]अयून अखबार अल-रज़ा (अ), जिल्द 1, सफ़हा 237; बिहार अल-अनवार, जिल्द 95, सफ़हा 214
(6) ज़ुल्म की शरारत से हिफाज़त के लिए एक और दुआ
सैयद इब्न ताऊस ने अपनी किताब 'महिज्ज अल-दावात' में इमाम रज़ा (अ) के हवाले से नक़ल किया कि उन्होंने फरमाया:
एक शख्स इमाम जाफर अल-सादिक़ (अ) के पास आया और उन पर होने वाले ज़ुल्म की शिकायत की।
इमाम (अ) ने उससे कहा:'तुम दुआ-ए-मज़लूम क्यों नहीं पढ़ते जो रसूल अल्लाह (स) ने इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) को सिखाई थी? कोई भी मज़लूम ऐसा नहीं जो ये दुआ पढ़े और उसे ज़ालिम की शरारत से नजात न मिली हो:
اَللّٰهُمَّ طُـمَّهٗ بِالْبَلَآءِ طَـمًّا وَ غُـمَّهٗ بِالْبَلَآءِ غَـمًّا وَ قُـمَّهٗ بِالْاَذٰى قَـمًّا وَ ارْمِهٖ بِيَوْمٍ لَا مَعَادَ لَهٗ وَ سَاعَةٍ لَا مَرَدَّ لَهَا وَ اَبـِحْ حَرِيْـمَهٗ وَ صَلِّ عَلٰى مُـحَمَّدٍ وَ اَهْلِ بَيْتِهٖ (عَلَيْهِ وَ عَلَيْهِمُ السَّلَامُ) وَ قِنِيْ شَرَّهٗ وَ اكْفِنِيْ اَمْرَهٗ وَ اصْرِفْ عَنِّيْ كَيْدَهٗ وَ اَحْرِجْ قَلْبَهٗ وَ سُدَّ فَاهُ عَنِّيْ ’’وَ خَشَعَتِ الْاَصْوَاتُ لِلرَّحْمٰنِ فَلَا تَسْمَعُ اِلَّا هَمْسًا‘‘ ’’وَ عَنَتِ الْوُجُوْهُ لِلْحَيِّ الْقَيُّوْمِ وَ قَدْ خَابَ مَنْ حَمَلَ ظُلْمًا’’ ’’اِخْسَئُوْا فِيْهَا وَ لَا تُكَلِّمُوْنِ‘‘ صَهْ صَهْ صَهْ صَهْ صَهْ صَهْ صَهْ.
अल्लाहुम्मा तुम्महू बिल-बलाआ-ए तममन वा गुम्महू बिल-बलाआ-ए गम्मन वा कुम्महू बिल-अज़ा कम्मन वर्मिही बे-यौमिन ला माअ'दा लहू वा साअ'तिन ला मरद्दा लहाः वा अबिह हरीमहू वा सल्ले अ'ला मोहम्मदिन वा अहले बयतेही (अ'लैहे वा अ'लैहेमुस सलाम) वा क़िनीय शर्राहू वक़्फिनीय अम्राहू वस्रिफ अ'न्नी कैदाहू वा अह्रिज़ क़ल्बहू वा सुद्धा फाहू अ'न्नी �व खशाअ'तिल अस्वातो लिर-रह्माने फला तस्माअ' इल्ला हम्सा� �व अ'नतिल वुजूहु लिल-हय्यिल क़य्योमी व क़द खाबा मन हमला ज़ुल्मा� �इख्सा-ऊ फीहा वा ला तुकल्लेमून� सह सह सह सह सह सह सह।
ए अल्लाह! उसे मुसीबत में मुब्तला कर, और उसे मुश्किलात में ढाँप ले, और उसे एक के बाद एक तकलीफ़ और हरासानी में मुब्तला कर दे, और उसे रोज़ाना ऐसी हालत में डाल कि वह उससे निकल न सके [ये सिलसिला मुस्तक़िल रहना चाहिए], और उसे हर घंटे ऐसी हालत में मुब्तला कर कि वह उससे बच न सके, और उसकी हुरमत को ज़ाहिर कर दे, और मोहम्मद और उनकी आल पर रहमत भेज (उन पर और उन सब पर सलाम हो), और मुझे उसके शर से महफ़ूज़ रख, और मुझे उसके अहकाम से बचा, और उसके दिल को तंगी में डाल दे, और उसके मुँह को मेरे बारे में बंद कर दे। �और रहमान अल्लाह के सामने आवाज़ें धीमी हो जाएँगी, सो आप कोई आवाज़ न सुनेंगे मगर एक हल्की सी सरगोशी।�[6] सूरह ताहा (20): आयत 108
और चेहरे इस ज़िंदा व जावेद अल्लाह के सामने झुक जाएँगे, और जिसने ज़ुल्म का बोज़ उठाया वह नाकाम होगा।�[7]
सूरह ताहा (20): आयत 111 इसमें चले जाओ और मुझसे बात न करो।�[8] सूरह मोमिनून (23): आयत 108
ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश।[9] महज अल-दावात, सफ़ा 306; अल-मिस्बाह, सफ़ा 273; बिहार अल-अनवार, जिल्द 95, सफ़ा 215; अल-जन्नह अल-वाकियह व अल-जन्नह अल-बाकियह (मसौदा), सफ़ा 49
(7) दुश्मन को शिकस्त देने और समस्याओं के हल के लिए दुआ
इमाम रज़ा (अ) ने फरमाया:
रसूल अल्लाह (स) के एक सहाबी को एक काग़ज़ मिला जो उन्होंने रसूल अल्लाह (स) की खिदमत में पेश किया। रसूल अल्लाह (स) ने नमाज़ के वक्त मिंबर पर जाकर उस काग़ज़ पर लिखा हुआ पढ़ा। यह एक दुआ थी जो हज़रत युशा बिन नून, हज़रत मूसा (अ) के जानशीन ने लिखी थी:
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ اِنَّ رَبَّكُمْ لَرَؤُفٌ رَحِيْمٌ اَلَا اِنَّ خَيْرَ عِبَادِ اللهِ التَّقِيُّ الْـخَفِيُّ وَ اِنَّ شَرَّ عِبَادِ اللهِ الْمُشَارُ اِلَيْهِ بِالْاَصَابِعِ.
‘बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम। बेशक तुम्हारा रब रहम करने वाला और मेहरबान है। ख़बरदार, अल्लाह (स) का बेहतरीन बंदा वह है जो खुद को बुराई से बचाता है और छुपाता है, और बदतर वह है जिसकी तरफ उंगलियाँ उठती हैं यानी जो मशहूर है।
इसलिए जो कोई अपने प्याले को भरना चाहता है और अपने फर्ज़ को अदा करना चाहता है, वह उसे अल्लाह तआला की तरफ से दी गई बरकतों के लिए हर रोज़ यह दुआ पढ़े:
سُبْحَانَ اللهِ كَمَا يَنْبَغِيْ لِلهِ وَ لَا اِلٰهَ اِلَّا اللهُ كَمَا يَنْبَغِيْ لِلهِ وَ الْـحَمْدُ لِلهِ كَمَا يَنْبَغِيْ لِلهِ وَ لَا حَوْلَ وَ لَا قُوَّةَ اِلَّا بِاللهِ وَ صَلَّى اللهُ عَلٰى مُـحَمَّدٍ وَ اَهْلِ بَيْتِهِ النَّبِيِّ الْعَرَبِيِّ الْهَاشِمِيِّ وَ صَلَّى اللهُ عَلٰى جَمِيْعِ الْمُرْسَلِيْنَ وَ النَّبِيِّيْنَ حَتّٰى يَرْضَى اللهُ.
सुब्हा नल-लाहे कमा यंबगी लिल्लाह वा ला इलाहा इल्लल्लाहो कमा यंबगी लिल्लाह वल-हम्दो लिल्लाहे कमा यंबगी लिल्लाह वा ला हवला वा ला कुव्वता इल्ला बिल्लाहे वा सल्लल्लाहो अ'ला मोहम्मदिन वा अहले बैतेहि नबीय्येनल अ'राबीय्यिल हाशिमीय्ये वा सल्लल्लाहो अ'ला जमी-इ'ल मुरसलीना वन नबीय्येना हत्ता यारजाल्लाह।
अल्लाह की हम्द हो जैसे अल्लाह के लायक है; और अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं जैसे अल्लाह के लायक है; और सब तारीफ अल्लाह के लिए है जैसे अल्लाह के लायक है; और अल्लाह के सिवा कोई ताक़त और क़ुव्वत नहीं है; और अल्लाह की बरकतें मोहम्मद और नबी के अहल-ए-बैत पर हों, अरबी, हाशमी और तमाम रसूलों और नबियों पर अल्लाह की तारीफ हो जब तक अल्लाह राज़ी हो।
फिर रसूल अल्लाह (स) मिंबर से नीचे उतर आए। जब लोगों ने इस दुआ के बारे में उनसे इसरार किया तो रसूल अल्लाह (स) दोबारा मिंबर पर गए और फरमाया:
जो चाहता है कि उसे मुजाहिदीन (अल्लाह की राह में लड़ने वालों) से ज्यादा तारीफ और हम्द मिले, उसे चाहिए कि यह दुआ रोज़ाना पढ़े। उसकी जरूरतें पूरी होंगी, उसके दुश्मन तबाह होंगे, उसके कर्जे खत्म होंगे, उसके तमाम मसाइल हल होंगे, उसकी दुआ आसमान के गर्द चक्कर लगाने के बाद लौह-ए-महफूज़ पर सब्त हो जाएगी।
[10] महिज्ज अल-दआवात, प. 306; बहार अल-अनवार, वॉल. 87, प. 4; अल-दआवात, प. 46; मुस्तद्रक अल-वसाएल, वॉल. 5, प. 377; अल-जन्ना अल-वाकिया वा अल-जन्ना अल-बाकिया (मैन्युस्क्रिप्ट), प. 32
(8) दुश्मन पर काबू पाने के लिए दुआ
इमाम रज़ा (अ) की किताब 'ख्वास आयात कुरान करीम में रिवायत है:
अगर किसी का कोई दुश्मन हो तो वह यह पढ़े
يَا حَسِيْبُ
या हसीब
ऐ मुहासिब.
80 मर्तबा खालिस नीयत और आज़ी के साथ, उसके मअनी को समझते हुए। इसका आगाज़ जुमेरात से किया जाए। यक़ीनन उसका दुश्मन मग़लूब हो जाएगा।�
इसी किताब में लिखा है कि दुश्मन के ज़ुल्म को खत्म करने के लिए इससे ज्यादा मज़बूत कोई दुआ नहीं है।[11]
[11] ख्वास आयात कुरान करीम, सफहा 81
(1) दुश्मन के खिलाफ़ दुआ
जब आप में से कोई दूसरे शख्स के खिलाफ़ दुआ करे तो उसे कहना चाहिए:,
(2) दुश्मन और दीगर मुश्किलात पर काबू पाने के लिए दुआ
जब मामून इमाम रज़ा (अ) पर नाराज़ हुआ, तो उन्होंने (अ) ये दुआ पढ़ी और उसका ग़ुस्सा ठंडा हो गया:
इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) ने फरमाया:
मुझे कभी भी किसी मामले पर ग़ुस्सा नहीं आया, कभी भी किसी माली और जंगी मुश्किलात में नहीं फंसा, जब भी मैंने ये दुआ पढ़ी, अल्लाह तआला ने मेरे ग़ुस्से को ठंडा कर दिया, मेरी मुश्किलात को आसान बना दिया, मेरे दुश्मन पर काबू दिया और मेरे मामलों में कामयाबी दी।[2]
[2]बिहारुल अनवार, जिल्द 94, सफा 315
(3) दुश्मन और उसकी शरारत से हिफ़ाज़त की दुआ
इमाम रज़ा (अ) ने दुश्मनों की शरारत से हिफ़ाज़त के लिए यह दुआ पढ़ने की सिफारिश की है:
(4) शरारती शख़्स से मुलाकात की हिफाज़त की दुआ इमाम अली रज़ा (अ) ने नसीहत की:
जब भी आप किसी ऐसे शख़्स से मिलें जिसकी शरारत से आपको डर हो, तो यह दुआ पढ़ें:
(5) ज़ुल्म की शरारत से हिफ़ाज़त की दुआ :
इमाम रज़ा (अ) ने अपने वालिद (अ) के हवाले से फरमाया:
अबू जाफर दवानीकी (लानत अल्लाह अलैह) ने जाफर बिन मुहम्मद (अ) को कत्ल करने के इरादे से बुलाया। उसने तलवार तैयार की और एक खास चमड़े का टुकड़ा (जो लोगों को कत्ल करने के लिए फर्श पर बिछाया जाता था) तैयार किया। दवानीकी ने अल-रबीअ से कहा, 'जब मैं अपने हाथों को ताली बजाऊं तो उसका सर काट देना।
फिर जब जाफर बिन मुहम्मद (अ) दाखिल हुए, इमाम (अ) ने दवानीकी को दूर से देखा और इमाम के होंट हिल रहे थे। अबू जाफर (दवानीकी) अपनी जगह बैठा हुआ कह रहा था, 'ऐ अबू अब्दुल्लाह! खुश आमदीद। हमने आपको सिर्फ आपके कर्जों को अदा करने के लिए बुलाया है।
फिर उसने नरमी से उनके घर वालों के बारे में पूछा और मजीद कहा, 'अल्लाह (स) ने आपके कर्जों को अदा कर दिया है और आपका अजर मुक़र्रर कर दिया है। ऐ रबीअ, कुछ न करना जब तक जाफर अपने घर वापस न जाए।,
जब दवानीकी चला गया, रबीअ ने इमाम (अ) से कहा, 'ऐ अबू अब्दुल्लाह! क्या आपने तलवार और चमड़े को देखा जो आपके लिए तैयार किया गया था? आप क्या कह रहे थे जब आपके होंट हिल रहे थे?
इमाम जाफर सादिक (अ) ने फरमाया: '
जब मैंने उसकी आंखों में शरारत देखी तो मैंने कहा,
(6) ज़ुल्म की शरारत से हिफाज़त के लिए एक और दुआ
सैयद इब्न ताऊस ने अपनी किताब 'महिज्ज अल-दावात' में इमाम रज़ा (अ) के हवाले से नक़ल किया कि उन्होंने फरमाया:
एक शख्स इमाम जाफर अल-सादिक़ (अ) के पास आया और उन पर होने वाले ज़ुल्म की शिकायत की।
इमाम (अ) ने उससे कहा:'तुम दुआ-ए-मज़लूम क्यों नहीं पढ़ते जो रसूल अल्लाह (स) ने इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) को सिखाई थी? कोई भी मज़लूम ऐसा नहीं जो ये दुआ पढ़े और उसे ज़ालिम की शरारत से नजात न मिली हो:
और चेहरे इस ज़िंदा व जावेद अल्लाह के सामने झुक जाएँगे, और जिसने ज़ुल्म का बोज़ उठाया वह नाकाम होगा।�[7]
सूरह ताहा (20): आयत 111 इसमें चले जाओ और मुझसे बात न करो।�[8] सूरह मोमिनून (23): आयत 108
ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश, ख़ामोश।[9] महज अल-दावात, सफ़ा 306; अल-मिस्बाह, सफ़ा 273; बिहार अल-अनवार, जिल्द 95, सफ़ा 215; अल-जन्नह अल-वाकियह व अल-जन्नह अल-बाकियह (मसौदा), सफ़ा 49
(7) दुश्मन को शिकस्त देने और समस्याओं के हल के लिए दुआ
इमाम रज़ा (अ) ने फरमाया:
रसूल अल्लाह (स) के एक सहाबी को एक काग़ज़ मिला जो उन्होंने रसूल अल्लाह (स) की खिदमत में पेश किया। रसूल अल्लाह (स) ने नमाज़ के वक्त मिंबर पर जाकर उस काग़ज़ पर लिखा हुआ पढ़ा। यह एक दुआ थी जो हज़रत युशा बिन नून, हज़रत मूसा (अ) के जानशीन ने लिखी थी:
जो चाहता है कि उसे मुजाहिदीन (अल्लाह की राह में लड़ने वालों) से ज्यादा तारीफ और हम्द मिले, उसे चाहिए कि यह दुआ रोज़ाना पढ़े। उसकी जरूरतें पूरी होंगी, उसके दुश्मन तबाह होंगे, उसके कर्जे खत्म होंगे, उसके तमाम मसाइल हल होंगे, उसकी दुआ आसमान के गर्द चक्कर लगाने के बाद लौह-ए-महफूज़ पर सब्त हो जाएगी।
[10] महिज्ज अल-दआवात, प. 306; बहार अल-अनवार, वॉल. 87, प. 4; अल-दआवात, प. 46; मुस्तद्रक अल-वसाएल, वॉल. 5, प. 377; अल-जन्ना अल-वाकिया वा अल-जन्ना अल-बाकिया (मैन्युस्क्रिप्ट), प. 32
(8) दुश्मन पर काबू पाने के लिए दुआ
इमाम रज़ा (अ) की किताब 'ख्वास आयात कुरान करीम में रिवायत है:
अगर किसी का कोई दुश्मन हो तो वह यह पढ़े
इसी किताब में लिखा है कि दुश्मन के ज़ुल्म को खत्म करने के लिए इससे ज्यादा मज़बूत कोई दुआ नहीं है।[11]
[11] ख्वास आयात कुरान करीम, सफहा 81
सहीफ़ा मेहदी (अज) दुश्मन से हिफ़ाज़त
मशक़िलात से नजात और चोरों की बुराई से हिफ़ाज़त के लिए ये दुआ पढ़ें:
:मरहूम आयतुल्लाह शेख़ अली अकबर नहावंदी लिखते हैं: "शेख़ अली अकबर तेहरानी, जो मशहद में रहते थे, ने हमारे लिए एक वाक़िया बयान किया:
नेक-ओ-कार आलिम-ए-दीन, शेख़ मोहम्मद तक़ी तुर्बती, जो इस्लामी अखलाक़ियात के बड़े उलमा और फुक़हा में से थे और अल्लामा मिर्ज़ा हबीबुल्लाह रश्ती के शागिर्द थे और उनके पास इज्तेहाद की इजाज़त थी, ने कहा: मेरे एक दींदार तालिब-ए-इल्म, जो शहर तुर्बत के सादात में से थे, ने मुझे बयान किया कि
ज़ियारत-ए-मुक़द्दस मक़ामात से वापसी पर, मैं 'ख़ानक़ीन' से एक तालिब-ए-इल्म के साथ रवाना हुआ और एक क़ाफ़ले के पीछे 'क़स्र-ए-शीरिन' की तरफ़ पैदल चलने लगा। शदीद प्यास और भूख की वजह से हम कमज़ोर हो गए थे, और बड़ी मुश्किल से हम क़ाफ़ले तक पहुँचे। हमने देखा कि क़ाफ़ला डाकुओं ने लूट लिया था और उनका सारा माल-ओ-दौलत छीन लिया गया था, उनके मर्द ज़ख़्मी थे और सहरा में पड़े हुए थे, उनके सवारियाँ टूट कर ज़मीन पर गिरी हुई थीं।
हम ख़ौफ़ से एक कोने की तरफ़ बढ़े और एक पहाड़ी की चोटी पर चढ़ गए। अचानक, हमने देखा कि एक मुअज़्ज़िज़ सैयद हमारे पास खड़े हैं। उन्होंने हमें सलाम किया, फिर हमें ज़ाहिदी के सात खजूरें दीं और कहा: चार खजूरें खाओ और बाकी तीन शेख़ को दो। फिर उन्होंने कहा: मशक़िलात से नजात और चोरों की बुराई से हिफ़ाज़त के लिए ये दुआ पढ़ो:
जब हमने खजूरें खाईं तो हमारी प्यास खत्म हो गई। उसके बाद, हमने उस मुअज़्ज़िज़ सैयद के साथ थोड़ी दूर तक पैदल सफर किया; अचानक, उन्होंने एक जगह की तरफ़ इशारा किया और कहा: ये तुम्हारा घर है। जब हमने देखा, तो हमें हमारा घर उस पहाड़ी के नीचे वाक़े मिला। घर में दाख़िल होने के बाद, हम शदीद थकावट की वजह से बहुत नींद में थे। हम बगैर उस वाक़िया की तरफ़ ध्यान दिए सो गए। जागने के बाद, हमें समझ में आया कि वह मुअज़्ज़िज़ शख्स वक़्त के इमाम, इमाम मेहदी (अ) थे।
तहफ़्फ़ुज़ अल-यमानी
माख़ज़: अल-मुन्जी
किताब 'दार-उस-सलाम' में एक मख़्तूताह मिला जिसमें अल्लामा मजलिसी ने फरमाया:
" सैयद अमीर मुहम्मद हाशिम ने मुझसे यमानी तावीज़ की इजाज़त तलब की जो इमाम अली (अ) से मंसूब है। लिहाज़ा, मैं उन्हें इस दुआ को रिवायत करने की इजाज़त दे रहा हूँ; जो अमीर इसहाक़ अस्तराबादी (जो कर्बला में दफ्न हैं) ने इमाम मेहदी (अ) से रिवायत की।
दुआए हिजाब (दुश्मन से छुपने की दुआ): सहीफ़ा ए मेहदी
मोहतरम सैयद अली बिन ताऊस (र.अ.) अपनी किताब 'मुहज अद-दआवात' में, दुआ-ए-पोशीदगी और दूसरी पोशीदगियों का ज़िक्र करने के बाद, फरमाते हैं: ये पोशीदगियाँ उन चीज़ों में से हैं जिनकी तिलावत हम पर उस वक़्त ज़ाहिर हुई जब एक सैलाब आया और बहुत से लोगों के डूबने का सबब बना, और पानी हर जगह फैल गया। ऐसे हालात में अपनी जान बचाना इंतेहाई मुश्किल था। सैलाब की शिद्दत ने कई सैलाब-ज़दा इलाकों को तबाह कर दिया। इन दुआओं की क़बूलियत ने हमें वहाँ रहने और तमाम मुश्किलात को दूर करने के क़ाबिल बनाया, इन वाक़ियात से हमारी हिफ़ाज़त की ज़मानत बन गई। हम इसके लिए ख़ुदा का शुक्र अदा करते हैं।[2]
[1] मुहज अद-दआवात: सफहा 360, अल-मिस्बाह: सफहा 296
[2] मुहज अद-दआवात: सफहा 361
इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ) की दी हुई मुनदर्जा ज़ैल दुआएं जो सहीफ़ा अलवीया
से ली गयी हैं उन्हें पढ़ें ताके अपने दुश्मन की साज़िशों और मंसूबों को बे-असर कर सकें।
तहफ़्फ़ुज़ के लिए दुआ 54: यमानी
किताब 'दार-उस-सलाम' में अल्लामा मजलिसी का मख़तूताह मजकूर है:
" सैयद अमीर मुहम्मद हाशिम ने मुझसे यमानी तावीज़ की इजाज़त तलब की जो इमाम अली (अ) से मंसूब है... यह रिवायत अमीर इसहाक़ अस्तराबादी (जो कर्बला में दफ्न हैं) ने इमाम मेहदी (अज) से बयान की है।
तहफ़्फ़ुज़ के लिए दुआ 56: दुश्मनों से तहफ़्फ़ुज़ (यहां क्लिक करें)
तहफ़्फ़ुज़ के लिए दुआ 68: दुश्मनों के जाल से बचने के लिए
اَللّهُمَّ اِنِّىْ اَعُذُبِكَ مِنْ اَنْ اُضَامَ فِىْ سُلْطَانِك
अल्लाहुम्मा इन्नी आऊज़ु बिका मिन अन उज़लमा फी सुल्तानिका
ऐ अल्लाह, मैं तेरी पनाह चाहता हूँ इस वजह से कि: क्या मैं तेरी मुकम्मल सल्तनत के बावजूद मज़लूम बनूँगा?
اَللّهُمَّ اِنِّىْ اَعُذُبِكَ اَنْ اَضِلَّ هُدَاكَ
अल्लाहुम्मा इन्नी आऊज़ु बिका अन अज़िल्ला हुदाका
ऐ अल्लाह, मैं तेरी पनाह चाहता हूँ इस वजह से कि: क्या मैं तेरी हिदायत के बावजूद गुमराह हो जाऊँगा?
اَللّهُمَّ اِنِّىْ اَعُذُبِكَ اَنْ اَفْتَقِرَ فِىْ غِنَاكَ
अल्लाहुम्मा इन्नी आऊज़ु बिका अन अफ्तकिरा फी ग़िना का
ऐ अल्लाह, मैं तेरी पनाह चाहता हूँ इस वजह से कि: क्या मैं तेरी फरावानी के बावजूद मोहताज हो जाऊँगा?
اللهم إني أعوذ بك أن أضيع في سلامتك،
अल्लाहुम्मा इन्नी आऊज़ु बिका अन उज़य्यआ फी सलामतिका
ऐ अल्लाह, मैं तेरी पनाह चाहता हूँ इस वजह से कि: क्या मैं तेरी सलामती के बावजूद बर्बाद हो जाऊँगा?
اَللّهُمَّ اِنِّىْ اَعُذُبِكَ اَنْ اُغْلَبَ وَالْاَمْرُ لَكَ وَاِلَيْكَ
अल्लाहुम्मा इन्नी आऊज़ु बिका अन उग़लबा वल अम्रु लक व इलैका
ऐ अल्लाह, मैं तेरी पनाह चाहता हूँ इस वजह से कि: क्या मैं मगलूब हो जाऊँगा, हालाँकि हर काम तेरी वजह से होता है और (यह वापस) तेरी तरफ आता है।
वैकल्पिक तर्जुमा
बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम
ऐ अल्लाह, मैं तेरी पनाह चाहता हूँ कि तेरी बादशाही में कोई मुझ पर ज़ुल्म न करे। ऐ अल्लाह, मैं तेरी क़ुरबत चाहता हूँ ताकि तेरी हिदायत मुझे भटकने न दे। ऐ अल्लाह, मैं तेरी क़ुरबत चाहता हूँ कि तेरी सलामती के बावजूद मैं बर्बाद न होऊँ। ऐ अल्लाह, मैं तेरी क़ुरबत चाहता हूँ कि मैं तेरी ताकत और कुव्वत के दायरे में मज़बूत और मुस्तहकम रहूँ।
तहफ़्फ़ुज़ के लिए दुआ 70: दुश्मनों पर फतह हासिल करने के लिए
بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ. وَ لاَ حَوْلَ وَ لاَ قُوَّةَ اِلاَّ بِاللهِ الْعَلِیِّ الْعَظِيْمِ اَللَّهُمَّ اِيَّاكَ نَعْبُدُ وَ اِيَّاكَ نَسْتَعِيْنُ
बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम। वला हौला वला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीयिल अजीम। अल्लाहुम्मा इय्याका नाबुदु व इय्याका नस्तईन।
बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम। और अल्लाह के सिवा कोई ताक़त और कुव्वत नहीं है, अज़ीम और बरतर। ऐ अल्लाह, हम तेरी इबादत करते हैं और सिर्फ तुझसे मदद तलब करते हैं।
يَا اَللهُ يَا رَحْمٰنُ يَا رَحِيْمُ يَا اَحَدُ يَا صَمَدُ يَا اِلٰهَ مُحَمَّدٍ
या अल्लाह, या रहमान, या रहीम, या अहद, या समद, या इलाहे मुहम्मद
ऐ अल्लाह! ऐ रहमान! ऐ रहीम! ऐ एक! ऐ बे-नियाज़! ऐ मुहम्मद के खुदा! (अल्लाह की रहमत हो उन पर और उनकी आल पर)
اِلَيْك نُقِلَتِ اْلاَقْدَامُ وَ اَفَضَتِ الْقُلُوْبُ وَ شَخَصَتِ اْلاَبْصَارُ وَ مُدَّتِ اْلاَعْنَاقُ وَ طُلِبَتِ الْحَوَآئِجُ وَ رُفِعَتِ اْلاَيْدِیْ
इलैका नुकिलतिल अक़दामु व अफज़तिल क़ुलूबु व शख़सतिल अबसारु व मुद्धतिल आ'नाकु व तुलबतिल हवाइज़ु व रुफ़ियतिल आइदी
तेरे दायरे में कदम आगे बढ़ रहे हैं और दिलों की हाज़िरी के साथ, आंखें इंतज़ार कर रही हैं, गर्दनें ऊंची हैं, जहां ख़्वाहिशें पूछी जाती हैं और हाथ बुलंद होते हैं।
اَللَّهُمَّ افْتَحْ بَيْنَنَا وَ بَيْنَ قَوْمِنَا بِالْحَقِّ وَ اَنْتَ خَيْرُ الْفَاتِحِيْنَ.
अल्लाहुम्मा फ़तह बैनना व बैन क़ौमना बिल हक़ व अंता खैरुल फातिहीन।
ऐ अल्लाह! हमारे और हमारी क़ौम के दरमियान हक़ के साथ फ़ैसला फ़रमा, जैसे कि तू बेहतरीन फैसला करने वाला है।
फिर तीन मरतबा दोहराएं
لاَ اِلٰهَ اِلاَّ اللهُ وَ اللهُ اَكْبَرُ.
ला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है और अल्लाह अज़ीम है
जब वो दुश्मन से लड़ते थे तो उनकी दुआ
बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम
اللَّهُمَّ إِلَيْكَ أَفْضَتِ الْقُلُوبُ، وَمُدَّتِ الأَعْنَاقُ، وَشَخَصَتِ الأَبْصَارُ، وَنُقِلَتِ الأَقْدَامُ، وَأُنْضِيَتِ الأَبْدَانُ.
اللَّهُمَّ قَدْ صَرَّحَ مَكْنُونُ الشَّنَآنِ، وَجَاشَتْ مَرَاجِلُ الأَضْغَانِ،
ऐ अल्लाह! मेरा दिल तेरे दायरे में हाज़िर है और सर झुका हुआ है और आंखें तुझ पर मरकूज़ हैं, कदम कांप रहे हैं और जिस्म कमजोर हो चुका है, पुरानी दुश्मनियां ज़ाहिर हो रही हैं; बदगोई के बर्तन उबल रहे हैं।
اللَّهُمَّ إِنَّا نَشْكُو إِلَيْكَ غَيْبَةَ نَبِيِّنَا، وَكَثْرَةَ عَدُوِّنَا، وَتَشَتُّتَ أَهْوَائِنَا،
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे शिकायत करता हूँ हमारे नबी के रुख़सत होने की और दुश्मनों की कसरत की, और रंग बिरंगी ख़्वाहिशों की
رَبَّنَا افْتَحْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ قَوْمِنَا بِالْـحَقِّ وَأَنْتَ خَيْرُ الْفَاتِحِينَ.
ऐ अल्लाह! मेरे और मेरे दुश्मनों के दरमियान हक़ को फतह अता फ़रमा, जैसे कि तू बेहतरीन फतह देने वाला है
इन दुआओं को सहीफ़ा अलविया से जांचने के लिए
دعاؤه في العوذة لدفع الاعداء
दुआउसहू फील अउज़ह लिदफ़इल आ'दाह
दुआ दुश्मनों से हिफाज़त के लिए
اَللَّهُمَّ بِكَ اَسْتَفْتِحُ وَ بِكَ اَستَنْجِحُ وَ بِمُحَمَّدٍ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَ الِهِ، اَتَوَجَّهُ، اَللَّهُمَّ سَهِّلْ لي حُزُونَتَهُ وَ كُلَّ حُزُونَةٍ، وَ ذَلِّلْ لي صُعُوبَتَهُ وَ كُلَّ صُعُوبَةٍ، وَ اكْفِني مَؤُونَتَهُ وَ كُلَّ مَؤُونَةٍ، وَ ارْزُقْني مَعْرُوفَهُ وَ وُدَّهُ، وَ اصْرِفْ عَنّي ضُرَّهُ وَ مَعَرَّتَهُ، اِنَّكَ تَمْحُو ما تَشاءُ وَ تُثْبِتُ وَ عِنْدَكَ اُمُّ الْكِتابِ.
अल्लाहुम्मा बिका अस्तफ्तिहु व बिका अस्तन्जिहु व बिमुहम्मदिन सलल्लाहु अलैहि व आलेहि, अतवज्जहु, अल्लाहुम्मा सहिल ली हुज़ूनतहु व कुल्लहुज़ूना, व ज़लिल ली सुअबातहु व कुल्लसु'बातिन, व अकिफ़िनि मा'ऊनतहु व कुल्लमा'ऊना, व अरज़ुक़नी मा'रूफ़हु व वुद्धहू, व असरिफ़ अ'नी ज़ुर्रहु व मा'ररतहु, इन्नका तम्हू मा तशाओ व तुज़्बितु व इन्दका उम्मुल किताब
ऐ अल्लाह! तेरी मदद से मैं आगाज़ करता हूँ और तेरी मदद से ही कामयाबी की उम्मीद रखता हूँ और मोहम्मद ﷺ के वसीले से, ऐ अल्लाह, मेरी दुश्वारियों को आसान कर दे और हर दुश्वारी को आसान कर दे, और मेरी मुश्किलात को हल कर दे और हर मुश्किल को हल कर दे, और मेरी ज़िम्मेदारियों को पूरा कर दे और हर ज़िम्मेदारी को पूरा कर दे, और मुझे उसकी भलाई और मोहब्बत अता फरमा, और उसके शर और नुकसान से मुझे महफूज़ रख, बेशक तू जो चाहता है मिटा देता है और जो चाहता है बाकी रखता है, और तेरे ही पास असल किताब है।
اَلا اِنَّ اَوْلِياءَ اللَّهِ لا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَ لا هُمْ يَحْزَنُونَ، اِنَّا رُسُلُ ربِّكَ لَنْ يَصِلُوا اِلَيْكَ، طه حم لايُبْصِرُونَ، وَ جَعَلْنا مِنْ بَيْنِ اَيْديهِمْ سَدّاً وَ مِنْ خَلْفِهِمْ سَدّاً فَاَغْشَيْناهُمْ فَهُمْ لايُبْصِرُونَ، اُولئِكَ الَّذينَ طَبَعَ اللَّهُ عَلى قُلُوبِهِمْ وَ سَمْعِهِمْ وَ اَبْصارِهِمْ وَ اُولئِكَ هُمُ الْغافِلُونَ، لاجَرَمَ اَنَّ اللَّهَ يَعْلَمُ ما يُسِرُّونَ وَ ما يُعْلِنُونَ، فَسَيَكْفيكَهُمُ اللَّهُ وَ هُوَ السَّميعُ الْعَليمُ، وَ تَريهُمْ يَنْظُرُونَ اِلَيْكَ وَ هُمْ لايُبْصِرُونَ، صُمٌّ بُكْمٌ عُمْىٌ فَهُمْ لايَرْجِعُونَ.
अला इन्न अवलिया'अल्लाहि ला ख़ौफ़ुन अलैहिम व ला हम यहज़नून, इन्ना रुसूलु रब्बिक लन् यसिलू इलैक, ताहा हा मिम् लायुब्सिरून, व जअ'ल्ना मिन बैन ऐदीहिम सद्दव व मिन ख़ल्फिहिम सद्दव फ़आग़शैनाहुम फ़हुम लायुब्सिरून, उल्लाईका अल्लज़ीना तुबिअ'अल्लाहु अला क़ुलूबिहिम व समीहिम व अब्सारिहिम व उल्लाईका हुमुल ग़ाफ़िलून, लाजरमा अ'न्नल्लाहु यआलमु मा युसिर्रून व मा युअलिनून, फ़सयकफ़ीकहुमुल्लाहु व हु अस्समीअुल अलीम, व तराहुम् यन्ज़ुरून इलैक व हुम लायुब्सिरून, सुम्मुन बुक्मुन उम्युन फ़हुम् लायरजिऊन
खबरदार! बेशक अल्लाह के दोस्तों को न कोई खौफ है और न वह ग़मगीन होंगे। हम आपके रब के रसूल हैं, वे आप तक नहीं पहुँच सकेंगे, ताह हाम, वे नहीं देख सकेंगे, और हमने उनके आगे एक रुकावट खड़ी कर दी है और उनके पीछे भी एक रुकावट खड़ी कर दी है, पस हमने उन्हें ढाँप दिया है, पस वे नहीं देख सकेंगे। ये वह लोग हैं जिनके दिलों, कानों और आँखों पर अल्लाह ने मोहर लगा दी है और ये लोग ग़ाफिल हैं। बिला शक अल्लाह जानता है जो कुछ वे छुपाते हैं और जो कुछ वे ज़ाहिर करते हैं। पस अल्लाह आपको उनसे काफी होगा और वह सुनने वाला जानने वाला है। आप उन्हें देखते हैं कि वे आपको देखते हैं, लेकिन वे नहीं देखते। ये बहरे, गूंगे और अंधे हैं, पस वे वापस नहीं आएंगे।
طسم، تِلْكَ اياتُ الْكِتابِ الْمُبينِ، لَعَلَّكَ باخِعٌ نَفْسَكَ اَلاَّ يَكُونُوا مُؤْمِنينَ، اِنْ نَشَأْ نُنَزِّلْ عَلَيْهِمْ مِنَ السَّماءِ ايَةً فَظَلَّتْ اَعْناقُهُمْ لَها خاضِعينَ.
तासिम, तिल्का आयातुल किताबिल मुबीन, ला'अल्लका बाखिउ' नफ़्सका अल्ला यक़ूनू मुमिनीन, इन निशा नुन्नज़िल अलेहिम् मिन अस्समाइ आयतन फ़ज़ल्लत अ'नाकुहुम लहा ख़ाज़िईन।
तासीन मीम، ये वाज़ेह किताब की आयात हैं, शायद आप अपनी जान को हलाक कर लेंगे इस लिए कि वे ईमान नहीं लाते। अगर हम चाहें तो उन पर आसमान से एक निशानी नाज़िल कर दें जिसके सामने उनकी गर्दनें झुक जाएं।
الاسماء:
अल असमा
अल-अस्मा (नाम)
اَللَّهُمَّ اِنّي اَسْأَلُكَ بِالْعَيْنِ الَّتي لاتَنامُ، وَ بِالْعِزِّ الَّذي لايُرامُ، وَ بِالْمُلْكِ الَّذي لايُضامُ، وَ بِالنُّورِ الَّذي لايُطْفى، وَ بِالْوَجْهِ الَّذي لايَبْلى، وَ بِالْحَياةِ الَّذي لاتَمُوتُ، وَ بِالصَّمَدِيَّةِ الَّتي لاتُقْهَرُ، وَ بِالدَّيْمُومِيَّةِ الَّتي لاتَفْنى، وَ بِالْاِسْمِ الَّذي لايُرَدُّ، وَ بِالرُّبُوبِيَّةِ الَّتي لاتُسْتَذَلُّ، اَنْ تُصَلِّيَ عَلى مُحَمَّدٍ وَ الِ مُحَمَّدٍ وَ اَنْ تَفْعَلَ بي كَذا و كَذا.
अल्लाहुम्मा इन्नी असालुक बिला'इनि ल्लती लातनाम, वि'ल्लिज्जिल्लज़ी लायुराम, वि'ल्मुल्किल लज़ी लायुज़ाम, वि'न्नूरिल लज़ी लायुत्फ़ा, वि'ल्लवज्जिल लज़ी लायब्ला, वि'ल्लहयातिल लज़ी लातमूत, वि'स्समदिय्यति लज़ी लातुक़हर, वि'दैयमूमिय्यति लज़ी लातफ़ना, वि'लिस्मिल लज़ी लायुरद्द, वि'र्रुबूबिय्यति लज़ी लातुस्तज़िल्ल, अं तुसल्ली अ'ला मुहम्मदिन् वि'आलि मुहम्मदिन् वि'अं तफआ'ल बी कज़ा व कज़ा।
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे मांगता हूं उस आंख के वासते से जो नहीं सोती, उस इज़्ज़त के वासते से जो बे-नियाज़ी है, उस सल्तनत के वासते से जो कमज़ोर नहीं होती, उस नूर के वासते से जो बुझता नहीं, उस चेहरे के वासते से जो मिटता नहीं, उस ज़िंदगी के वासते से जो खत्म नहीं होती, उस समदियत के वासते से जो मग़लूब नहीं होती, उस दवाम के वासते से जो फ़ना नहीं होती, उस नाम के वासते से जो रद्द नहीं किया जाता, उस रबूबियत के वासते से जो मग़लूब नहीं होती, कि तू मोहम्मद ﷺ और आल मोहम्मद ﷺ पर दरूद भेज और मेरे साथ ये और ये मामला कर (ये और ये की जगह अपनी दुआ माँगें)!
و تذكر حاجتك.
व तज़्कुर हाजतक।
और अपनी हाजत ब्यान करें
دعاؤه في كفاية البلاء
दुआ फी किफ़ाया अलबलाया
बला से बचने की दुआ
عن عبدالله بن الفضل، عن ابيه قال: كنت اصحب الرشيد، فاقبل على يوماً غضباناً و بيده سيف يقلّبه - ثمّ ذكر دخول موسي بن جعفر عليه السلام و اكرامه ايّاه، الى ان قال: - فقلت له: ما الّذى قلت حتّي كفيت امر الرشيد؟ فقال: دعاء جدّى علي بن ابي طالب،كان اذا دعا به ما برز الى عسكر الاّ هزمه و لا الى فارس الاّ قهره و هو دعاء كفاية البلاء، قلت: و ما هو؟ قال: قال:
अन अब्दुल्लाह बिन अल-फज़ल, अन अबीही क़ाल: कुन्तु अश्हब अर-रशीद, फ़अक़बल अलय्या यौमन ग़दबानन वा बियदही सैफ़न युकल्लिबुहु - थुम्मा ज़क़रा दखूल मूसा बिन जाफ़र अलैहि सलाम वा इकरामुहु इय्याह, इला अन क़ाल: - फ़क़ल्तु लहू: मा अल्लज़ी क़ुल्ता हत्ता कफ़ैता अम्र अर-रशीद? फ़क़ाल: दुआ जद्दी अली बिन अबी तालिब, कान इज़ा दआ बिही मा बरज़ इला अस्कर इल्ला हज़महु वा ला इला फारस इल्ला क़ह्रहु वा हु दुआ किफ़ायत अल-बला, कुल्तु: वा मा हु? क़ाल: क़ाल:
अब्दुल्लाह बिन फ़ज़्ल ने अपने वालिद से रिवायत की कि: मैं अर-रशीद के साथ था, वह एक दिन ग़ुस्से में मेरी तरफ़ आए और उनके हाथ में एक तलवार थी जिसे वह घुमा रहे थे। फिर उन्होंने मूसा बिन जाफ़र अलैहिस्सलाम के दाख़िले और उनके एहतराम का ज़िक्र किया, यहां तक कि उन्होंने कहा: मैंने उनसे पूछा: आप ने क्या कहा जिससे अर-रशीद का मामला हल हो गया? उन्होंने कहा: मेरे दादा अली बिन अबी तालिब की दुआ है, जब भी वह इसे पढ़ते तो किसी लश्कर के मुक़ाबले नहीं आते मगर उसे शिकस्त देते, और न किसी शहसवार के मुक़ाबले आते मगर उसे ज़ेर करते। और यह दुआ "किफ़ायत अल-बलाया" की दुआ है। मैंने पूछा: वह क्या है? उन्होंने कहा: कहा:
اَللَّهُمَّ بِكَ اُساوِرُ، وَ بِكَ اُحاوِلُ، وَ بِكَ اَصُولُ، وَ بِكَ اَنْتَصِرُ، وَ بِكَ اَمُوتُ وَ بِكَ اَحْيا، اَسْلَمْتُ نَفْسي اِلَيْكَ، وَ فَوَّضْتُ اَمْري اِلَيْكَ، وَ لاحَوْلَ وَ لاقُوَّةَ اِلاَّ بِاللَّهِ الْعَلِيِّ الْعَظيمِ.
अल्लाहुम्मा बिक अुसाविरु, वा बिक अहाविलु, वा बिक असूलु, वा बिक अन्तसिरु, वा बिक अमूतु वा बिक अह्या, असलम्तु नफ्सी इलैक, वा फव्वज़तु अम्री इलैक, वा ला हौल वा ला क़ूव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीय्यिल अज़ीम।
ऐ अल्लाह! तेरी मदद से मैं हमला करता हूँ, तेरी मदद से मैं कोशिश करता हूँ, तेरी मदद से मैं हमला करता हूँ, तेरी मदद से मैं फ़तह पाता हूँ, तेरी मदद से मैं मरता हूँ और तेरी मदद से मैं ज़िंदा होता हूँ। मैंने अपनी जान तेरे सुपुर्द कर दी, और अपने मामलात तेरे हवाले कर दिए, और कोई ताक़त और क़ुव्वत नहीं मगर अल्लाह, जो अज़ीम और बुलंद है, के सिवा।
اَللَّهُمَّ اِنَّكَ خَلَقْتَني وَ رَزَقْتَني، وَ سَرَرْتَني وَ سَتَرْتَنى، وَ بَيْنَ الْعِبادِ بِلُطْفِكَ خَوَّلْتَني(3)، اِذا هَوَيْتُ رَدَدْتَني، وَ اِذا عَثَرْتُ اَقَلْتَني، وَ اِذا مَرِضْتُ شَفَيْتَني، وَ اِذا دَعَوْتُكَ اَجَبْتَني، يا سَيِّدي ارْضِ عَنّي فَقَدْ اَرْضَيْتَني.
अल्लाहुम्मा इन्नका खलक़्तनी वा रज़क़्तनी, वा सररतनी वा सतरतनी, वा बैनल-इबादि बिलुत्फ़िका ख़व्वल्तनी, इज़ा हवाईतु रदद्तनी, वा इज़ा अतरतु अक़ल्तनी, वा इज़ा मरिदतु शफैतनी, वा इज़ा दआव्तुका अजबतनी, या सैय्यिदी अर्ज़ अन्नी फक़द अर्ज़ैतनी।
ए अल्लाह! तू ने मुझे पैदा किया और मुझे रिज़्क़ दिया, तू ने मुझे ख़ुश किया और मेरी पर्दा पोशी की, और अपने बंदों के दरमियान अपने लुत्फ़ से मुझे इज़्ज़त दी। जब भी मैंने गुनाह की तरफ़ माइल हुआ तो तू ने मुझे रोक दिया, जब मैंने लुग़्ज़िश की तो तू ने मुझे माफ़ कर दिया, जब मैं बीमार हुआ तो तू ने मुझे शिफ़ा दी, और जब मैंने तुझे पुकारा तो तू ने मेरी दुआ क़ुबूल की। ए मेरे आका! मुझसे राज़ी हो जा, बेशक तू ने मुझे राज़ी कर दिया है।
دعاؤه لدفع من يقيم على الظلم ولا يرتدع عنه
दुआउहु लिदफ़ि मन यकीमु आला ज़्ज़ुल्मि वला यरतदिउ अन्हु
ज़ालिम को दफ़ा करने की दुआ जो ज़ुल्म पर क़ायम है और बाज़ नहीं आता
عنه عليه السلام: من ظلم و اقام ظالمه على ظلمه لايرجع عنه، فليفض الماء على نفسه أو يسبغ الوضوء و يصلّي ركعتين و يقول:
अन्हु अलैहिस्सलाम: मन ज़ुल्म वा अक़ाम ज़ालिमहु आला ज़ुल्मिहि ला यरजिउ अन्हु, फलियफ़िद अल-मा अला नफ़्सिहि औ युसबिग़ अल-वज़ू व युसल्ली रकअतैन व यक़ूल:
अन्हु अलैहिस्सलाम: जो शख्स ज़ुल्म करे और अपने ज़ुल्म पर कायम रहे और उससे बाज़ न आए, तो वह अपने ऊपर पानी बहाए या अच्छी तरह वुज़ू करे और दो रकअत नमाज़ पढ़े और कहे:
اَللَّهُمَّ اِنَّ فُلانَ بْنَ فُلانٍ ظَلَمَني، وَ اعْتَدى عَلَيَّ، وَ نَصَبَ لي، وَ اَمَضَّني وَ اَرْمَضَني وَ اَذَلَّني وَ اَخْلَقَني، اَللَّهُمَّ فَكِلْهُ اِلى نَفْسِهِ، وَ هُدَّ رَكْنَهُ، وَ عَجِّلْ جائِحَتَهُ وَ اسْلُبْهُ نِعْمَتَكَ عِنْدَهُ، وَ اقْطَعْ رِزْقَهُ، وَ ابْتُرْ عُمْرَهُ.
अल्लाहुम्मा इन्ना फ़ुलान बिन फ़ुलान ज़लमनी, व अअतदा अलय्य, व नसबा ली, व अमज़नी व अरमज़नी व अज़ल्लनी व अख़लक़नी, अल्लाहुम्मा फकिल्हु इला नफ्सिहि, व हुड्ड रक्नहू, व अज्जिल जाइहतहू व असल्बहू नेमतक अिंदहू, व अक़ता रिज़कहू, व अबतर उमरहू।
ऐ अल्लाह! फलां बिन फलां ने मुझ पर ज़ुल्म किया, और मुझ पर ज़्यादती की, और मेरे खिलाफ़ मंसूबा बनाया, और मुझे तकलीफ़ दी और मुझे आज़र्दा किया और मुझे ज़लील किया और मुझे बर्बाद किया, ऐ अल्लाह! उसे उसके नफ़्स के हवाले कर दे, और उसका स्तंभ तोड़ दे, और उसकी तबाही जल्दी ला, और उससे अपनी नेमत छीन ले, और उसका रिज़्क़ काट दे, और उसकी उम्र ख़त्म कर दे।
وَ امْحُ اَثَرَهُ، وَ سَلِّطْ عَلَيْهِ عَدُوَّهُ، وَ خُذْهُ في مَأْمَنِهِ، كَما ظَلَمَني وَ اعْتَدى عَلَيَّ، وَ نَصَبَ لي، وَ اَمَضَّ وَ اَرْمَضَ، وَ اَذَلَّ وَ اَخْلَقَ، اَللَّهُمَّ اِنّي اَسْتَعيذُ(4) بِكَ عَلى فُلانِ بْنِ فُلانٍ فَاَعِذْني، فَاِنَّكَ اَشَدُّ بَأْساً وَ اَشَدُّ تَنْكيلاً.
व अम्हु असरहू, व सल्लित अलैहि अदूव्वहू, व खुज़हु फी मअमनिही, कमा ज़लमनी व अअतदा अलय्या, व नसबा ली, व अमज़्ज़ा व अरमज़्ज़ा, व अज़ल्ला व अख़लक़ा, अल्लाहुम्मा इन्नी अस्तईज़ु बिका आला फलान बिन फलान फ़अइज़नी, फ़इन्नका अशद्दु बअसा व अशद्दु तनकीला।
और उसके निशान मिटा दे, और उस पर उसके दुश्मन को मुसल्लत कर दे, और उसे उसकी पनाह गाह में पकड़ ले, जैसे उसने मुझ पर ज़ुल्म किया और मुझ पर ज़्यादती की, और मेरे ख़िलाफ़ मंसूबा बनाया, और मुझे तकलीफ़ दी और मुझे आज़रदा किया, और मुझे ज़लील किया और बर्बाद किया। ऐ अल्लाह! मैं तुझसे फलां बिन फलां के ख़िलाफ़ पनाह मांगता हूँ, पस मुझे पनाह दे, बेशक तू सबसे ज़्यादा सख़्त अज़ाब देने वाला और सबसे ज़्यादा सख़्त सज़ा देने वाला है।
فانه لايمهل ان شاء الله تعالى، يفعل ذلك ثلاثاً.
फ़इन्नहू ला युमहिलु इं शा अल्लाह तआला, यफअलु ज़ालिक सलासन
पस, वह देर नहीं करेगा अगर अल्लाह तआला ने चाहा, वह यह तीन बार करेगा।
دعاؤه لدفع شر الناس
दुआ दफ़ा ए शरफ़ अल्नास
इंसान के शर से बचने की दुआ
اَللَّهُمَّ اِنَّكَ سَلَّطْتَ عَلَيْنا بِذُنُوبِنا مَنْ لايَعْرِفُكَ، فَبِحُقُوقِ مَنْ يَعْرِفُكَ عَلَيْكَ اَنْ تَدْفَعَ عَنَّا بَلِيَّةَ مَنْ لايَعْرِفُكَ.
अल्लाहुम्मा इन्नका सल्लत्त अलेयना बि-ज़ुनूबिना मन ला-यअरिफ़ुका, फा-बिहुकूक़ि मन यअरिफ़ुका अलेयका अन तदफ़अ अन्ना बलिय्यत मन ला-यअरिफ़ुका।
ऐ अल्लाह! बेशक तू ने हमारे गुनाहों की वजह से हम पर ऐसे लोगों को मुसल्लत कर दिया है जो तुझे नहीं जानते, पस उन
دعاؤه في الاحتراز
दुआ फ़ी अल' एहतराज़
एहतियात के लिए दुआ
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمنِ الرَّحيمِ، بِسْمِ اللَّهِ وَ بِاللَّهِ، رَبِّ احْتَرَزْتُ بِكَ، وَ تَوَكَّلْتُ عَلَيْكَ، وَ فَوَّضْتُ اَمْري اِلَيْكَ، رَبِّ اَلْجَأْتُ ضَعْفَ رُكْني اِلى قُوَّةِ رُكْنِكَ، مُسْتَجيراً بِكَ، مُسْتَنْصِراً لَكَ، مُسْتَعيناً بِكَ عَلى ذَوِي التَّعَزُّزِ عَلَيَّ وَ الْقَهْرِ لي وَ الْقُوَّةِ عَلى ضَيْمي وَ الْاَقْدامِ عَلى ظُلْمي، يا رَبِّ اِنّي في جِوارِكَ فَاِنَّهُ لاضَيْمَ عَلى جارِكَ.
बिस्मिल्लाह अर-रहमान अर-रहीम, बिस्मिल्लाह वा बिल्लाह, रब्बी अह्तराज़तु बिका, वा तवक्कलतु अलैक, वा फ़व्वज़तु अमरी इलैक, रब्बी अलजअतु दअफ़ रुक्नी इला क़ुव्वत रुक्निक, मुस्तजीरन बिका, मुस्तनसिरन लका, मुस्तईनन बिका अला ज़वी तअज्जुज़ अलय्य वा अल-कह्र ली वा अल-क़ुव्वत अला ज़ैमी वा अल-अक़दाम अला ज़ुल्मी, या रब्बी इन्नी फी जिवारिका फइन्नहु ला ज़ैम अला जारिका।
ऐ अल्लाह! मैंने तेरी पनाह ली है, और तुझ पर भरोसा किया है, और अपना मामला तेरे सुपुर्द किया है, ऐ मेरे रब! मैंने अपनी कमजोरी को तेरी क़ुव्वत की पनाह में लाया हूँ, तेरे मददगार होने के लिए, तेरी मदद से, जो मेरे ऊपर ग़ालिब हो, और मुझे ज़ुल्म से बचा। ऐ रब! मैं तेरे जोवार में हूँ क्योंकि तेरे जोवार में रहने वाले पर कोई ज़ुल्म नहीं होता।
رَبِّ فَاقْهَرْ عَنّي قاهِري بِقُوَّتِكَ، وَ اَوْهِنْ عَنّي مُسْتَوْهِني بِقُدْرَتِكَ، وَ اقْصِمْ عَنّي ضائِمي بِبَطْشِكَ، رَبِّ وَ اَعِذْني بِعِياذِكَ، بِكَ امْتَنِعُ عائِذُكَ، رَبِّ وَ اَدْخِلْ عَلَيَّ في ذلِكَ كُلِّهِ سِتْرَكَ، وَ مَنْ يَسْتَتِرُ بِكَ فَهُوَ الْامِنُ الْمَحْفُوظُ، وَ لاحَوْلَ وَ لاقُوَّةَ اِلاَّ بِاللَّهِ.
रब्बी फक़ह्र अन्नी काहिरी बिकुव्वतिक, वा अउहिन अन्नी मुस्तविहनी बिकुद्रतिक, वा अक़्सिम अन्नी ज़ाइमि बिबत्शिक, रब्बी वा अइज़नी बिईयाज़िक, बिका अम्तनिअ आइज़िक, रब्बी वा अदखिल अलाईया फी ज़ालिक कुल्लिहि सित्रक, वा मन यस्ततिर बिका फहुवल-आमिन अल-महफ़ूज़, वा ला हौला वा ला कुव्वता इल्ला बिल्लाह।
ऐ रब! मेरे दुश्मन को अपनी क़ुव्वत से मग़लूब कर दे, और अपने इख़्तियार से उसको नाकाम कर दे, और अपनी पकड़ से मेरे दुश्मन को नेस्त व नाबूद कर दे, ऐ रब! मुझे अपनी पनाह में रख, तेरे ज़रिये ही मैं पनाह लेता हूँ, ऐ रब! मुझे अपनी पनाह में रख, और जो तेरी पनाह में आता है वह महफ़ूज़ और मामून होता है, और अल्लाह के सिवा कोई ताक़त और क़ुव्वत नहीं।
اَلْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذي لَمْ يَتَّخِذْ وَلَداً وَ لَمْ يَكُنْ لَهُ شَريكٌ فِي الْمُلْكِ، وَ لَمْ يَكُنْ لَهُ وَلِيٌّ مِنَ الذُّلِّ وَ كَبِّرْهُ تَكْبيراً، مَنْ يَكُ ذا حيلَةٍ في نَفْسِهِ، اَوْ حَوْلٍ في تَقَلُّبِهِ، اَوْ قُوَّةٍ في اَمْرِهِ، في شَيْ ءٍ سِوَى اللَّهِ عَزَّ وَ جَلَّ، فَاِنَّ حَوْلي وَ قُوَّتي وَ كُلَّ حيلَتي بِاللَّهِ الْواحِدِ الْاَحَدِ الصَّمَدِ، الَّذي لَمْ يَلِدْ وَ لَمْ يُولَدْ وَ لَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُواً اَحَدٌ.
अल-हम्दुलिल्लाह अल्लज़ी लम यत्तखिज़ वालदं वा लम यकुन लहू शरीकं फी अल-मुल्क, वा लम यकुन लहू वलीय्यं मिन अल-ज़ुल्ल, वा कब्बिरहु तक्बीरां, मन यकु ज़ा हीलतिं फी नफ्सिहि, औ हौलिं फी तकल्लुबिहि, औ कुव्वतिं फी अम्रिहि, फी शै-इ सिवा अल्लाहि अज़्ज़ वा जल्ल, फइन्ना हौली वा कुव्वती वा कुल्ल हीलती बिल्लाह अल-वाहिद अल-अहद अस्समद, अल्लज़ी लम यलिद वा लम यूलद, वा लम यकुन लहू कुफुअं अहद।
सब तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं जिसने न कोई औलाद बनाई, न कोई शरीक बनाया, और न कोई मददगार बनाया, वह पाक है और बुलंद है। जो खुद पर हिला और क़ुव्वत रखता है, या जो अपने मामले में ताक़तवर है, अल्लाह के सिवा किसी चीज़ में नहीं। बेशक मेरी क़ुव्वत और मेरी हिला-गरी सब अल्लाह की मदद से है जो वाहिद है, बे-नियाज़ है, जो न पैदा हुआ है और न पैदा किया गया है, और न उसका कोई शरीक है।
كُلُّ ذي مُلْكٍ فَمَمْلُوكٌ لِلَّهِ، وَ كُلُّ ذي قُدْرَةٍ فَمَقْدُورٌ لِلَّهِ، وَ كُلِّ ظالِمٍ فَلامَحيصَ لَهُ مِنْ عَدْلِ اللَّهِ، وَ كُلُّ مُتَسَلِّطٍ فَمَقْهُورٌ لِسَطْوَةِ اللَّهِ، وَ كُلُّ شَيٍْ فَفي قَبْضَةِ اللَّهِ، صَغُرَ كُلُّ جَبَّارٍ في عَظَمَةِ اللَّهِ، ذَلَّ كُلُّ عَنيدٍ لِبَطْشِ اللَّهِ، اِسْتَظْهَرْتُ عَلى كُلِّ عَدُوٍّ، وَ دَرَأْتُ في نَحْرِ كُلِّ عاتٍ بِاللَّهِ.
कुल्लु ज़ी मुल्किं फ-मम्लूकु लिल्लाह, वा कुल्लु ज़ी कुद्रतिं फ-मकदूरु लिल्लाह, वा कुल्लि ज़ालिमिं फ-लामहिस लहू मिन अद्लिल्लाह, वा कुल्लु मुतसल्लितिं फ-मक़हूरु लिसत्वतिल्लाह, वा कुल्लु शै-इ फ-फी क़ब्दतिल्लाह, सग़र कुल्लु जब्बारिं फी अज़मतिल्लाह, ज़ल्ल कुल्लु अनीदिं लिबत्शिल्लाह, इस्तज़्हरतु अला कुल्लि अदुव्विं, वा दरअतु फी नहरी कुल्लि आतिं बिल्लाह।
हर चीज़ अल्लाह के कब्जे में है, और हर ज़ालिम अल्लाह के अदल से नहीं बच सकता, और हर ताक़तवर अल्लाह के कब्जे में है, और हर चीज़ अल्लाह के इख़्तियार में है, हर जाबिर अल्लाह की अज़मत के सामने छोटा है, हर सरकश अल्लाह की पकड़ के सामने ज़लील है, मैंने अल्लाह की मदद से हर दुश्मन के खिलाफ अपनी हिफाज़त की है, और अल्लाह की मदद से हर सरकश के खिलाफ लड़ाई की है।
ضَرَبْتُ بِاِذْنِ اللَّهِ بَيْني وَ بَيْنَ كُلِّ مُتْرَفٍ ذي سَطْوَةٍ، وَ جَبَّارِ ذي نَخْوَةٍ، وَ مُتَسَلِّطٍ ذي قُدْرَةٍ، وَ عاتٍ ذي مُهْلَةٍ، وَ والٍ ذي اِمْرَةٍ، وَ حاسِدٍ ذي صَنيعَةٍ، وَ ماكِرٍ ذي مَكيدَةٍ، وَ كُلِّ مُعانٍ اَوْ مُعينٍ عَلى مَقالَةٍ مُغْوِيَةٍ، اَوْ حيلَةٍ مُوذِيَةٍ، اَوْ سِعايَةٍ مُشْلِيَةٍ، اَوْ غيلَةٍ مُرْدِيَةٍ، وَ كُلِّ طاغٍ ذي كِبْرِياءٍ، اَوْ مُعْجَبٍ ذي خُيَلاءٍ عَلى كُلِّ نَفْسٍ في كُلِّ مَذْهَبٍ.
ज़रबतु बिइज़्निल्लाह बैनि वा बैन कुल्लि मत्रफिं ज़ी सतवतिं, वा जब्बार ज़ी नख्वतिं, वा मुतसल्लित ज़ी कुद्रतिं, वा आत ज़ी मुहलतिं, वा वाल ज़ी इमरति, वा हसिद ज़ी सनीअति, वा माकिर ज़ी मकीदति, वा कुल्लि मुआन औ मुअीन अला मक़ालति मुघवियतिं, औ हीलतिं मूज़ियतिं, औ सिआयतिं मुश्लियतिं, औ ग़ीलतिं मुरदियतिं, वा कुल्लि ताघिं ज़ी किब्रियाय, औ मुअजब ज़ी खुइलाय अला कुल्लि नफ्सिं फी कुल्लि मज़्हबिं।
अल्लाह के हुक्म से मैंने हर मुतकब्बिर के खिलाफ, हर जाबिर के खिलाफ, हर ताक़तवर के खिलाफ, हर सरकश के खिलाफ, हर वाली के खिलाफ, हर हसद करने वाले के खिलाफ, हर मकर करने वाले के खिलाफ, हर फ़रेब देने वाले के खिलाफ, हर हिला करने वाले के खिलाफ, हर बद-ख़्वाह के खिलाफ, हर सरकश के खिलाफ, हर तकब्बुर करने वाले के खिलाफ अपनी हिफाज़त की है।
وَ اَعْدَدْتُ لِنَفْسي وَ ذُرِّيِّتي مِنْهُمْ حِجاباً بِما اَنْزَلْتَ في كِتابِكَ، وَ اَحْكَمْتَ مِنْ وَحْيِكَ الَّذي لايُؤْتى بِسُورَةٍ مِنْ مِثْلِهِ، وَ هُوَ الْكِتابُ الْعَدْلُ الْعَزيزُ الْجَليلُ الَّذي لايَأْتيهِ الْباطِلُ مِنْ بَيْنِ يَدَيْهِ وَ مِنْ خَلْفِهِ، تَنْزيلٌ مِنْ حَكيمٍ مَجيدٍ، خَتَمَ اللَّهُ عَلى قُلُوبِهِمْ وَ عَلى سَمْعِهِمْ وَ عَلى اَبْصارِهِمْ غِشاوَةٌ، وَ لَهُمْ عَذابٌ عَظيمٌ، وَ صَلَّى اللَّهُ عَلى مُحَمَّدٍ وَ الِهِ وَ سَلَّمَ تَسْليماً كَثيراً.
वा अअद्दतु लिनफ्सी वा ज़ुर्रियती मिन्हुम हिजाबं बिमा अन्जल्ता फी किताबिका, वा अह्कमत मिन वह्यिका अल्लज़ी ला युउता बिसूरति मिन मिथ्लिहि, वा हुवल किताब अल-अदल अल-अज़ीज़ अल-जलील अल्लज़ी ला यअतिहि अल-बातिलु मिन बैनि यदैयहि वा मिन खल्फिहि, तनज़ीलु मिन हकीमिं मजीद, खतम अल्लाहु अला कुलूबिहिम वा अला समअिहिम वा अला अबसारिहिम घिशावतु, वा लहुम अज़ाबु अज़ीम, वा सल्लल्लाहु अला मुहम्मद वा आलिहि वा सल्लम तस्लीमं कसीरा।
मैंने अपनी और अपनी नस्ल की हिफाज़त के लिए इन सब से अल्लाह की किताब के वसीले से हिजाब बनाया है, और उसके वह्य के ज़रिये जो लाजवाब है, और वह अल्लाह की किताब है जो बातिल से पाक है, और जिसमें हिकमत और बर्ज़गी है, अल्लाह ने उनके दिलों पर, उनके कानों पर, और उनकी आँखों पर मुहर लगा दी है, और उनके लिए अज़ीम अज़ाब है, और अल्लाह मोहम्मद और उनकी आल पर दरूद भेजे और बहुत सलाम भेजे।
دعاؤه في الاحتراز
दुआ फ़ी अल' एहतराज़
एहतियात के लिए दुआ
يكتب و يشدّ على العضد الايمن:
यक़तब व यशद्द अला अल-उदुद अल-अयमन:
यह लिखा जाए और दाएँ बाजू पर बाँधा जाए:
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمنِ الرَّحيمِ، اَىْ كنوش ار كنوش أره شش عططبيطسفيخ يا مططرُون قريالسيون ما و ما سُوما سُوماطيطسالُوسْ خبطُوسْ مسفقيس مسامعوش افرطيعوش لطيفكش لطيفوش هذا(5).
बिस्मिल्लाह अर-रहमान अर-रहीम, ऐ कनूश अर कनूश अरह शश अततबीतसफीख या मत्तारून क़ुरियालसियून मा वा मा सूम सूमातीतसालूस ख़ब्तूस मसफकीस मसामऊश अफ़रतीऊश लतीफ़कश लतीफ़ूश हज़ा(5)।
बिस्मिल्लाह अर-रहमान अर-रहीम, ऐ कनूश अर कनूश अरह शश अततबीतसफीख या मत्तारून कुरियालसियून मा वा मा सूम सूमातीतसालूस ख़ब्तूस मसफकीस मसामऊश अफ़रतीऊश लतीफ़कश लतीफ़ूश हज़ा(5) -" ये मख़सूस इबारत है जिस का कोई मख़सूस तरजुमा नहीं है और ये मख़सूस अल्फ़ाज़ के मजमुए हैं जिन का अरबी मतन में कोई वाज़ेह मआनी नहीं होता। ये अकसर तावीजात और दुआओं में इस्तेमाल होते हैं।"
وَ ما كُنْتَ بِجانِبِ الْغَرْبِيِّ اِذْ قَضَيْنا اِلى مُوسَى الْاَمْرَ وَ ما كُنْتَ مِنَ الشَّاهِدينَ، اُخْرُجْ بِقُدْرَةِ اللَّهِ مِنْها اَيُّهَا اللَّعينُ بِعِزَّةِ رَبِّ الْعالَمينَ اُخْرُجْ مِنْها وَ اِلاَّ كُنْتَ مِنَ الْمَسْجُونينَ، اُخْرُجْ مِنْها فَما يَكُونُ لَكَ اَنْ تَتَكَّبَرَ فيها فَاخْرُجْ اِنَّكَ مِنَ الصَّاغِرينَ.
वा मा कुन्तु बिजानिब अल-ग़रबी इज़ क़ज़ैना इला मूसा अल-अम्र वा मा कुन्तु मिन अश-शाहिदीन, उख़रुज बिकुद्रत अल्लाह मिन्हा अय्युहा अल-लईन बिअज़्ज़त रब्ब अल-आलमीन उख़रुज मिन्हा वा इल्ला
कुन्तु मिन अल-मसजूनिन, उख़रुज मिन्हा फमा यकूनु लका अन ततकब्बर फीहा फाख़रुज इन्नका मिन अस-साग़िरीन।
और (ऐ मुख़ातिब) तुम मग़रिबी जानिब मौजूद नहीं थे जब हमने मूसा को मामला सौंपा और तुम भी शाहिदीन में से नहीं थे। अल्लाह की क़ुदरत से यहाँ से निकल जा ऐ लईन, रब्बुल-आलमीन की इज़्ज़त की क़सम, यहाँ से निकल जा वरना तुम क़ैद में रहोगे, यहाँ से निकल जा क्योंकि तुझे यहाँ पर तकब्बुर करने का कोई हक़ नहीं है, यहाँ से निकल जा क्योंकि तुम ज़लीलों में से हो।
اُخْرُجْ مِنْها مَذْمُوماً مَدْحُوراً مَلْعُوناً، كَما لَعَنَّا اَص بِالْاِسْمِ الْمَكْتُوبِ عَلى جَبْهَةِ اِسْرافيلَ، اُطْرُدُوا عَنْ صاحِبِ هذَا الْكِتابِ كُلَّ جِنِّىٍّ وَ جِنِّيَّةٍ، وَ شَيْطانٍ وَ شَيْطانَةٍ، وَ تابِعٍ وَ تابِعَةٍ، وَ ساحِرٍ وَ ساحِرَةٍ، وَ غُولٍ وَ غُولَةٍ، وَ كُلَّ مُتَعَبِّثٍ وَ عابِثٍ يَعْبَثُ بِابْنِ ادَمَ.
यहाँ से निकल जा मज़्मूम होकर, मलऊन होकर जैसे हमने असहाब-अस-सबत को लानत की, और अल्लाह का हुक्म पूरा होकर रहता है, यहाँ से निकल जा ऐ मख़ज़ून, यहाँ से निकल जा ऐ सूरा, ऐ सूरा सूर, मख़ज़ून नाम से याटतरून, तरऊन, मराऊन, बिस्म अल-मक्तूब अला जबहह इस्राफील, उत्रुदू अन साहिब हज़ा अल-किताब कुल्ल जिन्नी वा जिन्नीयह, वा शैतान वा शैतानह, वा ताबिअ वा ताबिआह, वा साहिर वा साहिराह, वा ग़ूल वा ग़ूलह, वा कुल्ल मुतअब्बिस वा आबिस यअबस बिब्न आदम।
उख़रुज मिन्हा मज़्मूमन मादहूरन मलऊनन, कमा लअनना असहाब अस-सबत, वा कान अम्र अल्लाह मफ़ऊला, उख़रुज या ज़ा अल-मख़जून, उख़रुज या सूरा या सूरा सूर, बिस्म अल-मख़जून याततरून तरऊन मराऊन, इस्राफ़ील की पेशानी पर लिखे हुए नाम के साथ, इस किताब के मालिक से हर जिन और जिन्नीय, और शैतान और शैताना, और ताबिअ और ताबिआह, और जादूगर और जादूगरनी, और ग़ूल और ग़ूलह, और हर अज़ीयत देने वाले और खेलने वाले को दूर कर दो जो बिन आदम के साथ खेलते हैं।
وَ لا حَوْلَ وَ لاقُوَّةَ اِلاَّ بِاللَّهِ الْعَلِيِّ الْعَظيمِ، وَ صَلَّى اللَّهُ عَلى مُحَمَّدٍ وَ الِهِ اَجْمَعينَ الطَّيِّبينَ الطَّاهِرينَ.
वा ला हौल वा ला कुव्वता इल्ला बिल्लाह अल-अली अल-अज़ीम, वा सल्लल्लाह अला मुहम्मद वा आलिए अजमईन अत-तैय्यिबीन अत-ताहिरीन।
अल्लाह के सिवा कोई ताक़त और क़ुव्वत नहीं, और मुहम्मद और उनकी आल पर अल्लाह की रहमत हो, सब पाक हैं।
دعاؤه في الاحتراز
दुआ फ़ी अल' एहतराज़
एहतियात के लिए दुआ
اَللَّهُمَّ بِتَاَلُّقِ نُورِ بَهاءِ عَرْشِكَ مِنْ اَعْدائي اسْتَتَرْتُ، وَ بِسَطْوَةِ الْجَبَرُوتِ مِنْ كَمالِ عِزِّكَ مِمَّنْ يَكيدُني احْتَجَبْتُ، وَ بِسُلْطانِكَ الْعَظيمِ مِنْ شَرِّ كُلِّ سُلْطانٍ عَنيدٍ وَ شَيْطانٍ مَريدٍ اسْتَعَذْتُ(7)، وَ مِنْ فَرائِضِ نِعَمِكَ وَ جَزيلِ عَطائِكَ(8) يا مَوْلاىَ طَلَبْتُ.
अल्लाहुम्मा बिटाल्लुक नूरि बहा ए अर्ज़िक मिन्न अअदाई इस्ततरतु, व बिसवाततिल जबरूत मिन क़मालि इज़्ज़िक मिमन यकीदुनी एहतजबत, व बिसुल्तानिकल अज़ीम मिन शरि कुल्ली सुल्तानिन अनीदिं व शैतानिन मरीदिं इस्तअजतु(7), व मिन फरायिदि निअमिका व जज़ीलि अतायिक(8) या मौलाई तलबत।
ऐ अल्लाह! तेरे अर्श की रोशनी की चमक से मैं अपने दुश्मनों से छुप गया, और तेरी अज़मत की जलालत से मैं अपने दुश्मनों की मकारियों से महफूज़ हो गया, और तेरी अज़ीम हुकूमत से मैं हर सख़्त दिल सुल्तान और सरकश शैतान के शर से पनाह मांगता हूँ, और तेरे बेशुमार नेमतों और अज़ीम अताओं से मैंने मदद तलब की।
كَيْفَ اَخافَ وَ اَنْتَ اَمَلي، وَ كَيْفَ اُضامُ وَ عَلَيْكَ مُتَّكَلي، اَسْلَمْتُ اِلَيْكَ نَفْسي، وَ فَوَّضْتُ اِلَيْكَ اَمْري، وَ تَوَكَّلْتُ في كُلِّ اَحْوالي عَلَيْكَ، صَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ وَ الِ مُحَمَّدٍ وَ اشْفِني وَ اكْفِني عَلى مَنْ غَلَبَني(9)، يا غالِباً غَيْرَ مَغْلُوبٍ.
कैफा अख़ाफ़ व अंत अमली, व कैफा उज़ामु व अलैक मुत्तकली, असलमतु इलैक नफ्सी, व फव्वज़तु इलैक अमरी, व तवक्कलतु फी कुल्ली अहवाली अलैक, सल्लि अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अश्फिनी व अक्फिनी अला मन ग़लाबनी(9), या ग़ालिबन ग़ैर मग़लूब।
कैसे डरूं जबकि तू मेरी उम्मीद है, और कैसे ज़ुल्म सहूं जबकि मेरा भरोसा तुझ पर है, मैंने अपनी जान तेरे सुपुर्द की, और अपना मामला तेरे हवाले किया, और हर हालत में तुझ पर तवक्कल किया, मोहम्मद और आल मोहम्मद पर दरूद भेज और मुझे शिफ़ा अता फरमा और मुझे मेरे ग़ालिब दुश्मनों से बचा, ऐ ग़ालिब होने वाले जो कभी मग़लूब नहीं होता।
زَجَرْتُ كُلَّ راصِدٍ رَصَدَ، وَ مارِدٍ مَرَدَ، وَ حاسِدٍ حَسَدَ، وَ عَدُوٍّ كَنَدَ، وَ عانِدٍ عَنَدَ، بِبِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمنِ الرَّحيمِ قُلْ هُوَ اللَّهُ اَحَدٌ، اَللَّهُ الصَّمَدُ، لَمْ يَلِدْ وَ لَمْ يُولَدْ وَ لَمْ يَكُنْ لَهُ كُفُواً اَحَدٌ، كَذلِكَ اللَّهُ رَبُّنا(10)، حَسْبُنَا اللَّهُ وَ نِعْمَ الْوَكيلُ، اِنَّهُ قَوِيٌّ مُعينٌ.
ज़जरतु कुल्ला रासिदिं रसद, व मारीदिं मरद, व हासिदिं हसद, व अदूविं कनद, व आन्दिं अनद, बिबिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीमि कुल हु अल्लाहु अहद, अल्लाहुस समद, लम यलिद व लम यूलद व लम यकुन लहु कुफ़ुवन अहद, कज़ालिक अल्लाहु रब्बुना(10), हसबुनाल्लाहु व नियामल वकीलु, इनहु क़विय्युं मुइन।
मैंने हर छुप कर देखने वाले, हर सरकश, हर हसद करने वाले, हर दुश्मन, और हर सरकश के खिलाफ़ अल्लाह के नाम से मदद मांगी, बिस्मिल्लाह अर-रहमान अर-रहीम, कहो अल्लाह एक है, अल्लाह अस्समद है, न उसने किसी को जना और न वो जना गया, और न कोई उसका हमसर है। अल्लाह हमारा रब है, अल्लाह हमारे लिए काफ़ी है और बेहतरीन कारसाज़ है, बेशक वो क़ुव्वत वाला मददगार है।
دعاؤه للحفظ من الآفات
दआऊहु लिलहिफ़्ज़ मिनल आफ़ात
आफ़ात से हिफ़ाज़त के लिए दुआ
قال السيد ابن طاووس: كان مؤيد الدين شرف القضاة عبدالملك مريضاً، فجاءه اميرالمؤمنين عليه السلام، و كانّه قد نزل من الهواء، فأراد ان يسأله الدعاء لكونه مريضاً، فلم يسأله فقال له: الشفاء، و مرّ يده على ذراعه الايمن، ثم قال له: قل ثلاث مرات يحفظك الله بها، قل:
क़ाला अस्सैयद इब्न ताऊस: काना मुअय्यद उद्दीन शरफ़ अल-क़ुज़ात अब्दुलमलिक मरीज़न, फ़जाआहु अमीर अल-मु'मिनीन अलैहिस्सलाम, व कन्नह क़द नज़ल मिन अल-हवाइ, फ़आरादा अन यसअलहुद दुआ लिकौन्हु मरीज़न, फ़लम यसअलहु फ़क़ाला लहु: अश-शिफ़ा, व मर्रा यदह अला ज़िराह अल-अयमन, थुम्मा क़ाला लहु: क़ुल सलास मरा यः यफज़ुक अल्लाहु बिहा, क़ुल:
सैयद इब्न ताऊस ने कहा: मोअय्यद उद्दीन शरफ़ अल-कुज़ात अब्दुलमलिक बीमार थे, तो उन के पास अमीर-उल-मोमिनीन अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए, और गोया कि वह हवा से नाज़िल हुए थे, उन्होंने दुआ की दरख्वास्त करने का इरादा किया क्योंकि वह बीमार थे, लेकिन पूछा नहीं, तो अमीर-उल-मोमिनीन ने फ़रमाया: "शिफ़ा" और अपना हाथ उन के दाएं बाज़ू पर फेरा, फिर फ़रमाया: तीन बार कहो, अल्लाह तुम्हें इस से महफूज़ रखेगा, कहो:
اَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطانِ الرَّجيمِ، الَّذينَ قالَ لَهُمُ النَّاسُ اِنَّ النَّاسَ قَدْ جَمَعُوا لَكُمْ فَاخْشَوْهُمْ فَزادَهُمْ ايماناً وَ قالُوا حَسْبُنَا اللَّهُ وَ نِعْمَ الْوَكيلُ(11).
आऊज़ु बिल्लाहि मिन अश-शैतानिर-रजीम, अल्लधीन क़ाल लहुमुन्नासु इन्नन्नास क़द जमा'उ लकुम फ़ख्शौहुम फ़ज़ादहुम ईमानं व क़ालु हसबुनल्लाहु व नि'मल वकील (11)
मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूं शैतान मर्दूद से, जिन्हें लोगों ने कहा कि बेशक लोगों ने तुम्हारे खिलाफ झुंड बना लिया है, उनसे डरो, तो इस ने उनके ईमान में इज़ाफ़ा किया और उन्होंने कहा: हमारे लिए अल्लाह काफी है और वह बेहतरीन कारसाज़ है।
اَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطانِ الرَّجيمِ، وَ اُفَوِّضُ اَمْري اِلَى اللَّهِ اِنَّ اللَّهَ بَصيرٌ بِالْعِبادِ(12)، اَعُوذُ بِاللَّهِ مِنَ الشَّيْطانِ الرَّجيمِ، ما يَفْتَحِ اللَّهُ لِلنَّاسِ مِنْ رَحْمَةٍ فَلامُمْسِكَ لَها وَ ما يُمْسِكْ فَلامُرْسِلَ لَهُ مِنْ بَعْدِهِ، وَ هُوَ الْعَزيزُ الْحَكيمُ(13).
आऊज़ु बिल्लाहि मिन अश-शैतानिर-रजीम, व उफ़व्विदु अम्री इलल्लाह, इन्नल्लाह बसीरुं बिल'इबाद (12), आऊज़ु बिल्लाहि मिन अश-शैतानिर-रजीम, मा यफ़तहिल्लाहु लिन-नासि मिन रह्मतिन फ़लामुम्सिक लहा व मा युम्सिक फ़लामुरसिल लहुम मिन बअदिह, व हुवल अज़ीज़ुल हकीम (13)
मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूं शैतान मर्दूद से, और अपना मामला अल्लाह के सुपुर्द करता हूं, बेशक अल्लाह बंदों को देखने वाला है (12), मैं अल्लाह की पनाह मांगता हूं शैतान मर्दूद से, जो रहमत अल्लाह लोगों के लिए खोले तो उसे कोई रोकने वाला नहीं, और जो वह रोक ले तो उसे उसके बाद कोई भेजने वाला नहीं, और वह ज़बरदस्त हिकमत वाला है (13)।
دعاؤه للاحتراز من كل آفة و شدة و خوف
दुआउहु लिलइहतिराज मिन कुल आफ़त व शिद्दत व खौफ
हर आफ़त, शिद्दत, और ख़ौफ़ से बचने की दुआ
عن الصادق عليه السلام انّه قال: نزل جبرئيل عليه السلام بهذا الدعاء هدية الى علي عليه السلام ليلة الاحزاب، لدفع الشيطان و السلطان و الغرق و الحرق، و الهدم و السبع و اللّص، و هو حرز من كل آفة و شدّة و خوف، و هو هذا الدعاء:
अन अस्सादिक अलैहिस्सलाम इन्नहू क़ाल: नज़ला जिब्राईल अलैहिस्सलाम बिहाज़ा अद-दुआ हदिय्यतन इला अली अलैहिस्सलाम लैलात अल-अहज़ाब, लिदफ़अ अश-शैतान व अस-सुल्तान व अल-ग़रक व अल-हरक, व अल-हदम व अस-सबअ व अल-लस, व हुवा हिरज़ मिन कुल आफ़त व शिद्दत व ख़ौफ़, व हुवा हाज़ा अद-दुआ:
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत है कि उन्होंने कहा: जिबराईल अलैहिस्सलाम यह दुआ लेकर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास ग़ज़वा ए अहज़ाब की रात तोहफ़े के तौर पर नाज़िल हुए, शैतान, सुल्तान, डूबने, जलने, इमारत गिरने, जानवरों के हमले, और चोर से बचाव के लिए। यह दुआ हर आफ़त, शिद्दत, और ख़ौफ़ से महफ़ूज़ रखने वाला तावीज़ है, और यह दुआ यह है:
بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمنِ الرَّحيمِ، اَللَّهُمَّ احْرُسْنا بِعَيْنِكَ الَّتي لاتَنامُ، وَ اكْنُفْنا بِرُكْنِكَ الَّذي لايُرامُ، وَ اَعِزَّنا بِسُلْطانِكَ الَّذي لايُضامُ، وَ ارْحَمْنا بِقُدْرَتِكَ عَلَيْنا، وَ لاتُهْلِكْنا وَ اَنْتَ الرَّجاءُ.
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम, अल्लाहुम्मा अहरस्ना बिअइनिक अल्लती ला तनाम, वा अक्नुफ्ना बिरुक्निक अल्लज़ी ला युराम, वा अअज़्ज़ना बिसुल्तानिक अल्लज़ी ला युदाम, वा अरहमना बिकुदरतिका अलैना, वा ला तुह्लिकना वा अन्त रज्जा
ऐ अल्लाह! हमें अपनी न सोने वाली आंख से हिफाज़त में रख, और हमें अपने उस रुक्न की पनाह में ले ले जिस तक कोई पहुंच न सके, और हमें अपनी उस हुकूमत के ज़रिये इज़्ज़त दे जिस पर कोई ज़ुल्म न कर सके, और हम पर अपनी कुदरत से रहम फ़रमा, और हमें हलाक न कर जबकि तू ही उम्मीद है।
رَبِّ كَمْ مِنْ نِعْمَةٍ اَنْعَمْتَ بِها عَلَيَّ قَلَّ لَكَ عِنْدَها شُكْري، وَ كَمْ مِنْ بَلِيَّةٍ ابْتَلَيْتَني بِها قَلَّ لَكَ عِنْدَها صَبْري، فَيامَنْ قَلَّ عِنْدَ نِعَمِهِ شُكْري فَلَمْ يَحْرِمْني، وَ يا مَنْ قَلَّ عِنْدَ بَلائِهِ صَبْري فَلَمْ يَخْذُلْني.
रब्बि कम मिन निअमति अनअमत बिहा अलैय्य क़ल्ल लका इंदहा शुक्रि, वा कम मिन बलिय्यति इब्तलैतनि बिहा क़ल्ल लका इंदहा सब्रि, फया मन क़ल्ल इंद निअमिही शुक्रि फलम यहरिमनि, वा या मन क़ल्ल इंद बलाइहि सब्रि फलम यखज़ुलनि.
ऐ रब! कितनी नेमतें तूने मुझ पर इनआम कीं जिन पर मेरा शुक्र कम था, और कितनी बलाएं तूने मुझ पर डालें जिन पर मेरा सब्र कम था, ऐ वह ज़ात जिसकी नेमतों पर मेरा शुक्र कम था फिर भी तूने मुझे महरूम नहीं किया, और ऐ वह ज़ात जिसकी बलाओं पर मेरा सब्र कम था फिर भी तूने मुझे रुस्वा नहीं किया।
فَيا مَنْ تَراني عَلَى الْمَعاصي فَلَمْ يَفْضَحْني، يا ذَا الْمَعْرُوفِ الدَّائِمِ الَّذي لايَنْقَضي اَبَداً، وَ يا ذَا النَّعْماءِ الَّتي لاتُحْصى عَدَداً، اَسْأَلُكَ اَنْ تُصَلِّيَ عَلى مُحَمَّدٍ وَ الِ مُحَمَّدٍ الطَّيِّبينَ الطَّاهِرينَ، وَ اَدْرَأُ بِكَ في نُحُورِ الْاَعْداءِ وَ الْجَبَّارينَ.
फया मन तरानि अला अल-मआसि फलम यफ्दहनि, या ज़ा अल-मआरुफ़ि अद-दा'इम अल्लज़ी ला यनक़दि अबदा, वा या ज़ा अन-नअमा अल्लती ला तुह्सा अद्दा, असअलुका अन तुसल्लि अला मुहम्मद वा आले मुहम्मद अत-तय्यिबीन अत-ताहिरीन, वा अद्रऊ बिका फि नुहूर अल-अअदा वा अल-जब्बारीन.
ऐ वह ज़ात! जो मुझे गुनाहों में देखता है फिर भी मुझे रुस्वा नहीं करता, ऐ वह ज़ात! जिसका भला कभी ख़त्म नहीं होता, और ऐ वह ज़ात! जिसकी नेमतें बे शुमार हैं, मैं तुझ से सवाल करता हूं कि मुहम्मद और उनकी पाक आल पर दरूद भेज, और मैं तुझे दुश्मनों और जाबिरों के मुक़ाबले में आगे करता हूं।
اَللَّهُمَّ اَعِنّي عَلى ديني بِدُنْياىَ، وَ عَلى اخِرَتي بِتَقْواىَ، وَ احْفَظْني فيما غِبْتُ عَنْهُ، وَ لاتَكِلْني اِلى نَفْسي فيما حَضَرْتُهُ.
अल्लाहुम्मा अअिन्नी अला दीनी बिदुनयाइ, वा अला आखिरति बिटक़वाई, वा अहफज़्नि फिमा गिबतु अनहु, वा ला तकिल्नी इला नफ्सी फिमा हज़रतुहु
ऐ अल्लाह! मेरे दीन में मेरी मदद कर मेरी दुनिया के ज़रिये, और मेरी आख़िरत में मेरी मदद कर मेरे तक़वा के ज़रिये, और मेरी हिफाज़त कर जहां मैं नहीं हूं, और जहां मैं हाज़िर हूं वहां मुझे मेरे नफ़्स के सुपुर्द न कर।
يا مَنْ لاتَنْقُصُهُ الْمَغْفِرَةُ وَ لاتَضُرُّهُ الْمَعْصِيَةُ، اَسْأَلُكَ فَرَجاً عاجِلاً، وَ صَبْراً واسِعاً، وَ الْعافِيَةَ مِنْ جَميعِ الْبَلاءِ، وَ الشُّكْرَ عَلَى الْعافِيَةِ، يا اَرْحَمَ الرَّاحِمينَ.
या मन ला तनकुसुहुल मग्फिरा वा ला तज़ुर्रुहुल मआसिया, असअलुका फरजन आजिलन, वा सब्रन वासिअन, वा अल-आफियता मिन जमीअल बलाइ, वा अश-शुक्र अला अल-आफिया, या अरहम अर-राहिमीन
ऐ वह ज़ात! जिसकी बख़्शिश कम नहीं होती और जिसको गुनाह नुक़सान नहीं पहुंचाते, मैं तुझ से फौरी कुशादगी, वसीअ सब्र, और हर बला से आफ़ियत मांगता हूं, और आफ़ियत पर शुक्र अदा करता हूं, ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले।
دعاؤه للخوف عن السلطان و عن كل شيء
दुआउहु लिलखौफ़ आन अस-सुल्तान व आन कुल शै'इन
सुल्तान (बादशाह) से और हर चीज़ से ख़ौफ़ के लिए दुआ
�
لا اِلهَ اِلاَّ اللَّهُ الْحَليمُ الْكَريمُ، سُبْحانَ اللَّهِ رَبِّ السَّماواتِ السَّبْعِ، وَ رَبِّ الْعَرْشِ الْعَظيمِ، وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعالَمينَ، اَللَّهُمَّ اِنّى اَعُوذُ بِكَ مِنْ شَرِّ عِبادِكَ.
ला इला'हा इल्ला' अल्लाहुल हलीमुल करीम, सुब्हा'न अल्लाहि रब्बिस समावा'तिस सब्अि, वा रब्बिल अरशिल अज़ीम, वल्हम्दु लिल्लाहि रब्बिल आलमीन, अल्लाहुम्मा इन्नी आऊज़ु बिका मिन शर्रि इबादिक
अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह बर्दबार और करीम है। पाक है अल्लाह जो सात आसमानों का रब है, और अज़ीम अर्श का रब है। और सब तारीफें अल्लाह के लिए हैं जो तमाम जहानों का रब है। ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह मांगता हूं तेरे बंदों के शर से।
तहफ़्फ़ुज़ के लिए दुआ 54: यमानी
किताब 'दार-उस-सलाम' में अल्लामा मजलिसी का मख़तूताह मजकूर है:
" सैयद अमीर मुहम्मद हाशिम ने मुझसे यमानी तावीज़ की इजाज़त तलब की जो इमाम अली (अ) से मंसूब है... यह रिवायत अमीर इसहाक़ अस्तराबादी (जो कर्बला में दफ्न हैं) ने इमाम मेहदी (अज) से बयान की है।
तहफ़्फ़ुज़ के लिए दुआ 56: दुश्मनों से तहफ़्फ़ुज़ (यहां क्लिक करें)
तहफ़्फ़ुज़ के लिए दुआ 68: दुश्मनों के जाल से बचने के लिए
वैकल्पिक तर्जुमा
तहफ़्फ़ुज़ के लिए दुआ 70: दुश्मनों पर फतह हासिल करने के लिए
फिर तीन मरतबा दोहराएं
जब वो दुश्मन से लड़ते थे तो उनकी दुआ
बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम
اللَّهُمَّ قَدْ صَرَّحَ مَكْنُونُ الشَّنَآنِ، وَجَاشَتْ مَرَاجِلُ الأَضْغَانِ،
इन दुआओं को सहीफ़ा अलविया से जांचने के लिए
دعاؤه للاحتراز من كل آفة و شدة و خوف
किताब "तोहफतुल हाश्मिया" से ली गयीं�बहुत सारी दुआएँ�
मसाइल और मुश्किलात के हल के लिएबुज़ुर्गों और जैय्यद शेख़ों से मनकूल है: जो शख्स मुश्किलात और मसाइल में मुबतला हो और उससे निजात चाहता हो, वह हर नमाज़ के बाद उन्नीस मर्तबा दर्ज़-ज़ैल दुआ पढ़े:
हिफाज़त और सलामती की दुआ
एक रिवायत में इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ) से मनक़ूल है कि उन्होंने फ़रमाया: जो शख्स यह दुआ पढ़ता है, अगर तमाम जिन्नात और इंसान मिलकर उसे नुक़सान पहुंचाना चाहें तो वह उसे नुक़सान नहीं पहुंचा सकते। यह दुआ यह है:
[1] हिल्यत अल-मुत्तक़ीन, अश-शेख़ अल-मजलिसी, पृष्ठ 449
ग़ुस्सा ठंडा करने की दुआ
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया: जब तुम ग़ुस्से में हो तो ये कहो:
किसी को दफ़ा करना जिससे आप नफ़रत करते हैं
जब आप किसी शख़्स या लोगों के समूह को दफ़ा करने का इरादा करें जिन्हें आप पसंद नहीं करते, तो यह कहें:
ज़ालिम की तबाही के लिए
शेख कमालुद्दीन अद-दमीरी ने अपनी किताब हयातुल हयवान में ज़िक्र किया है: जो शख्स रोज़ाना दस दिन तक लगातार सूरह फ़ील को एक हज़ार मर्तबा पढ़े और जो चाहता है उसकी नीयत करे और दसवें दिन बहते पानी पर बैठे और कहे:
ज़मख़शरी ने रबीउल अबरार में ज़िक्र किया है कि एक शख्स ने हसन (अलैहिस्सलाम) से शिकायत की कि एक शख्स ने उस पर ज़ुल्म किया है। इमाम ने फरमाया: जब तुम शाम (मग़रिब) की नमाज़ के बाद दो रकअत नमाज़ पढ़ो, सजदे में जाओ और कहो:
मुसीबतों और मुश्किलात के दूर करने और ज़ालिम के ख़ातमे के लिए बिस्मिल्लाह का पढ़ना
कुछ उलमा से मंक़ूल है कि जो शख़्स मुश्किलात और मुसीबतों में मुब्तला हो और उन से निजात चाहता हो, उसे हर नमाज़ के बाद 19 बार पढ़ना चाहिए:
ज़ालिम से नजात और अहम मक़ासिद के हुसूल के लिए, मंदरजा ज़ैल 73 बार एक ही बैठक में क़िबला रुख़ और तहारत के साथ पढ़ें, और इसे मुकम्मल करने के बाद तीन बार सलवात पढ़ें और फिर अपनी ज़रूरियात मांगें; वो जल्द पूरी होंगी, अगर अल्लाह ने चाहा। (ये साबितशुदा इलाजों में से है)। [1] अल-तुफ़हत अल-रिज़विया, सफ़हा 137
आयतुल कुर्सी दुश्मन की तबाही और मोहब्बत के हुसूल के लिए
आयतुल कुर्सी सात दिन तक, तूलूअ आफ़ताब पर, क़िबला रुख़ होकर, किसी से बात करने से पहले 21 बार पढ़ें। जब आप 'यालमु मा बैना' तक पहुंचें तो दुश्मन की तरफ़ इशारा करें, और कोई शक नहीं कि वो तबाह हो जाएगा। और जब आप 'यशफअु इंदहू' तक पहुंचें तो उस शख्स की मोहब्बत हासिल करने की नीयत करें, और कोई शक नहीं कि वो मोहब्बत हासिल हो जाएगी। ये तस्लीम किया गया है कि ये मौस्सर है बशर्ते कि ये सिर्फ़ जाइज़ उमूर के लिए हो। [2] अल-सहीफ़ा अल्विया, दुआएं इमाम अली (अ.स.), सहीफ़ा 126
ग़म दूर करने की दुआ
[3] मुन्तख़ब अल-ख़ातिम, मुजर्बात अल-इमामिया से मंकूल, सफ़हा 282
झगड़ों से बचने और ख़्वाहिशात की तकमील के लिए
मंदर्ज़ा ज़ैल 970 बार पढ़ें:: كهيعص (काफ हा या ऐन साद) अल्फ़ाज़ के हुरूफ को अलग-अलग पढ़ें: كهيعص ك هـ ي ع ص (काफ - हा - या - ऐन - साद)
अगर वो कर सके तो इसके साथ حمعسق (हा मिम ऐन सीन काफ) भी शामिल करे और दोनों अल्फ़ाज़ को एक नशिस्त में 2500 बार पढ़ें, फिर हाजत की दुआ करें और ये साबितशुदा मोअस्सर है।
[4] अल-मुखला शेख़ बहाई, सफ़हा 178
एक और दुआ
[5] अल-मुखला शेख़ बहाई, सफ़हा 179
एक और दुआ नबी (स) से रिवायत है कि उन्होंने फ़रमाया: जो शख़्स दुनियावी मामलात या आख़िरत के मामलात में किसी मुश्किल का सामना करे, उसे तीन बार पढ़ना चाहिए:
ज़ालिम की मौत के लिए
अमीरुल मोमिनीन (अ) से रिवायत है कि जो शख्स ज़ुल्म का शिकार हो उसे वुज़ू करना चाहिए और दो रकअत नमाज़ पढ़नी चाहिए और रुकू को तवील करना चाहिए और नमाज़ ख़त्म करने के बाद ये कहना चाहिए:
सैयद अली बिन ताऊस (रह) ने किताब अल-दरू' में ज़िक्र किया है: जो शख्स अपने दुश्मन से निजात पाना चाहता हो, उसे चाहिए कि माह की पहली रात को चाँद की तरफ़ देखे और उस घर की तरफ़ इशारा करे जिसकी शर से वो महफूज़ रहना चाहता है, और कहे:
फिर उसकी नीयत दो दिन तक करे, वो उसकी शरारत के लिए काफ़ी होगा, अगर अल्लाह चाहे। ये नए चाँद के वक़्त करना चाहिए।
नबी (स) से रिवायत है: फिर दूसरी और तीसरी रात में कहें, फिर आप कामयाब होंगे। अगर नहीं, तो दूसरे महीने में दोहराएं और अगर फिर भी कामयाब न हों, तो तीसरे महीने में दोहराएं, और अगर अल्लाह बुलंद और अज़ीम चाहे, तो उस वक़्त आप ज़रूर कामयाब होंगे।
[7] अल-मिस्बाह, अल-कफ़अमी, सफ़हा 406
ज़ालिम के खिलाफ मदद की दुआ
8. मुजर्बात अल-इमामिया, सफ़हा 291
अबू अब्दुल्लाह (अ) से रिवायत है कि उन्होंने फरमाया: अगर आप मुसीबतों में घिरे हों तो अपने साथी के खिलाफ बददुआ न करें, क्योंकि अगरचे एक मज़लूम है, अगर वो बददुआ करे तो खुद ज़ालिम बन जाता है। लिहाज़ा अगर आप पर ज़ुल्म हो रहा हो, तो ग़ुस्ल करें और खुले आसमान के नीचे दो रकअत नमाज़ पढ़ें और फिर ये दुआ पढ़ें:
तुम इसे मुकम्मल नहीं करोगे, लेकिन तुम वो देखोगे जो तुम्हें सबसे ज़्यादा पसंद है।
इल्तिज़ा की दुआ
[9] मकारिम अल-अख़लाक़, सफ़हा 290
इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत है कि उन्होंने फ़रमाया: किसी भी वक़्त जब चाहो वुज़ू को सही तरीके से करो, फिर दो रकअत नमाज़ पढ़ो, दो रुकुआत को मुकम्मल करो। जब तुम नमाज़ ख़त्म करो, तो अपने गाल को ज़मीन पर रगड़ते हुए कहो: يا رَبَّاهُ या रब्बाह! ऐ रब!
इसे उस वक़्त तक दोहराओ जब तक तुम्हारी सांस ख़त्म न हो जाए। फिर कहो:
मुशकिलात की दुआ [10] मकारिम अल-अख़लाक़, सफ़हा 338
इमाम काज़िम (अ) ने फ़रमाया: जितनी रकअतें चाहो नमाज़ पढ़ो। जब तुम ख़त्म करो, अपने गाल और पेशानी ज़मीन पर रखो और कहो:
इसे भी तीन बार पढ़ें, फिर बाएं गाल को ज़मीन पर रखें और इसी तरह तीन बार कहें, फिर अपनी पेशानी को ज़मीन पर रखें और कहें:
मज़लूम की दुआ
[11] अल-मुख़ला शेख़ बहाई, सफ़हा 186
दो रकअत नमाज़ पढ़ें और क़ुरआन का जो भी सूरह आप चाहें पढ़ें और मुहम्मद और आल-ए-मुहम्मद पर जितना हो सके दरूद भेजें। फिर कहें:
दुश्मन से हिफ़ाज़त - डेस्कटॉप
क़ैद से रिहाई - डेस्कटॉप
तफ़सीर इमाम हसन (अ) किताब से
नबी (स) ने ज़ैद (र.अ) से फ़रमाया: अगर तुम उनके नुक़सान दह मंसूबों से महफ़ूज़ रहना चाहते हो तो हर रोज़ सुबह सवेरे मंदरजा ज़ैल दुआ पढ़ो:
इमाम हसन अल-असकरी (अ) तावीज़ की की दुआ इस किताब से
इमाम अबू मुहम्मद (अ) को अल-मुतवक्किल और दूसरे अब्बासी बादशाहों के दौर-ए-हुकूमत में मुख्तलिफ तरह के ज़ुल्म और सितम का सामना करना पड़ा। इसलिए उन्होंने अल्लाह की पनाह में आकर अपने आपको उनकी साज़िशों और बुराइयों से बचाने की दुआ की,
मैंने अपने आपको अल्लाह की पनाह में रखा; उस नूर के जरिए जिससे उसने आंखों से छिपा दिया, और अपने आप, अपने ख़ानदान, बच्चों, अमलाक, और जो कुछ मेरे ज़ेर निगरानी है, सब के लिए अल्लाह के नाम से पनाह मांगी, रहम करने वाले, मेहरबान के नाम से, और अल्लाह की पनाह में आया उस से जो मैं डरता हूँ और जिससे मैं बचता हूँ, उस अल्लाह के साथ (जिसके सिवा कोई माबूद नहीं, ज़िंदा और हमेशा क़ायम रहने वाला है।
उसे ना ऊंघ आती है ना नींद; जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सब उसी का है। कौन है जो उसकी इजाज़त के बगैर उसकी सिफारिश कर सके?
वह जानता है जो उनके सामने है और जो उनके पीछे है, और वह उसके इल्म में से किसी चीज़ का इहाता नहीं कर सकते मगर जो वह चाहे, उसका इल्म आसमानों और ज़मीन को घेरे हुए है, और उन दोनों की हिफाज़त उसे थका नहीं सकती, और वह बुलंद और अज़ीम है),[1]
(और उस से ज़्यादा ज़ालिम कौन है जो अपने रब की निशानियों से नसीहत पाए और फिर उनसे मुंह फेर ले और जो कुछ उसके हाथों ने आगे भेजा है उसे भूल जाए? यक़ीनन हमने उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं ताकि वह इसे समझ ना सकें और उनके कानों में बोज डाल दिया है; और अगर आप उन्हें हिदायत की तरफ बुलाएं तो वह कभी भी रास्ता नहीं अपनाएंगे),[2]
(क्या तुमने उसे देखा जिसने अपनी ख्वाहिश को अपना माबूद बना लिया और अल्लाह ने उसे जान-बूझकर गुमराह कर दिया, और उसकी समाअत और उसके दिल पर मोहर लगा दी, और उसकी बसीरत पर परदा डाल दिया? फिर अल्लाह के बाद कौन उसे हिदायत दे सकता है? क्या तुम नसीहत नहीं पकड़ोगे?),[3]
(यह वह लोग हैं जिनके दिलों, उनकी समाअत और उनकी आंखों पर अल्लाह ने मोहर लगा दी है, और यह वह लोग हैं जो ग़फ़लत में हैं),[4]
(और जब आप क़ुरआन की तिलावत करते हैं तो हम आपके और उन लोगों के दरमियान जो आख़िरत पर ईमान नहीं रखते एक पोशीदा परदा बना देते हैं। और हमने उनके दिलों पर परदे डाल दिए हैं और उनके कानों में बोज डाल दिया है ताकि वह इसे ना समझ सकें, और जब आप क़ुरआन में अपने रब का ज़िक्र अकेले करते हैं तो वह नफ़रत से पीठ फेर लेते हैं),[5]
और अल्लाह मुहम्मद और उनकी पाक आल पर बरकत नाज़िल फरमाए��[6]
यह दुआ उस खौफ की शिद्दत को जाहिर करती है जो इमाम (अ) को अब्बासियों से दरपेश था, और इसलिए उन्होंने अल्लाह की पनाह में आकर अपने आप को और अपने ख़ानदान को उनके (अब्बासियों के) ज़ुल्म व सितम और साज़िशों से बचाने की दुआ की।
[1] मक़ातिल अत-तालिबीयीन, सफ़हा 604
[2] ऐज़ान, सफ़हा 615
[1] क़ुरआन, 2:255.
[2] क़ुरआन, 18:57.
[3] क़ुरआन, 54:23.
[4] क़ुरआन, 16:108.
[5] क़ुरआन, 17:45-46.
[6] महाज अद-दआवात, सफ़हा 44-45
उन्होंने इस दुआ से भी अपने आप को अब्बासियों से बचाया:
ऐ वह जो मेरी मुसीबत में मेरा सहारा है, ऐ वह जो मेरे ग़म में मेरी मदद करता है, ऐ वह जो मेरी तन्हाई में मेरा आराम है, मुझे अपनी उस आंख की हिफाज़त में रख जो सोती नहीं, और अपनी उस पनाह में रख जो नाकाबिले रसाई है।�[1]
[1] महाज अद-दआवात, सफ़हा 45
अब्बासियों का अहले क़ुम पर ज़ुल्म व सितम
अब्बासियों ने अहले क़ुम पर ज़ुल्म किया और उनके साथ ज़ुल्म व दहशत का सुलूक किया। उन्होंने उन पर मूसा बिन याह्या को वली मुक़र्रर किया, जो बद किरदार और ज़ालिम था। वह बदतमीज़, बद अख़लाक़, और ग़ैर इंसानी था कि लोग उससे दूर रहते थे। उसने लोगों के साथ बहुत बुरा सुलूक किया और उन पर ज़ुल्म करने में इफ़रात किया यहाँ तक कि क़ुम के मुअज़्ज़िन इमाम अबू मुहम्मद (अ) के पास शिकायत लेकर गए कि उस ज़ालिम ने उनके साथ क्या किया।
इमाम ने अल्लाह तआला से दुआ की कि उन्हें इस ज़ालिम वली की बुराई से बचाए, और उन्हें ये दुआ सिखाई और उन्हें हुक्म दिया कि अपनी नमाज़ के क़ुनूत में इसे पढ़ें ताकि अल्लाह उन्हें इस मुसीबत से नजात दे:
अल्लाह के फ़ज़्ल से हम्द हो, उसकी बरकतों का शुक्र अदा करते हुए, उसकी ज़्यादा तर चीज़ों के लिए दुआ करते हुए, उसकी रोज़ी की दरख़्वास्त करते हुए, उसके साथ वफ़ादारी करते हुए और उसके सिवा किसी और से नहीं, और उसकी कुव्वत और अज़मत का इनकार करते हुए नहीं, एक ऐसे शख्स की हम्द जिसने यह जाना कि उसके पास जो कुछ भी नेमतें हैं वह उसके रब की तरफ से हैं, और जो सजाएँ उसे पहुंचती हैं वह उसके हाथों की कमाई हैं, और अल्लाह की बरकतें मुहम्मद उसके बंदे और रसूल पर, और उसकी मखलूक में बेहतरीन, और मोमिनों के लिए उसकी रहमत का वसीला, और उसकी पाक औलाद पर जो उसके वली हैं।
ऐ अल्लाह, तू ने अपने फ़ज़्ल के लिए (अपने लोगों) को बुलाया है, और (उन्हें) तुझसे दुआ करने का हुक्म दिया है, और तू ने अपने लोगों को जवाब की ज़मानत दी है। तू ने किसी को भी मायूस नहीं किया जिसने तुझसे ख्वाहिश के साथ पनाह ली और तुझसे ज़रूरत के साथ रुजू किया।
तू ने किसी मांगने वाले हाथ को अपनी अता से खाली नहीं भेजा और न ही अपनी अता से मायूस किया। क्या कोई मुसाफिर था जो तेरे पास आया और तुझे क़रीब न पाया, या कोई आने वाला जो तेरे पास आया और तू ने उसके और उसके दरमियान रुकावटें डाल दीं? क्या कोई ऐसा था जो तुझसे इसरार से मांगता और तेरे फ़ज़्ल का बहाओ उसे शामिल न होता...?
ऐ अल्लाह, मैं अपनी ख्वाहिश के साथ तेरे पास आया हूँ, मेरी दरख़्वास्त का हाथ तेरे फ़ज़्ल के दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है, मेरा दिल तुझे आजिज़ी के अदब के साथ पुकार रहा है, और मैंने तुझे अपने लिए तुझसे बेहतरीन सिफारिशी पाया। तू मेरी दरख़्वास्त को मेरे ज़ेहन में आने से पहले जानता है या मेरे तसव्वुर में आती है। ऐ अल्लाह, तू मेरी दुआ को अपनी तरफ से जवाब देकर मुकम्मल फ़रमा और मेरी दरख़्वास्त को मेरी ख्वाहिश की तकमील के साथ पूरा फ़रमा!
ऐ अल्लाह, फ़ितनों की गुमराही ने हमें घेर लिया है, उलझन का धुंध छा गया है, कमीनीपन और पस्ती ने हमसे लड़ाई की है, तेरे दीन पर एतबार न रखने वालों ने हम पर हुक्मरानी की है, बदकारों ने हमारे मामलात को हथिया लिया है और तेरे लोगों को नुकसान पहुंचाने और तेरी ज़मीन को खराब करने की कोशिश की है।
ऐ अल्लाह, हमारा माल ज़ब्त किया गया है जबकि वह तकसीम हो चुका था (सब में), और हमारा हुक्मरानी ग़ल्बा बन गई है जबकि वह शूरा (मशवरा) थी और बादशाहत बन गई है जबकि वह क़ौम की पसंद थी; यतीमों और बेवाओं के हिस्सों से तफ़रीहात और मौसिकी खरीदी गई हैं, ग़ैर मुस्लिम मोमिनों पर हुक्मरानी कर रहे हैं, और गुनहगारों को उनके (लोगों के) मामलात सौंपे गए हैं, और कोई मुहाफ़िज़ उन्हें ख़तरे से महफूज़ नहीं करता, और कोई निगरान उन पर रहम की नज़र से नहीं देखता, और कोई मेहरबान प्यासे दिलों को क़हत से सैराब नहीं करता, और इस तरह वह कमज़ोर और भूके हैं एक घर में नुकसान के, बदबख्ती के क़ैदी, उदासी के वारिस, पस्ती...
ऐ अल्लाह, झूठ की फ़सल कटने के क़रीब है, अपने पूरे पर पहुंच चुकी है, उसकी छड़ी मजबूत हो चुकी है... उसकी शाखें ऊँची और मज़बूत हो चुकी हैं।
ऐ अल्लाह, हक़ से उसके काटने वाले को ले आ ताकि उसे काटे, उसकी छड़ी को तोड़ दे, उसकी शाखों को तोड़ दे, उसके ऊँट को काट दे, और उसकी हदों को काट दे, ताकि झूठ अपनी बदसूरत तस्वीर के साथ ग़ायब हो जाए, और हक़ अपनी खूबसूरत पोशाक के साथ ज़ाहिर हो।
ऐ अल्लाह, कोई ज़ुल्म का स्तंभ न छोड़ मगर तू उसे गिरा दे, कोई ढाल न छोड़ मगर तू उसे बेनकाब कर दे, कोई इत्तेहाद न छोड़ मगर तू उसे तोड़ दे, कोई भारी ताक़त न छोड़ मगर तू उसे हल्का कर दे, कोई आला दर्जा न छोड़ मगर तू उसे नीचा कर दे, कोई झंडे का स्तंभ न छोड़ मगर तू उसे पलट दे, और कोई ज़िंदा चीज़ न छोड़ मगर तू उसे हलाक कर दे।
ऐ अल्लाह, उसके[1] सूरज को ढांप ले, उसकी रौशनी बुझा दे, उसका ज़िक्र मिटा दे, हक़ के साथ उसके सर पर मार दे, उसकी फ़ौजों को बिखेर दे, और उसके लोगों के दिलों को ख़ौफ़ज़दा कर दे!
ऐ अल्लाह, उसका कोई बाक़ी न छोड़ मगर वह फ़ना हो जाए, न कोई सा'ख़्ता मगर वह गिरा दे, न कोई इत्तेहाद मगर वह टूट जाए, न कोई बाज़ू मगर वह मफ़लूज हो जाए, न कोई हद मगर वह पामाल हो जाए, न कोई झंडे का स्तंभ मगर वह उलट दे!
ऐ अल्लाह, उसके हामियों को दिखा कि वह हम आहंगी के बाद बिखर गए, इत्तेहाद के बाद अलग हो गए, और क़ौम पर उनके ग़ल्बा के बाद ज़लील हो गए!
ऐ अल्लाह, हमें इन्साफ़ का दिन ले आ, और हमें उसे दिखा कि वह अबदी हो बिना किसी तारीकी के, और पाक रौशनी बिना किसी मिलावट के, और उसकी ख़ूबी हमें मिले, और उसकी बरकत हम पर नाज़िल हो, और उसके[2] मुख़ालिफ़ पर इंतक़ाम ले, और उसके दुश्मन पर उसकी मदद फ़रमा!
ऐ अल्लाह, हक़ को दिखा,[3] और उसे अंधेरों के धुंधलके में चमका दे, और उलझन के अबेहाम में!
ऐ अल्लाह, मुर्दा दिलों को उससे ज़िंदा कर, उससे अलग ख्वाहिशात और मुख़्तलिफ़ रायों को मुत्तहिद कर, उससे मुवक्किफ़ सजाओं और नजरअंदाज शुदा अहकाम को क़ायम कर, उससे भूके पेटों को सैराब कर, उससे कमज़ोर और थके जिस्मों को राहत दे, जैसे तू ने हमें उसका ज़िक्र करने की तौफ़ीक़ दी, और हमारी याद दहानी में अपनी दुआ करने की कामयाबी दी, और जहालत के लोगों को उससे दूर रखा, हमारे दिलों में उसकी मोहब्बत और उसकी तकरिबात को क़ायम करने की तवक्को पैदा की!
ऐ अल्लाह, उस पर बेहतरीन यक़ीन अता फ़रमा, ऐ ने'क ख़्वाहिशात को पूरा करने वाले, ताख़ीर शुदा उम्मीदों को हासिल करने वाले। ऐ अल्लाह, झूठ गढ़ने वालों को रद्द कर दे जो इस पर तेरे खिलाफ़ झूठ गढ़ते हैं, और उनकी बे यक़ीनी की शुब्हात को दूर कर दे जो तेरी रहमत से मायूस हैं और इससे मायूस हैं!
ऐ अल्लाह, हमें उसके ज़राए का ज़रिया बना, उसके अफ़राद का एक फ़र्द बना, उसके किलों का एक किला बना, और हमारे चेहरों को उसकी रौशनी से रौशन कर, हमें उसकी हिमायत से इज़्ज़त दे, और हमारी नियत को बेहतर बना...
ऐ अल्लाह, तू ने हमें हमारी नफ़्सों को जानने की तौफ़ीक़ दी, और हमारे ऐबों को देखने की तौफ़ीक़ दी कि हम तुझे जवाब देने के काबिल न होने का ख़ौफ़ करते हैं, जबकि तू उन लोगों पर फ़ज़्ल करता है जो मुस्तहिक़ नहीं हैं, और मांगने वालों को उनके मांगने से पहले अता करता है, तू हमें अपने करम और फ़ज़्ल से दे, क्योंकि तू जो चाहे करता है, और जो चाहे मुक़र्रर करता है, और हम ने तेरी तरफ़ रुजू किया, और अपने गुनाहों से तौबा की।
ऐ अल्लाह,... और तेरी तरफ़ बुलाने वाला, तेरे लोगों में से इंसाफ़ करने वाला, तेरी रहमत का मोहताज, और तेरी इताअत पर तेरी मदद का मोहताज... तू ने उसे अपनी बरकत अता की, उसे अपनी इज़्ज़त के लिबास पहनाए, उस पर तेरी इताअत की मोहब्बत डाली, उसकी मोहब्बत को दिलों में साबित कर दिया, उसे तेरे हुक्म की तामील में कामयाब बनाया जिससे उसके ज़माने के लोग बेपरवाह हैं, उसे तेरे लोगों के मज़लूमों के लिए पनाह बनाया, और उनके लिए सहारा बनाया जो तेरे सिवा किसी और को पनाह नहीं पाते, और तेरे किताब के अहकाम को बहाल करने वाला, और तेरे दीन के क़वानीन को बहाल करने वाला, और तेरे नबी के अहकाम को बहाल करने वाला, तेरी रहमत, सलामती, और बरकत उस पर और उसकी आल पर हो। ऐ अल्लाह, उसे दुश्मनों की साज़िशों से महफूज़ रख... और उसे उस बेहतरीन चीज़ की तरफ़ ले जा जो तू ने अंबिया के जानशीनों में से अपने इंसाफ़ करने वालों के लिए रखी है। ऐ अल्लाह, उसके ज़रिये उसे कमज़ोर कर जो तेरी मोहब्बत की तरफ़ नहीं लौटता, और जो उसके खिलाफ़ दुश्मनी करता है, और तेरे महलिक पत्थर से उसे हलाक कर जो तेरे दीन के खिलाफ़ साज़िश करता है...
ऐ अल्लाह, जैसे उसने खुद को तेरी खातिर दूर वालों के लिए हदफ़ बनाया, और मोमिनों का दिफ़ा करने के लिए अपनी जान क़ुर्बान की, और मुश्तबा मुरतदीन के शर से मुक़ाबला किया यहाँ तक कि वह फैली हुई नाफरमानियों को दूर करे, और जो उलेमा ने अपनी पीठ के पीछे छोड़ दिया उसे ज़ाहिर करे जबकि उन्होंने उसका अहद लिया कि लोगों के लिए ज़ाहिर करें और उसे न छुपाएं, और वह तेरी इताअत की दावत दे बिना इसके कि तेरी मखलूक से किसी को तेरा शरीक बनाए कि उसका हुक्म तेरे हुक्म के ऊपर हो... ऐ अल्लाह, अपनी फतह से उसकी मदद फ़रमा, उसे इसमें कामयाब फ़रमा जो उसके बस में नहीं है, उसे अपनी मदद से कुव्वत दे...
ऐ अल्लाह, उसे अपने हुक्म की तामील की इज़्ज़त दे ताकि क़यामत के दिन को उसकी हक़ीक़त के साथ देखे, और अपने नबी को (तुझ पर सलामती हो) उसे देखने से ख़ुशी अता फ़रमा, और उसकी पैरवी करने वालों को उसके मिशन में, उसे तेरे हुक्म की तामील पर बेहतरीन अजर दे, उसे अपनी ज़िंदगी में तुझसे क़रीबतर कर, और हमारी बे बसी पर रहम फ़रमा... ऐ अल्लाह, उसे उस से महफूज़ रख जिस का उसके लिए ख़ौफ़ है, और उसे साज़िशों के तीरो से बचा जो दुश्मनों ने उस पर और उसके मामले में शरीक और तेरी इताअत पर उसके मददगारों पर फेंके हैं जिन्हे तू ने उसका किला, पनाह, और आरामगाह बनाया है और जो अपने ख़ानदानों और बच्चों और मुल्क को छोड़ते हैं, आरामदेह बिस्तरों और आसानी को छोड़ देते हैं, अपने तिजारतों को रोक देते हैं, अपने माअश को नुक़सान पहुँचाते हैं... और दुनिया की आर्ज़ी लज़्ज़तों को रद्द करते हैं। ऐ अल्लाह, उन्हें अपनी हिफाज़त में रख और अपनी पनाह में, उनके खिलाफ़ जो उनसे दुश्मनी करता है उनका दिफ़ा फ़रमा, उन्हें अपनी मदद, मुआवनत, और फतह से नवाज़, उनके हक़ से उनके झूठ को शिकस्त दे जो तेरे नूर को बुझाना चाहते हैं। ऐ अल्लाह, हर अफ़क और हर मुल्क को उनसे इंसाफ़, अदल, रहमत, और नेकी से भर दे, और उन्हें तेरे करम और फज़्ल से उस चीज़ का बदला दे जो तू ने तेरे लोगों के इंसाफ़ करने वालों को दिया है, और उनके लिए वह अजर महफूज़ किया है जो दर्जों में बुलंद कर सकता है, तू जो चाहे करता है, और जो चाहे मुक़र्रर करता है...'[1]"