ज़्यारत आशूरा - ईमाम हुसैन (अ:स)

यह ज़्यारत ईमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के लिए आशूरा के दिन और हर रोज़ पढ़ी जाती है। तमाम बड़े मसलों के हल के लिए बहुत ज़्यादा तजवीज़ किया जाता है, अगर मुसलसल 40 दिनों तक पढ़ी जाए।

इस ज़्यारत की अहमियत



اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا أَبَا عَبْدِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या अबा अब्दिल्लाही
आप पर सलाम हो, ऐ अबू अब्दुल्लाह।

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ رَسُولِ ٱللَّهِ
अस्सलामु `अलैका यब्न रसूलि अल्लाही
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के रसूल के बेटे

السَّلاَمُ عَلَيكَ يَا خِيَرَةِ ٱللَّهِ وَٱبْنَ خَيرَتِهِ
अस्सलामु `अलैका या खियाराता अल्लाही वब्न खियारतिहि
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के बरग़ज़ीदा और उनके बरग़ज़ीदा बेटे

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ أَمِيرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ
अस्सलामु `अलैका यब्न अमीरुल मोमिनीना
आप पर सलाम हो, ऐ अमीर उल मोमिनीन के बेटे

وَٱبْنَ سَيِّدِ ٱلْوَصِيِّينَ
वब्न सय्यिदी अलवसीय्यीना
और नबियों के सरदार के जानशीन के बेटे

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ فَاطِمَةَ
अस्सलामु `अलैका यब्न फातिमाता
आप पर सलाम हो, ऐ फ़ातिमा के बेटे

سَيِّدَةِ نِسَاءِ ٱلْعَالَمِينَ
सय्यिदती निसा'इ अल`आलमीना
जो दुनिया की औरतों की सरदार हैं

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا ثَارَ ٱللَّهِ وَٱبْنَ ثَارِهِ وَٱلْوِتْرَ ٱلْمَوْتُورَ
अस्सलामु `अलैका या सारा अल्लाही वब्न सारीहि वल वितरल मोतूर
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह का इंतक़ाम, और उसका बेटा, और अभी तक इंतक़ाम न लिया गया

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ وَعَلَىٰ ٱلأَرْوَاحِ ٱلَّتِي حَلَّتْ بِفِنَائِكَ
अस्सलामु अलैका वा अला अल-अरवाहि अल्लती हल्लत बिफ़िना'इका
आप पर सलाम हो और उन जानों पर जो आपके सहन में मक़ीम थीं

عَلَيْكُمْ مِنِّي جَمِيعاً سَلاَمُ ٱللَّهِ أَبَداً
अलैकुम मिन्नी जमी'अन सलामु अल्लाही अबदन
आप सब पर अल्लाह की सलामती हो हमेशा के लिए

مَا بَقيتُ وَبَقِيَ ٱللَّيْلُ وَٱلنَّهَارُ
मा बाकितु वा बाकिया अललायलु वाल्नहारु
जब तक मैं मौजूद हूँ और जब तक दिन और रात हैं

يَا أَبَا عَبْدِ ٱللَّهِ
या अबा `अब्दिल्लाही
ऐ अबू अब्दुल्लाह,

لَقَدْ عَظُمَتِ ٱلرَّزِيَّةُ
लक़द `अज़ुमत अलर्रज़िय्यतू
ग़म नक़ाबिल ए बर्दाश्त है

وَجَلَّتْ وَعَظُمَتِ ٱلْمُصيبَةُ بِكَ
वा जल्लत वा `अज़ुमत अल्मुसीबतू बिका
और आपके लिए हमारी और तमाम मुसलमानों के लिए मुसीबत नक़ाबिल ए बर्दाश्त और अज़ीयत नाक है।

عَلَيْنَا وَعَلَىٰ جَمِيعِ أَهْلِ ٱلإِسْلاَمِ
अलैना वअला जमीअ अहल अल-इस्लाम
हमें और तमाम मुसलमानों को

وَجَلَّتْ وَعَظُمَتْ مُصيبَتُكَ
वा जल्लत वा `अज़ुमत मुसीबतुका
नाकाबिले बर्दाश्त और नाकाबिले बर्दाश्त है आपकी मुसिबत

وَجَلَّتْ وَعَظُمَتْ مُصيبَتُكَ
फ़ी अस्समावाती `अला जमी'इ अहलि अस्समावाती
आसमानों में तमाम आसमानों के बाशिंदों के लिए

فِي ٱلسَّمَاوَاتِ عَلَىٰ جَمِيعِ أَهْلِ ٱلسَّمَاوَاتِ
फ़लअन अल्लाहु उम्मतन अस्सासत असासा अल्ज़्ज़ुल्मी वलजौरी अलैकुम अहलाल बैत
तो अल्लाह उन लोगों पर लानत करे जिन्होंने आपके खिलाफ़ ज़ुल्म व सितम की बुनियाद रखी, ऐ अहल-ए-बैत

فَوَلَعَنَ ٱللَّهُ أُمَّةً دَفَعَتْكُمْ عَنْ مَقَامِكُمْ
वा लअन अल्लाहु उम्मतन दफ़ाअत्कुम अन माक़ामिकुम
अल्लाह उन लोगों पर लानत करे जिन्होंने आपको आपकी जगह से निकाला

وَأَزَالَتْكُمْ عَنْ مَرَاتِبِكُمُ ٱلَّتِي رَتَّبَكُمُ ٱللَّهُ فِيهَا
वा अज़ालात्कुम `अन मरातिबिकुम अल्लती रत्तबाकुम अल्लाहु फीहा
और आपको उन दर्जों से दूर कर दिया जिनमें अल्लाह ने आपको रखा है

وَلَعَنَ ٱللَّهُ أُمَّةً قَتَلَتْكُمْ
वा ल`अन अल्लाहु उम्मतन क़तलत्कुम
अल्लाह उन लोगों पर लानत करे जिन्होंने आपको क़त्ल किया

وَلَعَنَ ٱللَّهُ ٱلْمُمَهِّدِينَ لَهُمْ
वा ल`अन अल्लाहु अल्मुमह्हिदीना लहुम
अल्लाह उन लोगों पर लानत करे जिन्होंने उनके लिए रास्ता हमवार किया,

بِٱلتَّمْكِينِ مِنْ قِتَالِكُمْ
बित्तमकीनी मिन क़ितालिकुम
और जो आपके खिलाफ़ लड़ने के लिए उनके लिए मुमकिन बनाया

بَرِئْتُ إِلَىٰ ٱللَّهِ وَإِلَيْكُمْ مِنْهُمْ
बरी'तु इला अल्लाहि वा इलैकुम मिनहुम
मैं अल्लाह और आपके सामने उनसे बेज़ार हूँ

وَمِنْ أَشْيَاعِهِمْ وَأَتْبَاعِهِمْ وَأَوْلِيَائِهِمْ
वा मिन अश्याइहिम वा अत्बाइहिम वा औलियाइहिम
और मैं उनके पैरोक़ारों, पैरोक़ारों, और वफ़ादारों से बेज़ार हूँ

يَا أَبَا عَبْدِ ٱللَّهِ
या अबा `अब्दिल्लाही
ऐ अबू अब्दुल्लाह,

إِنِّي سِلْمٌ لِمَنْ سَالَمَكُمْ
इन्नी सिल्मुन लिमन सलामकुम
मैं उन लोगों के साथ अमन में हूँ जो आपके साथ अमन में हैं

وَحَرْبٌ لِمَنْ حَارَبَكُمْ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَامَةِ
वा हरबुन लिमन हरबाकुम इला यौमी अलक़ियामती
और मैं उन लोगों के खिलाफ़ जंग में हूँ जिन्होंने आपके खिलाफ़ लड़ाई की है क़यामत के दिन तक

وَلَعَنَ ٱللَّهُ آلَ زِيَادٍ وَآلَ مَرْوَانَ
वा लअन अल्लाहु अला ज़ियादिन वा `अला मर्वान
अल्लाह ज़ियाद के खानदान और मर्वान के खानदान पर भी लानत करे

وَلَعَنَ ٱللَّهُ بَنِي أُمَيَّةَ قَاطِبَةً
वा ल`अन अल्लाहु बनी उमय्यत क़तीबतन
अल्लाह तमाम बनी उमय्या की नस्लों पर भी लानत करे

وَلَعَنَ ٱللَّهُ ٱبْنَ مَرْجَانَةَ
वा ल`अन अल्लाहु इब्न मरजाना
अल्लाह मरजाना के बेटे पर भी लानत करे

وَلَعَنَ ٱللَّهُ عُمَرَ بْنَ سَعْدٍ
वा लअन अल्लाहु उमरा ब्न स`अदिन
अल्लाह उमर बिन साद पर भी लानत करे

وَلَعَنَ ٱللَّهُ شِمْراً
वा ल`अन अल्लाहु शिम्रन
अल्लाह शिम्र पर भी लानत करे

وَلَعَنَ ٱللَّهُ أُمَّةً أَسْرَجَتْ وَأَلْجَمَتْ
वा ल`अन अल्लाहु उम्मतन अस्रजात वा अल्जमात
May Allah also curse the people who saddled up, gave reins to their horses,

وَتَنَقَّبَتْ لِقِتَالِكَ
वा तनक्कबात लिक़ितालिक
और आपके खिलाफ़ लड़ाई की तैयारी में अपने चेहरों को छुपाया

بِأَبِي أَنْتَ وَأُمِّي
बि'अबी अन्त वा उम्मी
मेरे वालिद और वालिदा आपके लिए फ़िदिया हों।

لَقَدْ عَظُمَ مُصَابِي بِكَ
लक़द `अज़ुमा मुसाबी बिका,
इंतिहाई नाकाबिले बर्दाश्त है मेरी हमदर्दी आपके साथ;

فَأَسْأَلُ ٱللَّهَ ٱلَّذِي أَكْرَمَ مَقَامَكَ وَأَكْرَمَنِي بِكَ
फ़अस'अलु अल्लाह अल्लधी अकरमा माक़ामक वा अकरमनी बिका,
इसलिए मैं अल्लाह से दर्ख्वास्त करता हूँ जिसने आपकी जगह को इज्ज़त दी और मुझे आपकी वजह से इज्ज़त दी

أَنْ يَرْزُقَنِي طَلَبَ ثَأْرِكَ
अन यरज़ुक़नी तलबा सारिक,
कि वह मुझे इंतिक़ाम लेने का मौक़ा दे

مَعَ إِمَامٍ مَنْصُورٍ مِنْ أَهْلِ بَيْتِ مُحَمَّدٍ
मा`अ इमामिन मन्सूरिन मिन अहली बैती मुहम्मदिन,
मोहम्मद के खानदान के एक (इलाही) हिमायत याफ्ता रहनुमा के साथ,

صَلَّىٰ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ
सल्ला अल्लाहु `अलैहि वा आलिहि,
अल्लाह का सलाम हो उस पर और उसके खानदान पर,

اَللَّهُمَّ ٱجْعَلْنِي عِنْدَكَ وَجِيهاً
अल्लाहुम्मा इजअलनी इंदका वजीहन,
ऐ अल्लाह, मुझे अपनी नज़र में इज्ज़तदार बना

بِٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ فِي ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ
बिलहुसैनी `अलैहि अस्सलामु फ़ी अद्दुन्या वल-आखिरति,
हुसैन के नाम पर, अल्लाह का सलाम हो उस पर, इस दुनिया में और आख़िरत में

يَا أَبَا عَبْدِ ٱللَّهِ
या अबा `अब्दिल्लाही,
ऐ अबू अब्दुल्लाह,

إِنِّي أَتَقَرَّبُ إِلَىٰ ٱللَّهِ وَإِلَىٰ رَسُولِهِ
इन्नी अतक़र्रबु इला अल्लाहि वा इला रसूलिहि,
मैं अल्लाह के क़रीब होने की कोशिश करता हूँ, उसके रसूल के क़रीब,

وَإِلَىٰ أَمِيرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَإِلَىٰ فَاطِمَةَ
वा इला अमीरी अलमु'मिनीना वा इला फातिमाता,
अमीरुल मोमिनीन के क़रीब, फ़ातिमा के क़रीब,

وَإِلَىٰ ٱلْحَسَنِ وَإِلَيْكَ بِمُوَالاَتِكَ
वा इला अलहसानी वा इलैक बिमुवालतिका,
हसन के क़रीब, और आपके क़रीब वफ़ादारी के ज़रिए

وَبِٱلْبَرَاءَةِ (مِمَّنْ قَاتَلَكَ
वा बिल बराअति (मिम्मन क़तलका,
और उन लोगों के इन्कार के ज़रिए जिन्होंने आपके खिलाफ़ लड़ाई की

وَنَصَبَ لَكَ ٱلْحَرْبَ
वा नसबा लका अलहरबा,
और आपकी दुश्मनी को झुटाया,

وَبِٱلْبَرَاءَةِ مِمَّنْ أَسَّسَ أَسَاسَ ٱلظُّلْمِ وَٱلْجَوْرِ عَلَيْكُمْ
वा बिबराअति मिम्मन अस्सा असासा अल्ज़्ज़ुल्मी वलजौरी `अलैकुम,
और उन लोगों के इन्कार के ज़रिए जिन्होंने आप सब के खिलाफ़ ज़ुल्म व सितम की बुनियाद रखी

وَأَبْرَأُ إِلَىٰ ٱللَّهِ وَإِلَىٰ رَسُولِهِ)
वा अबरा'उ इला अल्लाहि वा इला रसूलिहि),
मैं (अल्लाह और उसके रसूल के सामने भी) उन लोगों से बेज़ार हूँ,

مِمَّنْ أَسَّسَ أَسَاسَ ذٰلِكَ
मिम्मन अस्सा असासा ज़ालिका,
जिन्होंने इस सब की बुनियाद रखी,

وَبَنَىٰ عَلَيْهِ بُنْيَانَهُ
वा बना `अलैहि बुनियानहु,
इस पर अपनी बुनियादें क़ायम कीं,

وَجَرَىٰ فِي ظُلْمِهِ وَجَوْرِهِ عَلَيْكُمْ وَعلىٰ أَشْيَاعِكُمْ
वा जारा फी ज़ुल्मिहि वा जौरिहि अलैकुम वा अला अश्या`इकुम,
और आप और आपके पैरोक़ारों पर ज़ुल्म व सितम करने में जारी रहे,

بَرِئْتُ إِلَىٰ ٱللَّهِ وَإِلَيْكُمْ مِنْهُمْ
बरी'तु इला अल्लाहि वा इलैकुम मिनहुम,
अल्लाह और आप सब के सामने मैं उन लोगों से बेज़ार हूँ।

وَأَتَقَرَّبُ إِلَىٰ ٱللَّهِ ثُمَّ إِلَيْكُمْ
वा अतक़र्रबु इला अल्लाहि सुम्मा इलैकुम,
और मैं अल्लाह और फिर आप सब के क़रीब होने की कोशिश करता हूँ

بِمُوَالاَتِكُمْ وَمُوَالاَةِ وَلِيِّكُمْ
बिमुवालातिकुम वा मुवालाति वालिय्यिकुम,
आपकी वफ़ादारी के ऐलान के ज़रिए और आपके वफ़ादारों के लिए

وَبِٱلْبَرَاءَةِ مِنْ أَعْدَائِكُمْ
वा बिबराअति मिन अ`दाइकम,
और आपके दुश्मनों के इन्कार के ज़रिए

وَٱلنَّاصِبِينَ لَكُمُ ٱلْحَرْبَ
वल्नासिबीना लकुम अलहरबा,
और उन लोगों के इन्कार के ज़रिए जो आपकी दुश्मनी को झुटाते हैं

وَبِٱلْبَرَاءَةِ مِنْ أَشْيَاعِهِمْ وَأَتْبَاعِهِمْ
वा बिबराअति मिन अश्याइहिम वा अत्बाइहिम,
और उनके पैरोक़ारों और पैरोक़ारों के इन्कार के ज़रिए।

إِنِّي سِلْمٌ لِمَنْ سَالَمَكُمْ
इन्नी सिल्मुन लिमन सलामकुम,
मैं वाक़ई उन लोगों के साथ अमन में हूँ जिन्होंने आपके साथ अमन में हैं,

وَحَرْبٌ لِمَنْ حَارَبَكُمْ
वा हरबुन लिमन हरबाकुम,
मैं उन लोगों के खिलाफ़ जंग में हूँ जिन्होंने आपके खिलाफ़ लड़ाई की है,

وَوَلِيٌّ لِمَنْ وَالاَكُمْ
वा वालिय्युन लिमन वालाकुम,
उन लोगों के वफ़ादार हूँ जिन्होंने आपके वफ़ादार हैं,

وَعَدُوٌّ لِمَنْ عَادَاكُمْ
वा अदुव्वुन लिमन अदाकुम,
और उन लोगों के दुश्मन हूँ जिन्होंने आपके खिलाफ़ दुश्मनी दिखाई है।

فَأَسْأَلُ ٱللَّهَ ٱلَّذِي أَكْرَمَنِي بِمَعْرِفَتِكُمْ
फ़अस'अलु अल्लाह अल्लधी अकरमनी बिमा`रिफ़तिकुम,
तो मैं अल्लाह से दर्ख्वास्त करता हूँ जिसने मुझे आपकी पहचान की इज्ज़त दी

وَمَعْرِفَةِ أَوْلِيَائِكُمْ
वा मा`रिफ़ति औलियाइकम,
और आपके वफ़ादारों की पहचान की इज्ज़त दी

وَرَزَقَنِيَ ٱلْبَرَاءَةَ مِنْ أَعْدَائِكُمْ
वा रज़क़नी अल्बराअता मिन अ`दाइकम,
और जिसने मुझे आपके दुश्मनों के इन्कार की इज्ज़त दी,

أَنْ يَجْعَلَنِي مَعَكُمْ فِي ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ
अन यजअलनी माअकुम फ़ी अद्दुन्या वल-आखिरति,
कि वह मुझे इस दुनिया और आख़िरत में आपके साथ शामिल करे

وَأَنْ يُثَبِّتَ لِي عِنْدَكُمْ قَدَمَ صِدْقٍ
वा अन युसब्बिता ली `इंदकुम क़दमा सिद्किन,
और मेरे लिए आपके साथ ईमानदारी का कदम मस्तहकम करे

فِي ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ
फ़ी अद्दुन्या वल-आखिरति
इस दुनिया और आख़िरत में।

وَأَسْأَلُهُ أَنْ يُبَلِّغَنِيَ ٱلْمَقَامَ ٱلْمَحْمُودَ لَكُمْ عِنْدَ ٱللَّهِ
वा अस'अलुहु अन युबल्लिग़ानी अलमक़ामा अलमहमूदा लकुम `इंदा अल्लाहि,
मैं भी उससे दर्ख्वास्त करता हूँ कि वह मुझे आपके साथ अल्लाह के साथ महबूब हैसियत तक पहुंचाए

وَأَنْ يَرْزُقَنِي طَلَبَ ثَأْرِي
वा अन यरज़ुक़नी तलबा सारी,
और मुझे मौक़ा दे कि मैं अपना इंतिक़ाम लूँ

مَعَ إِمَامِ هُدىًٰ ظَاهِرٍ
मा`अ इमामि हुदन ज़ाहिरीन,
एक हक़ीक़ी रहनुमा के साथ जो (इलाही) मदद याफ़्ता हो

نَاطِقٍ بِٱلْحَقِّ مِنْكُمْ
और आप में से हक़ का इज़हार करने वाला हो,
और आप के ज़रिये सच्चाई का इज़हार करूँ

وَأَسْأَلُ ٱللَّهَ بِحَقِّكُمْ
वा अस'अलु अल्लाह बिहक़्क़िकुम,
मैं भी अल्लाह से आपके नामों में

وَبِٱلشَّأْنِ ٱلَّذِي لَكُمْ عِنْدَهُ
वा बिश्श्शानिल लज़ी लकुम `इंदहु,
और आपके मक़ाम में जो आप अल्लाह के साथ रखते हैं,

أَنْ يُعْطِيَنِي بِمُصَابِي بِكُمْ
अन यू`तियानी बिमुसाबी बिकुम,
कि वह मेरे लिए आपकी मुसिबत के लिए बेहतरीन चीज़ दे,

أَفْضَلَ مَا يُعْطِي مُصَاباً بِمُصِيبَتِهِ
अफ़्ज़ला मा यू`ती मुसाबन बिमुसिबातिहि,
जो उसने किसी पर होने वाली मुसिबतों के लिए दी है

مُصِيبَةً مَا أَعْظَمَهَا
मुसिबतन मा अ`ज़माहा,
आपकी मुसिबत इतनी हैरतअंगेज़ है

وَأَعْظَمَ رَزِيَّتَهَا فِي ٱلإِسْلاَمِ
वा अ`ज़मा रज़िय्यतहा फ़ी अल-इस्लामी,
और इस्लाम के लिए इतनी तबाहकुन है,

وَفِي جَمِيعِ ٱلسَّمَاوَاتِ وَٱلأَرْضِ
वा फ़ी जमी`इ अस्समावाति वल-अर्ज़,
और तमाम आसमानों और पूरी ज़मीन के लिए,

اَللَّهُمَّ ٱجْعَلْنِي فِي مَقَامِي هٰذَا
अल्लाहुम्मा इज`अलनी फ़ी मक़ामी हाज़ा,
ऐ अल्लाह, मुझे इस सूरत-ए-हाल में,

مِمَّنْ تَنَالُهُ مِنْكَ صَلَوَاتٌ وَرَحْمَةٌ وَمَغْفِرَةٌ
मिम्मन तनालुहु मिनका सलावातुन वा रहमतुन वा मग़फिरातुन,
उन लोगों में से बना दे जो आपसे बरकत, रहमत, और माफी हासिल करते हैं,

اَللَّهُمَّ ٱجْعَلْ مَحْيَايَ مَحْيَا مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा इज`अल मह्याया मह्या मुहम्मदिन वा आ'ली मुहम्मदिन,
ऐ अल्लाह, मुझे अपनी जिंदगी इस तरह गुज़ारने की तौफ़ीक़ दे जैसे मोहम्मद और मोहम्मद के खानदान ने ज़िंदगी गुज़ारी

وَمَمَاتِي مَمَاتَ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
वा ममाती ममाता मुहम्मदिन वा आ'ली मुहम्मदिन,
और मुझे उन्हीं उसूलों पर मरने की तौफ़ीक़ दे जिन पर मोहम्मद और मोहम्मद के खानदान शहीद हुए,

اَللَّهُمَّ إِنَّ هٰذَا يَوْمٌ
अल्लाहुम्मा इनना हाज़ा यौमुन,
ऐ अल्लाह, यह दिन,

تَبَرَّكَتْ بِهِ بَنُو أُمَيَّةَ
तबर्रक़त बिहि बनू उमय्यत,
उमय्या की नस्लों के लिए बाबरकत दिन समझा जाता है,

وَٱبْنُ آكِلَةِ ٱلأَكبَادِ
वाब्नु अक़ीलाति अल-अकबादि,
और जिगर खोर औरत के बेटे के लिए,

ٱللَّعِينُ ٱبْنُ ٱللَّعِينِ
अललइनु इब्नु अललइनी,
जो लानती है और लानती का बेटा है,

عَلَىٰ لِسَانِكَ وَلِسَانِ نَبِيِّكَ
अला लिसानिका वा लिसानि नबिय्यिका,
आपकी ज़बान और आपके नबी की ज़बान से,

صَلَّىٰ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ
सल्ला अल्लाहु `अलैहि वा आलिहि,
अल्लाह का सलाम हो उन पर,

فِي كُلِّ مَوْطِنٍ وَمَوْقِفٍ
फ़ी कुल्लि मौतिनिन वा मवक़िफिन,
हर मौक़े पर और हर हालात में,

وَقَفَ فِيهِ نَبِيُّكَ صَلَّىٰ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ
वक़फा फीहि नबिय्युक सल्ला अल्लाहु `अलैहि वा आलिहि,
जिसमें आपके नबी, अल्लाह का सलाम हो उस पर, शरीक हुए,

اَللَّهُمَّ ٱلْعَنْ أَبَا سُفْيَانَ وَمُعَاوِيَةَ وَيَزيدَ بْنَ مُعَاوِيَةَ
अल्लाहुम्मा इलअन अबा सुफ़्यान वा मुआवियाह वा यज़ीद इब्न मुआविया,
ऐ अल्लाह, अबू सुफियान, मुआविया, और यज़ीद बिन मुआविया पर लानत नाज़िल फरमा,

عَلَيْهِمْ مِنْكَ ٱللَّعْنَةُ أَبَدَ ٱلآبِدِينَ
अलैहिम मिन्का अल लानतो अबदा अल-आबिदीना,
आपकी लानत उन पर मुसलसल और हमेशा के लिए हो,

وَهٰذَا يَوْمٌ فَرِحَتْ بِهِ آلُ زِيَادٍ وَآلُ مَرْوَانَ
वा हाज़ा यौमुन फ़रिहत बिहि आलु ज़ियादिन वा आलु मरवान,
यह दिन है जिस पर ज़ियाद के खानदान और मर्वान के खानदान ने खुशी मनाई,

بِقَتْلِهِمُ ٱلْحُسَيْنَ صَلَوَاتُ ٱللَّهِ عَلَيْهِ
बिक़त्लिहिमल हुसैन सलवातु अल्लाहि `अलैहि,
क्योंकि उन्होंने हुसैन को क़त्ल किया, अल्लाह की बरकतें हों उन पर,

اَللَّهُمَّ فَضَاعِفْ عَلَيْهِمُ ٱللَّعْنَ مِنْكَ
अल्लाहुम्मा फ़ज़ाअिफ़ अलैहिम अललना मिन्का,
तो ऐ अल्लाह, उन पर कस्रत से लानत नाज़िल फरमा,

وَٱلْعَذَابَ (ٱلأَلِيمَ)
वल`अज़ाबा (अल-आलीमा),
और उनके लिए दर्दनाक अज़ाब को दुगना कर दे,

اَللَّهُمَّ إِنِّي أَتَقَرَّبُ إِلَيْكَ فِي هٰذَا ٱلْيَوْمِ
अल्लाहुम्मा इन्नी अतक़र्रबु इलैका फ़ी हाज़ा अल्यौमि,
ऐ अल्लाह, मैं इस दिन,

وَفِي مَوْقِفِي هٰذَا
वा फ़ी मवक़िफ़ि हाज़ा,
इस मौके पर,

وَأَيَّامِ حَيَاتِي
वा अय्यामि हयाति,
और मेरी ज़िंदगी के तमाम दिनों पर,

بِٱلْبَرَاءَةِ مِنْهُمْ وَٱللَّعْنَةِ عَلَيْهِمْ
बिल्बराअति मिनहुम वललनति अलैहिम,
उन लोगों के इन्कार के ज़रिए आपके क़रीब होने की कोशिश करता हूँ, और उन पर आपकी लानतें नाज़िल करने के ज़रिए,

وَبِٱلْمُوَالاَةِ لِنَبِيِّكَ وَآلِ نَبِيِّكَ
वा बिमुवालाति लिनबिय्यिका वा आ'ली नबिय्यिका,
और आपके नबी और आपके नबी के खानदान के साथ वफ़ादारी के ऐलान के ज़रिए,

عَلَيْهِ وَعَلَيْهِمُ ٱلسَّلاَمُ
अलैहि वा अलैहिम अस्सलामु,
अल्लाह का सलाम हो उन पर,


अब आप दर्ज ज़ैल लानत** को 100 मर्तबा दुहराएँ:
اَللَّهُمَّ ٱلْعَنْ أَوَّلَ ظَالِمٍ
अल्लाहुम्मा ला-अन अव्वला ज़ालिमिन,
ऐ अल्लाह, सबसे पहले ज़ुल्म करने वाले पर लानत नाज़िल फ़रमा,

ظَلَمَ حَقَّ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
ज़लमा हक़्क़ा मुहम्मदिन व आले मुहम्मदिन,
जिसने मुहम्मद और मुहम्मद के ख़ानदान के हक़ पर क़ब्ज़ा किया

وَآخِرَ تَابِعٍ لَهُ عَلَىٰ ذٰلِكَ
वा आखिरा ताबिइन लहू अला ज़ालिक,
और आख़िरी पैरोक़ार जो उसके अमल में शामिल हुआ,

اَللَّهُمَّ ٱلْعَنِ ٱلْعِصَابَةَ ٱلَّتِي جَاهَدَتِ ٱلْحُسَيْنَ
अल्लाहुम्मा ला-अन अल इसाबता अल्लती जहादत अलहुसैना,
"ऐ अल्लाह, उस गरोह पर लानत नाज़िल फ़रमा जिसने हुसैन के ख़िलाफ़ जद्दोजेहद की,

وَشَايَعَتْ وَبَايَعَتْ وَتَابَعَتْ عَلَىٰ قَتْلِهِ
वा शाइ-अत वा बायी-अत वा ताबा-अत अला क़त्लिहि,
और जिन्होंने उसके ख़िलाफ़ एक दूसरे की मदद की, उसके दुश्मनों की हिमायत की, और उसके क़त्ल में हिस्सा लिया,

اَللَّهُمَّ ٱلْعَنْهُمْ جَمِيعاً
अल्लाहुम्मा ला-अनहुम जमीअन,
ऐ अल्लाह, उन सब पर लानत नाज़िल फ़रमा,



अब आप दर्ज ज़ैल सलाम** को 100 मर्तबा दुहराएँ:
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا أَبَا عَبْدِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या अबा अब्दिल्लाही,
अस्सलामु अलैकुम, ऐ अबू अब्दुल्लाह,

وَعَلَىٰ ٱلأَرْوَاحِ ٱلَّتِي حَلَّتْ بِفِنَائِكَ
वा `अला अल-अरवाहि अल्लती हल्लत बिफ़िना'इका,
और उन रूहों पर जो आपके सहन में जमा हुईं,

عَلَيْكَ مِنِّي سَلاَمُ ٱللَّهِ أَبَداً
अलैका मिन्नी सलामु अल्लाही अबदन,
अल्लाह का सलाम हो आप पर हमेशा के लिए,

مَا بَقيتُ وَبَقِيَ ٱللَّيْلُ وَٱلنَّهَارُ
मा बाकितु वा बाकिया अललैलु वाल्नहारु,
जब तक मैं मौजूद हूँ और जब तक दिन और रात हैं,

وَلاَ جَعَلَهُ ٱللَّهُ آخِرَ ٱلْعَهْدِ مِنِّي لِزِيَارَتِكُمْ
वा ला जाअलहु अल्लाहु आख़िरा अलअहदी मिन्नी लिज़ियारातिकुम,
अल्लाह इस (ज़ियारत) को आप (सब) की तरफ़ मेरी आखिरी ज़ियारत ना बनाए,

اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ ٱلْحُسَيْنِ
अस्सलामु `अलाल हुसैन,
अस्सलामु अलैकुम ऐ हुसैन,

وَعَلَىٰ عَلِيِّ بْنِ ٱلْحُسَيْنِ
वा अला अली इब्निल हुसैन,
अली इबनिल हुसैन पर,

وَعَلَىٰ أَوْلاَدِ ٱلْحُسَيْنِ
वा `अला औलादील हुसैन,
और हुसैन की औलादों पर,

وَعَلَىٰ أَصْحَابِ ٱلْحُسَيْنِ
वा `अला अस्हाबील हुसैन,
और हुसैन के असहाबो पर,



फिर आप यह पढ़ें :
اَللَّهُمَّ خُصَّ أَنْتَ أَوَّلَ ظَالِمٍ بِٱللَّعْنِ مِنِّي
अल्लाहुम्मा खुस्सा अंता अव्वला ज़ालिमिन बिल्ला`नी मिननी,
ऐ अल्लाह, सबसे पहले ज़ुल्म करने वाले पर ख़ास लानत नाज़िल फ़रमा,

وَٱبْدَأْ بِهِ أَوَّلًا
वबदा' बिही अव्वलन,
और उसी से शुरू कर,

ثُمَّ ٱلْعَنِ ٱلثَّانِيَ وَٱلثَّالِثَ وَٱلرَّابِعَ
सुम्मा ला-अन सानिया व अल-सालीसा,
फिर दूसरे, तीसरे, और चौथे पर लानत नाज़िल फ़रमा,

اَللَّهُمَّ ٱلْعَنْ يَزِيدَ خَامِساً
अल्लाहुम्मा ला-अन यज़ीदा खामिसन,
ऐ अल्लाह, यज़ीद पर पांचवीं लानत नाज़िल फ़रमा,

وَٱلْعَنْ عُبَيْدَ ٱللَّهِ بْنَ زِيَادٍ وَٱبْنَ مَرْجَانَةَ
व लअन उबैदललाही इब्ने ज़ियादिन व इब्ने मरजाना,
और 'उबायदुल्लाह बिन ज़ियाद, मर्ज़ाना के बेटे पर,

وَعُمَرَ بْنَ سَعْدٍ وَشِمْراً
वा उमर इब्ने सा-अद वा शिम्रन,
`उमर बिन साद, और शिमर पर,

وَآلَ أَبِي سُفْيَانَ وَآلَ زِيَادٍ وَآلَ مَرْوَانَ
वा अला अबी सूफ्याना वा अला ज़ियादिन वा `अला मर्वाना,
अबू सुफ़ियान के ख़ानदान, ज़ियाद के ख़ानदान, और मर्वान के ख़ानदान पर

إِلَىٰ يَوْمِ ٱلْقِيَامَةِ
इला यौमि क़्यामह,
क़यामत के दिन तक लानत नाज़िल फ़रमा



अब आप सजदे में जाएँ और यह पढ़ें :
اَللَّهُمَّ لَكَ ٱلْحَمْدُ
अल्लाहुम्मा लका अलहम्दु,
ऐ अल्लाह, सब तारीफें तेरे लिए हैं;

حَمْدَ ٱلشَّاكِرِينَ لَكَ عَلَىٰ مُصَابِهِمْ
हम्दा अश्शाकिरीना लका अला मुसाबिहिम,
उन लोगों की तारीफ जो अपनी मुसीबतों पर तेरा शुकर अदा करते हैं,

اَلْحَمْدُ لِلَّهِ عَلَىٰ عَظِيمِ رَزِيَّتِي
अलहम्दु लिल्लाही अला अज़ीमी रज़ीयती,
अल्लाह का शुकर है मेरी अज़ीम मुसीबत पर,

اَللَّهُمَّ ٱرْزُقْنِي شَفَاعَةَ ٱلْحُسَيْنِ يَوْمَ ٱلْوُرُودِ
अल्लाहुम्मा इर्ज़ुक़नी शफाअता अलहुसैनी यौमा अलवुरूद
ऐ अल्लाह, (कृपया) क़यामत के दिन हुसैन की शफ़ाअत मुझे अता फ़रमा,

وَثَبِّتْ لِي قَدَمَ صِدْقٍ عِنْدَكَ
वा सब्बित ली क़द-मा सिद्किन इन्दका,
और मेरे लिए तेरे हाँ एक मज़बूत कदम सिदाकत का बना,

مَعَ ٱلْحُسَيْنِ وَأَصْحَابِ ٱلْحُسَيْنِ
मा'अ अलहुसैन वा असहाबी अलहुसैन,
हुसैन के साथ और हुसैन के साथियों के साथ

ٱلَّذينَ بَذَلُوٱ مُهَجَهُمْ دُونَ ٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ
अल-लज़ीना बज़लू मुहजहुम दूना अलहुसैन अलैहीस सलाम ,
जिन्होंने हुसैन की हिमायत में अपनी जानों की क़ुर्बानी दी, अल्लाह का सलाम हो उस पर,





आप फिर दो रकअत नमाज़ अदा कर सकते हैं और जब आप फारिग हो जाएं, तो आप नीचे दी हुई दुआ पढ़ सकते हैं:
اَللَّهُمَّ إِنِّي لَكَ صَلَّيْتُ
अल्लाहुम्मा इन्नी लका सलैतु,
ए अल्लाह, मैं ने तेरी रज़ा के लिये नमाज़ अदा की है

وَلَكَ رَكَعْتُ وَلَكَ سَجَدْتُ
व लका रकअतु वलका सजदतु,
और मैं ने तेरे लिये रुकूअ और सजदा किया है

وَحْدَكَ لاََ شَرِيكَ لَكَ
वहदका ला शरीक लका,
तुझे अकेला मान कर, किसी को तेरा शरीक न ठहरा कर,

فَإِنَّهُ لاََ تَجُوزُ ٱلصَّلاَةُ
फ़इन्नहु ला तजूज़ुस्सलातु,
क्योंकि नमाज़,

وَٱلرُّكُوعُ وَٱلسُّجُودُ إِلاَّ لَكَ
वर्ऱुकेऊ वस्सुजूदु इल्ला लका,
रुकूअ और सजदा किसी के लिये जायज़ नहीं सिवाय तेरे,

لاِنَّكَ انْتَ ٱللَّهُ لاََ إِلٰهَ إِلاَّ انْتَ
लिन्नका अंता अल्लाहु ला इलाहा इल्ला अंता,
क्योंकि तू अल्लाह है; तेरे सिवा कोई माबूद नहीं।

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍٍ
अल्लाहुम्मा सल्लि आला मुहम्मदिं वआलि मुहम्मद,
ए अल्लाह, (ब्रह कृपया) मुहम्मद और मुहम्मद की आल पर दरूद भेज,

وَابْلِغْهُمْ عَنِّي افْضَلَ ٱلسَّلاَمِ وَٱلتَّحِيَّةِ
वबलिग्हुम अन्नी अफज़लस्सलाम वत्तहिय्यह,
उन तक मेरी तरफ़ से सबसे पसंदीदा सलाम और तहियात पहुंचा,

وَٱرْدُدْ عَلَيَّ مِنْهُمُ ٱلسَّلاَمَ
वर्दुद अलय्य मिन्हुमुस्सलाम,
और उनकी तरफ़ से मेरे सलाम का जवाब मुझे पहुंचा दे।

اَللَّهُمَّ وَهَاتَانِ ٱلرَّكْعَتَانِ هَدِيَّةٌ مِنِّي
अल्लाहुम्मा वहातानि रकअतानि हदिय्यह मिन्नी,
ए अल्लाह, ये दो रकअतें मेरी तरफ़ से तोहफ़ा हैं

إِلَىٰ سَيِّدِي ٱلْحُسَيْنِ بْنِ عَلِيِّ
इला सय्यिदी अलहुसैन इब्न अली,
मेरे आका हुसैन इब्न अली के लिये,

عَلَيْهِمَا ٱلسَّلاَمُ
अलैहिमा अस्सलाम,
उन दोनों पर सलाम हो।

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَعَلَيْهِ
अल्लाहुम्मा सल्लि आला मुहम्मदिं वअलैहि,
ए अल्लाह, मुहम्मद और उन पर दरूद भेज,

وَتَقَبَّلْهُمَا مِنِّي وَٱجْزِنِي عَليْهِمَا
व वतकब्बलहुमा मिन्नी वजज़िनी अलैहिमा,
ये दो रकअतें मुझ से क़बूल फ़रमा, और मुझे उनका बेहतरीन अजर अता फ़रमा,

افْضَلَ امَلِي وَرَجَائِي فِيكَ وَفِي وَلِيِّكَ
अफज़ल अमली वरजाई फीका वफी वलीय्यिका,
जो मेरी उम्मीद और तवक़्को तुझ में और तेरे दोस्त में है,

يَا وَلِيَّ ٱلْمُؤْمِنِينَ
या वलीय्यल मु'मिनीन,
ए मोमिनीन के वली!

اَلسَّلاَمُ عَلَىٰ ٱلْحُسَيْنِ بْنِ عَلِيٍّ
अस्सलामु अला अलहुसैन इब्न अली,
हुसैन इब्न अली पर सलाम हो,

ٱلْمَظْلُومِ ٱلشَّهِيدِ
अलमज़लूम शहीद,
ज़ुल्म के शिकार और शहीद,

قَتِيلِ ٱلْعَبَرَاتِ
कतिलिल अबरात,
आशकों का मक्तूल,

وَاسِيرِ ٱلْكُرُبَاتِ
वासीरिल कुरुबात,
और मुसीबतों का क़ैदी,

اَللَّهُمَّ إِنِّي اشْهَدُ انَّهُ وَلِيُّكَ وَٱبْنُ وَلِيِّكَ
अल्लाहुम्मा इन्नी अश्हदु अन्नहु वलीय्युक वब्न वलीय्युक,
ए अल्लाह, मैं गवाही देता हूं कि वह तेरा मक़रब और तेरे मक़रब का बेटा है,

وَصَفِيُّكَ ٱلثَّائِرُ بِحَقِّكَ
वसफीय्युक अत्ताईरु बिहक्किक,
और तेरा बरगज़ीदा है जो तेरे हक के साथ उठा।

اكْرَمْتَهُ بِكَرَامَتِكَ
अकरमतहु बिकरामतिका,
तू ने इस को अपनी इज़्ज़त से नवाज़ा,

وَخَتَمْتَ لَهُ بِٱلشَّهَادَةِ
वखतमत लहु बिश्शहादह,
इस की ज़िन्दगी को शहादत के साथ खत्म किया,

وَجَعَلْتَهُ سَيِّداً مِنَ ٱلسَّادَةِ
वजअलतहु सय्यिदन मिन्नस्सादह,
इसे सरदारों में से एक सरदार बनाया,

وَقَائِداً مِنَ ٱلْقَادَةِ
वकाअिदन मिननल काअिदह,
और रहनुमाओं में से एक रहनुमा,

وَاكْرَمْتَهُ بِطِيبِ ٱلْوِلاَدَةِ
वअकरमतहु बतीबिल विलादह,
इसे पाकीज़ा विलादत से नवाज़ा,

وَاعْطَيْتَهُ مَوَاريثَ ٱلانْبِيَاءِ
वअअतैताहु मवारिसल अंबिया,
इसे अंबिया की विरासतें अता कीं,

وَجَعَلْتَهُ حُجَّةً عَلَىٰ خَلْقِكَ مِنَ ٱلاوْصِيَاءِ
वजअलतहु हुज्जतन आला खलकिक मिनल औसिया,
और इसे अपनी मख़लूक़ पर हुज्जत और औसिया में से एक बनाया।

فَاعْذَرَ فِي ٱلدُّعَاءِ
फअअजरा फिद्दुआ,
इस ने तुझे बे ऐब बुला कर पुकारा,

وَمَنَحَ ٱلنَّصِيحَةَ
वमनह नसीहत,
नसीहत की,

وَبَذَلَ مُهْجَتَهُ فِيكَ
वबज़ल मुह्जतहु फीका,
और तेरे लिये अपनी जान की क़ुर्बानी दी

حَتَّىٰ ٱسْتَنْقَذَ عِبَادَكَ مِنَ ٱلْجَهَالَةِ وَحَيْرَةِ ٱلضَّلاَلَةِ
हत्ता स्तन्क़ध आबादक मिन्नल जहालतिह वहैरतिहद्दलालत,
यहां तक कि इस ने तेरे बंदों को जहालत और गुमराही की हैरानी से निजात दिलाई।

وَقَدْ تَوَازَرَ عَلَيْهِ مَنْ غَرَّتْهُ ٱلدُّنْيَا
वकद तवाजरा अलैहि मन ग़रतहुद्दुन्निया,
फिर वो लोग जिन्हें दुनिया ने फ़रेब दिया,

وَبَاعَ حَظَّهُ مِنَ ٱلآخِرَةِ بِٱلادْنَىٰ
वबा' अहज्जहुमिनल आखिरह बिलअद्ना,
जिन्होंने अपनी आख़िरत का हिस्सा कम क़ीमत पर बेच दिया,

وَتَرَدَّىٰ فِي هَوَاهُ
वतर्दा फी हवाह,
जिन्होंने अपनी ख़्वाहिशात की पैरवी कर के खुद को बर्बाद कर दिया,

وَاسْخَطَكَ وَاسْخَطَ نَبِيَّكَ
वअस्ख़तका वअस्ख़तनबीय्यक,
जिन्होंने तुझे और तेरे नबी को ग़ज़बनाक किया,

وَاطَاعَ مِنْ عِبَادِكَ اوْلِي ٱلشِّقَاقِ وَٱلنِّفَاقِ
वअता' मिन 'इबादिका अउलिश्शिकाक वन्निफ़ाक,
aऔर जिन्होंने तेरे नाफ़रमान और मुनाफ़िक़ बंदों की इताअत की,

وَحَمَلَةَ ٱلاوْزَارِ ٱلْمُسْتَوْجِبِينَ ٱلنَّارَ
वहमलतल औजार अलमस्तौजीबीनन्नार,
और गुनाहों के बोझ उठाने वाले जो जहन्नम के मुस्तहिक हैंसब ने इस के ख़िलाफ़ एक दूसरे की मदद की;

فَجَاهَدَهُمْ فِيكَ صَابِراً مُحْتَسِباً
फ़जाहदहुम फीका साबिरन मुहतसिबन,
पस इस ने साबित क़दमी और तेरे अजर की उम्मीद के साथ इन से जंग की,

مُقْبِلاًَ غَيْرَ مُدْبِرٍ
मुकबिलन ग़ैर मुदब्बिरीन,
बे खौफ़ी से इन का सामना किया, कभी पीछे नहीं हटा,

لاََ تَاخُذُهُ فِي ٱللَّهِ لَوْمَةُ لاَئِمٍ
ला ताखुज़हु फिल्लाह लउमतु ला'इम,
और कभी भी तेरे फराइज की अंजाम दही में किसी की मलामत से न डरा

حَتَّىٰ سُفِكَ فِي طَاعَتِكَ دَمُهُ
हत्ता सुफिक़ा फी ताअतिका दमहु,
यहां तक कि इस का खून तेरी इताअत में बहाया गया

وَٱسْتُبيحَ حَرِيـمُهُ
वस्तुबिहा हरीमुहु,
और इस की हरमत भी पामाल की गई।

اَللَّهُمَّ ٱلْعَنْهُمْ لَعْناً وَبِيلاًَ
अल्लाहुम्माल' अनहुं ल' न वबीला,
ए अल्लाह, इन पर मुसलसल लानत फरमा

وَعَذِّبْهُمْ عَذَاباً الِيماً
वअज़्ज़िबहुं अज़ाबं अलीमा,
और इन्हें दर्दनाक अज़ाब में मुब्तिला कर।



इस क़िस्म की ज़ियारत आशूरा के दिन उतनी मशहूर नहीं है जितनी पहले वाली; बल्कि, यह इनआमात और फज़ाइल में उसी तरह की है हालांके इस में दुश्मनों पर लानत भेजने और इमाम और उनके साथियों पर दरूद भेजने की एक सौ बार की तकरार शामिल नहीं है। यह एक बड़ी कामयाबी समझी जाती है उस शख़्स के लिए जिसे किसी ज़्यादा अहम मामले की वजह से इस क़िस्म की ज़ियारत से दूर रखा गया हो। ज़ियारत की इस क़िस्म का तरीक़ा, जैसा के किताब "अलमज़ार अलक़दीम" से नक़्ल किया गया है, तारुफ़ी वज़ाहत के बग़ैर, इस तरह है:
अगर आप इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की ज़ियारत दूर-दराज़ मक़ामात से या उनके मुक़द्दस मज़ार के क़रीब से करना चाहते हैं, तो आप ग़ुस्ल कर सकते हैं और किसी सहरा में जा सकते हैं या अपने घर की छत पर जा सकते हैं। फिर आप दो रकअत नमाज़ पढ़ सकते हैं, दोनों रकअतों में (सूरह अल-फ़ातिहा के बाद) सूरह अल-तौहीद पढ़ें। जब आप नमाज़ मुकम्मल कर लें, तो इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की तरफ़ इशारा करते हुए उन्हें सलाम करें। सलाम, इशारा, और नियत इमाम हुसैन के मज़ार की जानिब रुख़ कर के की जानी चाहिए। फिर, आप दर्ज ज़ैल अल्फ़ाज़ अकीदत और आजिज़ी के साथ कह सकते हैं:

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ رَسُولِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या इब्ने रसूलिल्लाह
आप पर सलामती हो, ऐ अल्लाह के रसूल के फरज़ंद।

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ ٱلْبَشِيرِ ٱلنَّذِيرِ
अस्सलामु अलैका या इब्ने अल-बशीर अल-नज़ीर
आप पर सलामती हो, ऐ खुशखबरी देने वाले और डराने वाले के फरज़ंद।

وَٱبْنَ سَيِّدِ ٱلْوَصِيِّينَ
व इब्ने सैय्यिद अल-वसीयीन
और नबियों के वारिसों के सरदार के फरज़ंद।

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ فَاطِمَةَ
अस्सलामो अलैका यब्ना फ़ातिमता
आप पर सलामती हो, ऐ फातिमा के फरज़ंद।

سَيِّدَةِ نِسَاءِ ٱلْعَالَمِينَ
सैय्यिदत निसा' अल-आलमींन
जो दुनिया की औरतों की सरदार हैं।

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا خِيَرَةِ ٱللَّهِ وَٱبْنَ خِيَرَتِهِ
अस्सलामु अलैका या ख़ीरतिल्लाह वा इब्ने खैरतिही
आप पर सलामती हो, ऐ अल्लाह के चुने हुए और उसके चुने हुए के फरज़ंद।

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا ثَارَ ٱللَّهِ وَٱبْنَ ثَارِهِ
अस्सलामु अलैका या थारिल्लाह वा इब्ने सारिही
आप पर सलामती हो, ऐ अल्लाह के इंतकाम और उसके इंतकाम के फरज़ंद।

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ أَيُّهَا ٱلْوِتْرُ ٱلْمَوْتُورُ
अस्सलामु अलैका अय्युह अल-वित्र अल-मव्तूर
आप पर सलामती हो, ऐ वह जिसका अभी तक बदला नहीं लिया गया।

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ أَيُّهَا ٱلإِمَامُ ٱلْهَادِي ٱلزَّكِيُّ
अस्सलामु अलैका अय्युह अल-इमाम अल-हादी अल-ज़क़ीय
आप पर सलामती हो, ऐ रहनुमा और पाकीज़ा क़ायद,

وَعَلَىٰ أَرْوَاحٍ حَلَّتْ بِفَنَائِكَ
वा 'अला अरवाहिंल हल्लत बिफ़नाइक़
और उन रूहों पर जो आपके साय में जमा हुईं,

وَأَقَامَتْ فِي جَوَارِكَ
वा अक़ामत फ़ी जवारिक़
आपके क़रीब रहीं,

وَوَفَدَتْ مَعَ زُوَّارِكَ
वा वफ़दत म'अ ज़ुव्वारिक़
और आपके ज़ायरीन के साथ आयीं,

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ مِنِّي مَا بَقيتُ وَبَقِيَ ٱللَّيْلُ وَٱلنَّهَارُ
अस्सलामु अलैका मिन्नी मा बक़ीतु वा बक़िया अल-लैल वा अल-नहार
जब तक मैं मौजूद हूँ और जब तक दिन और रात हैं, आप पर मेरी तरफ से सलामती हो,

فَلَقَدْ عَظُمَتْ بِكَ ٱلرَّزِيَّةُ
फ़'लक़द अज़मत बिका अल-रज़ीय्यह
आप के लिए ताज़ियत नाक़ाबिले बरदाश्त है,

وَجَلَّتْ فِي ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُسْلِمِينَ
वा जल्लत फ़ी अल-मुअमिनींन वा अल-मुस्लिमींन
और मोमिनों, मुसलमानों के लिए और,

وَفِي أَهْلِ ٱلسَّمَاوَاتِ وَأَهْلِ ٱلأَرَضِينَ أَجْمَعِينَ
वा फ़ी अहल अल-समावात वा अहल अल-अरज़ीन अजम'ईंन
आसमानों और ज़मीन की परतों के तमाम बाशिंदों के लिए सख़्त है,

فَإِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ
फ़-इन्ना लिल्लाह वा इन्ना इलैहि राजिऊन
पस, हम अल्लाह के हैं और उसी की तरफ लौट कर जाएंगे,

صَلَوَاتُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ وَتَحِيَّاتُهُ
सलवातु अल्लाहि वा बरकातुहू वा तहीयातुहू
अल्लाह की नेमतें, बरकतें, और सलामती,

عَلَيْكَ يَا أَبَا عَبْدِ ٱللَّهِ ٱلْحُسَيْنُ
अलैका या अबा 'अब्दिल्लाह अल-हुसैन
आप पर हों, ऐ अबू अब्दुल्लाह हुसैन,

وَعَلَىٰ آبَائِكَ ٱلطَّيِّبِينَ ٱلْمُنْتَجَبِينَ
व 'अला आबाइक़ अल-तय्यिबीन अल-मुन्तजबींन
आपके पाक और मुन्तखब वालिदैन पर,

وَعَلَىٰ ذُرِّيَّاتِكُمُ ٱلْهُدَاةِ ٱلْمَهْدِيِّينَ
व 'अला ज़ुर्रियातिकुमु अल-हुदात अल-महदीन
और आपकी हिदायत याफ़्ता औलाद पर,

لَعَنَ ٱللَّهُ أُمَّةً خَذَلَتْكَ
ल'अन अल्लाहु उम्मतन ख़ज़लतक
अल्लाह उन लोगों पर लानत करे जिन्होंने आपको मायूस किया,

وَتَرَكَتْ نُصْرَتَكَ وَمَعُونَتَكَ
वा तरकत नस्रतक वा म'ऊनतक
और आपकी हिमायत और मदद से बाज़ रहे

وَلَعَنَ ٱللَّهُ أُمَّةً أَسَّسَتْ أَسَاسَ ٱلظُّلْمِ لَكُمْ
वा ल'अन अल्लाहु उम्मतन अस्ससत असास अल-ज़ुल्मि लकुम
अल्लाह उन लोगों पर लानत करे जिन्होंने आपके खिलाफ़ ज़ुल्म व सितम की बुनियाद रखी,

وَمَهَّدَتِ ٱلْجَوْرَ عَلَيْكُمْ
वा मह्हदत अल-जौर 'अलैकुम
आपके खिलाफ़ तजावुज़ के लिए राह हमवार की,

وَطَرَّقَتْ إِلَىٰ أَذِيَّتِكُمْ وَتَحَيُّفِكُمْ
वा तर्रकत इला अज़ीय्यतिकुम वा त-हैय्युफ़िकुम
आपको ज़ख़्मी और नुक़सान पहुँचाने के रास्ते खोले,

وَجَارَتْ ذٰلِكَ فِي دِيَارِكُمْ وَأَشْيَاعِكُمْ
वा जारत ज़ालिक फ़ी दियारिकुम वा अश्याएकुम
और आप की ज़मीन पर आप के पेरोकारों के ख़िलाफ़ यह फैलाया,

بَرِئْتُ إِلَىٰ ٱللَّهِ عَزَّ وَجَلَّ وَإِلَيْكُمْ
बरिअतु इला अल्लाहि 'अज़्ज़ वा जल्ल वा इलैकुम
मैं अल्लाह तआला और जलीलुल क़द्र की बारगाह में, और आप की मौजूदगी में, अपनी बरा'अत का ऐलान करता हूँ,

يَا سَادَاتِي وَمَوَالِيَّ وَأَئِمَّتِي
या सादाती वा मवालीय्या वा आइम्मती
ऐ मेरे आक़ा, सरदार, और क़ायद,

مِنْهُمْ وَمِنْ أَشْيَاعِهِمْ وَأَتْبَاعِهِمْ
मिन्हुम वा मिन अश्याएहिम वा अत्बाएहिम
उन से, उनके पैरौकारों, और उनके मुतबिइन से ऐलान बराअत करता हूँ,

وَسْأَلُ ٱللَّهَ ٱلَّذِي أَكْرَمَ يَا مَوَالِيَّ مَقَامَكُمْ
वा सअलु अल्लाह अल्लज़ी अकर्मा या मवालीय्या मकामकुम
और मैं अल्लाह से इल्तिजा करता हूँ जिसने आपका मक़ाम मुहतरम बनाया, ऐ मेरे सरदार,

وَشَرَّفَ مَنْزِلَتَكُمْ وَشَأْنَكُمْ
वा शर्रफ़ा मनज़िलतकुम वा श-अनकुम
और आपकी हैसियत और मक़ाम को बुलंद किया,

أَنْ يُكْرِمَنِي بِوِلاَيَتِكُمْ وَمَحَبَّتِكُمْ وَٱلٱِئْتِمَامِ بِكُمْ
अन युक्रिमनी बिविलायतिकुम वा महब्बतिकुम वा अल-इतमाम बिकुम
कि मुझे आप से वफादारी, मोहब्बत, आपको अपने क़ायदीन के तौर पर मुन्तखब करने,

وَبِٱلْبَرَاءَةِ مِنْ أَعْدَائِكُمْ
वा बिल बराअति मिन अअ'दाइकुम
और आपके दुश्मनों से ऐलान बराअत की इज्जत अता फ़रमाए,

وَأَسْأَلُ ٱللَّهَ ٱلْبَرَّ ٱلرَّحِيمَ أَنْ يَرْزُقَنِي مَوَدَّتَكُمْ
वा असअलु अल्लाह अल-बर अल-रहीम अन यरज़ुकनी मवद्दतिकुम
और मैं अल्लाह रहीम व करीम से इल्तिजा करता हूँ कि आप से मोहब्बत अता करे,

وَأَنْ يُوَفِّقَنِي لِلطَّلَبِ بِثَارِكُمْ
वा अन युवफ़िक़नी लिल-तलब बिज़ारिकुम
मुझे आपके इंतकाम के साथ कामयाबी अता करे,

مَعَ ٱلإِمَامِ ٱلْمُنْتَظَرِ ٱلْهَادِي مِنْ آلِ مُحَمَّدٍ
म'अ अल-इमाम अल-मुन्तज़र अल-हादी मिन आल मुहम्मद
मुहम्मद के घराने से मुन्तज़िर और हिदायत याफ़्ता क़ायद के साथ,

وَأَنْ يَجْعَلَنِي مَعَكُمْ فِي ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ
वा अन यज'अलनी म'अकुम फ़ी अल-दुनिया वा अल-आख़िरह
मुझे इस दुनिया और आख़िरत में आपके साथ शामिल करे,

وَأَنْ يُبَلِّغَنِيَ ٱلْمَقَامَ ٱلْمَحْمُودَ لَكُمْ عِنْدَ ٱللَّهِ
वा अन युबल्लिग़नी अल-मक़ाम अल-मह्मूद लकुम 'अंद अल्लाह
और मुझे उस क़ाबिल क़द्र मक़ाम तक पहुँचाए जो आपको अल्लाह के साथ हासिल है,

وَأَسْأَلُ ٱللَّهَ عَزَّ وَجَلَّ بِحَقِّكُمْ
वा असअलु अल्लाह अज़्ज़ वा जल्ल बिहक्किकुम
और मैं अल्लाह तआला और जलीलुल क़द्र की बारगाह में, आपके हक़ के नाम पर,

وَبِٱلشَّأْنِ ٱلَّذِي جَعَلَ ٱللَّهُ لَكُمْ
वा बिश-शअ'नि अल्लज़ी ज'अल अल्लाहु लकुम
और उस मक़ाम के नाम पर जो आपको अल्लाह के साथ हासिल है,

أَنْ يُعْطِيَنِي بِمُصَابِي بِكُمْ
अन यू'अतियनी बिमुसाबी बिकुम
से दरख़्वास्त करता हूँ कि मेरी आपके लिए ताज़ियत के सबब,

أَفْضَلَ مَا أَعْطَىٰ مُصَاباً بِمُصيبَةٍ
अफ़्ज़ल मा अ'ता मुसाबन बि-मुसिबत
सबसे ज़्यादा पसंदीदा चीज़ अता करे जो उसने कभी किसी मुसीबत ज़दा को अता की है,

إِنَّا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ
इन्ना लिल्लाह वा इन्ना इलैहि राजिऊन
हम अल्लाह के हैं और उसी की तरफ लौट कर जाएंगे,

يَا لَهَا مِنْ مُصيبَةٍ
या लहा मिन मुसिबत
ये कितनी ख़ौफ़नाक मुसीबत थी;

مَا أَفْجَعَهَا وَأَنْكَاهَا لِقُلُوبِ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُسْلِمينَ
मा अफ्ज़अहा वा अन्काहा लिक़ुलूब अल-मुअमिनींन वा अल-मुस्लिमींन
मोमिनों और मुसलमानों के दिलों के लिए कितनी तबाहकुन और दर्दनाक मुसीबत थी,

فَإِنَا لِلَّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعُونَ
फ़-इन्ना लिल्लाह वा इन्ना इलैहि राजिऊन
पस, हम अल्लाह के हैं और उसी की तरफ लौट कर जाएंगे,

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा सल्लि 'अला मुहम्मद वा आल मुहम्मद
ऐ अल्लाह, (बराह करम) मुहम्मद और मुहम्मद के घराने पर बरकतें भेजें

وَٱجْعَلْنِي فِي مَقَامِي
वा अज'अलनी फ़ी मक़ामी
और इस सूरत में मुझे उनमें से बनाएं,

مِمَّنْ تَنَالُهُ مِنْكَ صَلَوَاتٌ وَرَحْمَةٌ وَمَغْفِرَةٌ
मिम्मन तनालुहु मिन्क सल्लावातुंन वा रहमतुन वा मग़फ़िरह
जिन्हें आप से बरकतें, रहमत,और माफ़ी मिलती है,

وَٱجْعَلْنِي عِنْدَكَ وَجِيهاً
वा अज'अलनी 'अंदक वजीहंन
और मुझे आप के नज़दीक क़ाबिल-ए-क़द्र बनाए,

فِي ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ وَمِنَ ٱلْمُقَرَّبِينَ
फ़ी अल-दुनिया वा अल-आख़िरह वा मिन अल-मुक़र्रबींन
और मुझे इस दुनिया और आख़िरत में आपके क़रीब ले जाएं,

فَإِنِّي أَتَقَرَّبُ إِلَيْكَ بِمُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
फ़-इन्नी अतकर्रबु इलैक बिमुहम्मद वा आले मुहम्मद
क्योंकि मैं मुहम्मद और मुहम्मद के घराने के ज़रिये आपके क़रीब होने की कोशिश करता हूँ,

صَلَوَاتُكَ عَلَيْهِ وَعَلَيْهِمْ أَجْمَعِينَ
सलवातुक 'अलैहि वा 'अलैहिम अजम'ईंन
आपकी बरकतें उन पर और उन सब पर हों,

اَللَّهُمَّ وَإِنِّي أَتَوَسَّلُ وَأَتَوَجَّهُ
अल्लाहुम्मा वा इन्नी अतवस्सलु वा अतवज्जहू
ऐ अल्लाह, मैं भी तेरे क़रीब आने के लिए वसीला बनाता हूँ और अपना रुख तेरी तरफ़ मोड़ता हूँ,

بِصَفْوَتِكَ مِنْ خَلْقِكَ
बिसफ़वतिक मिन खल्किक
तेरी मख़लूक़ात में से तेरे मुन्तख़ब बंदों के नाम पर,

وَخِيَرَتِكَ مِنْ خَلْقِكَ
वा ख्यारतीका मिन खल्किक
और तेरे ख़ास बंदों के नाम पर,

مُحَمَّدٍ وَعَلِيٍّ وَٱلطَّيِّبِينَ مِنْ ذُرِّيَّتِهِمَا
मुहम्मद वा 'अली वा अल-तय्यिबीन मिन ज़ुर्रियतिहिमा
यानी मुहम्मद, अली, और उनकी पाकीज़ा औलादों के,

اَللَّهُمَّ فَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा फ़-सल्लि 'अला मुहम्मद वा आले मुहम्मद
पस, ऐ अल्लाह, मुहम्मद और मुहम्मद के घराने पर बरकतें भेजें,

وَٱجْعَلْ مَحْيَايَ مَحْيَاهُمْ
वा अज'अल महयाया महयाहूम
मेरी ज़िन्दगी को उनके मुताबिक बना,

وَمَمَاتِي مَمَاتَهُمْ
वा मामाती ममातहुम
और मेरी मौत को उनके मुताबिक बना,

وَلاَ تُفَرِّقْ بَيْنِي وَبَيْنَهُمْ
वा ला तुफर्रिक बैनी वा बैनाहुम
और मुझे उनसे कभी जुदा न कर

فِي ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ
फ़ी अल-दुनिया वा अल-आख़िरह
इस दुनिया और आख़िरत में.

إِنَّكَ سَمِيعُ ٱلدُّعَاءِ
इन्नका समीअ अल-दु'आ
आप वाकई दुआ सुनने वाले हैं

اَللَّهُمَّ وَهٰذَا يَوْمٌ تُجَدَّدُ فِيهِ ٱلنِّقْمَةُ
अल्लाहुम्मा वा हाज़ा यौमुंन तुज्जद्दु फ़ीहि अल-निक्मह
ऐ अल्लाह, इस दिन लानत की तजदीद होती है,

وَتُنَزَّلَ فِيهِ ٱللَّعْنَةُ
वा तुन्नज़िल फ़ीहि अल-ल'नह
और लानतें नाज़िल होती हैं,

عَلَىٰ ٱللَّعينِ يَزِيدَ وَعَلَىٰ آلِ يَزِيدَ
अला अल-ल'ईन यज़ीद वा 'अला आले यज़ीद
मलऊन यज़ीद और यज़ीद के खानदान पर,

وَعَلَىٰ آلِ زِيَادٍ وَعُمَرَ بْنِ سَعْدٍ وَٱلشِّمْرِ
वा 'अला आल ज़ियाद वा 'उमर इब्ने स'अद वा आले-शिम्र
निज़ ज़ियाद, उमर इब्न साद, और शिमर के खानदान पर,

اَللَّهُمَّ ٱلْعَنْهُمْ وَٱلْعَنْ مَنْ رَضِيَ بِقَوْلِهِمْ وَفِعْلِهِمْ
अल्लाहुम्मा ला'अन्हुम वा अल'न मन रज़ी बिक़ौलिहिम वा फ़िअलिहिम
ऐ अल्लाह, इन सब पर और उन पर लानतें नाज़िल करें जिन्होंने उनके अक़वाल और आमाल की ताईद की,

مِنْ أَوَّلٍ وَآخِرٍ لَعْناً كَثيراً
मिन अव्वल वा आख़िर लानन कसीरंन
गुज़िश्ता और आख़िरी नस्लों से; (और उन पर लानतें नाज़िल करें) बे हिसाब लानतें,

وَأَصْلِهِمْ حَرَّ نَارِكَ
वा अस्लिहिम हर्र नारिक
उन्हें आपकी आग की गर्मी में डाल,

وَأَسْكِنْهُمْ جَهَنَّمَ وَسَاءَتْ مَصيراً
वा अस्किनहुम जहन्नम वा सा'अत मसीरा
और उन्हें जहन्नम में रखें; और ये कितनी बुरी तक़दीर है,

وَأَوْجِبْ عَلَيْهِمْ وَعَلَىٰ كُلِّ مَنْ شَايَعَهُمْ
वा औजिब 'अलैहिम वा 'अला कुल्ल मन शाय'अहुम
इन पर और उन सब पर जो उनके साथ रहे, (अपना अज़ाब) ज़ाहिर कर,

وَبَايَعَهُمْ وَتَابَعَهُمْ وَسَاعَدَهُمْ
वा बाय'अहुम वा ताब'अहुम वा सआदा'हुम्म
उनकी ताज़ीम की, उनकी पैरवी की, उनकी मदद की,,

وَرَضِيَ بِفِعْلِهِمْ
वा रज़ी बिफ़िअलिहिम
और उनके आमाल की ताईद की;

وَٱفْتَحْ لَهُمْ وَعَلَيْهِمْ
वा इफ्तह लहुम वा 'अलैहिम
और उन पर और उन पर

وَعَلَىٰ كُلِّ مَنْ رَضِيَ بِذٰلِكَ
वा 'अला कुल्ल मन रज़ी बिज़ालिक
और उन सब पर जो उनके इस अमल की ताईद करते हैं,

لَعَنَاتِكَ ٱلَّتِي لَعَنْتَ بِهَا كُلَّ ظَالِمٍ
ल'नातिक अल्लती ल'नत बिहा कुल्ल ज़ालिम
आपकी लानतें नाज़िल करें जिनसे आपने तमाम ज़ालिमों,

وَكُلَّ غَاصِبٍ وَكُلَّ جَاحِدٍ
वा कुल्ल ग़ासिब, वा कुल्ल जाहिदन
तमाम ग़ासिबों, तमाम इन्कार करने वालों,

وَكُلَّ كَافِرٍ وَكُلَّ مُشْرِكٍ
वा कुल्ल काफ़िरन, वा कुल्ल मुशरिकन
तमाम काफिरों पर ,तमाम मुशरिकों पर,

وَكُلَّ شَيْطَانٍ رَجِيمٍ وَكُلَّ جَبَّارٍ عَنِيدٍ
वा कुल्ल शैतान रजीमन, वा कुल्ल जब्बार 'अनीदन
(आपका अज़ाब) उन पर और तमाम मलऊन शैतानों,और तमाम सख्त़गीर हुक्मरानों पर जो उनके साथ रहे हैं,

اَللَّهُمَّ ٱلْعَنْ يَزِيدَ وَآلَ يَزِيدَ
अल्लाहुम्मा अल'न यज़ीद वा आल यज़ीद
ऐ अल्लाह, यज़ीद, यज़ीद के खानदान लानतें नाज़िल करें,

وَبَنِي مَرْوَانَ جَمِيعاً
वा बनी मरवान जमिअंन
और तमाम मरवान की औलाद पर लानतें नाज़िल करें.

اَللَّهُمَّ وَضَعِّفْ غَضَبَكَ وَسَخَطَكَ
अल्लाहुम्मा वा द'अफि' ग़ज़बक वा सख़तक
ऐ अल्लाह, बढ़ा दें अपने ग़ज़ब को, गुस्सा को,

وَعَذَابَكَ وَنَقِمَتَكَ
वा 'अज़ाबक वा नकमतक
अज़ाब को, और सज़ा को,

عَلَىٰ أَوَّلِ ظَالِمٍ ظَلَمَ أَهْلَ بَيْتِ نَبِيِّكَ
अला अव्वल ज़ालिम ज़लम अहलेबैत नबिय्यिक
पहले ज़ालिम के लिए जिसने आपके नबी के घराने पर ज़ुल्म किया,

اَللَّهُمَّ وَٱلْعَنْ جَمِيعَ ٱلظَّالِمينَ لَهُمْ
अल्लाहुम्मा वा अल'न जमीअ' अल-ज़ालिमीन लहुम
ऐ अल्लाह, उन सब पर लानतें नाज़िल करें जिन्होंने उन पर ज़ुल्म किया,

وَٱنْتَقِمْ مِنْهُمْ
वा इन्तकिम मिन्हुम
और (बराह करम) वोह तेरे अज़ाब का सामना करें,

إِنَّكَ ذوُ نِقْمَة مِنَ ٱلْمُجْرِمِينَ
इन्नका धू निक्मत मिन अल-मुज्रिमीन
बेशक, आप मुजरिमों को लाज़मी सज़ा देते हैं

اَللَّهُمَّ وَٱلْعَنْ أَوَّلَ ظَالِمٍ ظَلَمَ آلَ بَيْتِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा वा अल'न अव्वल ज़ालिम ज़लमा अहलेबैते मुहम्मद
ऐ अल्लाह, मुहम्मद के घराने के पर ज़ुल्म करने वाले पहले ज़ालिम पर लानतें नाज़िल कर,

وَٱلْعَنْ أَرْوَاحَهُمْ وَدِيَارَهُمْ وَقُبُورَهُمْ
वा अल'न अरवाहहुम वा दियारहुम वा क़ुबूरहुम
और उनकी रूहों, घरों, और कब्रों पर लानतें नाज़िल कर,

وَٱلْعَنِ ٱللَّهُمَّ ٱلْعِصَابَةَ ٱلَّتِي نَازَلَتِ ٱلْحُسَيْنَ
वा अल'न अल्लाहुम्मा अल-इसाबत अल्लती नाज़लत अल-हुसैन
और ऐ अल्लाह, इस गिरोह पर लानतें नाज़िल कर जो हुसैन के सामने आया,

ٱبْنَ بِنْتَ نَبِيِّكَ
इब्ने बिन्त नबिय्यिक
आपके नबी की बेटी के बेटे हैं,

وَحَارَبَتْهُ وَقَتَلَتْ أَصْحَابَهُ وَأَنْصَارَهُ
वा हारबतहू वा क़ातलत अस्हाबहू वा अन्सारहू
और जिन्होंने उनके खिलाफ़ जंग की और क़त्ल किया उनके साथी को, मददगारों को,

وَأَعْوَانَهُ وَأَوْلِيَاءَهُ
वा अ'वानीहू वा अवलियाइह
मददगारों को, और वफादारों को,

وَشيعَتَهُ وَمُحِبِّيهِ
वा शीय'अतहू वा मुहिब्बीह
पैरौकारों को और आशिकों को,

وَأَهْلَ بَيْتِهِ وَذُرِّيَّتَهُ
वा अहलेबैतिह वा ज़ुर्रियतिह
घर वालों को, और औलाद को,

وَٱلْعَنِ ٱللَّهُمَّ ٱلَّذِينَ نَهَبُوٱ مَالَهُ
वा अल'न अल्लाहुम्मा अल्लज़ीना नहबू मालहू
और ऐ अल्लाह, उन पर लानतें नाज़िल करें जिन्होंने उनके माल को लूटा,

وَسَلَبُوٱ حَرِيـمَهُ
वा सलबू हरिमहू
उनकी औरतों को लूटा,

وَلَمْ يَسْمَعُوٱ كَلاَمَهُ وَلاَ مَقَالَهُ
वा लम यस्म'ऊ कलामहू वा ला मक़ालहू
और उनके कलाम और गुफ़्तगू को नहीं सुना,

اَللَّهُمَّ وَٱلْعَنْ كُلَّ مَنْ بَلَغَهُ ذٰلِكَ فَرَضِيَ بِهِ
अल्लाहुम्मा वा अल'न कुल्ल मन बलघहू ज़ालिक फ़-रज़ी बिह
ऐ अल्लाह, उन सब पर लानतें नाज़िल करें जो इसके बारे में मुत्तला होने पर खुश हुए,

مِنَ ٱلأَوَّلِينَ وَٱلآخِرِينَ
मिन अल-अव्वलीन वा अल-आख़िरीन
गुज़िश्ता और आख़िरी नस्लों से,

وَٱلْخَلاَئِقِ أَجْمَعِينَ إِلَىٰ يَوْمِ ٱلدِّينِ
वा अल-ख़लाइक अजम'ईन इला यौम अल-दींन
और क़यामत तक की तमाम मख़लूक़ से,

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا أَبَا عَبْدِ ٱللَّهِ ٱلْحُسَيْنُ
अस्सलामु अलैक़ या अबा 'अब्दिल्लाह अल-हुसैन
आप पर सलामती हो, ऐ अबू अब्दुल्लाह हुसैन,

وَعَلَىٰ مَنْ سَاعَدَكَ وَعَاوَنَكَ
वा 'अला मन सआ'दक वा 'आवनक
और आपकी मदद और आपकी मदद करने वालों पर,

وَوَاسَاكَ بِنَفْسِهِ وَبَذَلَ مُهْجَتَهُ فِي ٱلذَّبِّ عَنْكَ
वा वासाक बिनफ़्सिही वा बि-ज़ला मुह-जतोहू फ़ी अज़-ज़ब्बी अनका
और उन पर जो आपके लिए अपने आप को पेश करते हैं और आपकी दिफ़ा में अपनी जानों का नज़राना देते हैं,

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مَوْلاَيَ وَعَلَيْهِمْ
अस्सलामु अलैक़ या मोलाय वा 'अलैहिम
आप पर सलामती हो, ऐ मेरे आका, उन पर,

وَعَلَىٰ رُوحِكَ وَعَلَىٰ أَرْوَاحِهِمْ
वा 'अला रूहिक वा 'अला अरवाहहुम
आपकी रूहों पर, उनकी रूहों पर,

وَعَلَىٰ تُرْبَتِكَ وَعَلَىٰ تُرْبَتِهِمْ
वा 'अला तुरबतिक वा 'अला तुरबतिहिम
आपकी मिट्टी पर, और उनकी मिट्टी पर,

اَللَّهُمَّ لَقِّهِمْ رَحْمَةً وَرِضْوَاناً
अल्लाहुम्मा लक़िहिम रहमतन वा रिज़्वानन
ऐ अल्लाह, (बराह करम) उन पर रहमत, खुशी,

وَرَوْحاً وَرَيْحَاناً
वा रूहन वा रैहानन
खुशी, और नेअमत अता कर,

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مَوْلاَيَ يَا أَبَا عَبْدِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या मोलाय या अबा 'अब्दिल्लाह
आप पर सलामती हो, ऐ मेरे आका अबू अब्दुल्लाह,

يَا بْنَ خَاتَمِ ٱلنَّبِيِّينَ
या इब्ने ख़ातिम अल-नबीयीन
ऐ नबियों के सरदार के फरज़ंद,

وَيَا بْنَ سَيِّدِ ٱلْوَصِيِّينَ
वा या इब्ने सैय्यिद अल-वसीयीन
ऐ नबियों के वारिसों के सरदार के फरज़ंद,

وَيَا بْنَ سَيِّدَةِ نِسَاءِ ٱلْعَالَمِينَ
वा या इब्ने सैय्यिदत निसा' अल-आलमीन
ऐ दुनिया की औरतों के सरदार के फरज़ंद,

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا شَهِيدُ يَا بْنَ ٱلشَّهِيدِ
अस्सलामु अलैक़ या शहीदुन या इब्ने अल-शहीद
आप पर सलामती हो, ऐ शहीद और शहीद के फरज़ंद,

اَللَّهُمَّ بَلِّغْهُ عَنِّي فِي هٰذِهِ ٱلسَّاعَةِ
अल्लाहुम्मा बल्लिग़हु 'अन्नी फ़ी हाज़हि अल-साअह
ऐ अल्लाह, इस लम्हे, इस सा'अत,

وَفِي هٰذَا ٱلْيَوْمِ وَفِي هٰذَا ٱلْوَقْتِ
वा फ़ी हाज़ा अल-यौम वा फ़ी हाज़ा अल-वक़्त
इस दिन, इस लम्हे,

وَكُلِّ وَقْتٍ تَحِيَّةً وَسَلاَماً
वा कुल्ल वक़्त तहीय्यतन वा सलामन
और हर लम्हे में, उनके लिए मेरी तरफ से सलामती और दुआएं पहुंचा,

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ سَيِّدِ ٱلْعَالَمِينَ
अस्सलामु अलैका या इब्ने सैय्यिद अल-आलमीन
आप पर सलामती हो, ऐ दुनिया के सरदार के फरज़ंद,

وَعَلَىٰ ٱلْمُسْتَشْهَدِينَ مَعَكَ
वा 'अला अल-मुस्तश्हदींन म'अक
और उन पर जो आपके साथ शहीद हुए,

سَلاَماً مُتَّصِلاَ مَا ٱتَّصَلَ ٱللَّيْلُ وَٱلنَّهَارُ
सलामन मुत्तसिलन मा इत्तसल अल-लैल वा अल-नहार
ऐसी सलामती जो दिन और रात के साथ मरबूत हो,

السَّلاَمُ عَلَىٰ ٱلْحُسَيْنِ بْنِ عَلِيٍّ ٱلشَّهِيدِ
अस्सलामु 'अला अल-हुसैन इब्ने 'अली अल-शहीद
सलामती हो अली हुसैन पर जो अली के फरज़ंद हैं और शहीद हुए,

السَّلاَمُ علىٰ عليِّ بنِ ٱلْحُسَينِ ٱلشَّهِيدِ
अस्सलामु 'अला 'अली इब्ने अल-हुसैन अल-शहीद
सलामती हो अली पर जो हुसैन के फरज़ंद हैं और शहीद हुए,

السَّلاَمُ علىٰ ٱلْعَبَّاسِ بنِ أَمِيرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ ٱلشَّهِيدِ
अस्सलामु 'अला अल-अब्बास इब्ने अमीर अल-मुअमिनीन अल-शहीद
सलामती हो अब्बास पर जो अमीर अल मोमिनीन के फरज़ंद हैं और शहीद हुए,

السَّلاَمُ عَلَىٰ ٱلشُّهَدَاءِ مِنْ وُلْدِ أَمِيرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ
अस्सलामु 'अला अल-शुहदा' मिन वुल्द अमीर अल-मुअमिनीन
सलामती हो अमीर अल मोमिनीन के फरज़ंदों में से शहीदों पर,

السَّلاَمُ عَلَىٰ ٱلشُّهَدَاءِ مِنْ وُلْدِ جَعْفَرٍ وَعَقِيلٍ
अस्सलामु 'अला अल-शुहदा' मिन वुल्द जा'फ़र वा 'अक़ील
सलामती हो जाफर और अकील के फरज़ंदों में से शहीदों पर,

السَّلاَمُ عَلَىٰ كُلِّ مُسْتَشْهَدٍ مِنَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
अस्सलामु 'अला कुल्ल मुसतश्हद मिन अल-मुअमिनीन
सलामती हो हर मोमिन पर जो शहीद हुआ,

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा सल्लि 'अला मुहम्मद वा आले मुहम्मद
ऐ अल्लाह, (बराह करम) मुहम्मद और मुहम्मद के घराने पर बरकतें भेज,

وَبَلِّغْهُمْ عَنِّي تَحِيَّةً وَسَلاَماً
वा बल्लिग़हुम 'अन्नी तहीय्यतन वा सलामन
और उन तक मेरी तरफ से सलामती और दुआएं पहुंचा,

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا رَسُولَ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैक़ या रसूल अल्लाह
आप पर सलामती हो, ऐ अल्लाह के रसूल,

وَعَلَيْكَ ٱلسَّلاَمُ وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ
वा 'अलैक अल-सलाम वा रहमतु अल्लाह वा बरकातुहू
आप पर सलामती और अल्लाह की रहमत और बरकतें हों,

أَحْسَنَ ٱللَّهُ لَكَ ٱلْعَزَاءَ
अहसन अल्लाह लक़ अल-'अज़ा
अल्लाह आपको इत्मिनान बख्श तसली दे,

فِي وَلَدِكَ ٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ
फ़ी वल्दिक अल-हुसैन 'अलैह अल-सलाम
आपके फरज़ंद हुसैन के बारे में, उनपर सलामती हो,

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا أَبَا ٱلْحَسَنِ يَا أَمِيرَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
अस्सलामु अलैक़ या अबा अल-हसन या अमीर अल-मुअमिनीन
आप पर सलामती हो, ऐ अबूल हसन अमीर अल मोमिनीन,

وَعَلَيْكَ ٱلسَّلاَمُ وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ
वा 'अलैक अल-सलाम वा रहमतुअल्लाह वा बरकातुहू
आप पर सलामती और अल्लाह की रहमत और बरकतें हों,

أَحْسَنَ ٱللَّهُ لَكَ ٱلْعَزَاءَ فِي وَلَدِكَ ٱلْحُسَيْنِ
अहसन अल्लाह लक़ अल-'अज़ा फ़ी वल्दिक अल-हुसैन
अल्लाह आपको आपके फरज़ंद हुसैन के बारे में इत्मिनान बख्श तसली दे,

السَّلاَمُ عَلَيْكِ يَا فَاطِمَةُ
अस्सलामु अलैक़ या फ़ातिमा
आप पर सलामती हो, ऐ फातिमा,

يَا بِنْتَ رَسُولِ رَبِّ ٱلْعَالَمِينَ
या बिन्त रसूल रब्ब अल-आलमीन
ऐ रसूल अल्लाह के रब अल आलमीन की बेटी,

وَعَلَيْكِ ٱلسَّلاَمُ وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ
वा 'अलैक अल-सलाम वा रहमतु अल्लाह वा बरकातुहू
आप पर सलामती और अल्लाह की रहमत और बरकतें हों,

أَحْسَنَ ٱللَّهُ لَكِ ٱلْعَزَاءَ فِي وَلَدِكِ ٱلْحُسَيْنِ
अहसन अल्लाह लक़ अल-'अज़ा फ़ी वल्दिक अल-हुसैन
अल्लाह आपको आपके फरज़ंद हुसैन के बारे में इत्मिनान बख्श तसली दे,

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا أَبَا مُحَمَّدٍ ٱلْحَسَنُ
अस्सलामु अलैक़ या अबा मुहम्मद अल-हसन
आप पर सलामती हो, ऐ अबू मुहम्मद हसन,

وَعَلَيْكَ ٱلسَّلاَمُ وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ
वा 'अलैक अल-सलाम वा रहमतुअल्लाह वा बरकातुहू
आप पर सलामती और अल्लाह की रहमत और बरकतें हों,

أَحْسَنَ ٱللَّهُ لَكَ ٱلْعَزَاءَ فِي أَخِيكَ ٱلْحُسَيْنِ
अहसन अल्लाह लक़ अल-'अज़ा फ़ी अखीक अल-हुसैन
अल्लाह आपको आपके भाई हुसैन के बारे में इत्मिनान बख्श तसली दे,

السَّلاَمُ عَلَىٰ أَرْوَاحِ ٱلْمُؤْمِنِينَ وَٱلْمُؤْمِنَاتِ
अस्सलामु 'अला अरवाह अल-मुअमिनीन वा अल-मुअमिनात
मोमिन मर्दों और औरतों की रूहों पर सलामती हो,

ٱلأَحْيَاءِ مِنْهُمْ وَٱلأَمْوَاتِ
अल-अहया' मिन्हुम वा अल-अम्वात
ज़िंदा और मुर्दा दोनों पर,

وَعَلَيْهِمُ ٱلسَّلاَمُ وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ
वा 'अलैहिम अल-सलाम वा रहमतु अल्लाह वा बरकातुहू
उन पर सलामती और अल्लाह की रहमत और बरकतें हों,

أَحْسَنَ ٱللَّهُ لَهُمُ ٱلْعَزَاءَ فِي مَوْلاَهُمُ ٱلْحُسَيْنِ
अहसन अल्लाह लहुम अल-'अज़ा फ़ी मौलाहुम अल-हुसैन
अल्लाह उन्हें उनके सरदार हुसैन के बारे में इत्मिनान बख्श तसली दे,

اَللَّهُمَّ ٱجْعَلْنَا مِنَ ٱلطَّالِبِينَ بِثَارِهِ
अल्लाहुम्मा अज'अलना मिन अल-तालिबीन बिज़ारिह
ऐ अल्लाह, हमें उन लोगों में शामिल करें जो उनके इंतकाम की दरखास्त करेंगे,

مَعَ إِمَامٍ عَدْلٍ تُعِزُّ بِهِ ٱلإِسْلاَمَ وَأَهْلَهُ
म'अ इमाम अदलीन तू'इज़्ज़ु बिही अल-इस्लाम वा अहलोहू
एक आदिल रहनुमा के साथ जिसके ज़रिये आप इस्लाम और उसके लोगों को इज़्ज़त अता कर,

يَا رَبَّ ٱلْعَالَمِينَ
या रब्ब अल-आलमीन
ऐ रब अल आलमीन,

अब आप सजदे में जाएँ और यह कहें:
اَللَّهُمَّ لَكَ ٱلْحَمْدُ
अल्लाहुम्मा लक अल-हम्द
ऐ अल्लाह, तमाम तारीफ़ें आपके लिए हैं,

عَلَىٰ جَمِيعِ مَا نَابَ مِنْ خَطْبٍ
अला जमीअ' मा नाबा मिन खत्ब
हर मुसीबत के लिए जो हमें पेश आई है,

وَلَكَ ٱلْحَمْدُ عَلَىٰ كُلِّ أَمْرٍ
व लका अल-हम्द 'अला कुल्ल अम्र
तमाम तारीफ़ें आपके लिए हैं हर मामले के लिए,

وَإِلَيْكَ ٱلْمُشْتَكَىٰ فِي عَظِيمِ ٱلْمُهِمَّاتِ
व इलैका अल-मुश्तका फ़ी अज़ीम अल-मुहिम्मात
बड़ी मुसीबतों के बारे में शिकायत सिर्फ़ तेरी ही की तरफ़ है,

بِخِيَرَتِكَ وَأَوْلِيَائِكَ
बि खैरतिक व अवलियाइक
जो आपके मुन्तखब बन्दों और आपके क़रीबी खादिमों को पेश आयी,

وَذٰلِكَ لِمَا أَوْجَبْتَ لَهُمْ مِنَ ٱلْكَرَامَةِ وَٱلْفَضْلِ ٱلْكَثِيرِ
व ज़ालिक लिमा औजबत लहुम मिन अल-करामह व अल-फज़्ल अल-कसीर
यह उनके हक़ में तेरी तरफ़ से किये गए फ़ैसले और तेरी तरफ से दी हुई इज़्ज़त और वाफिर फ़ज़ल की वजह से है,

اَللَّهُمَّ فَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा फ़-सल्लि 'अला मुहम्मद व आले मुहम्मद
पस, ऐ अल्लाह! मोहम्मद और आले मोहम्मद पर रहमतें और बरकतें नाज़ील फरमा,

وَٱرْزُقْنِي شَفَاعَةَ ٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ يَوْمَ ٱلْوُرُودِ
व अर्ज़ुक्नी शफ़ाअत अल-हुसैन 'अलैह अल-सलाम यौम अल-वुरूद
मुझे रोज़ क़यामत इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम की शिफ़ाअत अता फरमा,

وَٱلْمَقَامِ ٱلْمَشْهُودِ وَٱلْحَوْضِ ٱلْمَوْرُودِ
व अल-मक़ाम अल-मश्हूद व अल-हौज़ अल-मौरूद
शहादत की जगह और करीब आने वाले हौज़ के साथ,

وَٱجْعَلْ لِي قَدَمَ صِدْقٍ عِنْدَكَ
व अज'अल ली क़दम सिद्क 'अंदक
मेरे लिए अपने साथ एक सच्चे कदम का फैसला कर,

مَعَ ٱلْحُسَيْنِ وَأَصْحَابِ ٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ
म'अ अल-हुसैन व अस्हाब अल-हुसैन 'अलैह अल-सलाम
इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम और इमाम हुसैन अलेहिस्सलाम के साथियों के साथ,

ٱلَّذِينَ وَاسَوْهُ بِأَنْفُسِهِمْ
अल-लज़ीना वासौहू बि-अनफ़ुसिहिम
जिन्होंने अपनी जानें उनके लिए पेश कीं,

وَبَذَلُوٱ دُونَهُ مُهَجَهُمْ
व बज़ालू दून्हू मुहजाहुम
उनकी हिफाज़त में अपने आप को क़ुर्बान किया,

وَجَاهَدوُٱ مَعَهُ أَعْدَاءَكَ
व जाहदू म'अहू अअ'दाइक
और उनके दुश्मनों के साथ उनके साथ लड़े,

ٱبْتِغَاءَ مَرْضَاتِكَ وَرَجَاءَكَ
इब्तिग़ा मर्जातिक व रजायक
तेरी ख़ुशनूदी की तलाश में, अपनी उम्मीदें तुझ पर रखते हुए,

وَتَصْديقاً بِوَعْدِكَ
व तस्दीका बिव'दिक
आपके वादे पर ईमान रखते हुए,

وَخَوْفَا مِنْ وَعيدِكَ
व खौफ़ा मिन व'ईदिक
और आपके अज़ाब से डरते हुए,

إِنَّكَ لَطِيفٌ لِمَا تَشَاءُ
इन्नका लतीफ़ु लिमा तशा
बेशक, तू जिस पर चाहें मेहरबानी करता है,

يَا أَرْحَمَ ٱلرَّاحِمينَ
या अरहम अल-राहिमीन
ऐ सब रहम करने वालों में से सबसे ज्यादा रहम करने वाले,

ज़्यारत का हवाला (जरिया)
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सफ़वान की ज़ियारत-ए-अशुरा की फज़ीलत पर तक़रीर सैफ इब्न उमायरा ने रिवायत की है कि उन्होंने सफ़वान से कहा, "अलकमा इब्न मुहम्मद ने यह दुआ हमें इमाम बक़र अलैहिस्सलाम से नहीं बताई है। उन्होंने केवल ज़ियारत का तरीक़ा बताया है।
सफ़वान ने जवाब देते हुए कहा:
एक बार मैं अपने आका इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के साथ इस जगह आया। उन्होंने वही तरीक़ा अपनाया जो हमने अभी ज़ियारत के हवाले से किया और फिर नमाज़ पढ़ने के बाद जो हमने अभी अदा की, और ज़ियारत करने वाले इमाम को उसी तरह विदा किया जैसे हमने किया, उन्होंने यही दुआ पढ़ी। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने मुझसे कहा, 'इस ज़ियारत और इस दुआ को याद रखो और जब भी ज़ियारत पर आओ, उन्हें इस्तेमाल करो। यक़ीनन, मैं अल्लाह तआला की तरफ़ से ज़मानत देता हूँ कि जो कोई भी इस ज़ियारत और इस दुआ को इमाम की ज़ियारत करते वक़्त या दूर से कहे, उसकी ज़ियारत क़बूल होगी, उसकी कोशिश क़ाबिले तारीफ़ होगी, उसके सलाम इमाम तक पहुंचेंगे और कभी उनसे पोशीदा नहीं रहेंगे, अल्लाह तआला उसकी तमाम दरख्वास्तें क़बूल करेगा जो भी वह होंगी, और वह कभी मायूस नहीं होगा
ए सफ़वान, इमाम अलैहिस्सलाम ने और कहा, मुझे मेरे वालिद से यह ज़मानत मिली है, जिन्होंने अपने वालिद अली इब्न हुसैन अलैहिस्सलाम से यह ज़मानत ली, जिन्होंने अपने वालिद हुसैन अलैहिस्सलाम से यह ज़मानत ली, जिन्होंने अपने भाई हसन अलैहिस्सलाम से यह ज़मानत ली, जिन्होंने अपने वालिद अमीर अल मोमिनीन से यह ज़मानत ली, जिन्होंने रसूल अल्लाह से यह ज़मानत ली, जिन्होंने जिब्राईल अलैहिस्सलाम से यह ज़मानत ली, जिन्होंने अल्लाह तआला से यह ज़मानत ली, जो भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत इस ज़ियारत के तरीक़े से करे और यही दुआ पढ़े, चाहे वह मुकद्दस मज़ार पर हो या दूर से, अल्लाह तआला खुद उसकी ज़ियारत क़बूल करेगा, उसकी दरख्वास्तें क़बूल करेगा जो भी वह होंगी, और उसकी दुआओं का जवाब देगा। मजीद बराआं, ज़ायिर कभी मायूस नहीं होगा; बल्कि अल्लाह तआला उसे ख़ुशी और इत्मिनान के साथ रुखसत करेगा क्योंकि उसकी ज़रूरियात पूरी होंगी, जन्नत हासिल होगी, जहन्नम से आज़ादी हासिल होगी, और जिसे चाहे सिफ़ारिश करने का हक़ हासिल होगा सिवाए उन लोगों के जो अहल अल-बैत अलैहिस्सलाम की दुश्मनी अलानिया करते हैं। अल्लाह तआला, जिब्राईल अलैहिस्सलाम के मुताबिक, ने इस अहद को क़बूल किया और फ़रिश्तों को इसकी गवाही देने के लिए बुलाया, क्योंकि उसके सल्तनत के फ़रिश्तों ने भी इसकी गवाही दी। ए अल्लाह के रसूल, जिब्राईल अलैहिस्सलाम ने और कहा, अल्लाह तआला ने मुझे आप, अली, फ़ातिमा, हसन, हुसैन, आपके नस्ल के इमामों, और आपके पैरोक़ारों (यानि शिया) को क़यामत के दिन तक ख़ुशख़बरी देने के लिए भेजा है। क़यामत के दिन तक, आप, अली, फ़ातिमा, हसन, हुसैन, और आपके पैरोक़ार ख़ुश होंगे।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने सफ़वान से कहा: ए सफ़वान, जब भी तुम्हारे पास कोई नाक़ाबिल-ए-हल मसअला हो जिसे सिर्फ़ अल्लाह तआला हल कर सकता है, तो इस ज़ियारत के तरीक़े से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत करो, जहां कहीं भी हो, और इस दुआ के साथ इसका इख़तताम करो। फिर अपने रब से अपनी दरख्वास्त करो और जवाब जल्द ही अल्लाह तआला की तरफ़ से आएगा, जो अपने रसूल से वादा पूरा करने में कभी नाकाम नहीं होता; उसकी अज़मत और फ़ज़ल की वजह से। फिर तमाम तारीफ़ अल्लाह के लिए है।

मजीद तसदीक़ात
किताब "अल-नज्म अल-साक़िब" (अल-नूरी द्वारा) में, हाजी सैयद अहमद अल-रश्ती के इमाम ज़माना की मौजूदगी में हज के सफर के दौरान का वाकया तफसील से बयान किया गया है। इस वाकये की तफसील में, जो इस किताब में ज़ियारत जामेआ कबीराह (ज़ियारत जामेआ कबीराह) के बाद नकल की जाएगी, इमाम (अ) ने अल-रश्ती से तसदीक के साथ कहा: "आप ज़्यारत आशूरा, क्यों नहीं (कसरत से) पढ़ते हो ?
हमारे मोहतरम उस्ताद शेख अल-नूरी ने इस पर तफसीर करते हुए कहा:
ज़्यारत आशूरा के बेमिसाल फज़ाइल और इज्ज़तों में से एक यह है कि इसका तरीक़ा दीगर आम ज़ियारतों की तरह नहीं है, जो कि बाज़ाहिर मासूमीन (अलैहिस्सलाम) ने तरतीब दी हैं और बयान की हैं, अगरचे इन मासूमीन के पाक दिलों से निकलने वाला कोई भी बयान इन अल्फ़ाज़ की सच्चाई की दलील है जो उन्होंने बुलंद तरीन मंबा से हासिल किए हैं।
हालांकि, ज़्यारत आशूरा अल्लाह तआला के उन कलिमात की तरह है जो उसने जिब्राईल फरिश्ते को नाज़िल किए थे। इस हकीकत का अंदाजा ज़्यारत के कलिमात से होता है, जिसमें दुश्मनों पर लानत करने के बयान, इमाम और उनके साथियों पर बरकतें भेजने के बयान, और दुआई बयानात शामिल हैं। चूंकि, जिब्राईल फरिश्ता ने ये कलिमात नबियों के खतम अल-नबीयीन को पहुंचाए।
जैसा कि अमली तजुर्बात से साबित होता है, यह ज़्यारत की शक्ल मुनफरिद है कि चालीस दिन या उससे भी कम मुद्दत तक मुसलसल पढ़ने वाले की दरख्वास्तें पूरी होती हैं, जरूरतें पूरी होती हैं, और दुश्मनों का शर दूर होता है।
हालांकि, इस ज़्यारत को पढ़ने में इस्तिकामत के हैरान कुन असरात दरज-ए-ज़ैल वाकये में वाजेह होते हैं, जो किताब , दार अल-सलाम" में बयान किया गया है। मैं इसे मुख्तसर तौर पर ज़िक्र करूंगा:
हसन अल-यज़दी, जो मुश्तरेम, नेक और परहेज़गार हाजी और मौला थे और जो नजफ में मुकद्दस मजार के करीब रहते थे और इस मुकद्दस मकाम के पड़ोस में वफादारी से अमल करने वालों में से थे, ने मुहम्मद अली अल-यज़दी, जो मुश्तरेम और नेक हाजी थे, से मंदरजा-ज़ैल वाकया नकल किया है: यज़द में एक नेक और परहेज़गार शख्स था जो इबादतों में मशगूल रहता था और अपने कब्र की ज़िन्दगी के लिए तैयारी करता था। वह रातों को शहर यज़द के मضافात में वाक़े कब्रिस्तान में गुज़ारता था, जिसे "मज़ार" कहा जाता था, जहां नेक लोगों का ग्रुप दफ़्न था। उसका एक हमसाया था जो बचपन से उसके साथ बड़ा हुआ और दोनों एक ही स्कूल में दाख़िल हुए और एक ही उस्ताद से तालीम हासिल की। हालांकि, यह हमसाया एक ज़ालिम बन गया जो लोगों के माल का दसवां हिस्सा ताक़त और नाइंसाफी के ज़रिए छीन लेता था। वह इस अमल को जारी रखता रहा यहां तक कि मर गया। उसे इस कब्रिस्तान में दफ़्न किया गया जो नेक शख्स के रात गुज़ारने की जगह के करीब था।
मरने के एक महीने के अंदर, इस नेक शख्स ने ख़्वाब में उसे अच्छी हालत में देखा, जैसे वह नेमतों की रोशनी से लुत्फ़ अंदोज़ हो रहा हो। नेक शख्स इस मर्दा के पास गया और उससे पूछा, "मैं आपकी असलियत और आपके अंजाम को बहुत अच्छी तरह जानता हूँ, और आपकी ज़ाहिरी और बातिनी हालतों को भी। आप उन लोगों में से नहीं थे जिनसे नेकी की तवक्को की जाती है और आपके आमाल आपके लिए कुछ भी नहीं लाएंगे सिवाए अज़ाब और सज़ा के। आपने यह मकाम कैसे हासिल किया?
मुर्दा ने जवाब दिया, "जो कुछ आपने अभी कहा है वह बिलकुल सच है। मेरी मौत से कल तक मुझे सबसे ज़्यादा शदीद अज़ाब में रखा गया था, जब लोहार की बीवी अशरफ की मौत हुई और उसे इस जगह दफ़्न किया गया।" मर्दा ने एक मुक़र्रर जानिब की तरफ़ इशारा किया जो उसकी दफ़न की जगह से तक़रीबन सौ बाज़ू दूर थी। फिर उसने कहा, "उसकी दफ़न की रात, अबू अब्दुल्लाह (इमाम हुसैन) ने तीन बार उसकी ज़्यारत की। तीसरी बार, उन्होंने इस कब्रिस्तान के तमाम मर्दा बाशिंदों से अज़ाब को रोकने का हुक्म दिया। तब से, मैं नेमत, आराम, राहत, और आराम में बदल गया हूँ।
जब नेक शख्स बेदार हुआ, तो वह बहुत हैरान हुआ। इस लिए वह लोहारों के बाज़ार गया ताकि उस शख्स के बारे में पूछ सके जिसकी बीवी हाल ही में मर गई थी, क्योंकि वह उस शख्स को नहीं जानता था। जब उसे लोहार मिला, तो उसने उससे पूछा, "क्या आपकी बीवी थी?" लोहार ने जवाब दिया, "हाँ, मेरी बीवी थी। वह हाल ही में मर गई और उसे फलां जगह दफ़्न किया गया।" नेक शख्स ने वही जगह बताई जो ख़्वाब में मर्दा ने इशारा की थी। "क्या वह कभी अबू अब्दुल्लाह के मजार की ज़्यारत करती थी?" नेक शख्स ने पूछा। "नहीं, वह नहीं करती थी," उसके शौहर ने जवाब दिया। "क्या वह इमाम (अ) को दरपेश मसाइब का ज़िक्र करती थी?" नेक शख्स ने पूछा। "नहीं, वह नहीं करती थी," उसके शौहर ने जवाब दिया। "क्या वह इमाम हुसैन (अ) के लिए तसल्ली के इज्तिमात मुनाकिद करती थी?" नेक शख्स ने पूछा। "नहीं, वह नहीं करती थी," उसके शौहर ने जवाब दिया, "आप यह सवालात क्यों कर रहे हैं?" यहां, नेक शख्स ने अपने ख़्वाब की पूरी कहानी बयान की। उसके शौहर ने फिर कहा, "हाँ, वह ज़्यारत आशूरा को बहुत कसरत से पढ़ती थी।

**सालेह बिन अक़ाबा और सैफ बिन उमायरा ने अल्क़मा बिन मुहम्मद अल-हद्रामि से रिवायत की है कि उन्होंने एक मरतबा इमाम बक़र अलैहिस्सलाम से दरख्वास्त की कि वह उन्हें एक दुआ सिखाएं जिसके जरिए वह अल्लाह तआला से दुआ करेंगे उस दिन (आशूरा के दिन) जब वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मजार की ज़्यारत करेंगे और दूसरी दुआ सिखाएं जिसके जरिए वह अल्लाह तआला से दुआ करेंगे उस दिन जब वह मजार की ज़्यारत नहीं कर सकेंगे और फिर मजार की जानिब इशारा करेंगे और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अपने घर से सलाम भेजेंगे।
इमाम ने फ़रमाया, "सुनें, अल्क़मा! जब आप इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सलाम करें और दो रकात नमाज़ पढ़ें, तो तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहें और फिर यह ज़्यारत पढ़ें। अगर आप ऐसा करेंगे तो आप वह दुआ पढ़ेंगे जो फ़रिश्ते इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़्यारत के वक़्त पढ़ते हैं। आपको भी उन लोगों की सफ़ में शामिल किया जाएगा जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ शहीद हुए थे और आप उनके ग्रुप में शामिल हो जाएंगे। मजीद बराआं, आपको उन तमाम नबियों और रसूलों की ज़्यारत का सवाब मिलेगा और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़्यारत करने वाले तमाम लोगों की ज़्यारत का सवाब मिलेगा जब से वह शहीद हुए हैं।
10 मुहर्रम की तिलावत
नीचे ज़ियारत की इस शक्ल की तफ़सीली रिपोर्ट दी गई है, जैसा कि शेख अबू जाफर अल-तूसी ने अपनी किताब अल-मिस्बाह में बयान किया है:
मुहम्मद बिन इस्माइल बिन बुज़ैग ने सालेह बिन अक़बा के वसीले से अपने वालिद के ज़रिये इमाम मुहम्मद अल-बाकिर (अ) से रिवायत की है कि उन्होंने फरमाया, "जो शख्स मुहर्रम की दसवीं तारीख (यानी आशूरा के दिन) इमाम हुसैन बिन अली (अ) की ज़ियारत करे और वहां रोता रहे, वह अल्लाह तआला से मुलाकात के दिन इस तरह मुलाकात करेगा कि उसके लिए दो हजार हज करने, दो हजार उमराह करने और दो हजार जंगों में रसूल अल्लाह और इमामों के साथ शिरकत करने का सवाब होगा। रावी ने पूछा, "अल्लाह मुझे आप पर क़ुर्बान करे! जो शख्स दूर दराज इलाकों में रहता हो और उस दिन मज़ार पर नहीं आ सकता, उसे क्या करना चाहिए?
इमाम (अ) ने वज़ाहत की, "ऐसे लोगों के लिए, वह किसी वीराने में जा सकते हैं या अपने घरों की ऊँची छत पर चढ़ सकते हैं, इमाम हुसैन (अ) की तरफ़ सलाम के साथ इशारा करें, उनके कातिलों पर लानत भेजें, और फिर दो रकात नमाज़ पढ़ें। वह यह काम दोपहर से पहले कर सकते हैं। फिर वह इमाम हुसैन (अ) के लिए मातम करें और रोएं और अपने घरों में रहने वालों को भी उनके लिए रोने का हुक्म दें, जब तक कि उन्हें उन लोगों से ख़तरा न हो जो उनके साथ रहते हैं। वह अपने घरों में मातमी तक्रिबात मुनाकिद कर सकते हैं और उनके लिए ग़म का इज़हार कर सकते हैं। वह एक दूसरे को इमाम हुसैन (अ) के मसाएब पर तसल्ली दे सकते हैं। अगर वह यह सब करें, तो मैं खुद उनके लिए इनामात की ज़मानत देता हूँ जो मैंने पहले ज़िक्र किए हैं। रावी ने पूछा, "अल्लाह मुझे आप पर क़ुर्बान करे! क्या आप वाकई उनके लिए इस इनाम का वादा करते हैं और ज़मानत देते हैं?
इमाम (अ) ने जवाब दिया, "हाँ, मैं करता हूँ। मैं उनके लिए इस इनाम का वादा करता हूँ और ज़मानत देता हूँ। रावी ने पूछा, "हम इस मौके पर एक दूसरे को किस तरह तसल्ली दें? इमाम ने हिदायत दी, "आप एक दूसरे से यह अल्फाज़ कह सकते हैं:
اعْظَمَ ٱللَّهُ اجُورَنَا بِمُصَابِنَا بِٱلْحُسَيْنِ عَلَيْهِ ٱلسَّلاَمُ
अ'अज़ाम अल्लाहु उजूरेना बि-मुसाबिना बि-अल-हुसैन अलैहिस सलाम
अल्लाह तआला हमारे अजर को दोगुना कर दे हमारे ग़म की वजह से (शहादत) इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम,
وَجَعَلَنَا وَإِيَّاكُمْ مِنَ ٱلطَّالِبِينَ بِثَارِهِ
व-जा'अलना वा-इय्याकुम मिन अत-तालीबीनि बि-सारिहि
और हमें और आपको उन लोगों में शामिल करे जो उनके क़ातिलों से इंतेक़ाम लेंगे,
مَعَ وَلِيِّهِ ٱلإِمَامِ ٱلْمَهْدِيِّ مِنْ آلِ مُحَمَّدٍ عَلَيْهِمُ ٱلسَّلامُ
मा वलीहि अल-इमाम अल-महदी मिन आले मुहम्मद अलैहिम अस-सलाम
उनके ख़ून का दावेदार; इमाम महदी जो आल-ए-मुहम्मद में से हैं, उन सब पर सलाम हो।
अगर मुमकिन हो, तो आप उस दिन अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए अपने घर से बाहर ना निकलें, क्योंकि यह दिन मनहूस है और एक मोमिन की कोई ज़रूरत इस दिन पूरी नहीं होती; और अगर पूरी हो भी जाए तो उसमें बरकत नहीं होगी। मजीद बरआँ, उस दिन जो कुछ भी बचाया जाएगा वह बे बरकत होगा और उसके खानदान के अफ़राद भी। अगर वो ये सब करें, तो उन्हें एक हज़ार हज और एक हज़ार उमरा करने का अजर मिलेगा और एक हज़ार मरतबा रसूल अल्लाह के साथ जंगों में शिरकत करने का सवाब भी मिलेगा। उन्हें हर नबी, नबी के जानशीन, सिद्दीक, और शहीद पर आने वाली तमाम मुसीबतों का अजर भी मिलेगा जो इस दुनिया के क़यामत के दिन तक पैदा होने से लेकर क़त्ल या वफ़ात पाने तक हुए हैं। सालेह बिन अक़बा और सैफ बिन उमायरा ने अल्क़मा बिन मुहम्मद अल-हद्रामि से रिवायत की है कि उन्होंने एक मरतबा इमाम अल-बाकिर, अल्लाह की सलामती और बरकतें उन पर हों, से दरख्वास्त की कि वह उन्हें एक दुआई दुआ सिखाएं जिसके ज़रिये वह उस दिन (यानी आशूरा के दिन) अल्लाह तआला से दुआ करें जब वह इमाम हुसैन के मजार की ज़ियारत करेंगे और एक और दुआई दुआ सिखाएं जिसके ज़रिये वह उस दिन अल्लाह तआला से दुआ करें जब वह मजार की ज़ियारत नहीं कर सकेंगे और फिर मजार की तरफ़ इशारा करेंगे और इमाम हुसैन को अपने घर से सलाम भेजेंगे।
इमाम ने फरमाया, "सुनें, अल्क़मा! जब आप इमाम हुसैन को सलाम करें और दो रकात नमाज़ पढ़ें, तो तकबीर (अल्लाहु अकबर) कहें और फिर यह ज़ियारत पढ़ें। अगर आप ऐसा करेंगे तो आप वह दुआ पढ़ेंगे जो फ़रिश्ते इमाम हुसैन की ज़ियारत के वक़्त पढ़ते हैं। आपको भी उन लोगों की सफ़ में शामिल किया जाएगा जो इमाम हुसैन के साथ शहीद हुए थे और आप उनके ग्रुप में शामिल हो जाएंगे। मजीद बरआँ, आपको तमाम नबियों और रसूलों की ज़ियारत का सवाब मिलेगा और इमाम हुसैन की ज़ियारत करने वाले तमाम लोगों की ज़ियारत का सवाब मिलेगा जब से वह शहीद हुए हैं। अल्लाह की सलामती उन पर और उनके खानदान पर हो