आशूरा - 10 मुहर्रम
"ए फ़ातिमा! क़यामत के दिन हर आँख रो रही होगी सिवाए उस आँख के जिसने हुसैन (अलैहिस्सलाम) की मुसीबत पर आँसू बहाए हैं।..........".. रसूल अल्लाह (स:अ:व:व)
और ज़्यादा जानकारी


इमाम मुहम्मद बिन अली अल-बाक़िर (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया:: "आशूरा के दिन, दोपहर से पहले, वह किसी सहारा में या अपने घर के किसी ऊँचे हिस्से पर जाकर इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) को सलाम कहे, उनके क़ातिलों पर कसरत से लानत करे और दो रकअत नमाज़ अदा करे। फिर वह इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) पर मातम करे और उनके घर वालों को भी मातम करने का हुक्म दे, अपने घर में एक मजलिस मुनअक़िद करे जिसमें इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के मसाइब बयान किए जाएँ और इमाम (अलैहिस्सलाम) के मसाइब पर बेचैन हो जाएँ, एक-दूसरे से मिलें, रोते हुए और इमाम (अलैहिस्सलाम) के मसाइब पर एक-दूसरे को तस्सली दें। अगर वह ऐसा करें, तो मैं ज़मानत देता हूँ कि अल्लाह तआला उनके लिए तमाम इनआमात को रिकॉर्ड करेगा। [हवाला जात: कामिलुज़ ज़ियारात, बाब 71, रवायत 7, सफ़ा 162]

इमाम अली इब्न मूसा अल-रज़ा (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया:जो शख्स मुहर्रम की दसवीं तारीख को अपने दुनियावी कामों से बचता है, अल्लाह उसकी दुनिया और आख़िरत की तमाम ख्वाहिशों और अरमानों को पूरा करेगा। जो शख्स इस दिन को अपने लिए ग़म, अफ़सोस और रोने का दिन समझता है, अल्लाह तआला क़यामत के दिन को उसके लिए खुशी का दिन बना देगा और जन्नत में हमारी वजह से उसकी आँखें ठंडी होंगी।
और जो शख्स मुहर्रम की दसवीं तारीख को खुशहाली का दिन समझता है और अपने घर के लिए कुछ खरीदता है (उसे नेक शगुन समझते हुए), तो अल्लाह उस चीज में उसे खुशहाली नहीं देगा। और क़यामत के दिन उसे यज़ीद, उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद और उमर बिन साद (अल्लाह की लानत हो इन सब पर) के साथ उठाया जाएगा और जहन्नम के सबसे निचले गड्ढे में फेंक दिया जाएगा।" [हवाला: नफ़सुल महमूम, बाब नंबर 3]

गिरया / अज़ादारी पर 40 हदीसें रोने और गिरया करने की अहमियत -Pdf
मुहर्रम लिंक्स
जागते रहें और इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम), उनके ख़ानदान और उनके साथियों के मसाइब (ग़मनाक वाक़ियात) सुनें।
इस पूरी रात को इबादत में गुज़ारने का सवाब, रवायतों के मुताबिक, यह है कि जो शख्स ऐसा करता है उसे तमाम फरिश्तों की इबादत के बराबर अल्लाह तआला की इबादत करने वाला शुमार किया जाएगा। इस रात की इबादत सत्तर साल की इबादत के बराबर है।

1.पढ़ें 4 रकअत नमाज़ जिसकी हर रकत में सूरह फ़ातेहा 1 मर्तबा और सूरह तौहीद 50 मर्तबा हो! (जैसे इमाम अली अमीर अल-मोमिनीन (अलैहिस्सलाम) की नमाज़, जिसका बहुत ज़्यादा सवाब है।)
सैयद इब्न ताउस ने इस नमाज़ का ज़िक्र करने के बाद फरमाया, "जब आप चौथी रकअत मुकम्मल कर लें, तो आप अल्लाह तआला का ज़िक्र करें, नबी पाक (स.अ.व.) और उनके अहल-ए-बैत पर दरूद भेजें, और उनके दुश्मनों पर जितनी मर्तबा मुमकिन हो लानत भेजें।

2.एक सौ रकअत नमाज़ अदा करें जिसमें हर रकअत में सूरह अल-फ़ातिहा एक बार और सूरह अल-तौहीद तीन बार पढ़ी जाए। नमाज़ मुकम्मल करने के बाद, दर्ज ज़ैल को सत्तर मर्तबा दोहराएं:
سُبْحَانَ ٱللَّهِ وَٱلْحَمْدُ لِلَّهِ وَلاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ وَٱللَّهُ أَكْبَرُ
सुभान अल्लाही वल्हम्दु लिल्लाही व ला इलाहा इल्ला अल्लाहु वल्लाहु अकबर
तमाम बुर्ज़गी अल्लाह के लिए है, तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं, अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, अल्लाह सबसे बड़ा है


وَلاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِٱللَّهِ ٱلْعَلِيِّ ٱلْعَظِيمِ
वा ला हौला वा ला कुव्वता इल्ला बिल्लाही अलीय्युल अज़ीम
और नहीं है कोई ताक़त और न कोई क़ुव्वत मगर अल्लाह के साथ, जो बुलंद और बरतर है।


3.पढ़ें 4 रकअत नमाज़ आखिरी वक़्त में इस रात के, जिसकी हर रकअत में सूरह हम्द (1 मर्तबा), आयतल कुर्सी, सूरह तौहीद, सूरह फ़लक़ और सूरह नास (10-10 मर्तबा) पढ़ें! नमाज़ पूरी हो जाने पर सौराह तौहीद की 100 मर्तबा तिलावत करें

4.पढ़ें तहज्जुद की नमाज़ (नमाज़े शब्)

5.पढ़ें ज़्यारत आशूरा - दुआए अलक़मा

इक़बाल उल अमाल से लिए गए अमाल

आशूरा की रात के लिए दर्ज ज़ैल नमाज़ें और दुआएं अल-मुख़्तसर मिनल मुन्तख़ब में बयान की गई हैं
"रोज़े आशूरा 4 रकअत नमाज़ पढ़ें, जिसकी हर रकअत में सूरह हम्द के बाद 100 मर्तबा सुरह तौहीद की तिलावत करें
यह भी रिवायत किया गया है कि हर रकअत में सूरह अल-फातिहा सौ मर्तबा और सूरह अल-इखलास तीन मर्तबा पढ़ी जाए।

कहीं 100 और कहीं 70 मर्तबा की रिव्वायत है
سُبْحَانَ اللَّهِ وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَ اللَّهُ أَكْبَرُ وَ لَا حَوْلَ وَ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ الْعَلِيِّ الْعَظِيمِ
وَ أَسْتَغْفِرُ اللَّهَ
وَ صَلَّى اللَّهُ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ
i."अल्लाह पाक है और सब तारीफें उसी के लिए हैं। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं। और अल्लाह सबसे बड़ा है। कोई तब्दीली और न कोई ताकत है मगर अल्लाह के साथ - जो अज़ीम और बरतर है।"
ii.मैं अल्लाह से मग़फ़िरत तलब करता हूँ
iii.मुहम्मद (स:अ:व:व) और उनकी आल (अलैहिस्सलाम) पर बरकतें नाज़िल फरमा

फिर दर्ज़ ज़ैल दुआएं पढ़ें जो कि किताब अल-रियाज़ में बहुत ज़्यादा मुअज़्ज़ (मुअज्ज़) मानी गई हैं।

اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ
"ए मेरे अल्लाह! मैं तुझ से मांगता हूँ, ए अल्लाह! ए रहीम! ए अल्लाह! ए रहीम! ए अल्लाह! ए रहीम! ए अल्लाह! ए रहीम! ए अल्लाह! ए रहीम! ए अल्लाह! ए रहीम! ए अल्लाह! ए रहीम! ए अल्लाह! ए रहीम! ए अल्लाह! ए रहीम! ए अल्लाह! ए रहीम!

وَ أَسْأَلُكَ‌ بِأَسْمَائِكَ الْوَضِيئَةِ الرَّضِيَّةِ الْمَرْضِيَّةِ الْكَبِيرَةِ الْكَثِيرَةِ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे नामों के वास्ते से मांगता हूँ - पाक, खुशगवार, खुशनूद, अज़ीम, वसी।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الْعَزِيزَةِ الْمَنِيعَةِ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे नामों के वास्ते से मांगता हूँ - बुलंद, नाकाबिल-ए-तसख़ीर!

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الْكَامِلَةِ التَّامَّةِ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे मुकम्मल और कामिल नामों के वास्ते से मांगता हूँ!

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الْمَشْهُورَةِ الْمَشْهُودَةِ لَدَيْكَ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे नामों के वास्ते से मांगता हूँ जो वाज़ेह तौर पर तेरे हैं।

يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الَّتِي لَا يَنْبَغِي لِشَيْ‌ءٍ أَنْ يَتَسَمَّى بِهَا غَيْرُكَ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे नामों के वास्ते से मांगता हूँ जिन का हक कोई और नहीं बल्कि तू है।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الَّتِي لَا تُرَامُ وَ لَا تَزُولُ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे नामों के वास्ते से मांगता हूँ जो न खत्म होते हैं न ज़ायेल

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِمَا تَعْلَمُ أَنَّهُ لَكَ رِضًا مِنْ أَسْمَائِكَ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे नामों के वास्ते से मांगता हूँ जिन को तू जानता है कि वह तुझे खुश करते हैं।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الَّتِي سَجَدَ لَهَا كُلُّ شَيْ‌ءٍ دُونَكَ
अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे नामों के वास्ते से मांगता हूँ जिन के सामने सब चीजें सजदा करती हैं।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الَّتِي لَا يَعْدِلُهَا عِلْمٌ وَ لَا قُدْسٌ وَ لَا شَرَفٌ وَ لَا وَقَارٌ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे नामों के वास्ते से मांगता हूँ जिन के बराबर कोई इल्म, पाकीज़गी, इज्जत और सुकून नहीं है।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ مِنْ مَسَائِلِكَ بِمَا عَاهَدْتَ أَوْفَى الْعَهْدِ أَنْ تُجِيبَ سَائِلَكَ بِهَا
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे उस वास्ते से मांगता हूँ जिस के साथ तू ने मजबूत तरीन अहद बांधा और जिस पर पुकारे जाने पर तू जवाब देता है।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِالْمَسْأَلَةِ الَّتِي أَنْتَ لَهَا أَهْلٌ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे उस वास्ते से मांगता हूँ जिस के साथ तू मुस्तहक है कि उस से मांगा जाए।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِالْمَسْأَلَةِ الَّتِي تَقُولُ لِسَائِلِهَا وَ ذَاكِرِهَا سَلْ مَا شِئْتَ وَ قَدْ [فقد] وَجَبَتْ لَكَ الْإِجَابَةُ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से उस वास्ते से मांगता हूँ जिस पर तू जवाब देता है, "जो चाहो मांगो और ये मुझ पर लाज़िम है कि उसे पूरा करूं।

يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِجُمْلَةِ مَا خَلَقْتَ مِنَ الْمَسَائِلِ الَّتِي لَا يَقْوَى بِحَمْلِهَا شَيْ‌ءٌ دُونَكَ
ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! मैं तुझ से तमाम वास्तों से मांगता हूँ जिन्हें सिर्फ तू ही बर्दाश्त कर सकता है।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ مِنْ مَسَائِلِكَ بِأَعْلَاهَا عُلُوّاً وَ أَرْفَعِهَا رِفْعَةً وَ أَسْنَاهَا ذِكْراً وَ أَسْطَعِهَا نُوراً وَ أَسْرَعِهَا نَجَاحاً وَ أَقْرَبِهَا إِجَابَةً وَ أَتَمِّهَا تَمَاماً وَ أَكْمَلِهَا كَمَالًا وَ كُلُّ مَسَائِلِكَ عَظِيمَةٌ
और मैं तुझ से तेरे अज़ीम तरीन, बुलंद तरीन, सब से ज़्यादा याद किए जाने वाले, सब से ज़्यादा रौशन, सब से जल्दी पूरे होने वाले, सब से क़रीब जवाब दिए जाने वाले, सब से कामिल, सब से मुकम्मल वास्ते से मांगता हूँ हालां कि तेरे तमाम वास्ते जलील-उल-क़द्र हैं!

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِمَا لَا يَنْبَغِي أَنْ يُسْأَلَ بِهِ غَيْرُكَ مِنَ الْعَظَمَةِ وَ الْقُدْسِ وَ الْجَلَالِ وَ الْكِبْرِيَاءِ وَ الشَّرَفِ وَ النُّورِ وَ الرَّحْمَةِ وَ الْقُدْرَةِ وَ الْإِشْرَافِ وَ الْمَسْأَلَةِ وَ الْجُودِ وَ الْعَظَمَةِ وَ الْمَدْحِ وَ الْعِزِّ وَ الْفَضْلِ الْعَظِيمِ وَ الرَّوَاجِ وَ الْمَسَائِلِ الَّتِي بِهَا تُعْطِي مَنْ تُرِيدُ وَ بِهَا تُبْدِئُ وَ تُعِيدُ
ए अल्लाह! मैं तुझ से तेरे उन नामों के वास्ते से मांगता हूँ जिन का हक कोई और नहीं बल्कि तू ही है, जिन में अज़मत, पाकीज़गी, जलाल, अज़मत, इज्जत, नूर, रहमत, ताकत, हम्द, क़ुव्वत और आला शरफ शामिल हैं। सब से क़रीब जवाब दिए जाने वाले, सब से कामिल, सब से मुकम्मल वास्ते से मांगता हूँ हालां कि तेरे तमाम वास्ते जलील-उल-क़द्र हैं!

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِمَسَائِلِكَ الْعَالِيَةِ الْبَيِّنَةِ الْمَحْجُوبَةِ مِنْ كُلِّ شَيْ‌ءٍ دُونَكَ
ए अल्लाह! मैं तुझ से तेरे उस वास्ते से मांगता हूँ जिस के साथ तू जिसे चाहे अता करता है, जिस के साथ तू शुरू करता है और खत्म करता है।

يَا اللَّهُ يَا عَظِيمُ يَا عَزِيزُ يَا كَرِيمُ يَا فَرْدُ يَا وَتْرُ يَا أَحَدُ يَا صَمَدُ
ए वाहिद! ए यकता! ए वाहिद! ए दायमी, मुतलक!

يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا رَحِيمُ أَسْأَلُكَ بِمُنْتَهَى أَسْمَائِكَ الَّتِي مَحَلُّهَا فِي نَفْسِكَ
ए अल्लाह! ए रहीम! ए रहम करने वाले! ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे उन नामों के वास्ते से मांगता हूँ जो तेरे अंदर गहराई में वाक़ेह हैं! ए अल्लाह! मैं तुझ से तेरे अज़ीम और वाज़ेह वास्ते से मांगता हूँ जो हर चीज़ से पर्दा किए हुए हैं।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الْمَخْصُوصَةِيَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الْجَلِيلَةِ الْكَرِيمَةِ الْحَسَنَةِ يَا جَلِيلُ يَا جَمِيلُ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे खास नामों के वास्ते से मांगता हूँ और मैं तुझ से तेरे सब से जलील-उल-क़द्र, मेहरबान, शफीक नामों के वास्ते से मांगता हूँ! ए जलील! ए बलीग़! ए अल्लाह! ए सब पर ग़ालिब! ए अज़मत में बुलंद! ए सब से ज़्यादा सखी।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِمَا سَمَّيْتَهُ بِهِ نَفْسَكَ مِمَّا لَمْ يُسَمِّكَ بِهِ أَحَدٌ غَيْرُكَ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से उस के ज़रिए मांगता हूँ जिस का नाम तू ने खुद पर रखा और जिस के साथ कोई और नहीं पुकारा जाता!

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِمَا لَا يُرَى مِنْ أَسْمَائِكَ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे ग़ैबी नामों के वास्ते से मांगता हूँ।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ مِنْ أَسْمَائِكَ مَا لَا يَعْلَمُهُ غَيْرُكَ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे उन नामों के वास्ते से मांगता हूँ जो सिर्फ तू ही जानता है।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِمَا نَسَبْتَ إِلَيْهِ نَفْسَكَ مِمَّا تُحِبُّهُ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से उस के वास्ते से मांगता हूँ जो तुझे पसंद है!

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِجُمْلَةِ مَسَائِلِكَ الْكِبْرِيَاءَ وَ بِكُلِّ مَسْأَلَةٍ وَجَدْتُهَا حَتَّى يَنْتَهِيَ إِلَى الِاسْمِ الْأَعْظَمِ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे तमाम अज़ीम वास्तों के साथ मांगता हूँ। और मैं तुझ से तमाम वास्तों के साथ मांगता हूँ जो मैं जानता हूँ ताके वास्ता तेरे अज़ीम नाम तक पहुंचे। ए अल्लाह! ए अल्लाह! और मैं तुझ से तेरे तमाम खूबसूरत नामों के वास्ते से मांगता हूँ।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِأَسْمَائِكَ الْحُسْنَى كُلِّهَا يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِكُلِّ اسْمٍ وَجَدْتُهُ حَتَّى يَنْتَهِيَ إِلَى الِاسْمِ الْأَعْظَمِ الْكَبِيرِ الْأَكْبَرِ الْعَلِيِّ الْأَعْلَى وَ هُوَ سْمُكَ الْكَامِلُ الَّذِي فَضَّلْتَهُ عَلَى جَمِيعِ مَا تُسَمِّي بِهِ نَفْسَكَ
और मैं तुझ से तमाम नामों के वास्ते से मांगता हूँ जिन्हें मैं जानता हूँ जब तक कि हम बुलंद, अज़ीम, अज़ीम तरीन नाम तक पहुंच जाएं - सब से बुलंद बुलंद! ये तेरे कामिल नाम हैं जिन्हें तू ने खुद पर बुलंद किया है।

يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا رَحِيمُ أَدْعُوكَ وَ أَسْأَلُكَ بِحَقِّ هَذِهِ الْأَسْمَاءِ وَ تَفْسِيرِهَا فَإِنَّهُ لَا يَعْلَمُ تَفْسِيرَهَا أَحَدٌ غَيْرُكَ
ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए अल्लाह! ए रहीम! ए रहम करने वाले! मैं तुझे पुकारता हूँ।

يَا اللَّهُ وَ أَسْأَلُكَ بِمَا لَا أَعْلَمُ وَ لَوْ عَلِمْتُهُ سَأَلْتُكَ بِهِ وَ بِكُلِّ اسْمٍ اسْتَأْثَرْتَ بِهِ فِي عِلْمِ الْغَيْبِ عِنْدَكَ
ए अल्लाह! और मैं तुझ से उन नामों के वास्ते से मांगता हूँ और उन के मआनी के वास्ते से मांगता हूँ जिन का सही मफ़हूम कोई और नहीं जानता।

और मैं तुझ से उस के वास्ते से मांगता हूँ जो मैं नहीं जानता और अगर मैं जानता तो मांगता। मैं तुझ से तमाम नामों के वास्ते से मांगता हूँ जो तेरे पास तेरे खुफ़िया इल्म के साथ हैं।

أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ عَبْدِكَ وَ رَسُولِكَ وَ أَمِينِكَ عَلَى وَحْيِكَ
कृप्या अपने नबी मोहम्मद (स.अ.व.) पर बरकत नाज़िल फ़रमा, जो तेरे इन्किशाफ़ात पर मामूर हैं, और उन के अहल-ए-बैत पर!

وَ أَنْ تَغْفِرَ لِي جَمِيعَ ذُنُوبِي وَ تَقْضِيَ لِي جَمِيعَ حَوَائِجِي وَ تُبَلِّغَنِي آمَالِي وَ تُسَهِّلَ لِي مَحَابِّي وَ تُيَسِّرَ لِي مُرَادِي وَ تُوصِلَنِي إِلَى بُغْيَتِي سَرِيعاً عَاجِلًا وَ تَرْزُقَنِي رِزْقاً وَاسِعاً وَ تُفَرِّجَ عَنِّي هَمِّي وَ غَمِّي وَ كَرْبِي يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ.
मैं तुझ से मांगता हूँ कि मेरे तमाम गुनाहों को माफ़ फ़रमा, मेरी तमाम ज़रूरियात को पूरा फ़रमा, मेरी तमाम उम्मीदों को पूरा फ़रमा, और मेरी ख्वाहिशात को जल्दी पूरा फ़रमा। ब्रह कृप्या मुझे वाफ़िर रिज़्क़ अता फ़रमा। ब्रह कृप्या मेरी परेशानीयों, ग़मों और दुखों से निजात अता फ़रमा। ए सब से ज़्यादा रहम करने वाले, सब से ज़्यादा मेहरबान!"


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इस दिन पेश आने वाले अज़ीम सान्हे पर तवज्जो दें और अपने कारोबार और मुलाज़मत के मामलात और, हँसी मज़ाक़ और ग़ैर ज़रूरी बहस से परहेज़ करें! ईमाम रज़ा (अ:स) से रिवायत हैं की,
अगर कोई शख्स मुहर्रम की दसवीं तारीख को किसी दुनियावी फायदे का इंतज़ाम करने से परहेज़ करता है, तो अल्लाह तआला उसकी दुनिया और आख़िरत की तमाम ज़रूरतें पूरी करेगा। अगर कोई शख्स मुहर्रम की दसवीं तारीख को अपने लिए बदकिस्मती, ग़म और रोने का दिन समझता है, तो अल्लाह तआला क़यामत के दिन को उसके लिए खुशी और मुसर्रत का दिन बना देगा; और वह जन्नत में हमारी वजह से खुश होगा।
1.जो शख़्स इस दिन 1000 मर्तबा सूरह तौहीद की तिलावत करता है उसके लिये अजरे अज़ीम है
2.पढ़ें यह सलवात जितनी ज़्यादा से ज़्यादा मुमकिन हो सके!
3.इस दिन ये मुस्तहब है कि इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के क़ातिलों पर एक हज़ार मर्तबा अल्लाह तआला की लानत भेजी जाए, इस तरह कहते हुए:
اللَّهُمَّ ٱلْعَنْ قَتَلَةَ ٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ
अल्लाहुम्मा ला-अन क़ता'लतल हुसैन अलैहिस सलाम
ए अल्लाह, (कृपया) इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के क़ातिलों पर लानत भेज



4.ज़्या र त

Recite ज़्यारत आशूरा - दुआ-ए-अलक़मा
Recite ज़्यारत नाहिया (रोज़े आशूर के शोहदा की मख़सूस ज़्यारत भी शामिल है)
ज़्यारत ताज़िया (ताज़ियत की ज़्यारत) रोज़े आशूरा, बादे असर

5.इस तरह अदा करें चार रकअत नमाज़ (2x2) करके फजर और ज़ोहर के दरमियान किसी भी वक्त ;
पहली रकअत में, सूरह अल-हम्द के बाद, सूरह अल-काफ़िरून (109) पढ़ें और दूसरी रकअत में, सूरह अल-हम्द के बाद, सूरह अल-इखलास पढ़ें।
तीसरी रकअत में, सूरह अल-हम्द के बाद, सूरह अल-अहज़ाब (33) पढ़ें और चौथी रकअत में, सूरह अल-हम्द के बाद सूरह अल-मुनाफिक़ून (63) पढ़ें।

6.जितनी मर्तबा मुमकिन हो सके पढ़ें :
اللَّهُمَّ ٱلْعَنْ قَتَلَةَ ٱلْحُسَيْنِ وأَوْلاَدِهِ وَأَصْحَابِ ه ِ
अल्लाहुम्मा ला-अन क़ता'लतल हुसैन व औलादीहि व असहाबिहि'
ए अल्लाह, हुसैन (अलैहिस्सलाम), उनके ख़ानदान और दोस्तों के क़ातिलों पर लानत भेज और उनकी मुज़म्मत फ़रमा
फिर कहें :

فَیَا لَیْتَنِیْ کُنْتُ مَعَکُمْ فَاَفُوْزَ مَعَکُمْ فَوْزاً عَظِیْما
'या लैतनी कुन्तु मा-अकुम फा अफूज़ु मा-अकुम फ़ौज़न अज़ीमा '
काश हम आपके साथ होते ताकि हम भी आपके साथ इस अज़ीम कामयाबी में शरीक हो सकते


7.जब भाइयों से मिलें, उन्हें तसल्ली दें और दुश्मनों पर निम्नलिखित शब्दों में लानत भेजें: तस्वीर
أَعْظَمَ ٱللَّهُ أُجُورَنَا بِمُصَابِنَا بِٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ
अज़मल्लाहु उजूरना बिमुसाबिना बिलहुसैन अलैहिस्सलाम
अल्लाह हमारा और आपका अजर अज़ीम करे, हमारे ग़मे हुसैन अलैहिस्सलाम के सिलसिले में,

وَجَعَلَنَا وَإِيَّاكُمْ مِنَ ٱلطَّالِبِينَ بِثَأْرِهِ
अल्लाह हमारी अजर को इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की शहादत के ग़म की बिना पर दुगना करे
और वह आपको और हमें उन लोगों में शामिल करे जो उनके कातिलों से बदला लेंगे

مَعَ وَلِيِّهِ ٱلإِمَامِ ٱلْمَهْدِيِّ مِنَ آلِ مُحَمَّدٍ عَلَيْهِمُ ٱلسَّلاَمُ
मआ वलीय्यिही अल-इमामि अल-महदीय्यी मिन आले मुहम्मदिन अलेहिमुस सलाम
अपने खून का दावा इमाम महदी के साथ, जो मुहम्मद के घराने से हैं, उन सब पर सलाम हो.


8.सय्यिद इब्न ताउस ने ज़िक्र किया है कि दुआ 'अशारात' आज के दिन पढ़ी जाए 

9.याद करें वह वक़्त जब इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) ने अपने छ माह के शीरख़्वार बेटे अली असगर का ख़ून आलूदा जिस्म अपनी बाँहों में उठाया हुआ था। जब वह ख़ेमों की तरफ़ चल रहे थे ताकि बच्चे का जिस्म उसकी माँ के हवाले कर सकें तो वह मुतरद्दिद हो गए थे!
चंद क़दम आगे बढ़ें और फिर अपने शुरू के मक़ाम पर वापस आएं, यह अमल 7 बार दोहराएं।
चंद क़दम आगे बढ़ें और फिर अपने शुरू के मक़ाम पर वापस आएं, यह अमल 7 बार दोहराएं।
مَعَ وَلِيِّهِ ٱلإِمَامِ ٱلْمَهْدِيِّ مِنَ آلِ مُحَمَّدٍ عَلَيْهِمُ ٱلسَّلاَمُ
इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन, रज़न बे-क़ज़ाएही व तस्लीमन ले अमरेह
बेशक हम अल्लाह के हैं और बेशक हम उसी की तरफ लौट कर जाने वाले हैं। हम उसकी रज़ा पर खुश हैं और उसके हुक्म को बजा लाते हैं

फिर वापस अपनी जगह जाएं जहां आप खड़े हैं और यह दुआ पढ़ें:
اِنَّا لِله وَ اِنَّا اِلَيْهِ رَاجِعُوْنَ رِضًا بِقَضَاَئِهِ وَ تَسْلِيْمًا لِاَمْرِهِ
अल्लाहुम्मा अज़-ज़िबिल फजरतल लज़ीना श्क़्क़ो रसूलका वा हारबू अवलिया-इका वा अबदू ग़ैरका वस-तहल्लू मुहारमका वल-निल क़ादता वल अतबा-आ व मन काना मिन्हुम फ-खब्ब वा अवज़ा-आ म'आहुम अव रज़िया बि-फ़ेलेहिम लानन कसीरा
ऐ अल्लाह! उन बे-हयाओं पर लानत और सज़ा नाज़िल फ़रमा जो तेरे रसूल की ज़िंदगी को मुश्किल बनाते हैं; और तेरे क़रीबी दोस्तों के ख़िलाफ़ जंग करते हैं, और दूसरों की इबादत करते हैं, तुझे नहीं, उस चीज़ को जायज़ समझते हैं जो तू ने हराम क़रार दी थी। उनके रहनुमाओं, पैरोक़ारों, और जो भी उनके साथ छुप कर या खुल्लम खुल्ला शरीक रहे, या उनके (बुरे) कामों को क़बूल किया, उन पर बहुत ज़्यादा लानत नाज़िल फ़रमा।

اَللّٰهُمَّ عَذِّبِ الْـفَجَرَةَ الَّذِيْنَ شَاقُّوْا رَسُوْلَـكَ وَ حَارَبُوْا اَوْلِيَآئَكَ وَ عَبَدُوْا غَيْرَكَ وَ اسْتَحَلُّوْا مَـحَارَمَكَ وَ الْعَنِ الْقَادَةَ وَ الْاَتْبَاعَ وَ مَنْ كَانَ مِنْهُمْ فَخَبَّ وَ اَوْضَعَ مَعَهُمْ اَوْرَضِىَ بِفِعْلِهِمْ لَعْنًا كَثِيْرًا
अल्लाहुम्मा वा अज्जिल फरजा आले मोहम्म्दीन वज-अल सलवातिका अलैहि वा अलैहिम वस-तनक़िज़ हुम मिन अयदिल मुनाफ़िक़ीनल मज़ल्लीना वल कफ़रतिल जाहिदीना वफ़्तह लहुम फ़तहन यसिरा वा अतिह लहुम रूहन वा फरजन क़रीबा वज-अल लहुम मिन लदुनका अला अदुव्विका वा अदुव्विहिम सुलतानन नसीरा
ऐ मेरे अल्लाह, जल्दी से "आल-ए-मुहम्मद" (मुहम्मद के बच्चों) के लिए ख़ुशी और मसर्रत का हुक्म दे, उन पर और उन पर अपनी बरकतें नाज़िल फ़रमा, उनको दोगलापन करने वालों और ज़िद्दी काफ़िरों के ख़तरनाक पंजों से बचा; उनके लिए "इब्तिदा" के दरवाज़े खोल दे, नरमी, मेहरबानी और इंसाफ़ को अमली जामा पहनाने की सहूलत; उनके लिए साज़गार हालात पैदा कर दे ताकि ज़िंदगी को मोहब्बत और ख़्याल से भरपूर, ख़ुशी और बेफ़िक्री से जल्द से जल्द मुमकिन बना सके, अपनी ताक़त से उन्हें अपने दुश्मनों पर मुकम्मल कंट्रोल दे, ताकि वो इंसानियत की मदद, नजात और दिफ़ा कर सकें।


10.अपने हाथ उठाएं,"आल-ए-मुहम्मद" के दुश्मनों को ज़हन में रखते हुए, और ये दुआ पढ़ें।:

اَللّٰهُمَّ وَ عَجِّلْ فَرَجَ اٰلِ مُحَمَّدٍ وَاجْعَلْ صَلَوَاتِكَ عَلَيْهِ وَ عَلَيْهِمْ وَاسْتَـنْقِذْهُمْ مِنْ اَيْدِى الْـمُنَافِقِيْنَ الْـمُضِلِّيْنَ وَ الْكَفَرَةِ الْـجَاحِدِيْنَ وَافْتَحْ لَـهُمْ فَتْحًا يَّسِيْرًا وَ اَتِحْ لَـهُمْ رَوْحًا وَ فَرَجًا قَرِيْبًا وَاجْعَلْ لَهُمْ مِنْ لَّدُنْكَ عَلٰى عَدُوِّكَ وَ عَدُوِّهِمْ سُلْطٰنًا نَّصِيْرًا
ए मेरे अल्लाह! बेशक लोगों की एक बड़ी तादाद ने जंग का ऐलान किया, जाल बिछाए और नापाक चालें चलें उन मुहाफ़िज़ों के खिलाफ़ जो मुतहत और नरम मिज़ाज थे और अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करते थे।
اَللّٰهُمَّ اِنَّ كَثِيْرًا مِّنَ الْاُمَّةِ نَاصَبَتِ الْـمُسْتَحْفِظِيْنَ مِنَ الْاَئِمَّة
नाशुक्रों (यानी इन मुखालिफीन) ने ईमान को तर्क कर दिया और हकीकत में "क़लिमा" पर यकीन नहीं किया; बदअमनी और ज़ुल्म के बानियों के साथ जुड़ गए; किताब और (इलाही) कानून ज़िंदगी को तर्क कर दिया; उन दो धागों से हट गए जिन्हें तेरे हुक्म के मुताबिक थामे रखना चाहिए था; सच्चाई को नुक़सान पहुँचाया और मरोड़ दिया; असल मकसद से हट गए, मुखालिफ़ सिम्त में चले गए; गिरोहबंदी की हौसला अफ़ज़ाई की; किताब को बदल दिया और गलत बनाया; जब कभी सामना हुआ तो वाज़ेह सबूत और जायज़ दावे को मानने से इनकार किया; जब कभी झूठ का सामना हुआ तो उसका इंतिखाब किया; अपने रास्ते से भटक गए और तेरे कानून, इस्लाम को खराब कर दिया; लोगों को गुमराह किया; तेरे नबी के बच्चों को कत्ल किया, तेरे आज़ाद ख्याल खिदमतगारों को, तेरे इल्म के हामिलीन को, तेरे हिकमत और वही के वारिसों को, किताब को।

وَ كَفَرَتْ بِالْـكَلِمَةِ وَ عَكَفَتْ عَلَى الْقَادَةِ الظَّلَمَةِ وَ هَجَرَتِ الْكِتَابَ وَ السُّنَّةَ وَ عَدَلَتْ عَنِ الْـحَبْلَيْنِ الَّذَيْنِ اَمَرْتَ بِطَاعَتِهِمَا وَ التَّمَسُّكِ بِهِمَا فَاَمَاتَتِ الْـحَقَّ وَ حَادَتْ عَنِ الْقَصْدِ وَمَالَأَتِ الْاَحْزَابَ وَ حَرَّفَتِ الْـكِتَابَ وَ كَفَرَتْ بِالـحَقِّ لَـمَّا جَائَهَا وَ تَـمَسَّكَتْ بِالْبَاطِلِ لَـمَّا اعْتَرَضَهَا وَ ضَيَّعَتْ حَقَّكَ وَ اَضَلَّتْ خَلْقَكَ وَ قَتَلَتْ اَوْلاَدَ نَبِيِّكَ وَخِيَرَةَ عِبَادِكَ وَ حَـمَلَةَ عِلْمِكَ وَ وَرَثَةَ حِكْمَتِكَ وَ وَحْيِكَ
ए मेरे अल्लाह, तेरे दुश्मनों की, (जो तेरे रसूल और तेरे रसूल के बच्चों के भी दुश्मन हैं) मंसूबों और तहरीकों को नाकाम बना दे।

اَللّٰهُمَّ فَزَلْزِلْ اَقْدَامَ اَعْدَآئِكَ وَ اَعْدَآءِ رَسُوْلِكَ وَ اَهْلِ بَيْتِ رَسُوْلِكَ
ए मेरे अल्लाह, उनके असर व रसूख के फैलाव को रोक दे; उनके साज़ व सामान और आदमियों को नाकाबिल इस्तेमाल बना दे, उनके इज़हार को उलझा दे और मुतजाद बना दे; उनकी हिमायत को तोड़ दे; उनकी हिकमत अमली को नाकाम बना दे; उन्हें पकड़ ले, अपनी एक तेज़ ज़र्ब से काट दे; उन्हें गिरा दे, तेरी सख्त बेदिल करने वाली रुकावट से डरा कर; उन्हें तबाहियों के निगलने वाले कीचड़ के नीचे दफन कर दे; उन्हें ज़िल्लत आमेज़ तौबा के जुए के नीचे हकीर और काबिल नफरत बना दे; उन्हें सज़ा दे और उन्हें सख्त और तेज़ रद्द अमल का मज़ा चख़ा; उन्हें वाज़ेह और मिसाली सज़ा दे, जैसा कि तू अपने दुश्मनों को खत्म करता है; यह बिला शुब्ह है कि तू मुजरिमों पर काबू पाता है।

اَللّٰهُمَّ وَ اَخْرِبْ دِيَارَهُمْ وَافْلُلْ سِلاَحَهُمْ وَ خَالِفْ بَيْنَ كَلِمَتِهِمْ وَفُتَّ فِىْ اَعْضَادِهِمْ وَ اَوْ هِنْ كَيْدَهُمْ وَ اضْرِبْهُمْ بِسَيْفِكَ الْقَاطِعِ وَارْمِهِمْ بِـحَجَرِكَ الدَّامِغِ وَ طُمَّهُمْ بِالْبَلَآءِ طَمًّا وَ قُمَّهُمْ بِالْعَذَابِ قَمًّا وَ عَذِّبْهُمْ عَذَابًا نُكْرًا وَ خُذْهُمْ بِالسِّنِيْنَ وَ الْـمُثَلاَتِ الَّتِىْ اَهْلَـكْتَ بِهَا اَعْدَآئَكَ اِنَّكَ ذُوْ نِقْمَةٍ مِّنَ الْـمُجْرِمِيْنَ
ए मेरे अल्लाह, तेरे मंज़ूर करदा ज़िंदगी के तरीके को मुस्तरद कर दिया गया है; तेरे कानून को मुअत्तल कर दिया गया है; और नबी की नस्ल को इस दुनिया में सताया गया है।

اَللّٰهُمَّ اِنَّ سُنَّتَكَ ضَآئِعَةٌ وَ اَحْكَامَكَ مُعَطَّلَةٌ وَ عِتْرَةَ نَبِيِّكَ فِى الْاَرْضِ هَآئِمَةٌ
ए मेरे अल्लाह, लिहाज़ा तमाम तवज्जो और देखभाल हक की निशानदेही और हक के हामियों पर दे; झूठ और झूठ के पैरोकारों को रोके और हमें सलामती की तरफ ले जा; हमें हकीक़ी ईमान की तरफ हिदायत दे; हमें जल्द से जल्द खुशी और मसर्रत फराहम कर, तेरे नुमाइंदों की मौजूदगी से हर चीज़ को अच्छे तरीके से तरतीब दे; हमें उनसे मोहब्बत करने की रग़बत दे, उन्हें हमें खुले बाज़ुओं से क़ुबूल करने दे।

اَللّٰهُمَّ فَاَعِنِ الْـحَقَّ وَ اَهْلَهٗ وَ اَقْمَعِ الْبَاطِلَ وَ اَهْلَهٗ وَ مُنَّ عَلَيْنَا بِالنَّجَاةِ وَاهْدِنَا اِلَى الْاِيْـمَانِ وَ عَجِّلْ فَرَجَنَا وَانْظِمْهُ بِفَرَجِ اَوْلِيَآئِكَ وَاجْعَلْهُمْ لَنَاوُدًّا وَاجْعَلْنَا لَـهُمْ وَفْدًا
ए मेरे अल्लाह, उन लोगों को कुछ न बना जो तेरे नबी के प्यारे (अज़ीम) बेटे के शहीद होने के दिन को खुशी में मनाते हैं; हँसते हैं और बे हद खुश होते हैं और बदमाश़ी में मुब्तिला होते हैं; हर एक बाकी बचे को पकड़ ले और सज़ा दे, जैसे तू ने इब्तिदाई (गुनहगारों) पर काबू पाया; उनकी सज़ा को दो गुना कर दे,

اَللّٰهُمَّ وَ اَهْلِكْ مَنْ جَعَلَ يَوْمَ قَتْلِ ابْنِ نَبِيِّكَ وَ خِيَرَتِكَ عِيْدًا وَاسْتَهَلَّ بِهٖ فَرَجًا وَ مَرَحًا وَخُذْ اٰخِرَهُمْ كَمَا اَخَذْتَ اَوَّلَـهُمْ وَ ضَاعِفِ
ए मेरे अल्लाह, और सज़ा को एक इत्तिनाबी मिसाल बनाए, (जबकि जालिमों को सज़ा देते हैं जिन्होंने तेरे नबी के बच्चों के साथ ज़्यादती की; उनके पैरोक़ारों को ज़मीन पर दे मारो, उनके सरबराहों को खत्म कर दो, उनके सरपरस्तों और उनके ग्रुपों को मुकम्मल तौर पर मिटा दो।

اللّٰهُمَّ الْعَذَابَ وَ التَّنْكِيْلَ عَلٰى ظَالِـمِىْ اَهْلِ بَيْتِ نَبِيِّكَ وَ اَهْلَكْ اَشْيَاعَهُمْ وَ قَادَتَـهُمْ وَ اَبْرِحُـمَاتَـهُمْ وَ جَـمَاعَتَهُمْ
ए मेरे अल्लाह, अपनी बरकतों को फुरवानी से बढ़ा, अपनी रहमत को कुशादा दिल से नाज़िल कर, अपनी मेहरबानियों को ग़ैर मुतवक्के फायद के तरह नाज़िल कर, (जो तू अता करता है) तेरे नबी के बच्चों पर, जिन्हें तेरे दुश्मनों ने नज़र अंदाज़ करने, डराने और कोने करने की कोशिश की, वो बच्चे जो खुशबूदार, मजबूती से बढ़े और ज़रखेज़ दरख्त की बढ़ती हुई शान हैं।

اَللّٰهُمَّ وَضَاعِفْ صَلَوَاتِكَ وَ رَحْـمَتِكَ وَ بَرَكَاتِكَ عَلٰى عِتْرَةِ نَبِيِّكَ الْعِتْرَةِ الضَّائِعَةِ الْـخَآئِفَةِ الْمُسْتَذَلَّةِ بَقِيَّةٍ مِّنَ الشَّجَرَةِ الطَّيِّبَةِ الزَّاكِيَةِ الْمُبَارَكَةِ وَ اَعْلِ
लोगों को, ए मेरे अल्लाह, उनके इज़हार करदा शाइस्ता ख़्यालात को बरकरार रखने और अपनाने दे, और मबाहिसों में उनके दलाईल से मुखालिफ़ीन पर ग़ालिब आने दे, इन (की वजह से) परेशानी, तकलीफ़, कुछ न होने और जहालत के सियाह बादलों को भगा दे, उनके पैरोक़ारों के दिलों और दिमागों को मजबूत और मजबूत बनाए (चीजों को यकीनी बनाने और सही जवाबात देने के लिए), तेरे गिरोह से ताल्लुक रखने वाले, तुझसे फरमाबरदार; उनसे मोहब्बत करने वाले; उनकी हिमायत करने वाले; उनके साथ खड़े होने वाले, उनकी निशानदेही करने वाले; वो तेरी खातिर नुकसान और चोट का सामना करने पर खुद पर काबू रखते हैं; उनके लिए वो दिन ले आ जो लोग उन्हें देखेंगे और उन्हें अपने दरमियान पाएँगे कि वो सही ईमान का इज़हार करें, एक खुशहाल और खुशी वाला वक्त;

اَللّٰهُمَّ كَلِمَتَهُمْ وَ اَفْلِجْ حُجَّتَهُمْ وَاكْشِفِ الْبَلَآءَ وَ اللَّاوَآءَ وَحَنَادِسَ الْاَبَاطِيْلِ وَ الْعَمٰى عَنْهُمْ وَ ثَبِّتْ قُلُوْبَ شِيْعَتِهِمْ وَ حِزْبِكَ عَلٰى طَاعَتِكَ وَ وِلاَيَتِهِمْ وَ نُصْرَتـِهِمْ وَ مُوَالاَتِـهِمْ وَ اَعِنْهُمْ وَامْنَحْهُمُ الصَّبْرَ عَلَى الْاَذٰى فِيْكَ وَاجْعَلْهُمْ اَيَّامًا مَّشْهُوْدَةً وَ اَوْقَاتًا مَّـحْمُوْدَةً مَّسْعُوْدَةً
तवील मुद्दत के बाद खुशी और मसर्रत फराहम करने में जल्दी कर, (उनके और हमारे लिए) उनकी मौजूदगी की वजह से; उनकी काबिल, शाइस्ता और साफ़ असर व रसूख लाओ; और उन्हें इस सिलसिले में तेरा दिया हुआ ज़मानत के मुताबिक सपोर्ट दे; तू ने कहा, (और तेरे अल्फाज़ हमेशा सच्चे हैं): अल्लाह ने तुम में से उन लोगों से वादा किया है जो ईमान लाते हैं और नेक काम करते हैं कि वो उन्हें ज़रूर ज़मीन पर खलीफ़ा मुक़र्रर करेगा, जैसा कि उसने उनसे पहले खलीफ़ा मुक़र्रर किया, और यक़ीनन उनके लिए उनके दीन को कायम करेगा जिसे उसने उनके लिए पसंद किया है, और यक़ीनन वो उन्हें उनके ख़ौफ़ के बाद हिफाज़त देगा। तुम मेरी तरफ किसी को शरीक न बनाओ।

تُوْشِكُ فِيْهَا فَرَجَهُمْ وَ تُوْجِبُ فِيْهَا تَـمْكِيْنَهُمْ وَ نَصْرَهُمْ كَمَا ضَمِنْتَ لِاَوْلِيٰآئِكَ فِىْ كِتَابِكَ الْـمُنْزَلِ فَاِنَّكَ قُلْتَ وَ قَوْلُكَ الْـحَقُّ وَعَدَ اللهُ الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا مِنْكُمْ وَ عَمِلُوا الصّٰلِحٰتِ لَيَسْتَخْلِفَنَّهُمْ فِى الْاَرْضِ كَمَا اسْتَخْلَفَ الَّذِيْنَ مِنْ قَبْلِهِمْ وَ لَيُمَكِّنَنَّ لَـهُمْ دِيْنَهُمُ الَّذِى ارْتَضٰى لَـهُمْ وَ لَيُبَدِّلَـنَّهُمْ مِّنْۢ بَعْدِ خَوْفِهِمْ اَمْنًا يَّعْبُدُوْنَنِىْ لاَ يُشْرِكُوْنَ بِىْ شَيْئًا
ए मेरे अल्लाह, लिहाज़ा उन पर छाए हुए सियाह बादलों को भगा दे, कोई भी ताकत नहीं रखता कि दर्द और तकलीफ़ से बचाए सिवाए इसके, ए वाहिद! ए यकता! ए हमेशा ज़िंदा! ए खुद कायम व दाईम!
اَللّٰهُمَّ فَاكْشِفْ غُمَّتَهُمْ يَا مَنْ لاَّ يَـمْلِكُ كَشْفَ الضُّرِّ اِلاَّ هُوَ يَا وَاحِدُ يَا اَحَدُ يَا حَىُّ يَا قَيُّوْمُ
ए मेरे अल्लाह,मैं तेरा बंदा, तेरी आदिलाना जज़ा से मुतहत और (हमेशा) आगाह, तुझसे पनाह तलब करने की दरख्वास्त के साथ, तेरे सामने खड़ा हूँ, तुझसे पनाह लेने के लिए, इस हक़ीक़त से मुकम्मल आगाह हूँ कि तेरे सिवा कहीं भागने का रास्ता नहीं है सिवाए तेरे पास।
وَاَنَا يَا اِلٰـهِىْ عَبْدُكَ الْـخَآئِفُ مِنْكَ وَالرَّاجِعُ اِلَيْكَ السَّآئِلُ لَكَ الْـمُقْبِلُ عَلَيْكَ اللَّاجِئُ اِلٰى فِنَآئِكَ الْعَالِمُ بِاَنَّهٗ لاَ مَلْجَأَ مِنْكَ اِلاَّ اِلَيْكَ
ए मेरे अल्लाह, मेरी दरख्वास्त कुबूल कर, मेरे मुसबत बयान और दिल की पोशीदा इल्तिजा को नोट कर,
ए मेरे अल्लाह, और मुझे उन लोगों में शामिल कर जिनके किरदार से तू राज़ी है, (जिनकी) तक़वा की ज़िन्दगी तेरी मंज़ूर शुदा है, (जिन्हें) तू अपनी रहमत के ज़रिये हिफाज़त की जगह पर लाता है; बेशक तू नायाब, प्यारा और महबूब है (अपनी) मेहरबानी की वजह से।

اَللّٰهُمَّ فَتَقَبَّلْ دُعَآئِىْ وَاسْـمَعْ يَا اِلٰـهِىْ عَلاَنِيَـتِـىْ وَ نَـجْوَاىَ وَاجْعَلْنِىْ مِـمَّنْ رَضِيْتَ عَمَلَهٗ وَقَبِلْتَ نُسُكَهٗ وَ نَـجَّيْتَهٗ بِرَحْـمَتِكَ اِنَّكَ اَنْتَ الْعَزِيْزُ الْكَرِيْمُ

ए मेरे अल्लाह, मोहम्मद और आल मोहम्मद पर इब्तिदा में और आखिर में बरकतें नाज़िल फरमा; मोहम्मद और आल मोहम्मद को हमेशा अमन में रख, मोहम्मद और आल मोहम्मद पर हमेशा अपनी मोहब्बत और शफक़त नाज़िल फरमा, उन सब से ज्यादा और फैसले क़ुन अंदाज़ में जैसा कि तू ने अपने नबियों, रसूलों, फरिश्तों और अर्श के हामिलीन पर बरकत, अमन और मोहब्बत नाज़िल की है, "लाअ इलााह अ इल्ला अंत" के नाम पर और उसकी खातिर।

اَللّٰهُمَّ وَ صَلِّ اَوَّلاً وَ اٰخِرًا عَلٰى مُحَمَّدٍ وَّاٰلِ مُحَمَّدٍ وَ بَارِكْ عَلىٰ مُحَمَّدٍ وَّ اٰلِ مُحَمَّدٍ وَارْحَمْ مُحَمَّدًا وَّ اٰلَ مُحَمَّدٍ بِاَكْمَلِ وَ اَفْضَلِ مَا صَلَّيْتَ وَ بَارَكْتَ وَ تَرَحَّـمْتَ عَلٰى اَنْبِيَآئِكَ وَ رُسُلِكَ وَ مَلَآئِكَتِكَ وَ حَـمَلَةِ عَرْشِكَ بِلَآ اِلٰهَ اِلَّآ اَنْتَ
ए मेरे अल्लाह, मेरे और मोहम्मद और आल मोहम्मद के दरमियान कभी जुदाई न हो, उन पर और उन पर तेरी बरकतें हों; मुझे मोहम्मद, अली, फातिमा, हसन और हुसैन और उनकी पाकीज़ा और मुन्तख़ब औलाद के दोस्तों और पैरोक़ारों में शामिल फरमा; मुझे उनकी दोस्ती को मजबूती से पकड़ने की बसीरत अता फरमा, और हमेशा उनके साथ चलने के लिए तैयार रहूँ, और उनके तर्ज़े ज़िंदगी से फायदा उठाऊँ; बेशक तू फराखदिल, सख़ी और मेहरबान है,


अब सजदे में जाएँ , अपने गाल के दाहिनी तरफ रखें फिर बाईं तरफ रखें, और दोनों मर्तबा पढ़ें:
يَا مَنْ يَحْكُمُ مَا يَشَآءُ وَ يَفْعَلُ مَا يُرِيْدُ اَنْتَ حَكَمْتَ فَلَكَ الْـحَمْدُ مَـحْمُوْدًا مَّشْكُوْرً
ए वह जो जो चाहता है, वह फैसला करता है, जो चाहता है, करता है। यह तू है जो मुकम्मल ताकत रखता है; लिहाज़ा (तमाम) तारीफ तेरे लिए है (सिर्फ); (तू ही) तारीफ के लायक, शुक्र के लायक है।

ا فَعَجِّلْ يَا مَوْلاَىَ فَرَجَهُمْ وَ فَرَجَنَابِهِمْ فَاِنَّكَ ضَمِنْتَ اِعْزَازَهُمْ بَعْدَ الذِّلَّةِ وَ تَكْثِيْرَهُمْ بَعْدَ الْقِلَّةِ وَ اِظْهَارَهُمْ بَعْدَ الْخُمُوْلِ يَا اَصْدَقَ الصَّادِقِيْنَ وَ يَا اَرْحَمَ الرَّاحِـمِيْن
ऐ मेरे मौला, उन्हें मोहब्बत और अमन से भरी ज़िन्दगी अता फरमा, और हमें उनके साथ हमआहंगी और खुशी में शरीक कर, क्योंकि तूने उनके लिए मोहब्बत, इज़्ज़त और हिकमत के आला मकाम पर फ़ाइज़ करने की ज़मानत दी है, सबसे सख्त आज़माइश और तकलीफ के बाद, उनके लिए बहुत ज़्यादा करने के लिए, तमाम हदों से बढ़ कर, जब उन्होंने तेरी राह में दुनियावी मामूली चीज़ों पर क़नाअत की, उनको मुम्ताज़ और नुमायां बना जब तेरे दुश्मनों ने उन्हें पोशीदा रखा, ऐ सबसे सच्चे! ऐ सबसे रहम करने वाले!

فَاَسْئَلُكَ يَا اِلٰـهِىْ وَ سَيِّدِىْ مُتَضَرِّعًا اِلَيْكَ بِـجُوْدِكَ وَ كَرَمِكَ بَسْطَ اَمَلِىْ وَ تَـجَاوُزَ عَنِّىْ وَ قَبُوْلَ قَلِيْلِ عَمَلِىْ وَ كَثِيْرِهٖ وَ الزِّيَادَةَ فِىْ اَيَّامِىْ وَ تَبْلِيْغِىْ ذٰلِكَ الْـمَشْهَدَ وَ اَنْ تَـجْعَلَنِىْ مِـمَّنْ يُدْعٰى فَيُجِيْبُ اِلٰى طَاعَتِهِمْ وَ مُوَالاَتِـهِمْ وَ نَصْرِهِمْ وَ تُرِيَنِىْ ذٰلِكَ قَرِيْبًا سَرِيْعًا فِىْ عَافِيَةٍ اِنَّكَ عَلٰى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيْرٌ.
मैं तुझसे इल्तिजा करता हूँ, ऐ मेरे रब और मौला, तेरे सामने आजिज़ और कमज़ोर हो कर, कि तू अपनी सखावत और मेहरबानी के दरवाज़े खोल दे ताकि मेरी उम्मीदें (दिल की ख्वाहिशात की तकमील) पूरी हों, और जो मैं चाहता हूँ उसे वाफर मिक़दार में हासिल करूँ; और मेरे आमाल को दरुस्त और मक़बूल बना, चाहे वो मामूली नजर आएं या बड़े, मेरी उम्र दराज़ कर यहां तक कि मैं चश्मदीद गवाह बन कर मुतमइन हो जाऊँ, और गवाही दूँ, और उन लोगों में शामिल हो जाऊँ जिन्हें बुलाया जाता है, ताकि मैं उनकी इताअत करने, उनसे मोहब्बत करने और उनकी हिमायत करने में दौड़ूं (यानि हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम की औलाद); मुझे यह जल्द ही देखने की तौफीक दे, क़रीब और अच्छी सेहत में, सलीम दिमाग और मोमिन दिल के साथ। बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है।


अपना सर उठाएं, आसमान की तरफ देखें और कहें:
اَعُوْذُبِكَ اَنْ اَكُوْنَ مِنَ الَّذِيْنَ لاَ يَرْجُوْنَ اَيَّامَكَ فَاَعِذْنِىْ يَا اِلَهِىْ بِرَحْمَتِكَ مِنْ ذلِكَ
आऊज़ो बेका अन अकूना मिनल लज़ीना ला यारजोओना अय्यामका फा-ईज़नी या इलाही बे-रहमतेका मिन ज़ालिका
तुझ में ही पनाह मांगता हूं कि मैं उन लोगों में से न हूं जो तेरे "दीन" की उम्मीद नहीं रखते, पस मुझे कामिल बना और उस वक्त मौजूद रख, अे मेरे मौला, तेरी रहमत के ज़रिये।


अरबी को हिंदी में पढ़ें (ट्रांस्लिट्रेशन)
अल्लाहुम्मा इनना कसीरम मिनल उम्मते नासेबतिल मुस्तहफेज़ीना मिनल अइम्मते वा कफ़रत बिल-कलीमते वा अ'का फ़ त अ'लल क़ादतिज ज़ालमते वा हजरतिल किताबा वस-सुन्नत वा अ'दालत अ'निल हबलैनिल लज़ैने अमरता बेत-ताअ'तेहेमा वत-तमास्सोके बहेमा फ़-अमात्ततिल हक्क व हदत अ'निल क़स्दे वा माला-अतिल अहज़ाबा वा हर्रफतिल किताबा वा कफरत बिलहक्क लम्मा जा-अहा वा तमास्सकत बिलबातिल लम्मा अ'तरजाहा वा ज़य्याअ'त हक्कक व अज़ल्लत खल्कक वा क़तलत औलादा नबीय्येक वा खेयारत इ'बादेक वा हामलत इ'ल्मेक वा वरसत हिकमतक वा वहयेक
अल्लाहुम्मा फज़लज़िल अक़दामा अ'अ'दाअ'एक वा अ'अ'दाअ'ए रसूलेका वा अहलेबैते रसूलेक
अल्लाहुम्मा वा अखरिब दयारहुम वाफ़्लुल सिल्लाहहुम वा खालिफ़ बैना कलीमतहिम वा फ़ुत्ता फी अ'अ'ज़ादेहिम वा औहिन कैदहुम वज़-रिबहुम बेसैफेकल क़ाते-इ' वरमेहिम बेहजरकद दामेग़े वा तुम्महुम बिलबलाअ'ए तमम, वा कुम्महुम बिल- अ'ज़ाबे क़म्मन, वा अ'ज़्ज़िबहुम अ'ज़ाबन नुक़रन, वा खुज़हुम बिस-सिनीना वल मुसलातिल लती अहलकता बेहा अ'अ'दाअ'क इन्नका ज़ू निकमतिम मीनल मुजरेमीना
अल्लाहुम्मा इनना सुन्नतका ज़ाअ'ए अ'तुन वा अहकामका मुअ'त्तलहुन वा इ'त्रता नबीय्येका फिल अरज़े हा-एमा
अल्लाहुम्मा फ़ा-अि'निल हक्क वा अहलहु वा अक्मिल बातिला वा अहलहु वा मुनना अ'लैना बिन-नजाते वहदिना इलल ईमाने वा अ'ज्जिल फ़रजना वनज़िम्हु बिफरजे अवलिया-एक वज-अ'ल्हुम लना वुद्दन वज-अ'लना लहुम वफ्दन
अल्लाहुम्मा वा अह्लिक मन जा-अ'ला यौमा क़त्लिब्ने नबीय्येका वा खेयारतका ई'दन वस्तहल्ला बहे फ़रजन् वा मरहन् वा खुज़ आखेरहुम कमा अ'खज़्ता अ'व्वलहुम वा ज़ाअ'फ़िल लाहुम्मल अ'ज़ाबा वत-तनकीला अ'ला ज़ालेमी अह्ले बैते नबीय्येका वा अह्लिक अश्या-आहुम वा क़ादतहुम वा अब्रे हमातहुम वा जमा-अ'तहुम। अल्लाहुम्मा वा ज़ाअ'इफ़ सलवातेका वा रहमतका वा बरकातेका अ'ला इ'त्रते नबीय्येकल इ'त्रतिज ज़ाअ'एअ'तिल खा-एफतिल मुस्तज़िल्लते बाक़ीयतिम मीनश शजरातित तयेयबतिज ज़ाक़ेयतिल मुबारकते वा अ'अ'लिल लाहुम्मा कलीमतहुम वा अफ्लिज हुज्जतहुम वक-शेफिल बलाअ'अ वल-ला-ओअ' व हनादिसल अबातिल वल-अ'मा अ'न्हुम व सब्बित क़ुलूब शीयअ'तेहिम वा हिज़्बेका अ'ला ताअ'तेका वा वेलायतेहिम वा नुस्रतेहिम वा मुवादातेहिम वा अ-इ'नहुम वम-नह्हुमुस सब्रा अ'लल अज़ा फीका वज-अ'ल्हुम अय्यामम् मशहूदतन वा अवक़ातम् महमूदतन मस-ऊ'दतन तुषिको फीहा फरजहुम वा तुजिबो फीहा तमकीनहुम वा नसरहुम कमा ज़मिंता ले-अवलिया-एक फी किताबेकल मुन्जल। फ़ा-इन्नका क़ुल्ता वा क़ौलोकल हक़्क़ो वा-अ'दल लाहुल लज़ीना आमनू मिंकम वा अ'मेलुस सा-लेहाते लयस्तख्लिफ अन्नहुम फिल अरज़े कमस तक्लफल लज़ीना मिन क़बलेहिम वा लयोमक्किनन्ना लहुम दीनहुमुल लज़ीर तज़ा लहुम वा लयोबद्दिलन्नहुम मिंम बा'दे खव्फेहिम अम्नैं या'बूदूननी ला युश्रेकोना बी शय-आन। अल्लाहुम्मा फ़क्शिफ घुम्मतहुम या मल ला यमलेको कश्फिज ज़ुर्रे इल्ला होवा या वाहेदो या अहदो या हय्यो या क़य्यूमो वा अना या इलाही अ'बदोकल खा-एफो मिंका वर-राजे-ओ इलैकस सा-ए'लो लक अल मुक़बेलो अ'लैकल लाजे-ओ इला फ़ेना-एकल अ'लेमो बे-अन्नहु ला मल-जआ मिंका इल्ला इलैका। अल्लाहुम्मा फ़तक़ब्बल दुआ-आई वस-मअ' या इलाही अ'लानियती व नज्वाया वज-अ'लनी मिम्मन रज़ीता अ'मलहु वा क़बीलता नोसोका हु वा नज्जयता हु बे-रहमतका इन्नका अन्तल अ'ज़ीज़ुल करीमो। अल्लाहुम्मा वा सल्ले अ'व्वलन् वा आखेरन् अ'ला मोहम्मदिन् वा आले मोहम्मदिन वर्हम मोहम्मदन वा आला मोहम्मदिन् बि-अकमले वा अफ्ज़ले मा सल्लैता वा बारकत व तरह्हमता अ'ला अम्बिया-एक वा रसूलेका वा मलाइका तेका वा हमलते अ'र्शेका बि-ला इलाहा इल्ला अन्त। अल्लाहुम्मा ला तुफर्रिक़ बय्नी वा बयना मोहम्मदिन् वा आले मोहम्मदिन सलवातोका अ'लैहि वा अ'लैहिम वज-अ'लनी या मौलाया मिन शीयअ'ते मोहम्मदिन् वा अ'लीय्यिन् वा फातेमता वल-हसन वा-ल हुसैन व ज़ुर्रीयतेहेम ताहेरातिल मुन्तजाबात वा हब्ब लयत तमास्सोक बे हब्लेहिम वर-रज़ा बे-सबीलेहिम वल-अख़ज़ बे तारेक़तेहिम इन्नका जव्वादुन करीमुन

सजदा
अब सजदे में जाएँ, अपने चेहरे के दोनों तरफ ज़मीन पर रखें, एक के बाद एक, और कहें::
या मन यहकोमो मा यशाअो व यफअलो मा युरीदो अंत हकमता फलकल हम्दो मा महमूदम मशकूरन फअज्जिल या मौलाया फरजहुम वफरजना बिहिम फइन्नका जमिन्ता अइजाजहुम बा'दज़ ज़िल्लते व तक्सीरहुम बा'दलकिल्लते व इज़्हारहुम बा'दल खमूले या असदाकस सादेकीना व या अरहमर्राहीमीना फअसअलुका या इलाही व सैय्यदी मुथतर्रेअन इलैका बेजूदीका व करमिका बस्ता अमली व तजावजा अ'न्नी व कबूला कलीला अ'मली व कसीरेही वज़्ज़ियादता फी अय्यामी व तबलिघी ज़ालिकल मश्हदा व अन तजअलनी मिम्मन युदअ' फयूजीबो इल ताअतेहिम व मुवालातेहिम व नस्रेहिम व तुरियानी ज़ालिका क़रीबन सरीअन फी आफियातिन इन्नका अ'ला कुल्ल शैइन क़दीरुन

11.ज़्यारत ताज़िया (ताज़ियत की ज़्यारत) रोज़े आशूरा, बादे असर

12. यौम ए आशूरा पर खाने के समय के आमाल (इक़बाल आमाल)
शिया हजरात को इस दिन कुछ भी खाना या पीना नहीं चाहिए (दोपहर देर तक)। यह रोजा नहीं है और इस नीयत से नहीं रखा जाना चाहिए कि यह रोजा है।
see 'हवाले के टैब पर जाएँ रोज़ा-ए-आशूरा के बारे में पस-ए-मंजर/ग़लत-फहमियाँ समझने के लिए'
आप को दर्ज़ ज़ैल भी पढ़ना चाहिए
اللهم إننا أمسكنا عن المأكول و المشروب حيث كان أهل النبوة في الحروب و الكروب و أما حيث حضر وقت انتقالهم بالشهادة إلى دار البقاء و ظفروا بمراتب الشهداء و السعداء و دخلوا تحت بشارات الآيات بقولك جل جلالك‌
"ए मेरे अल्लाह ! हम ने खाना पीना छोड़ दिया क्योंकि नबी के खानदान लड़ रहे थे और ग़म में मुब्तिला थे। लेकिन अब उनके शहीद होने और अबदी दुनिया में मुन्तक़िल होने का वक़्त आ गया है, जहां उन्हों ने खुशहाली और शहादत के दर्जे हासिल कर लिए हैं। वह दर्ज़ ज़ैल आयात की खुशख़बरीयों से ढके हुए हैं।


وَ لا تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ قُتِلُوا فِي سَبِيلِ اللَّهِ أَمْواتاً بَلْ أَحْياءٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُونَ فَرِحِينَ بِما آتاهُمُ اللَّهُ مِنْ فَضْلِهِ وَ يَسْتَبْشِرُونَ بِالَّذِينَ لَمْ يَلْحَقُوا بِهِمْ مِنْ خَلْفِهِمْ أَلَّا خَوْفٌ عَلَيْهِمْ وَ لا هُمْ يَحْزَنُونَ‌
"पस अल्लाह की तस्बीह करो, जब तुम शाम को पहुंचो और जब तुम सुबह उठो; हां, उसी के लिए तारीफ़ है, आसमानों में और ज़मीन पर; और दोपहर के आखिर में और जब दिन का ज़वाल शुरू हो जाए। वही है जो ज़िंदा को मुर्दा से निकालता है, और मुर्दा को ज़िंदा से निकालता है, और जो ज़मीन को उसकी मौत के बाद ज़िंदगी देता है: और उसी तरह तुम भी (मुर्दों से) निकाले जाओगे।


فنحن لهم موافقون فنتناول الطعام الآن حيث إنهم يرزقون في ديار الرضوان مواساة لهم في الإمساك و الإطلاق فاجعل ذلك سببا لعتق الأعناق و اللحاق لهم في درجات الصالحين برحمتك يا أرحم الراحمين.
हम उन से मुत्तफ़िक़ हैं और अब खाना खाते हैं क्योंकि उन्हें दार-उल-सुरूर में खिलाया जा रहा है ताकि हम उनके हामी बन सकें। इसे हमारे गर्दनों की आज़ादी और आप की रहमत से नेक लोगों के दर्जों में उनके साथ शामिल होने का सबब बनाएं! ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले, सब से ज़्यादा मेहरबान"



अगर कोई इस दिन लोगों को इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के मुक़द्दस मज़ार पर पानी पेश करता है, तो उस का अज्र उस शख्स के अज्र के बराबर होगा जिसने कर्बला में इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के साथियों को पानी पेश किया था।

इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की तीन दुआओं के लिए अगले टैब पर क्लिक करें



रोज़े आशूरा ईमाम हुसैन (अ:स) की 3 दुआयें
1.दुआ अल-हुसैन, जो उन्होंने यौम-ए-आशूरा (दसवीं मुहर्रम) को अपने दुश्मनों के कसीर तादाद में उन्हें घेरे हुए समय पढ़ी थी:
इब्न-ए-अय्याश ने अल-हुसैन इब्न-ए-अली इब्न-ए-सुफ़यान अल-बाज़ुफ़ी के हवाले से नक़ल किया है कि उन्होंने इमाम जाफ़र अल-सादिक़ (अलैहिस्सलाम) को यह दुआ तीसरे शाबान को इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के यौम-ए-विलादत के मौके पर पढ़ते हुए सुना।


اَللَّهُمَّ أَنْتَ مُتَعَالِي ٱلْمَكَانِ
अल्लाहुम्मा अंता मुताअली अलमकानी
ए अल्लाह, बेशक तू बुलंद मक़ाम वाला है,

عَظِيمُ ٱلْجَبَرُوتِ
`अजीमु अलजबरूती
सब से बड़ा कुदरत वाला है,

شَدِيدُ ٱلْمِحَالِ
शदीदु अलमिहाली
बहुत ज़्यादा ताक़तवर है,

غَنِيٌّ عَنِ ٱلْخَلاَئِقِ
ग़नीय्युन अनलख़लायिकी
मख़लूक़ात से बेनियाज़ है,

عَرِيضُ ٱلْكِبْرِيَاءِ
`अरिज़ू अलकिब्रिया'ई
अज़ीम शान वाला है,

قَادِرٌ عَلَىٰ مَا تَشَاءُ
क़ादिरुन अला मा तशा'उ
हर उस चीज़ पर क़ुदरत रखता है जो तू चाहे,

قَرِيبُ ٱلرَّحْمَةِ
क़रीबु अलर्रह़मति
रहमत में क़रीब है,

صَادِقُ ٱلْوَعْدِ
सादिक़ु अल वअदी
वादा में सच्चा है,

سَابِغُ ٱلنِّعْمَةِ
साबीगू अल-नेमती
नेमतों में फराख़ है,

حَسَنُ ٱلْبَلاَءِ
हसनु अलबला'ई
आज़माइशों में हमदर्द है,

قَرِيبٌ إِذَا دُعِيتَ
क़रीबुन इज़ा दु'इत
जब तुझ से दुआ की जाए तो क़रीब है,

مُحِيطٌ بِمَا خَلَقْتَ
मुहीतुन बिमा खलाक़्ता
अपनी मख़लूक़ का अहाता किए हुए है,

قَابِلُ ٱلتَّوْبَةِ لِمَنْ تَابَ إِلَيْكَ
क़ाबिलु अलतौबति लिमन ताबा इलैका
तौबा क़ुबूल करने वाला है जो तेरी तरफ तौबा करे,

قَادِرٌ عَلَىٰ مَا أَرَدْتَ
क़ादिरुन अला मा अराद्ता
जो चाहे वह करने की ताक़त रखता है,

وَمُدْرِكٌ مَا طَلَبْتَ
व मुद्रिकुन मा तलाब्ता
जो तू फैसला करे वह करने वाला है,

وَشَكُورٌ إِذَا شُكِرْتَ
व शुकूरुन इज़ा शुकिर्ता
शुक्र करने वालों का शुक्र गुज़ार है,

وَذَكُورٌ إِذَا ذُكِرْتَ
व ज़कूरुन इज़ा ज़ुकिर्ता
और जो तुझे याद करे उसका ज़िक्र करने वाला है।

أَدْعُوكَ مُحْتَاجاً
अद'उका मुहताजन
मैं तुझ से दुआ करता हूँ क्योंकि मुझे तेरी ज़रूरत है,

وَأَرْغَبُ إِلَوَأَرْوَأَرْغَبُ إِلَيْكَ فَقِيراً
व अरग़बु इलैका फक़ीरन
मैं तुझ से ख़्वाहिश रखता हूँ क्योंकि मैं तेरी चाहत रखता हूँ,

وَأَفْزَعُ إِلَيْكَ خَائِفاً
व अफज़'उ इलैका खा'इफन
मैं तेरी तरफ़ रुजू करता हूँ क्योंकि मैं ख़ौफ़ज़दा हूँ,

وَأَبْكِي إِلَيْكَ مَكْرُوباً
व अब्की इलैका मक़रुबन
मैं तेरे सामने रोता हूँ क्योंकि मैं परेशान हूँ,

وَأَسْتَعِينُ بِكَ ضَعِيفاً
व अस्त'इनु बिका द'इफन
मैं तुझ से मदद माँगता हूँ क्योंकि मैं कमज़ोर हूँ,

وَأَتَوَكَّلُ عَلَيْكَ كَافِياً
व अतवक्कलु अलैका काफियान
और मैं तुझ पर भरोसा करता हूँ क्योंकि तेरे सिवा किसी पर एतमाद नहीं।

أُحْكُمْ بَيْنَنَا وَبَيْنَ قَوْمِنَا بِٱلْحَقِّ
उहकुम बैनना व बैना क़ौमिना बिलहक्कि
हमारे लोगों और हमारे दरमियान हक़ के साथ फैसला कर,

فَإِنَّهُمْ غَرُّونَا وَخَدَعُونَا
फ़'इन्नाहुम ग़र्रूना व ख़दा'ऊना
क्योंकि उन्होंने हमें धोखा दिया, फ़रेब दिया,

وَخَذَلُونَا وَغَدَرُوٱ بِنَا وَقَتَلُونَا
व ख़ज़ा लूना व ग़ज़रू बिना व कतलूना
हमें मायूस किया, हमें धोखा दिया, और हमें क़त्ल किया।

وَنَحْنُ عِتْرَةُ نَبِيِّكَ
व नह्नु 'इतरतु नबीय्यिका
हम तेरे नबी की औलाद हैं,

وَوَلَدُ حَبِيبِكَ
व वालदु हबीबिका
और तेरे महबूब के बेटे हैं;

مُحَمَّدِ بْنِ عَبْدِٱللَّهِ
मोहम्मदिन बिन 'अब्दिल्लाहि
यानी मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह,

ٱلَّذِي ٱصْطَفَيْتَهُ بِٱلرِّسَالَةِ
अल लज़ी इस्तफैतहु बिल'रिसालती
जिसे तू ने रिसालत के लिए चुना

وَٱئْتَمَنْتَهُ عَلَىٰ وَحْيِكَ
वअ'मन्तहु अला वहियेका
और अपने वही की हिफ़ाज़त के लिए मुन्तख़ब किया।

فَٱجْعَلْ لَنَا مِنْ أَمْرِنَا فَرَجاً وَمَخْرَجاً
फज'अल लना मिन अम्रिना फरजन व मखरजन
पस हमारे लिए इस मामले में रास्ता और राहत पैदा कर,

بِرَحْمَتِكَ يَا أَرْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
बिरहमतिका या अरहमार राहेमीन
अपनी रहमत से, ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वालों में सब से ज़्यादा रहम करने वाले!


2.इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की दुआ आशूरा की सुबह जब यज़ीद की फौज का सामना कर रहे थे
पस मंज़र
इमाम ज़ैन अल-आबिदीन (अलैहिस्सलाम) से रिवायत है कि जब 10 मुहर्रम 61 हिजरी (680 ईसवी) की सुबह उमर बिन साद की सवारी इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के करीब पहुंची, तो उन्होंने अपने हाथ उठाए और नीचे दी गई दुआ पढ़ी।
ये वाक़ेआ इस्लामी तारीख़ की इब्तिदाई किताबों में, शिया और सुन्नी दोनों में, बयान किया गया है। नीचे दिए गए मतन का माख़ज़ अल-शेख़ अल-मुफीद (वफ़ात 413 हिजरी/1022 ईसवी) और मुम्ताज़ इब्तिदाई शिया फ़ुक़हा और आलिम-ए-दीन हैं।
ये दुआ नफ्सियाती और रूहानी तौर पर इस्तेमाल होती है, ख़ास तौर पर मुश्किल मसाइल का सामना करते हुए, ताक़तवर मुख़ालिफ़ीन का मुक़ाबला करते हुए, दबाव महसूस करते हुए, तन्हाई से निपटते हुए, या अफ़सर्दगी का इन्तज़ाम करते हुए।
اَللهُمَّ اَتْتَ ثِقَتِىْ فِيْ كُلِّ كَرْبٍ ، وَ رَجَائِ فِيْ كٌلِّ شِدَّةٍ ، وَ اَنْتَ لِي فِيْ كُلِّ اَمْرٍ نَزَلَ بِيْ ثِقَةُ وَ عُدَّةً ،
अल्लाहुम्मा अंता सिक़ती फी कुल्ली कर्ब, वा रजाई फी कुल्ली शिददतीन, वा 'अंता ली फी कुल्ली 'अम्रिन नज़ला बी सिक़तुन वा 'उद-दतन
ए अल्लाह, तू ही है जिस पर मैं हर मुसीबत में भरोसा करता हूँ, और जो कुछ भी मेरे साथ पेश आता है उसमें तू ही मेरी उम्मीद और सहारा है,

كَمْ مِنْ هَمٍّ يَضْعُفُ فِيْهِ الْفُوَادُ، وَتَقِلُ فِيْهِ الْحِيْلَةْ ، وَ يَخْذُلُ فِيْهِ الصَّدِيْقْ ، وَ يَشْمَتُ فِيْهِ الْعَدُوْ
कम मिन हिम्मिन यज़'ऊफू फीहिल फुवादो, वा तक़िल्लू फीहिल हिलात, वा यख़जोलो फीहीस सिद्दीक़ वा यशमतू फीहिल 'अदू,
(इसके बावजूद) कितनी ही परेशानियों में दिल कमज़ोर होता है, ताक़त कम हो जाती है, दोस्त छोड़ जाते हैं, और दुश्मन खुश होते हैं,

اَنْزَلْتُهُ بِكَ وَ شَكَوْتُهُ اِلَيْكَ رَغْبَةً مِنِّىْ اِلَيْكَ عَمَّنْ سِوَاكَ ، فَفَرَّجْتَهُ وَ كَشَفْتَهْ
'अंज़ल्तुहु बिका वा शकौतुहु इलैक रग़बतं मिन्नी इलैक अम्मन सिवाक, फफर्रज्तहु वा कशफ़्तह
मैंने इसे तेरे साथ बर्दाश्त किया और तुझसे इसके बारे में फरियाद की, सिर्फ तुझसे लगाव की वजह से, तूने मुझे इससे निजात दी और इसे दूर कर दिया,

وَ اَتْتَ وَلِيُّ كُلِّ نِعْمَةٍ ، وَ صِاحِبُ كُلِّ حَسَنَةٍ ، وَ مُنْتَهَى كُلِّ رَغْبَةٍ
वा 'अंता वलिय्यु कुल्ली नेमातिन, वा साहिबु कुल्ली हसनाह, वा मुन्तहा कुल्ली रग़बाह।
क्योंकि तू ही हर नेमत का मालिक है, हर बरकत का मंबा है, और हर ख्वाहिश की तकमील करने वाला है।
हवाला: अल-शेख अल-मुफीद, अल-इरशाद फी म'रिफत हज्ज अल्लाह अलाल-इबाद, जिल्द-2 (बेरूत: मोअस्सत अल-अलबैत ली अहया अल-तुरास, 1429/2008) स. 96
गुलाम अब्बास लाखा, बुसतान-ए-ज़हरा, लंदन, मुहर्रम 1439/सितंबर 2017।.
3.एक और दुआ इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की आशूरा के दिन जो उन्होंने अपने बेटे इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अलैहिस्सलाम) को सिखाई थी
किसी भी मुसीबत, संकट या ग़म के लिए

بِحَقِّ يٰسٓ وَالْقُرْاٰنِ الْحَكِيْمِ وَ بِحَقِّ طٰهٰ وَ الْقُرْاٰنِ الْعَظِيْمِ يَا مَنْ يَقْدِرُ عَلٰى حَوَاۤئِجِ السَّاۤئِلِيْنَ يَا مَنْ يَعْلَمُ مَا فِى الضَّمِيْرِ يَا مُنَفِّسًا عَنِ الْمَكْرُوْبِيْنَ يَا مُفَرِّجًا عَنِ الْمَغْمُوْمِيْنَ يَا رَاحِمَ الشَّيْخِ الْكَبِيْرِ يَا رَازِقَ الطِّفْلِ الصَّغِيْرِ يَا مَنْ لَايَحْتَاجُ اِلَى التَّفْسِيْرِ صَلِّ عَلٰى مُحَمَّدٍ وَ اٰلِ مُحَمَّدٍ وَافْعَلْ بِىْ كَذَا و كَذَا
बि-हक्के या-सीन वा अल-क़ुरआन अल-हकीम वा बि-हक्के ताहा वा अल-क़ुरआन अल-अज़ीम या मन यक़दिरु अला हवाइज अस-सा-इलिन या मन यालमु मा फी अद-ज़मीर या मुनाफ़िसन अनिल-मकरूबीन या मुफ़र्रिजन अनिल-मगमूमीन या राहिम अश-शैख अल-कबीर या राज़िक अत-तिफ़ल अस-सगीर या मन ला-यहताजु इला अत-तफ्सीर सल्लि अला मुहम्मद वा आले मुहम्मद वअफअल बी कज़ा वा कज़ा
यासीन (36) और हिकमत वाले क़ुरआन के सदके
और ताहा (20) और अज़ीम क़ुरआन के सदके
ऐ वह जो मांगने वालों की ख़्वाहिशात पूरी करने पर क़ादिर है
ऐ वह जो दिलों की बातें जानता है
ऐ वह जो ग़मगीनों से ग़म दूर करता है
ऐ वह जो मख़मूमों से अफ़सुर्दगी को दूर करता है
ऐ वह जो बढ़ापे में रहम करने वाला है
ऐ वह जो बचपन में रिज़्क़ फराहम करने वाला है
ऐ वह जिसे वज़ाहत की ज़रूरत नहीं।


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سُبْحَانَ اللَّهِ وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ وَ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَ اللَّهُ أَكْبَرُ وَ لَا حَوْلَ وَ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ الْعَلِيِّ الْعَظِيمِ سُبْحَانَ اللَّهِ آنَاءَ اللَّيْلِ‌ وَ أَطْرافَ النَّهارِ سُبْحَانَ اللَّهِ‌ بِالْغُدُوِّ وَ الْآصالِ‌ وَ سُبْحَانَ‌ اللَّهِ حِينَ تُمْسُونَ وَ حِينَ تُصْبِحُونَ وَ لَهُ الْحَمْدُ فِي السَّماواتِ وَ الْأَرْضِ وَ عَشِيًّا وَ حِينَ تُظْهِرُونَ يُخْرِجُ الْحَيَّ مِنَ الْمَيِّتِ وَ يُخْرِجُ الْمَيِّتَ مِنَ الْحَيِّ وَ يُحْيِ الْأَرْضَ بَعْدَ مَوْتِها وَ كَذلِكَ تُخْرَجُونَ‌ سُبْحانَ‌ [اللَّهِ‌] رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ وَ سَلامٌ عَلَى الْمُرْسَلِينَ وَ الْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعالَمِينَ‌ الْحَمْدُ لِلَّهِ الَّذِي لَمْ يَتَّخِذْ وَلَداً وَ لَمْ يَكُنْ لَهُ شَرِيكٌ فِي الْمُلْكِ وَ لَمْ يَكُنْ لَهُ وَلِيٌّ مِنَ الذُّلِّ وَ كَبِّرْهُ تَكْبِيراً عَدَدَ كُلِّ شَيْ‌ءٍ وَ مِلْأَ كُلِّ شَيْ‌ءٍ وَ زِنَةَ كُلِّ شَيْ‌ءٍ وَ أَضْعَافَ ذَلِكَ أَضْعَافاً مُضَاعَفَةً أَبَداً سَرْمَداً كَمَا يَنْبَغِي لِعَظَمَتِهِ سُبْحَانَ ذِي الْمُلْكِ وَ الْمَلَكُوتِ سُبْحَانَ ذِي الْعِزِّ وَ الْجَبَرُوتِ سُبْحَانَ الْحَيِّ الَّذِي لَا يَمُوتُ سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ سُبْحَانَ الْقَائِمِ الدَّائِمِ سُبْحَانَ الْحَيِّ الْقَيُّومِ سُبْحَانَ الْعَلِيِّ الْأَعْلَى سُبْحَانَهُ وَ تَعَالَى سُبْحَانَ اللَّهِ سُبُّوحٌ قُدُّوسٌ رَبُّ الْمَلَائِكَةِ وَ الرُّوحِ اللَّهُمَّ إِنِّي أَصْبَحْتُ فِي مِنَّةٍ وَ نِعْمَةٍ وَ عَافِيَةٍ فَأَتْمِمْ عَلَيَّ نِعْمَتَكَ يَا اللَّهُ وَ مَنَّكَ وَ عَافِيَتَكَ وَ ارْزُقْنِي شُكْرَكَ اللَّهُمَّ بِنُورِ وَجْهِكَ اهْتَدَيْتُ وَ بِفَضْلِكَ اسْتَغْنَيْتُ وَ بِنِعْمَتِكَ أَصْبَحْتُ وَ أَمْسَيْتُ أَصْبَحْتُ أُشْهِدُكَ وَ كَفَى بِكَ شَهِيداً وَ أُشْهِدُ مَلَائِكَتَكَ وَ حَمَلَةَ عَرْشِكَ وَ جَمِيعَ خَلْقِكَ وَ سَمَاءَكَ وَ أَرْضَكَ وَ جَنَّتَكَ وَ نَارَكَ بِأَنَّكَ أَنْتَ اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ وَحْدَكَ لَا شَرِيكَ لَكَ وَ أَنَّ مَا دُونَ عَرْشِكَ إِلَى قَرَارِ أَرْضِكَ مِنْ مَعْبُودٍ دُونَكَ بَاطِلٌ مُضْمَحِلٌّ وَ أَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّداً عَبْدُكَ وَ رَسُولُكَ‌ وَ أَنَّ السَّاعَةَ آتِيَةٌ لا رَيْبَ فِيها وَ أَنَّكَ بَاعِثُ مَنْ‌ فِي الْقُبُورِ اللَّهُمَّ فَاكْتُبْ شَهَادَتِي هَذِهِ عِنْدَكَ حَتَّى أَلْقَاكَ بِهَا وَ قَدْ رَضِيتَ عَنِّي يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ اللَّهُمَّ فَلَكَ الْحَمْدُ حَمْداً تَضَعُ لَكَ السَّمَاوَاتُ كَنَفَيْهَا وَ تُسَبِّحُ لَكَ الْأَرْضُ وَ مَنْ عَلَيْهَا حَمْداً يَصْعَدُ وَ لَا يَنْفَدُ حَمْداً يَزِيدُ وَ لَا يَبِيدُ حَمْداً سَرْمَداً لَا انْقِطَاعَ لَهُ وَ لَا نَفَادَ حَمْداً يَصْعَدُ أَوَّلُهُ وَ لَا يَفْنَى آخِرُهُ وَ لَكَ الْحَمْدُ عَلَيَّ وَ فَوْقِي وَ مَعِي وَ أَمَامِي وَ قَبْلِي وَ لَدَيَّ وَ إِذَا مِتُّ وَ فَنِيتُ وَ بَقِيتُ يَا مَوْلَايَ وَ لَكَ الْحَمْدُ بِجَمِيعِ مَحَامِدِكَ كُلِّهَا عَلَى جَمِيعِ نَعْمَائِكَ كُلِّهَا وَ لَكَ الْحَمْدُ فِي كُلِّ عِرْقٍ سَاكِنٍ وَ فِي كُلِّ أَكْلَةٍ وَ شَرْبَةٍ وَ لِبَاسٍ وَ قُوَّةٍ وَ بَطْشٍ وَ عَلَى مَوْضِعِ كُلِّ شَعْرَةٍ اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ كُلُّهُ وَ لَكَ الْمُلْكُ كُلُّهُ وَ بِيَدِكَ الْخَيْرُ كُلُّهُ وَ إِلَيْكَ يَرْجِعُ الْأَمْرُ كُلُّهُ عَلَانِيَتُهُ وَ سِرُّهُ وَ أَنْتَ مُنْتَهَى الشَّأْنِ كُلِّهِ اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ عَلَى حِلْمِكَ بَعْدَ عِلْمِكَ وَ لَكَ الْحَمْدُ عَلَى عَفْوِكَ بَعْدَ قُدْرَتِكَ اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ يَا بَاعِثَ الْحَمْدِ وَ لَكَ الْحَمْدُ يَا وَارِثَ الْحَمْدِ وَ بَدِيعَ الْحَمْدِ وَ مُنْتَهَى الْحَمْدِ وَ مُبْدِئَ الْحَمْدِ وَ وَفِيَّ الْعَهْدِ صَادِقَ الْوَعْدِ عَزِيزَ الجد [الْجُنْدِ] وَ قَدِيمَ الْمَجْدِ اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ رَفِيعَ الدَّرَجَاتِ مُجِيبَ الدَّعَوَاتِ مُنْزِلَ الْآيَاتِ مِنْ فَوْقِ سَبْعِ سَمَاوَاتٍ مُخْرِجَ مَنْ فِي الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ مُبَدِّلَ السَّيِّئَاتِ حَسَنَاتٍ وَ جَاعِلَ الْحَسَنَاتِ دَرَجَاتٍ اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ غَافِرَ الذَّنْبِ وَ قَابِلَ التَّوْبِ شَدِيدَ الْعِقَابِ ذَا الطَّوْلِ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ إِلَيْكَ الْمَصِيرُ اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ فِي‌ اللَّيْلِ إِذا يَغْشى‌ وَ فِي‌ النَّهارِ إِذا تَجَلَّى‌ وَ لَكَ الْحَمْدُ فِي الْآخِرَةِ وَ الْأُولَى اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ عَدَدَ كُلِّ نَجْمٍ فِي السَّمَاءِ وَ لَكَ الْحَمْدُ بِعَدَدِ كُلِّ مَلَكٍ فِي السَّمَاءِ وَ لَكَ الْحَمْدُ عَدَدَ كُلِّ قَطْرَةٍ فِي الْبَحْرِ وَ لَكَ الْحَمْدُ عَدَدَ أَوْرَاقِ الْأَشْجَارِ وَ لَكَ الْحَمْدُ عَدَدَ الْجِنِّ وَ الْإِنْسِ وَ عَدَدَ الثَّرَى وَ الْبَهَائِمِ وَ السِّبَاعِ وَ الطَّيْرِ وَ لَكَ الْحَمْدُ عَدَدَ مَا فِي جَوْفِ الْأَرْضِ وَ لَكَ الْحَمْدُ عَدَدَ مَا عَلَى وَجْهِ الْأَرْضِ وَ لَكَ الْحَمْدُ عَدَدَ مَا أَحْصَى كِتَابُكَ وَ أَحَاطَ بِهِ عِلْمُكَ وَ زِنَةَ عَرْشِكَ حَمْداً كَثِيراً مُبَارَكاً فِيهِ اللَّهُمَّ لَكَ الْحَمْدُ عَدَدَ مَا تَقُولُ وَ عَدَدَ مَا تَعْلَمُ وَ عَدَدَ مَا يَعْمَلُ خَلْقُكَ كُلُّهُمْ الْأَوَّلُونَ وَ الْآخِرُونَ وَ بِزِنَةِ ذَلِكَ كُلِّهِ وَ عَدَدَ مَا سَمَّيْنَا كُلَّهُ إِذَا مِتْنَا وَ فَنَيْنَا لا إِلهَ إِلَّا اللَّهُ‌ وَحْدَهُ‌ لا شَرِيكَ لَهُ‌ لَهُ الْمُلْكُ وَ لَهُ الْحَمْدُ يُحْيِي وَ يُمِيتُ‌ وَ هُوَ عَلى‌ كُلِّ شَيْ‌ءٍ قَدِيرٌ
बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम. सुब्हानल्लाहे वल-हम्दो लिल्लाहे वा ला इलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकबरो वा ला हवला वा ला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीय्यिल अज़ीम सुब्हानल्लाहे आना-इल लैल वा अतरा-फन्न हार सुब्हानल्लाहे बिल-ग़ुदुव्वे वल-आसाल सुब्हानल्लाहे हीना तुम्सूना वा हीना तुस्बिहून वा लहुल हम्दो फिस-समा-वा-ते वल अर्शे वा आशिय्यन वा हीना तुज़्हेरून युखरेजुल हय्या मिनल मैय्यते वा युखरेजुल मैय्येता मिनल हय्ये वा योहील अर्ज़ा बा'दा मौतेहा वा कज़ालिका तुखराजून।
सुब्हाना रब्बेका रब्बिल इज़्ज़ते अ'म्मा यसिफून वा सलामुन अ'लल मुरसलीन वल-हम्दो लिल्लाहे रब्बिल आ'लमीन।
अलहम्दो लिल्लाहिल लज़ी लाम यत्तखिज़ वलदन वा लाम यकुल लहू शरीकुन फिल मुल्के वा लाम यकुल लहू वलिय्युम मिनज़्ज़िल्ले वा कबिरहो तक्बीरा अ'ददा कुल्लि शयिन वा मिल्अ कुल्लि शयिन वा ज़ेनता कुल्लि शयिन वा अज़'आफ़ा ज़ालिका मोजा'अफ़तन अबदन सरमदन कमा यनबग़ी ले-आ'ज़मतिही सुब्हाना ज़िल मुल्के वल मलाकूते सुब्हाना ज़िल इज़्ज़ते वल जबारूते सुब्हानल हय्यिल लज़ी ला यमूत
सुब्हानल मलेकिल कुद्दूस। सुब्हानल क़ाएमिद दाएमे सुब्हानल हय्यिल क़य्यूम सुब्हानल अ'लीय्यिल अ'अला सुब्हानहू वा तआ'ला सुब्हानल्लाहे सुब्बूहुन कुद्दूसुन रब्बुल मलाएकते वर-रूह।
अल्लाहुम्मा इननी अस्बाह्तु फी मिन्नतिन वा ने'मतिन वा आ'फेयतिन फ़ा-तिम्म अ'लय्या ने'मतक। या अल्लाहो वा मननक वा आ'फेयतक वर ज़ुक़्नी शुकृका
अल्लाहुम्मा बि-नूरे वज्हेका तद्दयतो वा बि-फ़ज़्लिकस तग़्नयतो वा बि-ने'मतिका अस्बाह्तो वा अमसायतो अस्बाह्तो उश्हेदोका वा कफा बिअक शाहीदन वा उश्हेदो मलाएकतका वा हमलता अर्शेका वा जमीअ' खल्केका वा समाअ'का वा अर्शेका वा जन्नतका वा नारका बि-अन्नका अंतल लाहो ला इलाहा इल्ला अंता वहदका ला शरीका लक वा अन्ना मा दूना अर्शेका इला करारे अरज़ेका मिन मा'बूदिन दूना का बातिलुन मुज़महिल्लुन वा अश्हदो अन्ना मोहम्मदन अ'ब्दोका वा रसूलोका वा अन्नस सा-आ'ता आतीयतुन ला रायबा फीहा वा अन्नका बा-इसुन मन फिल कुबूर।
अल्लाहुम्मा! फ़क्तुब शाहादती हाज़ेही इ'ंदका हत्ता अलक़ाका बिहा वा क़द रज़ीयता अ'न्नी या अरहमर राहीमीन।
अल्लाहुम्मा! फ़लकल हम्दो हम्दन तज़ा-ओ' लका समाअ'ओ कनाफ़ैहा वा तुसब्बिहो लक अरज़ो वा मन अ'लैहा हम्दन यसअ'दो वा ला यनफ़दो हम्दन यज़ीदो वा ला यबीदो हम्दन सरमदन लन क़ता-अ' लहू वा ला नफ़ादा हम्दन यसअ'दो अव्वालोहू वा ला यफ़ना आखेरोहू, वा लकल हम्दो अ'लय्या वा फौक़ी वा माअ'ई वा अमामी वा क़ेबली वा लदय्या वा इज़ा मित्तो वा फ़नैयतो वा बाक़ीतो या मौलाया वा लकल हम्दो बि-जमीअ' महामेदेका कुल्लिहा अ'ला जमीअ' ने'माअ'इका कुल्लिहा वा लकल हम्दो फी कुल्ले इ'रकिन साकिनिन वा फी कुल्ले अक्लतिन वा शर्बतिन वा लेबासिन वा कुव्वतिन बत्तिशिन वा अ'ला मौ-ज़े-ए' कुल्ले शअ'रतिन,
अल्लाहुम्मा लकल हम्दो कुल्लोहू वा लकल मुल्को कुल्लोहू वा बि-यदेकल खैर कुल्लोहू वा इलैक यरजिउल अम्र कुल्लोहू अ'लानियतोहू वा सिर्रोहू वा अंत मुन्तहाश शानिहि कुल्लोह। अल्लाहुम्मा लकल हम्दो अ'ला हिल्मेका बा'दा इ'ल्मेका वा लकल हम्दो अ'ला आ'फ़्वेका बा'दा क़ुद्रतेक। अल्लाहुम्मा लकल हम्दो या बा-इसल हम्दे वा लकल हम्दो या वारिसल हम्दे वा बदीअ'ल हम्दे वा मुन्तहिल हम्दे वा मुबद्यल हम्दे वा वफ़िय्यल अ'ह्दे सादिकल वा'दे अ'ज़ीज़ल जद्दे वा क़दीमल माज्दे,
अल्लाहुम्मा लकल हम्दो राफ़ीअ'द दरजाते मुजीबद दाअ'वाते मुंजिलल आयाते मिन फ़ौक़े सबइ' समावातिन तुखरेजु मन फ़िज़ ज़ुलुमाते इलन नूरे मुबद्दिलस सैय्येआते हसनातिन वा जाएइलल हसनाति दरजाते,
अल्लाहुम्मा लकल हम्दो ग़ाफ़िरज़ ज़म्बे वा क़ाबिलत तौबे शदीदल इ'क़ाबे ज़त-तौले ला इलाहा इल्ला अंत इलैकल मसीर
अल्लाहुम्मा लकल हम्दो फिल लैले इज़ा यग़्शा वा फिल नहारे इज़ा तजला वा लकल हम्दो फिल आखेरते वल-उला.
अल्लाहुम्मा लकल हम्दो अ'ददा कुल्ले नज्मिन फिस-समा-ए' वा लकल हम्दो बि-अ'दादे कुल्ले मलाकिन फिस-समा-ए' वा लकल हम्दो अ'ददा कुल्ले क़तरतिन फिल बह्रे वा लकल हम्दो अ'ददा अवराकिल अश्जारे वा लकल हम्दो अ'ददल जिन्ने वल इन्से वा अ'द्दस सरा वल बहाइमे वस्सिबा-ए' वत-तैरे वा लकल हम्दो अ'ददा मा फी जौफिल अरज़े वा लकल हम्दो अ'ददा मा अ'ला वज्हिल अरज़े वा लकल हम्दो अ'ददा मा अह्सा किता बोका वा आहाता बेही इ'ल्मोका ई ज़ेनता अ'र्शेका हम्दन कसीरन मुबारकन फीहि,
अल्लाहुम्मा लकल हम्दो अ'ददा मा तकूलो वा अ'ददा मा तआ'लमो वा अ'ददा मा यअ'मलो खल्कोका कुल्लोहुमुल अव्वलूना वल आखेरूना वा बि-ज़ेनता ज़ालिका कुल्लिहि वा अ'ददा मा सम्मैना कुल्लहू इज़ा मिटना वा फ़नयना ला-इलाहा इल्लल लाहो वह्दहू ला शरीका लहू लहुल मुल्को वा लहुल हम्दो योही वा योमीतो वा होवा अ'ला कुल्ले शयइन क़दीर!
"ऐ अल्लाह, तेरी ज़ात पाक है और तमाम तारीफें तेरे लिए हैं। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं। और अल्लाह सबसे बड़ा है। कोई तब्दीली और कोई ताक़त नहीं मगर अल्लाह के ज़रिये – जो आला और अज़ीम है। अल्लाह की पाकीज़गी रात के वसत या दिन के आखिरी हिस्से में है। सुबहों और शामों में अल्लाह की पाकीज़गी। "पस अल्लाह की तस्बीह करो, जब तुम शाम को पहुँचो और जब तुम सुबह उठो; ;
हाँ, उसी के लिए तारीफ है, आसमानों में और ज़मीन पर; और दोपहर के आखिर में और जब दिन का ज़वाल शुरू हो जाए। वही है जो ज़िंदा को मुर्दा से निकालता है, और मुर्दा को ज़िंदा से निकालता है, और जो ज़मीन को उसकी मौत के बाद ज़िंदगी देता है: और इसी तरह तुम भी (मुर्दों से) निकाले जाओगे।" (30:17-19)
पाक है तेरा रब, इज़्ज़त व कुदरत का रब! वह उन बातों से पाक है जो वह उसकी निस्बत करते हैं! और रसूलों पर सलाम हो! और तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं, जो तमाम जहानों का परवरदिगार है।" (37:180-182)
"तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं, जिसने न किसी को बेटा बनाया, और न ही बादशाही में कोई शरीक है: और न ही वह ज़िल्लत से बचाने के लिए किसी का मोहताज है: हाँ, उसकी अज़मत और जलाल के लिए उसे बड़ा मान लो!" (17:111)
इतनी तारीफ़ें जितनी चीजें हैं, जितनी हर चीज को भर दे, जितनी सब चीजें भारी हैं, और इससे कई गुना ज्यादा - इतनी कि यह उसकी अज़मत के लिए मुनासिब हों। सल्तनत और बादशाही के रब की पाकीज़गी! इज़्ज़त और क़ुदरत के रब की पाकीज़गी! उस ज़िंदा की पाकीज़गी जो फना नहीं होता! हाकिम, मुक़द्दस की पाकीज़गी! मुस्तक़ीम की पाकीज़गी! दाइमी;
ज़िंदा, खुद क़ायम की पाकीज़गी! सबसे आला की पाकीज़गी, जलाल वाला और आला! अल्लाह की पाकीज़गी – मुक़द्दस, पाक, फरिश्तों और रूह के रब! ऐ मेरे अल्लाह! मैंने तेरे नूर की वजह से सुबह की, तेरी ने'मतों से मस्तगनी हुआ, तेरी बरकतों से सुबह और शाम की! ऐ मेरे अल्लाह! अपनी बरकत, फज़ल और भलाई मेरे लिए मुकम्मल फ़रमा। ऐ अल्लाह! मुझे अपनी शुक्र गुज़ारी से नवाज़। ऐ मेरे अल्लाह! मैं तेरे नूर के ज़रिये हिदायत याफ़्ता हुआ, और तेरी ने'मतों से मस्तगनी हुआ। मैंने तेरे फज़ल से सुबह और शाम की;
ऐ मेरे अल्लाह! मैं तुझे गवाह बनाता हूँ। तू मेरे लिए काफ़ी गवाह है। मैं तेरे फरिश्तों, तेरे अर्श के हामिलीन, तेरी तमाम मखलूक, तेरे आसमान और ज़मीन, तेरे जन्नत और जहन्नम को गवाह बनाता हूँ। मैं गवाही देता हूँ कि तेरे सिवा कोई माबूद नहीं। तू अकेला है जिसका कोई शरीक नहीं
मैं गवाही देता हूँ कि आसमानों और ज़मीन से हर मखलूक फना हो जाएगी मगर तू। और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तेरा बन्दा और तेरे रसूल हैं। मैं गवाही देता हूँ कि क़यामत ज़रूर आने वाली है और इसमें कोई शक नहीं. मैं गवाही देता हूँ कि तू क़ब्रो से मुर्दों को ज़िंदा करने वाला है
ऐ मेरे अल्लाह! मेरी यह गवाही तेरे पास लिख दे यहाँ तक कि मैं तुझ से मिलूं और तू मुझ से राज़ी हो। ऐ सबसे ज्यादा रहम करने वाले, सबसे ज्यादा मेहरबान! ऐ मेरे अल्लाह! तमाम तारीफें तेरे लिए हैं.
आसमानों की तारीफ जो तेरे सामने झुकी हुई हैं, और जो ज़मीन और उसमें जो कुछ है तेरी पाकीज़गी बयान करता है। तारीफ जो बुलंद होती है और खत्म नहीं होती। तारीफ जो बढ़ती है और कम नहीं होती। तारीफ जो दाइमी, अबदी, न खत्म होने वाली और न ही खत्म होने वाली। तारीफ जो बुलंद होती है और खत्म नहीं होती;
तारीफ तेरे लिए है जो मेरे साथ, मेरे ऊपर, मेरे साथ, मेरे सामने और मेरे करीब है
ऐ मेरे निगेहबान! तारीफ तेरे लिए है जब मैं मर जाऊं और तू बाकी रहे। लिहाज़ा तमाम तारीफ तेरे लिए है तेरी तमाम ने'मतों के लिए हर शक्ल की तारीफ के साथ। हर दिल की धड़कन, हर खाने, पीने, कपड़े, कुव्वत, पकड़ने, और हर बाल के मुकाम पर तारीफ तेरे लिए है! तमाम तारीफ तेरे लिए है। तमाम बादशाही तेरे लिए है।
तेरे हाथ में सारा खैर है। तमाम मुआमलात चाहे वह अवामी हों या ज़ाती तेरे पास लौटते हैं
और तू हतमी अथॉरिटी है! ऐ मेरे अल्लाह! तारीफ तेरे लिए है तेरी इल्म के बाद भी सब्र करने पर, और तेरी कुदरत के बावजूद भी माफ़ करने पर। ऐ मेरे अल्लाह! तारीफ तेरे लिए है। तारीफ तेरे लिए है ऐ हम्द के सबब! तारीफ तेरे लिए है! ऐ हम्द के वारिस! ऐ हम्द के मोजिद! ऐ हम्द के मक़सद! ऐ हम्द के असल! ऐ वह जो अपने वादों की पासदारी करता है! और वादे में सच्चा है, ऐ इज़्ज़त में बुलंद! ऐ कदीम जलाल में!! ऐ मेरे अल्लाह! तारीफ तेरे लिए है। ऐ वह जो दर्जात बुलंद करता है! ऐ दुआ के जवाब देने वाला! ऐ वह जो सात आसमानों से आयात नाज़िल करता है! ऐ वह जो अंधेरों से निकाल कर रौशनी में लाता है! ऐ वह जो बुरे कामों को अच्छाई में बदलता है! ऐ वह जो अच्छे कामों को दर्जात देता है! ऐ मेरे अल्लाह! तारीफ तेरे लिए है
ऐ गुनाहों को माफ़ करने वाला, तौबा क़ुबूल करने वाला, सख्त अज़ाब देने वाला, ऐ साहिब-ए-जूद! तेरे सिवा कोई माबूद नहीं! "तेरी तरफ हमारा आखरी मकसद है।" (अल-मुम्तहना 60:4)
ऐ मेरे अल्लाह! तारीफ तेरे लिए है रात में जब अंधेरा हो और दिन में जब रौशनी हो। तारीफ तेरे लिए है आख़िरत में और पहली जिंदगी में.
ऐ मेरे अल्लाह! तारीफ तेरे लिए है जितने सितारे आसमान में हैं। तारीफ तेरे लिए है जितने आसमान में हुक्मरानी हैं। तारीफ तेरे लिए है जितने बारिश के क़तरे हैं
तारीफ तेरे लिए है जितने दरख्तों के पत्ते हैं। तारीफ तेरे लिए है जितने इंसान और जिन्न हैं। तारीफ तेरे लिए है जितनी रेत, जानवर, दरिंदे और परिंदे हैं - जितने जमीन की गहराई में हैं और जितने जमीन के चेहरे पर हैं। तारीफ तेरे लिए है जितने तेरे किताब ने शुमार किया है और तेरे इल्म ने एहाता किया है और तेरे अर्श का वजन है;
तारीफ जो कसीर और उसमें बरकत है। ऐ मेरे अल्लाह! तारीफ तेरे लिए है जितने तू कहता है, और जितने तू जानता है, और जितने तेरी मखलूक के पहले नस्ल से आखरी काम तक, और सब के बराबर वजन और तादाद में जिन्हें हम नाम देते हैं यहाँ तक कि हम मर जाएं और फना हो जाएं। अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं। वह अकेला है और उसका कोई शरीक नहीं;
बादशाही और तारीफ उसी के लिए है। वह जिंदगी देता है और मौत देता है और वह हर चीज़ पर कुदरत रखता है।"
इस के बाद हर एक को 10 बार पढ़ें.....
أَسْتَغْفِرُ اللَّهَ يَا اللَّهُ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا رَحْمَانُ يَا رَحِيمُ يَا رَحِيمُ يَا حَنَّانُ يَا مَنَّانُ يَا لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ وَ لَا حَوْلَ‌وَ لَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ الْعَلِيِّ الْعَظِيمِ آمِينَ آمِينَ
अस्तग़फेरुल्लाह
(मैं अल्लाह से माफ़ी मांगता हूँ)
या अल्लाहो या अल्लाहो
(ऐ अल्लाह! ऐ अल्लाह!)
या रहमानो या रहमानो
(ऐ रहमान! ऐ रहमान!)
या रहीमो या रहीमो
(ऐ रहीम! ऐ रहीम!)
या हन्नानो या मन्नानो
(ऐ देने वाले! ऐ बख़्शने वाले!)
या ला इलाहा इल्ला अंता
(ऐ वो जिसके सिवा कोई माबूद नहीं)
वा ला हवला वा ला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अलीय्यिल अज़ीम
(और कोई ताक़त और क़ुव्वत नहीं मगर अल्लाह के साथ, जो सबसे बुलंद, सबसे अज़ीम है)
आमीन आमीन
(ऐसा ही हो, ऐसा ही हो)


3 दुआओं के टैब पर दुआ नंबर 2 पढ़ें

इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के लिए एक और ज़ियारत / ज़ियारत की दुआ आशूरा के दिन के लिए अल-मुख्तसर मिन अल-मुन्तख़ब से:
ज़ियारत के लिए तैयार हो जाएं और ग़ुस्ल करें। साफ़ कपड़े पहनें। नंगे पांव चलकर या तो छत पर या सहन में जाएं और क़िबला की तरफ़ रुख करके इमाम हुसैन की ज़ियारत की मुनदरजा ज़ैल दुआ पढ़ें:
السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ آدَمَ صَفْوَةِ اللَّهِ السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ نُوحٍ أَمِينِ اللَّهِ السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ إِبْرَاهِيمَ خَلِيلِ اللَّهِ السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ مُوسَى كَلِيمِ اللَّهِ السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ عِيسَى رُوحِ اللَّهِ السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ مُحَمَّدٍ رَسُولِ اللَّهِ السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ النَّبِيِّينَ وَ أَمِيرِ الْمُؤْمِنِينَ وَ سَيِّدِ الْوَصِيِّينَ وَ أَفْضَلِ السَّابِقِينَ وَ سِبْطِ خَاتَمِ الْمُرْسَلِينَ وَ كَيْفَ لَا تَكُونُ كَذَلِكَ سَيِّدِي وَ أَنْتَ إِمَامُ الْهُدَى وَ حَلِيفُ التُّقَى وَ خَامِسُ أَصْحَابِ الْكِسَاءِ رُبِّيتَ فِي حَجْرِ الْإِسْلَامِ وَ رَضَعْتَ مِنْ ثَدْيِ الْإِيمَانِ فَطِبْتَ حَيّاً وَ مَيِّتاً السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ الْحَسَنِ الزَّكِيِّ السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا أَبَا عَبْدِ اللَّهِ السَّلَامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا الصِّدِّيقُ الشَّهِيدُ السَّلَامُ عَلَيْكَ أَيُّهَا الْوَصِيُّ الْبَرُّ التَّقِيُّ الرَّضِيُّ الزَّكِيُّ السَّلَامُ عَلَيْكَ وَ عَلَى الْأَرْوَاحِ الَّتِي حَلَّتْ بِفِنَائِكَ وَ أَنَاخَتْ بِسَاحَتِكَ وَ جَاهَدَتْ فِي اللَّهِ مَعَكَ وَ شَرَتْ نَفْسَهَا ابْتِغَاءَ مَرْضَاتِ اللَّهِ فِيكَ السَّلَامُ عَلَى الْمَلَائِكَةِ الْمُحْدِقِينَ بِكَ أَشْهَدُ أَنْ لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ وَ أَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّداً صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَ آلِهِ وَ سَلَّمَ تَسْلِيماً عَبْدُهُ وَ رَسُولُهُ وَ أَشْهَدُ أَنَّ أَبَاكَ عَلِيَّ بْنَ أَبِي طَالِبٍ أَمِيرُ الْمُؤْمِنِينَ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَ آلِهِ وَ سَيِّدُ الْوَصِيِّينَ وَ قَائِدُ الْغُرِّ الْمُحَجَّلِينَ إِمَامٌ افْتَرَضَ اللَّهُ طَاعَتَهُ عَلَى خَلْقِهِ وَ كَذَلِكَ أَخُوكَ الْحَسَنُ بْنُ عَلِيٍّ صَلَوَاتُ [صلى‌] اللَّهُ عَلَيْهِ وَ آلِهِ وَ كَذَلِكَ أَنْتَ وَ الْأَئِمَّةُ مِنْ وُلْدِكَ [أولادك‌] أَشْهَدُ أَنَّكُمْ أَقَمْتُمُ الصَّلَاةَ وَ آتَيْتُمُ الزَّكَاةَ وَ أَمَرْتُمْ بِالْمَعْرُوفِ وَ نَهَيْتُمْ عَنِ الْمُنْكَرِ وَ جَاهَدْتُمْ‌ فِي اللَّهِ حَقَّ جِهادِهِ‌ حَتَّى أَتَاكُمُ الْيَقِينُ مِنْ وَعْدِهِ فَأُشْهِدُ اللَّهَ وَ أُشْهِدُكُمْ أَنِّي بِاللَّهِ مُؤْمِنٌ وَ بِمُحَمَّدٍ مُصَدِّقٌ وَ بِحَقِّكُمْ عَارِفٌ وَ أَشْهَدُ أَنَّكُمْ قَدْ بَلَّغْتُمْ عَنِ اللَّهِ عَزَّ وَ جَلَّ مَا أَمَرَكُمْ بِهِ وَ عَبَدْتُمُوهُ حَتَّى أَتَاكُمُ الْيَقِينُ بِأَبِي وَ أُمِّي أَنْتَ يَا أَبَا عَبْدِ اللَّهِ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ قَتَلَكَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ أَمَرَ بِقَتْلِكَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ شَايَعَ عَلَى ذَلِكَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ بَلَغَهُ ذَلِكَ فَرَضِيَ بِهِ أَشْهَدُ أَنَّ الَّذِينَ سَفَكُوا دَمَكَ وَ انْتَهَكُوا حُرْمَتَكَ وَ قَعَدُوا عَنْ نُصْرَتِكَ مِمَّنْ دَعَاكَ فَأَجَبْتَهُ مَلْعُونُونَ عَلَى لِسَانِ النَّبِيِّ الْأُمِّيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَ آلِهِ وَ سَلَّمَ يَا سَيِّدِي وَ مَوْلَايَ إِنْ كَانَ لَمْ يُجِبْكَ بَدَنِي عِنْدَ اسْتِغَاثَتِكَ فَقَدْ أَجَابَكَ رَأْيِي وَ هَوَايَ أَنَا أَشْهَدُ أَنَّ الْحَقَّ مَعَكَ وَ أَنَّ مَنْ خَالَفَكَ عَلَى ذَلِكَ بَاطِلٌ فَيَا لَيْتَنِي كُنْتُ مَعَكُمْ‌ فَأَفُوزَ فَوْزاً عَظِيماً فَأَسْأَلُكَ يَا سَيِّدِي أَنْ تَسْأَلَ اللَّهَ جَلَّ ذِكْرُهُ فِي ذُنُوبِي وَ أَنْ يُلْحِقَنِي بِكُمْ وَ بِشِيعَتِكُمْ وَ أَنْ يَأْذَنَ لَكُمْ فِي الشَّفَاعَةِ وَ أَنْ يُشَفِّعَكُمْ فِي ذُنُوبِي فَإِنَّهُ قَالَ جَلَّ ذِكْرُهُ‌ مَنْ ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِنْدَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ‌ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْكَ وَ عَلَى آبَائِكَ وَ أَوْلَادِكَ وَ الْمَلَائِكَةِ الْمُقِيمِينَ فِي حَرَمِكَ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْكَ وَ عَلَيْهِمْ أَجْمَعِينَ وَ عَلَى الشُّهَدَاءِ الَّذِينَ اسْتُشْهِدُوا مَعَكَ وَ بَيْنَ يَدَيْكَ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْكَ وَ عَلَيْهِمْ وَ عَلَى وَلَدِكَ عَلِيٍّ الْأَصْغَرِ الَّذِي فُجِعْتَ بِهِ

"तुम पर सलाम हो, ऐ आदम (अलैहिस्सलाम) के वारिस - अल्लाह के चुने हुए! तुम पर सलाम हो, ऐ नूह (अलैहिस्सलाम) के वारिस - अल्लाह के मुअतबर! तुम पर सलाम हो, ऐ इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के वारिस - अल्लाह के दोस्त! तुम पर सलाम हो, ऐ मूसा (अलैहिस्सलाम) के वारिस - जिनसे अल्लाह ने ब्राह-ए-रास्त बात की!
तुम पर सलाम हो, ऐ ईसा (अलैहिस्सलाम) के वारिस - अल्लाह के रूह! तुम पर सलाम हो, ऐ मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के वारिस - अल्लाह के रसूल!
तुम पर सलाम हो, ऐ अंबिया (अलैहिस्सलाम) के वारिस और मोमिनीन के अमीर (अलैहिस्सलाम)! ऐ अमानतदारों के सरदार! सबसे आला पेशरो! ऐ पैगंबरों के खातिम (अलैहिस्सलाम) के बेटे.
ऐ मेरे सरदार! कैसे न हो? तुम हिदायत की तरफ रहनुमा हो, तक़वा के हामी हो, और पांच अफ़राद में से एक हो जो चादर के नीचे थे। तुम इस्लाम की गोद में परवरिश पाये, ईमान की छाती से दूध पिया। तुम्हारी ज़िन्दगी मुबारक हो और तुम्हारी मौत भी मुबारक हो! तुम पर सलाम हो, ऐ हसन (अलैहिस्सलाम) के वारिस - पाक! तुम पर सलाम हो, ऐ अबा अब्दुल्लाह! तुम पर सलाम हो, ऐ सादिक! शहीद! तुम पर सलाम हो, ऐ अमानतदार - सालेह, मुत्तक़ी, रज़ी और पाकीज़ा! तुम पर सलाम हो, और उन रूहों पर जो तुम्हारे खेमे में आईं और तुम्हारे साथ रहीं, अल्लाह की राह में तुम्हारे साथ जिहाद किया और अल्लाह की रज़ा के लिए ज़िन्दगी दी। तुम पर उन फरिश्तों पर सलाम हो जो तुम्हारे गर्द तवाफ करते हैं। मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं। वह अकेला है और उसका कोई शरीक नहीं। मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) उसके बन्दा और नबी हैं और उन पर कसरत से सलाम हो - उसके बन्दा और नबी!
मैं गवाही देता हूँ कि तुम्हारे वालिद अली इब्न अबी तालिब (अलैहिस्सलाम) - मोमिनीन के अमीर - अल्लाह की बरकतें उन पर हों - अमानतदारों के सरदार, सफेद पेशानी वालों के रहनुमा, वह इलाही रहनुमा हैं जिनकी इताअत अल्लाह ने तमाम लोगों पर फर्ज़ की है। इसी तरह तुम्हारे भाई हसन इब्न अली (अलैहिस्सलाम) भी हैं। इसी तरह तुम और तुम्हारी नस्ल के इलाही रहनुमा भी हैं। मैं गवाही देता हूँ कि तुमने नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी, नेकी का हुक्म दिया और बुराई से रोका। तुमने वाकई अल्लाह की राह में जिहाद किया, यहाँ तक कि मौत ने तुम्हें आ लिया। मैं अल्लाह और तुम्हें गवाह बनाता हूँ कि मैं अल्लाह पर ईमान रखता हूँ, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की तस्दीक़ करता हूँ और तुम्हारे हक़ को जानता हूँ। मैं गवाही देता हूँ कि तुमने वाकई वह सब कुछ पहुँचाया जो मुअज्ज़ व बुलंद अल्लाह ने तुम्हें पहुँचाने का हुक्म दिया, और तुमने उसकी खिदमत की यहाँ तक कि मौत ने तुम्हें ले लिया। ऐ अबा अब्दुल्लाह! मेरे वालिदैन तुम पर फ़िदा हों। अल्लाह की लानत हो उन पर जिन्होंने तुम्हें क़त्ल किया। अल्लाह की लानत हो उन पर जिन्होंने तुम्हें क़त्ल करने का हुक्म दिया। अल्लाह की लानत हो उन पर जिन्होंने उनकी मदद की। अल्लाह की लानत हो उन पर जिन्होंने यह सुना और खुश हुए। मैं गवाही देता हूँ कि जिन्होंने तुम्हारा खून बहाया, तुम्हारी हुरमत को पामाल किया, तुम्हें बुलाया लेकिन जब तुमने उनकी दावत क़ुबूल की तो उन्होंने तुम्हारी मदद न की, उन सब पर उम्मी नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने लानत की। ऐ मेरे सरदार और वली! अगर मेरा जिस्म वहाँ नहीं था तुम्हारी मदद के लिए जब तुमने पुकारा, मेरा इरादा और ख्वाहिश तुम्हारी मदद को पहुँची
मैं गवाही देता हूँ कि तुम हक़ पर थे और आपके मुखालिफ ग़लत थे।
मैं गवाही देता हूँ कि तुम हक़ पर थे और तुम्हारे मुखालिफ ग़लत थे। काश मैं तुम्हारे साथ होता और बड़ी कामयाबी हासिल करता! लिहाज़ा - ऐ मेरे सरदार! - मैं तुमसे पूछता हूँ कि अल्लाह से - उसकी याद बुलंद हो - मेरे गुनाहों के बारे में सवाल करो, और उससे दुआ करो कि वह मुझे तुम्हारे और तुम्हारे पैरोक़ारों में शामिल करे, और तुम्हें इजाज़त दे कि मेरे गुनाहों के बारे में सिफारिश करो जैसा कि अल्लाह ने फ़रमाया, "कौन है जो उसके हुज़ूर सिफारिश कर सके बगैर उसकी इजाज़त के?" (अल-बक़रा 2:255) अल्लाह की बरकतें तुम पर, तुम्हारे आबाओ अजदाद, तुम्हारी नस्ल और फरिश्तों पर जो तुम्हारे मज़ार में मक़ीम हैं, हों। अल्लाह की बरकतें तुम पर और उन सब पर हों, और उन शहीदों पर जो तुम्हारे साथ और तुम्हारे सामने गवाही देते हैं। अल्लाह की बरकतें तुम पर, उन पर, और तुम्हारे बेटे अली असगर पर हों जिनके लिए तुम परेशान हुए"
ज़ियारत जारी है...


اللَّهُمَّ إِنِّي بِكَ تَوَجَّهْتُ إِلَيْكَ وَ قَدْ تَحَرَّمْتُ بِمُحَمَّدٍ وَ عِتْرَتِهِ وَ تَوَجَّهْتُ بِهِمْ إِلَيْكَ وَ اسْتَشْفَعْتُ بِهِمْ إِلَيْكَ وَ تَوَسَّلْتُ بِمُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ لِتَقْضِيَ عَنِّي مُفْتَرَضِي وَ دَيْنِي وَ تُفَرِّجَ غَمِّي وَ تَجْعَلَ فَرَجِي مَوْصُولًا بِفَرَجِهِمْ ثُمَّ امْدُدْ يَدَيْكَ حَتَّى يُرَى بَيَاضُ إِبْطَيْكَ وَ قُلْ يَا اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ لَا تَهْتِكْ سِتْرِي وَ لَا تُبْدِ عَوْرَتِي وَ آمَنَ مِنْ رَوْعَتِي وَ أَقِلْنِي عَثْرَتِي اللَّهُمَّ اقْلِبْنِي مُفْلِحاً مُنْجِحاً قَدْ رَضِيتَ عَمَلِي وَ اسْتَجَبْتَ دَعْوَتِي يَا اللَّهُ الْكَرِيمُ ثُمَّ تَقُولُ السَّلَامُ عَلَيْكَ وَ رَحْمَةُ اللَّهِ ثُمَّ تَبْدَأُ فَتَقُولُ السَّلَامُ عَلَى أَمِيرِ الْمُؤْمِنِينَ السَّلَامُ عَلَى فَاطِمَةَ الزَّهْرَاءِ السَّلَامُ عَلَى الْحَسَنِ الزَّكِيِّ السَّلَامُ عَلَى الْحُسَيْنِ الصِّدِّيقِ الشَّهِيدِ السَّلَامُ عَلَى عَلِيِّ بْنِ الْحُسَيْنِ السَّلَامُ عَلَى مُحَمَّدِ بْنِ عَلِيٍّ السَّلَامُ عَلَى جَعْفَرِ بْنِ مُحَمَّدٍ السَّلَامُ عَلَى‌ مُوسَى بْنِ جَعْفَرٍ السَّلَامُ عَلَى الرِّضَا عَلِيِّ بْنِ مُوسَى السَّلَامُ عَلَى مُحَمَّدِ بْنِ عَلِيٍّ السَّلَامُ عَلَى عَلِيِّ بْنِ مُحَمَّدٍ السَّلَامُ عَلَى الْحَسَنِ بْنِ عَلِيٍّ السَّلَامُ عَلَى الْإِمَامِ الْقَائِمِ [الْعَالِمِ‌] بِحَقِّ اللَّهِ وَ حُجَّةِ اللَّهِ فِي أَرْضِهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَ عَلَى آبَائِهِ الرَّاشِدِينَ الطَّيِّبِينَ الطَّاهِرِينَ وَ سَلَّمَ تَسْلِيماً كَثِيراً
फिर कहें, "ऐ मेरे अल्लाह! मैं तुझसे तेरे ज़रिये दरख्वास्त करता हूँ। मैंने अपने आप को मुहम्मद और उनके अहल बैत (अलैहिस्सलाम) की पाकीज़गी के दायरे में रखा है। मैं तुझसे उनके ज़रिये दरख्वास्त करता हूँ। मैं उनकी शफ़ाअत तुझसे अपनी तरफ से चाहता हूँ। मैं तुझसे मुहम्मद और उनके अहल बैत (अलैहिस्सलाम) के हक़ में दरख्वास्त करता हूँ कि मेरे कर्ज़ों और जो कुछ मुझ पर वाजिब है उसे पूरा कर दे। बराह करम मेरा ग़म दूर कर दे, और मेरी राहत को उनकी राहत से जोड़ दे"

फिर अपने हाथों को इतना बुलंद करें कि आपकी बग़लें नज़र आएं और दरज ज़ैल कहें, "ऐ अल्लाह! तेरे सिवा कोई माबूद नहीं! बराह करम मेरे राज़ों को ज़ाहिर न कर, और मेरे ऐबों को दूर न कर। बराह करम मेरे ख़ौफ़ को अमन में बदल दे और मेरी ख़ताओं को माफ़ कर दे। ऐ मेरे अल्लाह! बराह करम मुझे खुशहाल, कामयाब बना और मेरे आमाल को क़ाबिल-ए-क़बूल बना। बराह करम मेरी दुआओं का जवाब दे! ऐ अल्लाह - करम वाले
फिर कहें: "तुम पर सलाम हो और अल्लाह की रहमत तुम पर हो;"

फिर शुरू करें और कहें, "अमीरुल मोमिनीन अली (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! फातिमा अज़-ज़हरा (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! अल-हसन (अलैहिस्सलाम) - पाक पर सलाम हो! अल-हुसैन (अलैहिस्सलाम), सादिक, शहीद पर सलाम हो! अली इब्नुल हुसैन (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! मुहम्मद इब्न अली (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! जाफ़र इब्न मुहम्मद (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! मूसा इब्न जाफ़र (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! अल-रज़ा अली इब्न मूसा (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! मुहम्मद इब्न अली (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! अली इब्न मुहम्मद (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! अल-हसन इब्न अली (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो! ज़िंदा इमाम (अलैहिस्सलाम) पर सलाम हो - जो अल्लाह के हक़ से उठता है, अल्लाह का ज़मीन पर सबूत! अल्लाह की बरकतें उन पर और उनके आबाओ अजदाद पर हों - जो तरक्की में मदद करते हैं, बे दाग़, पाक लोग हैं और उन पर कसरत से सलाम हो"


फिर छह रकअत नमाज़ दो दो कर के पढ़ें। हर रकअत में सूरह फातिहा एक बार और "क़ुल हो अल्लाहु अहद" सौ बार पढ़ें;
जब आप फ़ारिग हो जाएं तो दरज ज़ैल दुआ पढ़ें:


اللَّهُمَّ يَا اللَّهُ يَا رَحْمَانُ يَا رَحْمَانُ يَا عَلِيُّ يَا عَظِيمُ يَا أَحَدُ يَا صَمَدُ يَا فَرْدُ يَا وَتْرُ يَا سَمِيعُ يَا عَلِيمُ يَا عَالِمُ يَا كَبِيرُ يَا مُتَكَبِّرُ يَا جَلِيلُ يَا جَمِيلُ يَا حَلِيمُ يَا قَوِيُّ يَا عَزِيزُ يَا مُتَعَزِّزُ يَا مُؤْمِنُ يَا مُهَيْمِنُ يَا جَبَّارُ يَا عَلِيُّ يَا مُعِينُ يَا حَنَّانُ يَا مَنَّانُ يَا تَوَّابُ يَا بَاعِثُ يَا وَارِثُ يَا حَمِيدُ يَا مَجِيدُ يَا مَعْبُودُ يَا مَوْجُودُ يَا ظَاهِرُ يَا بَاطِنُ يَا أَوَّلُ يَا آخِرُ يَا حَيُّ يَا قَيُّومُ يَا ذَا الْجَلَالِ وَ الْإِكْرَامِ وَ يَا ذَا الْعِزَّةِ وَ السُّلْطَانِ أَسْأَلُكَ بِحَقِّ هَذِهِ الْأَسْمَاءِ يَا اللَّهُ وَ بِحَقِّ أَسْمَائِكَ كُلِّهَا أَنْ تُصَلِّيَ عَلَى مُحَمَّدٍ وَ عَلَى آلِ مُحَمَّدٍ وَ أَنْ تُفَرِّجَ عَنِّي كُلَّ هَمٍّ وَ غَمٍّ وَ كَرْبٍ وَ ضُرٍّ وَ ضِيقٍ أَنَا فِيهِ وَ تَقْضِيَ عَنِّي دَيْنِي وَ تُبَلِّغَنِي أُمْنِيَّتِي وَ تُسَهِّلَ لِي مَحَبَّتِي وَ تُيَسِّرَ لِي إِرَادَتِي وَ تُوصِلَنِي إِلَى بُغْيَتِي سَرِيعاً عَاجِلًا وَ تُعْطِيَنِي سُؤْلِي وَ مَسْأَلَتِي وَ تَزِيدَنِي فَوْقَ رَغْبَتِي وَ تَجْمَعَ خَيْرَ الدُّنْيَا وَ الْآخِرَةِ.
"ऐ रहीम! ऐ रहीम! ऐ बुलंद-ओ-बाला! ऐ सबसे ज़्यादा ग़ालिब! ऐ यकता! ऐ अब्दी, मतलिक! ऐ वाहिद! ऐ फर्द! ऐ सब सुनने वाले, ऐ सब जानने वाले! ऐ जानने वाले! ऐ अज़ीम! ऐ फ़ख्र करने वाले! ऐ जलील! ऐ लतीफ! ऐ बर्दबार! ऐ क़वी! ऐ इज़्ज़त वाले! ऐ क़वी! ऐ मौजूद! ऐ निगहबान! ऐ जबर करने वाले! ऐ बुलंद-ओ-बाला! ऐ मददगार! ऐ अता करने वाले! ऐ बख्शने वाले! ऐ तौबा क़ुबूल करने वाले! ऐ ज़िंदा करने वाले! ऐ वारिस! ऐ तारीफ करने वाले! ऐ सबसे ज़्यादा जलाल वाले! ऐ माबूद! ऐ मौजूद! ऐ ज़ाहिर! ऐ बातिन! ऐ अव्वल! ऐ आख़िर! ऐ ज़िंदा! ऐ क़ायम बिल ज़ात! ऐ जलाल-ओ-करम वाले! ऐ इज़्ज़त और इख़्तियार वाले रब! ऐ खुदा! मैं तुझसे इन नामों के वासिते से और तेरे तमाम नामों के वासिते से मांगता हूँ;
मैं तुझसे मुहम्मद और उनकी आल (अलैहिस्सलाम) पर अपनी बरकतें नाज़िल करने की दरख्वास्त करता हूँ
बराह करम मुझे तमाम ग़म, उदासी, अफ़सोस, नुकसान और पाबंदियों से निजात दे
बराह करम मुझे मेरे कर्ज़ों की अदायगी में मदद दे; मेरी उम्मीदों को पूरा कर, मेरी मुश्किलात को आसानी से हल कर, जो मुझे ज़रूरत हो उसे मुहैया कर, मेरी दरख्वास्तों और मुतालबात को पूरा कर, और मुझे मेरी ख्वाहिशात से ज्यादा अता कर
बराह करम मुझे दुनिया और आख़िरत की बेहतरीन चीजें अता कर

आशूरा के दिन इस दुआ को 10 बार पढ़ें
اَللّٰهُمَّ صَلِّ ﻋَﲆٰ مُحَمَّدٍ وَّ الِ مُحَمَّدٍ وَ سَلِّمْ ﻋَﲆٰ جَمِیْعِ َانَ لله مَلَأ الْمِيْزَانِ وَ مُنْتَهَي الْاَنْبِیَآئِ وَالْمُرْسَلِيْنَ ُْ الْعِلْمِ وَ مَبْلَغَ الرِّضَا وَ زِنَةَ الْعَرْشِ وَ سِّعَةَ الْکُرْسِىِّ لَا َانَ لله عَدَدَا لَشَّفْعِ وَ لله اِلَّااِلَیْهِ ُْ مَلْجَا وَ لَا مَنْجَا َِ وَ عَدَدَ كلَمَِاتِهِ التَّآمَّآتِ كُلِّهَا اَسْئَلُهُ السَّلَامَةَ الْوِ الْعَلِيِّ الْعَظِیْمِ و ھُوَ حْمَتِهٖ وَ لَا حَوْلَ وَ لَا قُوَّۃَ اِلَّا ِ حَسْ بى وَ نِعْمَ الْوَکیِْلُ وَ نِعْمَ الْمَوْلٰي وَ نِعْمَ النَّصِيْرُ وَ صَلَّ للهُ ﻋَﲆٰ مُحَمَّدٍ وَّ الِهٖ وَ سَلِّمْ ﻋَﲆٰ جَمِیْعِ الْاَنْبِیَآئِ وَ الْمُرْسَلِيْنَ وَ قٰضِ حَاجَا تىْ فِي الدُّنْیَا وَ لْاٰخِرَۃِ وَ طَوِّلٰ اَرْحَمَ الرَّاحِمِيْنَ ۔ حْمَتِکَ َ عُمْرِیْ فِيْ طَاعَتِکَ وَ رِضَا َِ
अरबी हिंदी में पढ़ें (ट्रांस्लिट्रेशन): अल्लाहुम्मा स'अल्ली अ'ला मुहम्मदिन्व वा आ'ली मुहम्मदिन् वा सल्लिम अ'ला जमी'-इल अंबिया-इ वल मुरसलीन। सुभ'आन अल्लाही माला अल मीजानी व मुन्तहलि इ'ल्मी मबलग़िर रिज़ा व ज़ीनतल अर्शि वस सि'अतल कुर्सीय्यी ला मलजा व ला मंजा मिनल्लाही इल्ला इलैह
सुभ'आन अल्लाही अ'ददा लश शफि' वल वित्री व अ'ददा कलिमा तिहित ताम्माति कुल्लिहा अस-अलुहुस सलामता बिरह्मतिही व ला ह'वला व ला कुव्वता इल्ला बिल्लाहिल अ'लीय्यिल अज़ीम व हु वा हस्बी व नि'मल वकीलु व नि'मल मौला व नि'मन नसीर
व स'अल्लल लाहु अ'ला मुहम्मदिन्व वा आ'लिही व सल्लिम अ'ला जमी'-इल अंबिया-इ वल मुरसलीन; व काज़ी हाजती फिद दुनिया वल आखिरति व त'व्विल उम्री फी ता'तिक व रिज़ा बिरह्मतिका या अरहमर रहिमीन!



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When the skies wept blood

आशूर का रोज़ा

अशूरा - ग़लत बयानी और तहरीफात (गलत प्रस्तुतियाँ और विकृतियाँ) यह चार ख़ुतबात का एक सिलसिला है जो मुसन्निफ़ ने आशूरा के मानी और एहमियत और कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के मौज़ू पर दिया है। अज़ अली क़ुली क़ाराई PDF-अंग्रेजी में )
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