20 सफर / अर्बईन (चहलुम - आशूरा के बाद 40वां दिन)
'अर्बईन' ज़मीन पर सबसे बड़ा पुर अमन मुहिब्बाने हुसैन (अ:स) की भीड़ का सैलाब देखने को मिलता हैं। लाखों लोग कर्बला, इराक का दौरा करते हैं, इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की शहादत की याद में, जो पैगंबर-ए-इस्लाम के पोते थे, सन 680 ईस्वी में!अरबईन का पैदल सफर - लाखों की जानिब से कर्बला के लिए शुरू किया गया अज़ीम पैदल सफर (हफिंगटन पोस्ट आर्टिकल) हफिंगटन पोस्ट का एक लेख)
इमाम हसन बिन अली अल असकरी (अलैहिस्सलाम) के मुताबिक, हक़ीक़ी मोमिन की पांच निशानियां हैं:-
1) दिन के 24 घंटों में 51 रकअत नमाज़ अदा करना (17 रकअत वाजिब, + 34 रकअत नफ्ल नमाज़ें)।
2) कर्बला में इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) / दीगर शोहदा की ज़ियारत के लिए मौजूद होना, या कम से कम ज़ियारत इमाम की तिलावत करना जैसा कि नीचे दिया गया है
3) दाएं हाथ में अंगूठी पहनना।
4) सजदा में ज़मीन (तरजीहन कर्बला की ज़मीन) पर पेशानी रखना।
5) नमाज़ में "बिस्मिल्लाहिर-रहमानिर-रहीम" को बुलंद आवाज़ में और वाज़ेह तिलावात के साथ कहना।
आइमा के मिशन का मकसद इस ज़ियारत में बहुत खूबसूरती से बयान किया गया है कि "......ने अपनी हर कोशिश की और अपने दिल, दिमाग, रूह और ज़िंदगी को तेरे मिशन की खिदमत में वक्फ़ कर दिया ताकि लोगों को जहालत के जुए से आज़ाद करा सके" शेख अल-तूसी ने ताहदीब अल-अहकाम और मिस्बाह अल-मुतहज्जिद में सफवान अल-जम्माल से रिवायत किया है, जो कहते हैं: मेरे आका इमाम सादिक़ (अलैहिस्सलाम) ने मुझे हिदायत दी कि अर्बईन के दिन, सुबह के वक्त इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की ज़ियारत करूं, और मंदरजा ज़ेल अल्फ़ाज़ कहूं:
2 रकअत नमाज़ पढ़ें और अपनी हाजात तलब करें।
दुसरे अमाल जो ज़िक्र किए गए हैं :
तस्बीहात अरबा (अल्हम्दोलिल्लाह व ला इलाहा इलल्लाह वल्लाहो अकबर) - 70 बार कहेंज़ुहर से पहले गुस्ल करें
ज़ुहर के बाद सूरह असर की तिलावत करें और 70 बार इस्तिग़फार तलब करें - अस्तग़फिरुल्लाह
गुरूब आफताब (सूरज डूबने) के वक़्त "ला इलाहा इल्लल्लाह" 40 बार कहें
मुख़्तसर (छोटी) ज़्यारत
अस्सलामु अलैकुम या आल अल्लाह
आप सब पर सलाम हो, ए अल्लाह के घराने।
अस्सलामु अलैकुम या सफ्वत अल्लाह……
आप सब पर सलाम हो, ए अल्लाह के बरगज़ीदा…
"हज़रत अब्बास (अलैहिस्सलाम) के रोज़े की ज़ियारत के लिए दुआएं, जो हमारे आका अमीरुल मोमिनीन अली (अलैहिस्सलाम) के बेटे हैं, और उन लोगों के लिए जो इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) के साथ शहीद हुए, वही हैं। इस दिन, उनके लिए ज़ियारत की दुआएं उसी तरह अदा करें जैसा कि पहले आशूरा के दिन की ज़ियारत के तरीके के बारे में बयान किया गया था या उनके लिए दीगर ज़ियारत की दुआओं में से कोई एक तिलावत करें जैसा कि दीगर इलाही रहनुमाओं (अलैहिस्सलाम) की तरफ से रिवायत किया गया है।"
किताब "इक़बाल-उल-आमाल" से लिया गया:
अबू मुहम्मद हारून इब्न मूसा अल-तलकबारी के सिलसिला असनाद से, मुहम्मद इब्न अली इब्न मअमर के हवाले से, अबुल हसन अली इब्न मसअदत और अल-हसन इब्न अली इब्न फज़ल के हवाले से, सअदान इब्न मुस्लिम के हवाले से, सफवान इब्न मिहरान के हवाले से रिवायत है। मेरे आका इमाम सादिक (अलैहिस्सलाम) ने मुझे अरबईन के दिन की ज़ियारत की दुआओं के बारे में यह बताया, "दिन के वस्त में मजार पर जाएं और यह अल्फ़ाज़ कहें:
Farewell Ziarat in Iqbal Aamal
There is a special farewell supplication for this pilgrimage supplication.
You must stand facing the shrine and say the following,
السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا ابْنَ رَسُولِ اللَّهِ السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا ابْنَ عَلِيٍّ الْمُرْتَضَى وَصِيَّ رَسُولِ اللَّهِ
"Peace be on you! O' son of God's Prophet (MGB). Peace be on you! O' son of Ali al-Murtiza – the Trustee of God's Prophet.
السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا ابْنَ فَاطِمَةَ الزَّهْرَاءِ سَيِّدَةَ نِسَاءِ الْعَالَمِينَ
Peace be on you! O' son of Fatimah az-Zahra (MGB) – the Master of the Ladies of the world.
السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا وَارِثَ الْحَسَنِ الزَّكِيِّ
Peace be on you! O' inheritor of Al-Hassan – the Pure!
السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا حُجَّةَ اللَّهِ فِي أَرْضِهِ وَ شَاهِدَهُ عَلَى خَلْقِهِ
Peace be on you! O' the Proof of God on His Earth! And His witness over His creatures!
السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا أَبَا عَبْدِ اللَّهِ الشَّهِيدُ وَ
Peace be on you! O' Martyred Aba Abdullah (MGB)!
السَّلَامُ عَلَيْكَ يَا مَوْلَايَ وَ ابْنَ مَوْلَايَ
Peace be on you! O' my Guardian! O' son of my Guardian!
أَشْهَدُ أَنَّكَ قَدْ أَقَمْتَ الصَّلَاةَ وَ آتَيْتَ الزَّكَاةَ وَ أَمَرْتَ بِالْمَعْرُوفِ وَ نَهَيْتَ عَنِ الْمُنْكَرِ
I bear witness that you established the prayer, gave the prescribed share to the needy, enjoined to do good, forbade from evil,
وَ جَاهَدْتَ فِي سَبِيلِ اللَّهِ حَتَّى أَتَاكَ الْيَقِينُ
and strived in the way of God until the inevitable death came unto you.
وَ أَشْهَدُ أَنَّكَ عَلَى بَيِّنَةٍ مِنْ رَبِّكَ
I bear witness that You are a Proof of your Lord for me.
أَتَيْتُكَ يَا مَوْلَايَ زَائِراً وَافِداً رَاغِباً مُقِرّاً لَكَ بِالذُّنُوبِ هَارِباً
I have come to you O' my Guardian! I have come to you as a pilgrim, a willing comer, confessing to his sins near You.
يَا ابْنَ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْكَ حَيّاً وَ مَيِّتاً
O' son of God's Prophet (MGB)!May God‟s Blessings be on you when you were alive and when you perished
إِلَيْكَ مِنَ الْخَطَايَا لِتَشْفَعَ لِي عِنْدَ رَبِّكَ
I am fleeing to You from my wrongdoings so that You intercede near Your Lord on my behalf
فَإِنَّ لَكَ عِنْدَ اللَّهِ مَقَاماً مَعْلُوماً وَ شَفَاعَةً مَقْبُولَةً
Indeed you possess a known position near God and your intercession near Him is accepted.
لَعَنَ اللَّهُ مَنْ ظَلَمَكَ وَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ حَرَمَكَ وَ غَصَبَ حَقَّكَ وَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ قَتَلَكَ
May God's Curse be on those who oppressed you. God's Curse be on those who wronged you and confiscated your rights.
وَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ خَذَلَكَ وَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ دَعَوْتَهُ فَلَمْ يُجِبْكَ وَ لَمْ يُعِنْكَ
May God's Curse be on those who killed you. May God's Curse be on those who belittled you.
وَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ مَنَعَكَ مِنْ حَرَمِ اللَّهِ وَ حَرَمِ رَسُولِهِ وَ حَرَمِ أَبِيكَ وَ أَخِيكَ
God's Curse be on those whom you invited but did not honor your call and did not help you. May God's Curse be on whoever prevented you from going to the House of God, the shrine of God‟s Prophet (MGB), and the shrines of your father and brother.
وَ لَعَنَ اللَّهُ مَنْ مَنَعَكَ مِنْ شُرْبِ مَاءِ الْفُرَاتِ لَعْناً كَثِيراً يَتْبَعُ بَعْضُهَا بَعْضاً
May God's Curse be on whoever prevented you from drinking from the Euphrates - extensive curse one after the next.
اللَّهُمَّ فاطِرَ السَّماواتِ وَ الْأَرْضِ عالِمَ الْغَيْبِ وَ الشَّهادَةِ
"O' God! Creator of the heavens and the earth! Knower of all that is hidden and open!
أَنْتَ تَحْكُمُ بَيْنَ عِبادِكَ فِي ما كانُوا فِيهِ يَخْتَلِفُونَ
it is You that wilt judge between Your Servants in those matters about which they have differed."1
وَ سَيَعْلَمُ الَّذِينَ ظَلَمُوا أَيَّ مُنْقَلَبٍ يَنْقَلِبُونَ
“And soon will the unjust assailants know what vicissitudes their affairs will take!”2
اللَّهُمَّ لَا تَجْعَلْهُ آخِرَ الْعَهْدِ مِنْ زِيَارَتِهِ
O' my God! Please do not make this be the last time I visit him.
وَ ارْزُقْنِيهِ أَبَداً مَا بَقِيتُ وَ حَيِيتُ يَا رَبَّ الْعَالَمِينَ
O Lord! Please bestow it on me for as long as I survive and You let me live.
وَ إِنْ مِتُّ فَاحْشُرْنِي فِي زُمْرَتِهِ يَا أَرْحَمَ الرَّاحِمِينَ.
And should I die, please resurrect me to be next to him. O' the Most Compassionate, Most Merciful!"
There is a special farewell supplication for this pilgrimage supplication.
You must stand facing the shrine and say the following,
Pdf 2 col
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Arbaeen & Ziarat Explanation-Pdf
Why Arbeen?
Huffington post article
Ayatullah Sistani's Arbaeen message
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Children animation
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