हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ
(आप ﷺ और आपकी आल-ए-अतहार (अ:स) पर दुरूद व सलाम)
अहले बैत (अ.स.)

आख़िरी रसूल ﷺ – ख़ातिमुन्नबीयीन ﷺ
संक्षिप्त जानकारी

लक़ब / कुनियत: अल-मुस्तफ़ा, अबुल क़ासिम
वालिद: अब्दुल्लाह (अ.स), वालिदा: आमिना (स.अ.)
पैदाइश / मक़ाम: 17 रबीउल अव्वल – मक्का | वफ़ात / मक़ाम: 28 सफ़र – मदीना
उम्र मुबारक: 63 बरस
सहीफ़ा दुआ की किताब
अल-इस्लाम किताबें
मुन्तहा अल-आमाल – शैख़ अब्बास क़ुम्मी - | (ख़रीदने के लिए: JPC)
हकीमान अक़वाल: नहजुल फ़साहत
जामे सवानिह उमरी व वीडियोज़





रोज़ा-ए-रसूल ﷺ की ज़ियारत
रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ के रोज़ा-ए-अक़्दस की ज़ियारत का तरीका यह है:
जब आप मदीना मुनव्वरा की मुक़द्दस सरज़मीन पर पहुँचें तो बेहतर है कि ग़ुस्ल करें और ज़ियारत की तैयारी करें। जब आप मस्जिद-ए-नबवी ﷺ में दाख़िल होने का इरादा करें तो मस्जिद के दरवाज़े पर रुककर वह पहला दुआईया कलिमा पढ़ें जो पिछले बाब (अध्याय) में ज़िक्र किया गया है, ताकि दाख़िले की इजाज़त तलब की जा सके। उसके बाद आप बाब-ए-जिब्राईल (अलैहिस्सलाम) यानी फ़रिश्ता जिब्राईल के दरवाज़े से दाख़िल हों और पहले दाहिना पाँव अंदर रखें फिर बायाँ।


उसके बाद आप सौ (100) मरतबा ये कलिमात दोहराएँ::
اَللَّهُ اكْبَرُ
उसके बाद आप मस्जिद की ताज़ीम की नमाज़ (तहिय्यतुल-मस्जिद) के दो रकअत अदा कर सकते हैं। उसके बाद आप उस मुक़द्दस हुजरे (पवित्र कक्ष) की तरफ़ बढ़ें जिसमें हज़रत रसूल-ए-अकरम ﷺ का रोज़ा है। वहाँ आप चाहे तो उसे अपने हाथ से छुएँ, चूमें और फिर ये अल्फ़ाज़ कहें:
السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا رَسُولَ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या रसूलल्लाहि
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا نَبِيَّ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या नबिय्यल्लाहि
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के नबी ﷺ।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مُحَمَّدُ بْنَ عَبْدِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या मुहम्मदु इब्न अब्दिल्लाहि
आप पर सलाम हो, ऐ मुहम्मद ﷺ बिन अब्दुल्लाह।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا خَاتَمَ ٱلنَّبِيِّينَ
अस्सलामु अलैका या ख़ातमन्नबिय्यीना
आप पर सलाम हो, ऐ ख़ातिमुन्नबीयीन ﷺ।

اشْهَدُ انَّكَ قَدْ بَلَّغْتَ ٱلرِّسَالَةَ
अश्हदु अन्नका क़द बल्लग़्त-र्रिसालता
मैं गवाही देता हूँ कि आपने रिसालत का पैग़ाम पहुँचाया,

وَاقَمْتَ ٱلصَّلاةَ
व अक़ाम्तस्सलाता
नमाज़ें क़ायम कीं,

وَآتَيْتَ ٱلزَّكَاةَ
व आतेताज़-ज़काता
ज़कात अदा की,

وَامَرْتَ بِٱلمَعْرُوفِ
व अमर्ता बिल-मअरूफ़ि
नेकी का हुक्म दिया,

وَنَهَيْتَ عَنِ ٱلمُنْكَرِ
व नहय्ता अनिल-मुनकरी
बुराई से रोका,

وَعَبَدْتَ ٱللَّهَ مُخْلِصاً حَتَّىٰ اتَاكَ ٱليَقِينُ
व अबद्तल्लाहा मुख़लिसन हत्ता अताकल यक़ीनु
और अल्लाह तआला की खालिस बंदगी की, यहाँ तक कि आपका वफ़ात का वक़्त आ पहुँचा।

فَصَلَوَاتُ ٱللَّهِ عَلَيْكَ وَرَحْمَتُهُ
फ़स्सलावातुल्लाहि अलैक व रहमतुहु
अल्लाह की रहमत और बरकतें हों आप पर

وَعَلَىٰ اهْلِ بَيْتِكَ ٱلطَّاهِرِينَ
व अला अहलेबैतिकत ताहिरीना
और आपके पाकीज़ा अहल-ए-बैत पर।

फिर आप रोज़ा मुबारक के दाएँ तरफ़ वाले अगले स्तंभ के क़रीब खड़े हों, इस हाल में कि मिंबर आपके दाएँ हाथ की तरफ़ हो और आप क़िब्ला रुख़ हों। यही वह जगह है जहाँ रसूल-ए-अकरम ﷺ का मुबारक सर आराम फरमा है। इसके बाद आप ये अल्फ़ाज़ कहें:
اشْهَدُ انْ لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ
अश्हदु अन ला इलाहा इल्लल्लाहु वह्दहु ला शरीक लहु
मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद (इबादत के लायक़) नहीं, वह यक़्ता (एक) है और उसका कोई शरीक (साझीदार) नहीं।

وَاشْهَدُ انَّ مُحَمَّداً عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
व अश्हदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु
और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद ﷺ उसके बंदे और रसूल हैं।

وَاشْهَدُ انَّكَ رَسُولُ ٱللَّهِ
व अश्हदु अन्नका रसूलुल्लाहि
मैं गवाही देता हूँ कि आप अल्लाह के रसूल हैं,

وَانَّكَ مُحَمَّدُ بْنُ عَبْدِ ٱللَّهِ
व अन्नका मुहम्मदु ब्नु अब्दिल्लाहि
और आप मुहम्मद ﷺ बिन अब्दुल्लाह हैं।.

وَاشْهَدُ انَّكَ قَدْ بَلَّغْتَ رِسَالاَتِ رَبِّكَ
व अश्हदु अन्नका क़द बल्लग़्ता रिसालाती रब्बिका
मैं गवाही देता हूँ कि आपने अपने परवरदिगार के पैग़ामात पहुँचा दिए,

وَنَصَحْتَ لاِمَّتِكَ
व नसह्ता लिउम्मतिक
अपनी उम्मत को भलाई की नसीहत की,

وَجَاهَدْتَ فِي سَبِيلِ ٱللَّهِ
व जाहद्ता फी सबीलिल्लाहि
अल्लाह की राह में जिहाद किया,,

وَعَبَدْتَ ٱللَّهَ حَتَّىٰ اتَاكَ اليَقِينُ
व अबद्तल्लाहा हत्ता अताकल-यक़ीनु
अल्लाह की इबादत की यहाँ तक कि मौत आप पर आ पहुँची,-

بِٱلْحِكْمَةِ وَٱلْمَوْعِظَةِ ٱلْحَسَنَةِ
बिल-हिक्मति वल-मवइज़ति ल्हसनति
हिकमत और बेहतरीन नसीहत के साथ तबलीग़ की,

وَادَّيْتَ ٱلَّذِي عَلَيْكَ مِنَ ٱلْحَقِّ
व अद्दैतल्लधी अलैक मिनल-हक्कि
वह ज़िम्मेदारी अदा की जो आप पर वाजिब थी,

وَانَّكَ قَدْ رَؤُفْتَ بِٱلْمُؤْمِنِينَ
व अन्नका क़द रऊफ्त बिल-मुमिनीना
मोमिनीन के साथ शफ़क़त से पेश आए,

وَغَلُظْتَ عَلَىٰ ٱلكَافِرِينَ
व ग़लुज़्ता अला अल-काफिरीना
और काफ़िरों के मुक़ाबले में साबित क़दम रहे।

فَبَلَّغَ ٱللَّهُ بِكَ افْضَلَ شَرَفِ مَحَلِّ ٱلْمُكَرَّمِينَ
फ़बल्लग़ल्लाहु बिका अफ़ज़ल शरफ़ि महल्लिल-मुकर्रमीना
इसी वजह से अल्लाह तआला ने आपको मुक़र्रम व मोअज़्ज़म हस्तियों के सबसे बुलंद मक़ाम पर फ़ाइज़ किया।

الْحَمْدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي ٱسْتَنْقَذَنَا بِكَ مِنْ ٱلشِّرْكِ وَٱلضَّلالَةِ
अल्हम्दु लिल्लाहिल्लधी इस्तनक़ज़ना बिका मिनश्शिर्कि वज़्ज़लालति
सारी तारीफ़ें अल्लाह के लिए हैं जिसने आपके वसीले से हमें शिर्क और गुमराही से निज़ात दी।

اَللَّهُمَّ فَٱجْعَلْ صَلَوَاتِكَ وَصَلَوَاتِ مَلائِكَتِكَ ٱلْمُقَرَّبِينَ
अल्लाहुम्म फ़जअल सलवातिका व सलवाति मलाइिकतिकल-मुक़र्रबीना
ऐ अल्लाह! अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमा, और अपने मुक़र्रब फ़रिश्तों की रहमतें,

وَانْبِيَائِكَ ٱلْمُرْسَلِينَ
व अंबियाइकल-मुरसलीना
अपने भेजे हुए अंबिया की रहमतें,

وَعِبَادِكَ ٱلصَّالِحِينَ
व इबादिकस्सालिहीना
अपने नेक बंदों की रहमतें,

وَاهْلِ ٱلسَّمَاوَاتِ وَٱلارَضِينَ
व अहलिस समावाते वल-अरज़ीना
आसमानों और ज़मीन के रहने वालों की रहमतें,

وَمَنْ سَبَّحَ لَكَ يَا رَبَّ ٱلعَالَمِينَ
व मन सब्बहा लका या रब्बल आलमीना
और तमाम मख़लूक़ात की रहमतें जो तस्बीह करती हैं — ऐ रब्बुल आलमीन —

مِنَ ٱلاوَّلِينَ وَٱلآخِرِينَ
मिनल-अव्वलीना वल-आख़िरीना
पहले और आने वाले सब में से,

عَلَىٰ مُحَمَّدٍ عَبْدِكَ وَرَسُولِكَ
`अला मुहम्मदिन अब्दिका व रसूलिका
मुहम्मद ﷺ पर — जो तेरे बंदे, तेरे रसूल,

وَنَبِيِّكَ وَامِينِكَ
व नबीय्यिका व अमीनिका
तेरे नबी, तेरे अमीन,

وَنَجِيِّكَ وَحَبِيبِكَ
व नजीय्यिका व हबीबिका
तेरे राज़दार, तेरे महबूब,

وَصَفِيِّكَ وَخَاصَّتِكَ
व सफीय्यिका व खास्सतिका
तेरे चुने हुए, तेरे बरग़ज़ीदा,

وَصَفْوَتِكَ وَخِيَرَتِكَ مِنْ خَلْقِكَ
व सफ्वतिक व ख़ीरतिक मिन खल्किक
तेरे ख़ास और तेरी मख़लूक़ में सबसे बेहतरीन हैं।

اَللَّهُمَّ اعْطِهِ ٱلدَّرَجَةَ ٱلرَّفِيعَةَ
अल्लाहुम्म अअ्तिहिद-दराज़तर्रफ़ीअह
ऐ अल्लाह! उन्हें बुलंद दर्जे अता फ़रमा,

وَآتِهِ ٱلوَسِيلَةَ مِنَ ٱلْجَنَّةِ
व आतिहिल-वासीलता मिनल-जन्नति
उन्हें जन्नत में शफ़ाअत का हक़ अता फ़रमा,

وَٱبْعَثْهُ مَقَاماً مَحْمُوداً يَغْبِطُهُ بِهِ ٱلاوَّلُونَ وَٱلآخِرُونَ
व बअस्हु मक़ामन महमूदन यग़्बितुहु बिहिल-अव्वलून वल-आख़िरून
और उन्हें उस मक़ाम-ए-महमूद पर फ़ाइज़ फ़रमा जिस पर पहले और आने वाले सब रश्क करें।

اَللَّهُمَّ إِنَّكَ قُلْتَ:
अल्लाहुम्म इन्नका क़ुल्ता:
ऐ अल्लाह! तूने फ़रमाया है:

«وَلَوْ انَّهُمْ إِذْ ظَلَمُوا انْفُسَهُمْ جَاؤُوكَ فَٱسْتَغْفَرُوٱ ٱللَّهَ
“व लव अन्नहुम इज़ ज़लमू अनफ़ुसहुम जाऊका फस्तग़फ़रूल्लाहा
और अगर ये लोग जब अपनी जानों पर ज़ुल्म कर बैठे थे तेरे पास आ जाते और अल्लाह से मग़फ़िरत तलब करते

وَٱسْتَغْفَرَ لَهُمُ ٱلرَّسُولُ
वस्तग़फ़र लहुमुर-रसूलु
और रसूल भी उनके लिए मग़फ़िरत तलब करते,

لَوَجَدُوٱ ٱللَّهَ تَوَّاباً رَحِيماً.»
लवजदूल्लाहा तव्वाबन रहीमा।”
तो वे अल्लाह को तौबा क़बूल करने वाला और रहमत करने वाला पाते।”

وَإِنِّي اتَيْتُكَ مُسْتَغْفِراً تَائِباً مِنْ ذُنُوبِي
व इन्नी अतैतुका मुस्तग़फ़िरन ताइबन मिन ज़ुनूबी
मैं तेरे हुज़ूर हाज़िर हूँ, अल्लाह से मग़फ़िरत माँगता हूँ, अपने गुनाहों से तौबा करता हूँ,

وَإِنِّي اتَوَجَّهُ بِكَ إِلَىٰ ٱللَّهِ رَبِّي وَرَبِّكَ لِيَغْفِرَ لِي ذُنُوبِي
व इन्नी अतवज्जहु बिका इलल्लाहि रब्बी व रब्बिका लियग़फ़िर ली ज़ुनूबी।
और मैं आपकी शफ़ाअत (सिफ़ारिश) का तलबगार हूँ अपने और आपके परवरदिगार, ख़ुदा-ए-बुज़ुर्ग-ओ-बालातर के हुज़ूर, ताकि वह मेरे गुनाहों को बख़्श दे।

अगर आपकी कोई ख़ास हाजत है जिसके लिए आप अल्लाह तआला से दुआ करना चाहते हैं, तो आप रोज़ा-ए-मुबारक के सामने खड़े हों और उसे अपने कंधों के बीच रखें, क़िब्ला रुख़ हो जाएँ, अपने हाथ बुलंद करें और अपनी हाजत की बरआवरी (पूर्ति) के लिए दुआ करें, क्योंकि क़वी उम्मीद है कि आपकी हाजत पूरी होगी, अगर अल्लाह ने चाहा।
इब्न-ए-क़ौलवयह ने एक मातेबर सनद के साथ मुहम्मद बिन मसऊद से रिवायत की है कि उन्होंने बयान किया: एक मरतबा मैंने इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) को देखा कि वे रसूल-ए-अकरम ﷺ के रोज़ा-ए-मुबारक के क़रीब आए, अपना हाथ उस पर रखा और ये अल्फ़ाज़ कहे:
اسْالُ ٱللَّهَ ٱلَّذِي ٱجْتَبَاكَ وَٱخْتَارَكَ
अस्अलु अल्लाहा अल्लज़ी इज्तबाका वख्तारका
मैं अल्लाह से दुआ करता हूँ — जिसने आपको चुना, आपको मुन्तख़िब किया,

وَهَدَاكَ وَهَدَىٰ بِكَ
व हदाका व हदा बिका
आपको हिदायत दी और आपके ज़रिए दूसरों को हिदायत दी —

انْ يُصَلِّيَ عَلَيْكَ
अन युसल्लिया अलैका
कि वह आप पर अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमाए।

फिर इमाम (अ.स.) ने यह मुक़द्दस आयत तिलावत की::
«إِنَّ ٱللَّهَ وَمَلائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَىٰ ٱلنَّبِيِّ
इन्नल्लाहा वा मलाएकतहु युसल्लूना अला न्नबिय्यि
"बेशक अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर रहमत भेजते हैं;

يَا ايُّهَا ٱلَّذِينَ آمَنُوٱ صَلُّوٱ عَلَيْهِ وَسَلِّمُوٱ تَسْلِيماً.»
या अय्युहल्लज़ीना आमनू सल्लू अलैहि व सल्लिमू तस्लीमा
ऐ ईमान वालो! तुम भी उन पर दुरूद भेजो और खूब सलाम भेजो।" (अल-अहज़ाब 56)”


मिस्बाह अल-मुतहज्जिद में शैख़ तूसि फ़रमाते हैं: जब आप रोज़ा-ए-रसूल ﷺ के क़रीब नमाज़ मुकम्मल कर लें तो मिंबर के पास आएँ, अपना हाथ उस पर फेरें, उसके नीचे के दोनों गोल हिस्सों (पॉमेल्स) को थामें और फिर अपने चेहरे और आँखों पर मलें, क्योंकि यह आँखों के लिए शिफ़ा (इलाज) का कारण है।
उसके बाद वहाँ नमाज़ पढ़ें, अल्लाह तआला की हम्द व सना करें, उसका शुक्र अदा करें और अपनी हाजतों की बरआवरी की दुआ माँगें।
इस सिलसिले में रसूल-ए-अकरम ﷺ से रिवायत है कि: "मेरी क़ब्र और मेरे मिंबर के दरमियान का हिस्सा जन्नत के बाग़ों में से एक बाग़ है और मेरा मिंबर जन्नत के दरवाज़ों में से एक दरवाज़े पर है।" उसके बाद आप मक़ाम-ए-नबी (यानि वह जगह जहाँ रसूलुल्लाह ﷺ क़याम किया करते थे) के क़रीब आएँ और वहाँ ज़्यादा से ज़्यादा नमाज़ें पढ़ें।
इसी तरह मस्जिद-ए-नबवी में भी ज़्यादा से ज़्यादा नमाज़ें पढ़ें, क्योंकि यहाँ एक नमाज़ का सवाब दूसरी जगहों की हज़ार नमाज़ों के बराबर है।
जब भी आप मस्जिद में दाख़िल हों या बाहर निकलें तो रसूल-ए-अकरम ﷺ पर दुरूद भेजें।
आप हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) के घर में भी नमाज़ पढ़ सकते हैं।
इसी तरह आप मक़ाम-ए-जिब्रईल (यानि वह जगह जो परनाले के नीचे है) की ज़ियारत भी कर सकते हैं। यही वह मुक़ाम है जहाँ हज़रत जिब्रईल (अ.स.) रसूल-ए-अकरम ﷺ से इजाज़त लेने के बाद क़याम किया करते थे।
इस मुक़ाम पर आप यह दुआ पढ़ें:

اسْالُكَ ايْ جَوَادُ
अस्अलुका ऐ जव्वादु
मैं आप से इल्तिज़ा करता हूँ, ऐ सबसे बड़ा अता करने वाले,

ايْ كَرِيمُ
ऐ करीमु
ऐ सबसे ज़्यादा करीम,

ايْ قَرِيبُ
ऐ क़रीबु
ऐ क़रीब,

ايْ بَعِيدُ
ऐ बअ़ीदु
ऐ बअ़ीद,

انْ تَرُدَّ عَلَيَّ نِعْمَتَكَ
अन तरुद्दा अ’लैया नेअ’मतका
कि आप अपनी नेमतें मुझ पर फिर से अता फ़रमाएँ।

ज़ियारत-ए-विदा
السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا رَسُولَ اللَّهِ أَسْتَوْدِعُكَ اللَّهَ وَ أَسْتَرْعِيكَ وَ أَقْرَأُ عَلَيْكَ السَّلاَمَ‏ آمَنْتُ بِاللَّهِ وَ بِمَا جِئْتَ بِهِ وَ دَلَلْتَ عَلَيْهِ اللَّهُمَّ لاَ تَجْعَلْهُ آخِرَ الْعَهْدِ مِنِّي لِزِيَارَةِ قَبْرِ نَبِيِّكَ‏ فَإِنْ تَوَفَّيْتَنِي قَبْلَ ذَلِكَ فَإِنِّي أَشْهَدُ فِي مَمَاتِي عَلَى مَا شَهِدْتُ عَلَيْهِ فِي حَيَاتِي أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ أَنْتَ‏ وَ أَنَّ مُحَمَّداً عَبْدُكَ وَ رَسُولُكَ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَ آلِهِ‏ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْكَ السَّلاَمُ عَلَيْكَ لاَ جَعَلَهُ اللَّهُ آخِرَ تَسْلِيمِي عَلَيْك
अस्सलामो अ’लैका या रसूलल्लाहे..
अस्तवदे-ओ’कल्लाहा वा अस्तर-ए’का वा अक़रा-ओ अ’लैकस सलाम
आमन्तो बिल्लाहे वा बिमा जीअ-ता बिही वा दलल्ता अ’लैहे
अल्लाहुम्मा ला तज-अ’लहो आख़िरल अहदी मिन्नी ले ज़ियारते क़ब्रे नबीय्येका
फ-इन तवफ्फैतनी क़ब्ला ज़ालेका फ-इन्नी अश्हदो फी ममाती अ’ला मा शाहिद्तो अ’लैहे फी हयाती
अन ला इलाहा इल्ला अंता
वा अन्ना मोहम्मदन अब्दोका वा रसूलोका
सल्लल्लाहो अ’लैहे वा आलेहि .
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ।
मैं आपको अल्लाह के सुपुर्द करता हूँ और उससे दरख़्वास्त करता हूँ कि वह आपकी किफ़ालत फ़रमाए।
मैं कहता हूँ: “आप पर सलाम हो”...
मैं अल्लाह पर ईमान रखता हूँ, और उस पर जो आप लाए, और उस पर जिसकी तरफ़ आपने रहनुमाई फ़रमाई।
ऐ अल्लाह! मेरी यह ज़ियारत अपने नबी की क़ब्र की आख़िरी ज़ियारत न बनाना।
अगर तू मुझे इस से पहले मौत दे दे कि मैं दोबारा यहाँ आ सकूँ,
तो मैं अपनी मौत के वक़्त भी वही गवाही देता हूँ जो अपनी ज़िन्दगी में देता रहा हूँ:
कि तेरे सिवा कोई माबूद नहीं और यह कि मुहम्मद ﷺ तेरे बन्दे और तेरे रसूल हैं,
अल्लाह की रहमतें हों उन पर और उनकी आल पर।




अपनी किताब ज़ाद अल-मआद में अल्लामा मजलिसी (रह.) ने 17 रबीउल अव्वल (अमाल के लिए क्लीक करें); (पैग़म्बर-ए-अकरम ﷺ की विलादत के दिन) के मुस्तहब आमाल में ज़िक्र किया है कि शैख़ मुफीद, शैख़ शहीद और सैय्यद इब्ने तावूस ने दरज-ज़ैल ज़ियारत पढ़ने की हिदायत दी है।
इसी दिन (17 रबीउल अव्वल) इमाम अली अलैहिस्सलाम की ज़ियारत भी पढ़ी जाती है।

वीडियो (इख़्तिसार के साथ)


اشْهَدُ انْ لاَ إِلٰهَ إِلاَّ ٱللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ
अश्हदु अन ला इलाहा इल्लल्लाहु वह्दहु ला शरीका लहु
मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह यक़्ता है और उसका कोई शरीक नहीं।

وَاشْهَدُ انَّ مُحَمَّداً عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
व अश्हदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहू व रसूलुहू
और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद ﷺ उसके बन्दे और रसूल हैं,

وَانَّهُ سَيِّدُ ٱلاوَّلِينَ وَٱلآخِرِينَ
व अन्नहु सैय्यिदुल-अव्वलीना वल-आखिरीना
यह कि वह पहले और पीछे (सब) लोगों के सरदार हैं,

وَانَّهُ سَيِّدُ ٱلانْبِيَاءِ وَٱلْمُرْسَلِينَ
व अन्नहु सैय्यिदुल-अनबिया-इ वल-मुर्सलीना
और यह कि वह तमाम अंबिया और मुरसलीन के सरदार हैं।

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَيْهِ وَعَلَىٰ اهْلِ بَيْتِهِ ٱلائِمَةِ ٱلطَّيِّبِينَ
अल्लाहुम्मा सल्लि अलैहि व अला अहलेबैतिहिल आइम्मतित तैय्येबीना
ऐ अल्लाह! अपनी रहमतें उन पर और उनके अहले बैत पर नाज़िल फ़रमा — जो पाक व पवित्र इमाम हैं।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا رَسُولَ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या रसूलल्लाहि
सलाम हो आप पर, ऐ रसूलुल्लाह ﷺ।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا خَلِيلَ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या खलीलल्लाहि
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह के दोस्त।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا نَبِيَّ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या नबीयल्लाहि
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह के नबी।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا صَفِيَّ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या सफीयल्लाहि
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह के बरग़ज़ीदा।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا رَحْمَةَ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या रहमतल्लाहि
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह की रहमत।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا خِيَرَةَ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या खैरातिल्लाहे
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह के चुने हुए।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا حَبِيبَ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या हबीबल्लाहि
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह के सबसे महबूब।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا نَجِيبَ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या नजीबल्लाहि
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह के मुन्तख़ब।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا خَاتَمَ ٱلنَّبِيِّينَ
अस्सलामो अलैका या ख़ातिमून नबीयीना
सलाम हो आप पर, ऐ ख़ातिमुल-अनबिया।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا سَيِّدَ ٱلْمُرْسَلِينَ
अस्सलामो अलैका या सैय्यिदल-मुर्सलीना
सलाम हो आप पर, ऐ सैय्यदुल-मुरसलीन।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا قَائِماً بِٱلْقِسْطِ
अस्सलामो अलैका या क़ाइमन बिल क़िस्त
सलाम हो आप पर, ऐ अद्ल क़ायम करने वाले।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا فَاتِحَ ٱلْخَيْرِ
अस्सलामो अलैका या फातिहल-ख़ैरी
सलाम हो आप पर, ऐ नेक़ियों को रिवाज देने वाले।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مَعْدِنَ ٱلوَحْيِ وَٱلتَّنْزِيلِ
अस्सलामो अलैका या मआदिनल-वहिय वाट-तंज़ील
सलाम हो आप पर, ऐ वही और इल्हाम-ए-इलाही के मरकज़।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مُبَلِّغاً عَنِ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या मुबल्लिग़न अ़निल्लाहि
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह की तरफ़ से पहुँचाने वाले।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلسِّرَاجُ ٱلْمُنِيرُ
अस्सलामो अलैका अय्युहस्सिराजुल-मुनीर
सलाम हो आप पर, ऐ नूर बिखेरने वाले चराग़।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مُبَشِّرُ
अस्सलामो अलैका या मुबश्शिरु
सलाम हो आप पर, ऐ खुशख़बरी देने वाले (अहले ईमान को)।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا نَذِيرُ
अस्सलामो अलैका या नज़ीरु
सलाम हो आप पर, ऐ अज़ाब-ए-इलाही से डराने वाले।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مُنْذِرُ
अस्सलामो अलैका या मुनज़िरु
सलाम हो आप पर, ऐ वो जो अल्लाह के अहकाम की ख़िलाफ़वर्ज़ी से डराते हैं।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا نُورَ ٱللَّهِ ٱلَّذِي يُسْتَضَاءُ بِهِ
अस्सलामो अलैका या नूरल्लाहिल्लज़ी युस्तज़ा ऊ बिहि
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह का नूर जो रौशनी फैलाता है।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ وَعَلَىٰ اهْلِ بَيْتِكَ ٱلطَّيِّبِينَ ٱلطَّاهِرِينَ
अस्सलामो अलैका व अला अहलेबैतिकत तैय्येबीना ताहेरीना
सलाम हो आप पर और आपके अहले बैत पर — जो पाक व पवित्र,

ٱلْهَادِينَ ٱلْمَهْدِيِّينَ
अल्हादीनल-मह्दीय्यीना
हिदायत देने वाले और हिदायत याफ़्ता हैं।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ وَعَلَىٰ جَدِّكَ عَبْدِ ٱلْمُطَّلِبِ
अस्सलामो अलैका व अला जद-दिका अब्दिल-मुत्तलिबि
सलाम हो आप पर और आपके दादा अब्दुल मुत्तलिब पर,

وَعَلَىٰ ابِيكَ عَبْدِ ٱللَّهِ
व अला अबीक अब्दिल्लाहि
और आपके वालिद अब्दुल्लाह पर।

السَّلاَمُ عَلَىٰ امِّكَ آمِنَةَ بِنْتِ وَهَبٍ
अस्सलामु अला उम्मिका आमिनता बिन्ति वहबिन
सलाम हो आपकी वालिदा आमिना बिन्ते वहब पर।

السَّلاَمُ عَلَىٰ عَمِّكَ حَمْزَةَ سَيِّدِ ٱلشُّهَدَاءِ
अस्सलामु अला अम्मिका हम्ज़ता सैय्यिदिश्शुहदाई
सलाम हो आपके चाचा हज़रत हम्ज़ा पर — जो सैय्यदुश-शुहदा हैं।

السَّلاَمُ عَلَىٰ عَمِّكَ ٱلعَبَّاسِ بْنِ عَبْدِ ٱلْمُطَّلِبِ
अस्सलामु अला अम्मिका अलअब्बासि बिन अब्दिल-मुत्तलिबि
सलाम हो आपके चाचा हज़रत अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब पर।

السَّلاَمُ عَلَىٰ عَمِّكَ وَكَفِيلِكَ ابِي طَالِبٍ
अस्सलामु अला अम्मिका व काफ़िलिका अबी तालिबिन
सलाम हो आपके चाचा और सरपरस्त अबू तालिब पर।

السَّلاَمُ عَلَىٰ ٱبْنِ عَمِّكَ جَعْفَرٍ ٱلطَّيَّارِ فِي جِنَانِ ٱلْخُلْدِ
अस्सलामु अला इब्ने अम्मिका जअफ़रिन अत-तय्यारी फ़ी जिनानिल-ख़ुल्दि
सलाम हो आपके चचेरा भाई हज़रत जाफ़र तय्य्यार पर —जो जन्नत-ए-अबदी के बाग़ों में परवाज़ करते हैं।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مُحَمَّدُ
अस्सलामो अलैका या मुहम्मदु
सलाम हो आप पर, ऐ मुहम्मद (तारीफ़ किए गए)।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا احْمَدُ
अस्सलामो अलैका या अहमदु
सलाम हो आप पर, ऐ अहमद (सबसे ज़्यादा तारीफ़ किए गए)।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا حُجَّةَ اللَّهِ عَلَىٰ ٱلاوَّلِينَ وَٱلآخِرِينَ
अस्सलामो अलैका या हुज्जतल्लाहि अला अल-अव्वलीना वल-आखिरीना
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह की हुज्जत, जो पहले और पीछे सब पर है।

وَٱلسَّابِقَ إِلَىٰ طَاعَةِ رَبِّ ٱلعَالَمِينَ
वस्साबिक़ा इला ताअति रब्बिल-आलमीन
सलाम हो आप पर, ऐ रब्बुल आलमीन की इताअत में सबसे आगे।

وَٱلْمُهَيْمِنَ عَلَىٰ رُسُلِهِ
वलमुहैमिना अला रसूलिहि
सलाम हो आप पर, ऐ रसूलों पर ग़ालिब।

وَٱلْخَاتِمَ لاِنْبِيَائِهِ
वलखातिमा लिअनबियाइहि
और आप पर, ऐ ख़ातिमुन्नबीय्यीन।

وَٱلشَّاهِدَ عَلَىٰ خَلْقِهِ
वश्शाहीदा अला ख़ल्किहि
और ऐ तमाम मख़लूक़ात पर गवाह।

وَٱلشَّفِيعَ إِلَيْهِ
वश्शफ़ीआ इलैहि
और ऐ अल्लाह के हुज़ूर शफ़ाअत करने वाले।

وَٱلْمَكِينَ لَدَيْهِ
वलमकीना लदयहि
और ऐ अल्लाह के हुज़ूर साबित क़दम रहने वाले।

وَٱلْمُطَاعَ فِي مَلَكُوتِهِ
वलमुत्ता फ़ी मलाकूतिहि
और ऐ उसकी बादशाहत में मताअ (जिनकी इताअत की जाती है)।

ٱلاحْمَدَ مِنَ ٱلاوْصَافِ
अल-अहमदा मिनल-अव्साफ़ि
ऐ सबसे ज़्यादा तारीफ़ याफ़्ता सिफ़ात के हामिल।

ٱلمُحَمَّدَ لِسَائِرِ ٱلاشْرَافِ
अलमुहम्मदा लिसाइरिल-अशराफ़ि
सबसे ज़्यादा तारीफ़ याफ़्ता एज़ाज़ात के मालिक।

ٱلكَرِيمَ عِنْدَ ٱلرَّبِّ
अलकारीमा इन्दर् रब्बी
ऐ रब की तरफ़ से मुक़र्रम व मुहतर्म।

وَٱلْمُكَلَّمَ مِنْ وَرَاءِ ٱلْحُجُبِ
व अल-मुकल्लमा मिन वराइहल हुजुबि
जिन्हें अल्लाह ने अपने परदों के पीछे से ख़िताब फ़रमाया।

ٱلفَائِزَ بِٱلسِّبَاقِ
अल्फ़ाइज़ा बिस साबिक़ी
सबसे ज़्यादा बुलन्द मक़ाम किया

وَٱلفَائِتَ عَنِ ٱللِّحَاقِ
वलफ़ाइता अनल्ली हाक़ि
जिन्हें कोई सबक़त नहीं दे सकता।

تَسْلِيمَ عَارِفٍ بِحَقِّكَ
तस्लीमा आरिफ़ीन बिहक्किका
मैं आपको उस सलाम के साथ सलाम पेश करता हूँ जो आपके हक़ को पहचानने वाले की तरफ़ से है (जो हम पर वाजिब है)।

مُعْتَرِفٍ بِٱلتَّقْصِيرِ فِي قِيَامِهِ بِوَاجِبِكَ
मुअतरिफ़ीन बिल्तक़्सीरी फ़ी क़ियामिहि बिवाजिबिका
जो आपके हक़-ए-इता`अत को अदा करने में अपनी कोताही का इकरार करता है,

غَيْرِ مُنْكِرٍ مَا ٱنْتَهَىٰ إِلَيْهِ مِنْ فَضْلِكَ
ग़ैरी मुनकिरिन मा इन्तहा इलैहि मिन फ़ज़्लिका
जो आपकी बेशुमार फ़ज़ीलतों को बयान करने की जुर्रत नहीं करता,

مُوْقِنٍ بِٱلْمَزِيدَاتِ مِنْ رَبِّكَ
मुकीनिन बिल मज़ीदांते मिन रब्बिका
जो इस पर यक़ीन रखता है कि आपको अपने रब के यहाँ सबसे ज़्यादा अज्र व इनाम मिलेगा,

مُؤْمِنٍ بِٱلكِتَابِ ٱلْمُنْزَلِ عَلَيْكَ
मु'मिनिन बिल्किताबिल मुनज़लि अलैक
जो उस किताब पर ईमान रखता है जो आप पर नाज़िल की गई,

مُحَلِّلٍ حَلالَكَ
मुहल्लिलिन हला लका
जो उसको हलाल समझता है जिसे आपने हलाल क़रार दिया,

مُحَرِّمٍ حَرَامَكَ
मुहर्रिमिन हरा मका
और उसको हराम मानता है जिसे आपने हराम क़रार दिया।

اشْهَدُ يَا رَسُولَ ٱللَّهِ مَعَ كُلِّ شَاهِدٍ
अश्हदु या रसूलल्लाहि मा' कुल्लि शाहिदिन
ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! मैं गवाही देता हूँ — और उन सबके साथ मिलकर गवाही देता हूँ जो गवाही देते हैं,

وَاتَحَمَّلُهَا عَنْ كُلِّ جَاحِدٍ
व अतहम्मलुहा अन् कुल्लि जाहिदिन
और उन सबकी जगह भी गवाही देता हूँ जो इंकार करते हैं—

انَّكَ قَدْ بَلَّغْتَ رِسَالاَتِ رَبِّكَ
अन्नका क़द बल्लग़्ता रिसालति रब्बिका
कि आपने अपने रब के पैग़ामात को बे-ऐब पहुँचाया,

وَنَصَحْتَ لاِمَّتِكَ
व नसहत लिउम्मतिका
अपनी उम्मत को खैरख़्वाही का पैग़ाम दिया,

وَجَاهَدْتَ فِي سَبِيلِ رَبِّكَ
व जाहद्ता फ़ी सबीली रब्बिका
अपने रब की राह में जिहाद किया,

وَصَدَعْتَ بِامْرِهِ
व सदअ्ता बिअम्रिहि
जो कुछ आप को पहुँचाने का हुक्म दिया गया था उसको खुलकर बयान किया,

وَٱحْتَمَلْتَ ٱلاذَىٰ فِي جَنْبِهِ
व यह तमलता अल-अज़ा फ़ी जान्बिहि
अल्लाह की ख़ातिर तक़लीफ़ें बर्दाश्त कीं,

وَدَعَوْتَ إِلَىٰ سَبِيلِهِ بِٱلْحِكْمَةِ وَٱلْمَوْعِظَةِ ٱلْحَسَنَةِ ٱلْجَمِيلَةِ
व दअवत इला सबीलीहि बिल हिकमते वल मो-इज़्ज़तिल हसनातील जमी-लते
उसकी राह की तरफ़ बेहतरीन हिकमत और हसीन नसीहत के साथ दावत दी,

وَادَّيْتَ ٱلحَقَّ ٱلَّذِي كَانَ عَلَيْكَ
व अद-दैता अल-हक़्क़ल लज़ी काना अलैक
अपने ज़िम्मे लगाए गए फ़र्ज़ को मुकम्मल तौर पर अदा किया।

وَانَّكَ قَدْ رَؤُفْتَ بِٱلْمُؤْمِنِينَ
व अन्नका क़द रऊफ्त बिल्मु'मिनीना
यक़ीनन आप मोमिनों के लिए निहायत शरीक़ थे,

وَغَلُظْتَ عَلَىٰ ٱلكَافِرِينَ
व ग़लुज़्ता अला अल्काफ़िरीना
काफ़िरों के मुक़ाबले में निहायत मज़बूत थे,

وَعَبَدْتَ ٱللَّهَ مُخْلِصاً حَتَّىٰ اتَاكَ ٱليَقِينُ
व अबद्ता अल्लाहा मुख़्लिसन हत्ता अताकल यक़ीनो
और आपने अल्लाह की इबादत ख़ुलूस के साथ की यहाँ तक कि मौत आप पर आ गई।

فَبَلَغَ ٱللَّهُ بِكَ اشْرَفَ مَحَلِّ ٱلْمُكَرَّمِينَ
फ़बलग़ल्लाहु बिका अशरफ़ा महल्लिल-मुकर्रमीना
पस अल्लाह तआला ने आपको मुक़र्रमीं के सबसे बुलन्द मक़ाम पर फ़ाएज़ किया,

وَاعْلَىٰ مَنَازِلِ ٱلْمُقَرَّبِينَ
व अअला मनाज़िलिल-मुक़र्रबीना
अपने मुक़र्रब बन्दों के सबसे बुलन्द दर्जे तक पहुँचाया,

وَارْفَعَ دَرَجَاتِ ٱلْمُرْسَلِينَ حَيْثُ لاَ يَلْحَقُكَ لاَحِقٌ
व अरफ़ा दर्जातिल-मुर्सलीना हय्थु ला यल्हकुका लाहिक़ुन
और रसूलों की सबसे बरतर सफ़ में रखा जहाँ न कोई आपके बराबर आ सकता है,

وَلاَ يفُوقُكَ فَائِقٌ
व ला यफ़ूक़ुका फ़ाइक़ुन
न कोई आप से आगे बढ़ सकता है,

وَلاَ يَسْبِقُكَ سَابِقٌ
व ला यस्बिक़ुका साबिक़ुन
न कोई आपका मक़ाम पा सकता है,

وَلاَ يَطْمَعُ فِي إِدْرَاكِكَ طَامِعٌ
व ला यात्मअु फ़ी इद्राकिका तामिउन
और न ही कोई उसका तसव्वुर भी कर सकता है।

الْحَمْدُ لِلَّهِ ٱلَّذِي ٱسْتَنْقَذَنَا بِكَ مِنَ ٱلْهَلَكَةِ
अल्हम्दु लिल्लाहिल लज़ी इस्तनक़ज़ना बिका मिनल-हलाक़ति
सब तारीफ़ अल्लाह के लिए है जिसने आपके ज़रिए हमें हलाकत से बचाया,

وَهَدَانَا بِكَ مِنَ ٱلضَّلالَةِ
व हदाना बिका मिनज़ ज़लालती
आपके ज़रिए हमें गुमराही से निकाला,

وَنَوَّرَنَا بِكَ مِنَ ٱلظُّلْمَةِ
व नव्वरणा बिका मिनज़्ज़ुलुमाति
और आपके ज़रिए हमारे अंधेरों को रौशनी में बदल दिया।

فَجَزَاكَ ٱللَّهُ يَا رَسُولَ ٱللَّهِ مِنْ مَبْعُوثٍ افْضَلَ مَا جَازَىٰ  نَبِيّاً عَنْ امَّتِهِ
फ़ जज़ाकल्लाहो या रसूलल्लाहि मिन मबअूसिन अफ़्ज़ला मा जज़ा नबिय्यन अन उम्मतिहि
ऐ रसूलुल्लाह ﷺ! अल्लाह आपको बेहतरीन बदला दे, क्योंकि आप उसके भेजे हुए नुमाइन्दे हैं, और आपको ऐसा बदला दे जो उसने कभी किसी नबी को अपनी उम्मत के लिए

وَرَسُولاً عَمَّنْ ارْسِلَ إِلَيْهِ
व रसूलन अम्मन उर्सिला इलैहि
या किसी रसूल को अपनी क़ौम के लिए अता किया हो।

بِابِي انْتَ وَامِّي يَا رَسُولَ ٱللَّهِ زُرْتُكَ عَارِفاً بِحَقِّكَ
बिअबी अंता व उम्मी या रसूलल्लाहि ज़ुर्तुका आरिफ़न बिहक्किका
मेरे माँ-बाप आप पर क़ुर्बान हों, ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ! मैं आपकी ज़ियारत के लिए आया हूँ क्योंकि मैं आपके हक़ का इकरार करता हूँ,

مُقِرّاً بِفَضْلِكَ
मुक़िर्रन बिफ़ज़्लिका
आपकी बर्तरी को मानता हूँ,

مُسْتَبْصِراً بِضَلالَةِ مَنْ خَالَفَكَ وَخَالَفَ اهْلَ بَيْتِكَ
मुस्तबसिरन बि ज़लालति मन ख़लफ़का व ख़ालफ़ा अहलेबैतिका
यक़ीन रखता हूँ कि जो आप और आपके अहले बैत से हटा वह गुमराह हुआ,

عَارِفاً بِٱلْهُدَىٰ ٱلَّذِي انْتَ عَلَيْهِ
`आरिफ़न बिल्हुदा अल्लज़ी अंता अलैहि
और उस हिदायत को तस्लीम करता हूँ जिस पर आप क़ायम हैं और जिसकी तरफ़ आप ले कर जाते हैं।

بِابِي انْتَ وَامِّي وَنَفْسِي وَاهْلِي وَمَالِي وَوَلَدِي
बिअबी अंता व उम्मी व नफ़्सी व अहली व माली व वलदी
मेरे माँ-बाप, मेरा नफ़्स, मेरा अहल-ए-ख़ाना, मेरा माल और मेरे बेटे आप पर क़ुर्बान हों!

انَا اصَلِّي عَلَيْكَ كَمَا صَلَّىٰ ٱللَّهُ عَلَيْكَ
अना उसल्लि अलैका कमा सल्लल्लाहु अलैका
मुझे आप पर अल्लाह तआला की रहमतें तलब करने दीजिए जैसी अल्लाह ने आप पर रहमतें भेजीं

وَصَلَّىٰ عَلَيْكَ مَلائِكَتُهُ وَانْبِيَاؤُهُ وَرُسُلُهُ
व सल्ला अलैका मलाइकतहु व अंम्बियाउहू व रसूलुहू
और इसी तरह उसके फ़रिश्तों, नबियों और रसूलों ने भी

صَلاةً مُتَتَابِعَةً وَافِرَةً مُتَوَاصِلَةً
सलातन मु-तताबिअतन वाफिरतन मुतवासिलतन
ऐसी रहमतें जो लगातार हों, क़सरत वाली हों

لاَ ٱنْقِطَاعَ لَهَا وَلاَ امَدَ وَلاَ اجَلَ
ला इंक़िताअ लहा व ला अमदा व ला अजला
जारी रहने वाली, ना खत्म होने वाली, ला-महदूद और बे-इंतहा हों

صَلَّىٰ ٱللَّهُ عَلَيْكَ وَعَلَىٰ اهْلِ بَيْتِكَ ٱلطَّيِّبِينَ ٱلطَّاهِرِينَ كَمَا انْتُمْ اهْلُهُ
सल्लल्लाहु अलैका व अला अहले बैतिका अत्तय्यिबीनत ताहिरीना कमा अंतुम अह्लुहू
अल्लाह आप पर और आपके पाकीज़ा और मुतह्हर अहले-बैत पर रहमतें भेजे जितनी आप के शायान-ए-शान हैं

اَللَّهُمَّ ٱجْعَلْ جَوَامِعَ صَلَوَاتِكَ
अल्लाहुम्म अज़्अल जवामिअ सलावातिका
ऐ अल्लाह! अपनी कामिल रहमतें फरमा

وَنَوَامِيَ بَرَكَاتِكَ
व नवामिया बरकातिका
अपनी बेहतरीन बरकतें

وَفَوَاضِلَ خَيْرَاتِكَ
व फ़वाज़िला ख़ैरातिका
अपनी सबसे फ़ज़ीलत वाली अताएं,

وَشَرَائِفَ تَحِيَّاتِكَ وَتَسْلِيمَاتِكَ
व शराइफ़ा तहिय्यातिका व तस्लीमातिका
और अपने सबसे बाअज़्ज़त दुरूद व सलाम

وَكَرَامَاتِكَ وَرَحَمَاتِكَ
व करामातिका व रहमातिका
इज़्ज़तें और रहमतें,

وَصَلَوَاتِ مَلائِكَتِكَ ٱلْمُقَرَّبِينَ
व सलावाति मलाइकतिका अल-मुक़र्रबीन
और अपने मुकर्रब फ़रिश्तों की रहमतें भी,

وَانْبِيَائِكَ ٱلْمُرْسَلِينَ
व अंम्बियाइका अल-मुर्सलीन
अपने मआमूर नबियों की रहमतें,

وَائِمَّتِكَ ٱلْمُنْتَجَبِينَ
व अइम्मतिका अल-मुन्तजबीना
अपने मुन्तख़ब इमामों की रहमतें,

وَعِبَادِكَ ٱلصَّالِحِينَ
व इबादिका अस्सालिहीना
अपने सालेह बंदों की रहमतें,

وَاهْلِ ٱلسَّمَاوَاتِ وَٱلارَضِينَ
व अहलिस्समावाति वल-अरज़ीन
आसमानों और ज़मीन के रहने वालों की रहमतें,

وَمَنْ سَبَّحَ لَكَ يَا رَبَّ ٱلعَالَمِينَ
व मन सब्बहा लका या रब्बल-आलमीन
और हर उस की रहमतें जो तेरी तस्बीह करता रहा, ऐ रब्बुल आलमीन,

مِنَ ٱلاوَّلِينَ وَٱلآخِرِينَ
मिनल-अव्वलीना वल-आखिरीन
पहली और आने वाली नस्लों में से—

عَلَىٰ مُحَمَّدٍ عَبْدِكَ وَرَسُولِكَ
`अला मुहम्मदिन अब्दिका व रसूलिका
ये सब मोहम्मद पर नाज़िल फरमा; तेरे बन्दे, तेरे रसूल,

وَشَاهِدِكَ وَنَبِيِّكَ
व शाहिदिका व नबीयिका
तेरे गवाह, तेरे नबी,

وَنَذِيرِكَ وَامِينِكَ
व नज़ीरिका व अमीनिका
तेरे डराने वाले, तेरे अमानतदार,

وَمَكِينِكَ وَنَجِيِّكَ
व मकीनिका व नजीय्यिका
तेरे हक़ में साबित क़दम, तेरे राज़दार,

وَنَجِيبِكَ وَحَبِيبِكَ
व नजीबिका व हबीबिका
तेरे बरग़ज़ीदा, तेरे सबसे महबूब,

وَخَلِيلِكَ وَصَفِيِّكَ
व खलीलिका व सफीयिका
तेरे दोस्त, तेरे मुन्तख़ब,

وَصَفْوَتِكَ وَخَاصَّتِكَ
व सफ्वातिका व ख़ास्सतिका
तेरे मुअज्ज़ज़, तेरे चुने हुए,

وَخَالِصَتِكَ وَرَحْمَتِكَ
व ख़ालिसतिका व रहमतिका
तेरे पसंदीदा, तेरी रहमत,

وَخَيْرِ خِيَرَتِكَ مِنْ خَلْقِكَ
व ख़ैरी ख़ियारतिका मिन ख़लकिका
तेरी मख़लूक़ में सबसे बेहतरीन,

نَبِيِّ ٱلرَّحْمَةِ
नबीयिर रहमती
रहमत के नबी,

وَخَازِنِ ٱلْمَغْفِرَةِ
व ख़ाज़िनिल-मग़्फ़िरती
मग़फ़िरत के ख़ज़ाने वाले,

وَقَائِدِ ٱلْخَيْرِ وَٱلبَرَكَةِ
व क़ाइदिल-ख़ैरी वल बरकाती
भलाई और बरकत की तरफ़ रहनुमाई करने वाले,

وَمُنْقِذِ ٱلْعِبَادِ مِنَ ٱلْهَلَكَةِ بِإِذْنِكَ
व मुनक़ि़ज़िल-इबादि मिनल-हलाक़ति बिइज़्निका
तेरे बन्दों को तेरी इजाज़त से हलाकत से बचाने वाले,

وَدَاعِيهِمْ إِلَىٰ دِينِكَ
व दाअिहिम इला दीनिकल
उन्हें तेरे दीन की तरफ़ बुलाने वाले,

الْقَيِّمِ بِامْرِكَ
-क़य्यिमि बिअम्रिका
तेरे हुक्म के निगहबान,

اوَّلِ ٱلنَّبِيِّينَ مِيثَاقاً
अव्वलीन नबीय्यीना मीसाक़न
पहले नबी जिन्होंने अहद लिया,

وَآخِرِهِمْ مَبْعَثاً
व आख़िरिहिम मबअसन
और आख़िरी नबी जो भेजे गए इंसानियत की तरफ़,

ٱلَّذِي غَمَسْتَهُ فِي بَحْرِ ٱلفَضِيلَةِ
अल्लज़ी ग़मस्तहु फ़ी बहरील -फ़ज़ीलति
जिन्हें तूने फ़ज़ीलत के समुंदर में ग़ोता दिया,

وَٱلْمَنْزِلَةِ ٱلْجَلِيلَةِ
वल-मंजिलतिल-जलीलति
बुलन्द रुत्बे में,

وَٱلدَّرَجَةِ ٱلرَّفِيعَةِ
वद दरा-जातिर रफ़ीअति
बुलन्द दर्जे में,

وَٱلْمَرْتَبَةِ ٱلْخَطِيرَةِ
वल मरतीबातील -ख़ातिरति
और आला मक़ाम में;

وَاوْدَعْتَهُ ٱلاصْلاَبَ ٱلطَّاهِرَةَ
व औदअतहु अल-अस्लाबल ताहिरती
और जिन्हें तूने पाकीज़ा पुश्तों में अमानत रखा

وَنَقَلْتَهُ مِنْهَا إِلَىٰ ٱلارْحَامِ ٱلْمُطَهَّرَةِ
वा नक़ल्तहु मिन्हा इला अल-अर्हामिल मुत्तहर-रती
और पाकिज़ा रहमों में मुन्तक़िल किया

لُطْفاً مِنْكَ لَهُ
लुत्फ़न मिंका लहु
तेरे इस पर फ़ज़्ल व करम की वजह से

وَتَحَنُّناً مِنْكَ عَلَيْهِ
वा तहन्ननन मिंका अलैहि
और उस पर तेरी शफ़क़त की बना पर।

إِذْ وَكَّلْتَ لِصَوْنِهِ وَحِرَاسَتِهِ
इज़ वक्कल्ता लिसौनिहि व हिरासतिहि
ताकि उसकी हिफ़ाज़त हो, उसको ढाल मिले,

وَحِفْظِهِ وَحِيَاطَتِهِ
वा हिफ़्ज़िहि वा हियाततिहि
उसे बचाया जाए और उसका दिफ़ा किया जाए,

مِنْ قُدْرَتِكَ عَيْناً عَاصِمَةً
मिन क़ुद्रतिका ऐनन आसिमतन
तूने अपनी क़ुदरत से उस पर एक मोहाफ़िज़ निगरान मुक़र्रर किया

حَجَبْتَ بِهَا عَنْهُ مَدَانِسَ ٱلعَهْرِ
हजब्ता बिहा अनहु मदानिसल-अहरी
ताकि उसे ज़िना की नापाकियों से महफ़ूज़ रखे

وَمَعَائِبَ ٱلسِّفَاحِ
वा मआइ बिस्सिफ़ाहि
और बदकारी के ऊयूब से बचाए;

حَتَّىٰ رَفَعْتَ بِهِ نَوَاظِرَ ٱلعِبَادِ
हत्ता रफ़अ्ता बिहि नवाज़िरल-इबादि
चुनांचे तूने उसके ज़रिए बंदों की निगाहें बुलंद कीं

وَاحْيَيْتَ بِهِ مَيْتَ ٱلبِلادِ
वा अह्यैता बिहि मय्यतल-बिलादि
और वीरान ज़मीनों को ज़िंदा किया

بِانْ كَشَفْتَ عَنْ نُورِ وِلادَتِهِ ظُلَمَ ٱلاسْتَارِ
बि-अन कशफ़्ता अन नूरी विलादतिहि ज़ुलमल-अस्तारि
जब तूने उसकी विलादत के नूर से अंधेरों का पर्दा हटा दिया

وَالْبَسْتَ حَرَمَكَ بِهِ حُلَلَ ٱلانْوَارِ
वल्बस्ता हरामका बिहि हुल'लल-अनवारि
और अपने मुक़द्दस हरम को उसके ज़रिए रोशन लिबास पहनाया।

اَللَّهُمَّ فَكَمَا خَصَصْتَهُ بِشرَفِ هٰذِهِ ٱلْمَرْتَبَةِ ٱلكَرِيمَةِ
अल्लाहुम्मा फ़कमा ख़सस-तहु बिशरफ़ि हाज़िहिल-मर-त-बतिल-करिमति
ऐ अल्लाह! जैसा कि तूने उसे उस अज़ीम रुतबे का ख़ास शरफ़ दिया

وَذُخْرِ هٰذِهِ ٱلْمَنْقَبَةِ ٱلعَظِيمَةِ
वा जुख़्रि हाज़िहिल-मनक़बतिल-अज़ीमति
और उस बड़े मरतबे का अम्तियाज़ी ऐज़ाज़ बख़्शा,

صَلِّ عَلَيْهِ كَمَا وَفَىٰ بِعَهْدِكَ
सल्लि अलैहि कमा वफ़ा बिअह्दिका
तो उस पर अपनी रहमत नाज़िल फ़रमा कि उसने तेरा अहद पूरा किया,

وَبَلَّغَ رِسَالاَتِكَ
वा बल्लग़ा रिसालतिका
तेरे तमाम पैग़ामात पहुँचा दिए,

وَقَاتَلَ اهْلَ ٱلْجُحُودِ عَلَىٰ تَوْحِيدِكَ
वा क़ातला अहलल-जुहूदि अला तौहीदिका
काफ़िरों से तेरी तौहीद साबित करने के लिए जिहाद किया,

وَقَطَعَ رَحِمَ ٱلكُفْرِ فِي إِعْزَازِ دِينِكَ
वा क़त-आ रहिमल-कुफ़्रि फ़ी इइज़ाज़ि दीनिका
कुफ़्र की जड़ को काट डाला ताकि तेरे दीन को मज़बूत करे,

وَلَبِسَ ثَوْبَ ٱلبَلْوَىٰ فِي مُجَاهَدَةِ اعْدَائِكَ
वा लबिसा सव्बल-बालवा फ़ी मुजाहदति अअदाइक
और अपनी जान को मुसीबत के लिबास में लपेट लिया ताकि तेरे दुश्मनों से लड़ सके।

وَاوْجَبْتَ لَهُ بِكُلِّ اذَىٰ مَسَّهُ
वा औजबत लहु बिकुल्लि अज़न मस्सहू
पस तूने उसे हर उस अज़ीयत के बदले में, जो उसे पहुँची,

اوْ كَيْدٍ احَسَّ بِهِ
अव कैदिन अहस्स बि‍हि
हर उस साज़िश के बदले में, जिसका वह शिकार हुआ

مِنَ ٱلفِئَةِ ٱلَّتِي حَاوَلَتْ قَتْلَهُ
मिनल-फ़िअति अल्लती हव्वलत क़तलहु
उस गिरोह की तरफ़ से जो उसके क़त्ल के दरपै था;

فَضِيلَةً تَفُوقُ ٱلفَضَائِلَ
फ़ज़ीलतन तफ़ूक़ुल-फ़ज़ाइला
ऐसा मरतबा अता किया जो तमाम मरातिब से बढ़कर है,

وَيَمْلِكُ بِهَا ٱلْجَزِيلَ مِنْ نَوَالِكَ
वा यम्लिकु बिहल-जज़ील मिन नवालिका
और जिसके नतीजे में वह तेरी बेशुमार अताओं का मालिक हुआ।

وَقَدْ اسَرَّ ٱلْحَسْرَةَ
वा क़द असर्रल-हसरता
बदले में उसने अपना ग़म छुपा लिया,

وَاخْفَىٰ ٱلزَّفْرَةَ
वा अख़फ़ज-ज़फरता
अपनी तकलीफ़ पोशीदा रखी,

وَتَجَرَّعَ ٱلغُصَّةَ
वा तजऱ्अल-ग़ुस्सता
दुख को पी गया,

وَلَمْ يَتَخَطَّ مَا مَثَّلَ لَهُ وَحْيُكَ
वा लम् यतक़त्त मा मस्सल लहु वह्युक़ा
और कभी तेरी वह़ी के अहकाम की ख़िलाफ़वर्ज़ी न की।

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَيْهِ وَعَلَىٰ اهْلِ بَيْتِهِ صَلاةً تَرْضَاهَا لَهُمْ
अल्लाहुम्मा सल्लि अलैहि वा अला अहले बैतिहि सलातन तरज़ाहा लहुम
ऐ अल्लाह! उन पर और उनके अहले-बैत पर अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमा — वो रहमतें जो तुझे उनके लिए पसंद हैं,

وَبَلِّغْهُمْ مِنَّا تَحِيَّةً كَثِيرَةً وَسَلاَماً
वा बल्लिग़्हुम मिन्ना तहिय्यतन कसीरतन वा सलामन
और हमारी कसरत से सलाम और तारीफ़ें उन तक पहुँचा दे,

وَآتِنَا مِنْ لَدُنْكَ فِي مُوَالاَتِهِمْ فَضْلاً وَإِحْسَاناً
वा आतिना मिन लदुन्का फ़ी मुवालातिहिम फ़ज़्लन वा इह्सानन
और हमें — उनसे हमारी वफ़ादारी की वजह से — अपने फ़ज़्ल, एहसान,

وَرَحْمَةً وَغُفْرَاناً
वा रह-मतन वा ग़ुफ़रानन
रहमत और मग़फ़िरत अता फ़रमा।

إِنَّكَ ذُو ٱلفَضْلِ ٱلعَظِيمِ
इन्नका ज़ुल्फ़ज़्लिल-अज़ीमि
बेशक तू बड़े फ़ज़्ल वाला रब है।.

اَللَّهُمَّ إِنَّكَ قُلْتَ لِنَبِيِّكَ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा इन्नका क़ुल्ता लिनबीय्यिका मुहम्मदिन
ऐ अल्लाह! तूने अपने नबी मुहम्मद ﷺ से फ़रमाया —

صَلَّىٰ ٱللَّهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ:
सल्लल्लाहु अलैहि वा आलिहि
अल्लाह उन पर और उनके अहले-बैत पर रहमत भेजे:

«وَلَوْ انَّهُمْ إِذْ ظَلَمُوٱ انْفُسَهُمْ
वलव अन्नहुम इज़ ज़लमु अनफ़ुसहुम
“और अगर वो जब उन्होंने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया,

جَاؤُوكَ فَٱسْتَغْفَرُوٱ ٱللَّهَ
जाऊका फ़स्तग़्फ़रुल्लाहा
तुम्हारे पास आते और अल्लाह से माफ़ी माँगते,

وَٱسْتَغْفَرَ لَهُمُ ٱلرَّسُولُ
वस्तग़्फ़र लहुमुर्रसूलु
और रसूल भी उनके लिए माफ़ी तलब करते,

لَوَجَدُوٱ ٱللَّهَ تَوَّاباً رَحِيماً.»
लवजदुल्लाहा तव्वाबन रह़ीमन
तो वो अल्लाह को तौबा क़ुबूल करने वाला, मेहरबान पाते।”

وَلَمْ احْضُرْ زَمَانَ رَسُولِكَ عَلَيْهِ وَآلِهِ ٱلسَّلاَمُ
वा लम् अहज़ुर अह्दुर ज़माना रसूलिका अलैहि वा आलिहिस्सलामु
मैं तेरे रसूल ﷺ के ज़माने में मौजूद न था — सलाम हो उन पर और उनके अहले-बैत पर।

اَللَّهُمَّ وَقَدْ زُرْتُهُ رَاغِباً تَائِباً مِنْ سَيِّءِ عَمَلِي
अल्लाहुम्मा व क़द ज़ुर्तहु राग़िबन ताइबन मिन सय्यिए अमली
ऐ अल्लाह! मैं उनकी ज़ियारत को आया हूँ, ख़्वाहिश रखते हुए, अपने बुरे आमाल से तौबा करते हुए,

وَمُسْتَغْفِراً لَكَ مِنْ ذُنُوبِي
वा मुस्तग़्फ़िरन लका मिन ज़ुनूबी
अपने गुनाहों की मग़फ़िरत माँगते हुए,

وَمُقِرّاً لَكَ بِهَا وَانْتَ اعْلَمُ بِهَا مِنِّي
वा मुक़िर्रन लका बिहा वा अंता आ़लमु बिहा मिन्नी
उन गुनाहों का एतराफ़ करते हुए जो मैंने किए हालाँकि तू उनको मुझ से ज़्यादा जानता है,

وَمُتَوَجِّهاً إِلَيْكَ بِنَبِيِّكَ نَبِيِّ ٱلرَّحْمَةِ
वा मुतवज्जिहन इलैका बिनबीय्यिका नबीय्यिर्रह़मति
और मैं अपना चेहरा तेरी तरफ़ मोड़ता हूँ तेरे नबी के नाम पर, जो रहमत के नबी हैं —

صَلَوَاتُكَ عَلَيْهِ وَآلِهِ
सलावतुका अलैहि वा आलिहि
तेरी रहमत उन पर और उनके अहले-बैत पर हो।

فَٱجْعَلْنِي ٱللَّهُمَّ بِمُحَمَّدٍ وَاهْلِ بَيْتِهِ عِنْدَكَ وَجِيهاً
फ़ज़्अल्नी अल्लाहुम्मा बिमुहम्मदिन वा अहले बैतिहि इन्दका वजीहन
ऐ अल्लाह! मुहम्मद और उनके अहले-बैत के नाम पर मुझे इज़्ज़त दे

فِي ٱلدُّنْيَا وَٱلآخِرَةِ وَمِنَ ٱلْمُقَرَّبِينَ
फ़िद्दुन्या वल-आख़िरति वा मिनल-मुक़र्रबीन
इस दुनिया में भी और आख़िरत में भी और उनमें शामिल कर जो तेरे क़रीब हैं।

يَا مُحَمَّدُ
या मुहम्मदु
ऐ मुहम्मद ﷺ!

يَا رَسُولَ ٱللَّهِ
या रसूलल्लाहि
ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ!

بِابِي انْتَ وَامِّي
बिअबी अंता वा उम्मी
मेरे माँ बाप आप पर क़ुर्बान हों!

يَا نَبِيَّ ٱللَّهِ
या नबीय्यल्लाहि
ऐ अल्लाह के नबी ﷺ!

يَا سَيِّدَ خَلْقِ ٱللَّهِ
या सैय्यिदा ख़ल्किल्लाहि
ऐ अल्लाह की तमाम मख़लूक़ के सरदार!

إِنِّي اتَوَجَّهُ بِكَ إِلَىٰ ٱللَّهِ رَبِّكَ وَرَبِّي
इन्नी अतवज्जहु बिका इला अल्लाहि रब्बिका वा रब्बी
आपके नाम पर मैं अपना चेहरा अल्लाह की तरफ़ मोड़ता हूँ, जो मेरा और आपका रब है,

لِيَغْفِرَ لِي ذُنُوبِي
लियग़्फ़िरा ली ज़ुनूबी
ताकि वो मेरे गुनाह माफ़ करे,

وَيَتَقَبَّلَ مِنِّي عَمَلِي
वा यतक़ब्बला मिन्नी अमली
मेरे आमाल क़ुबूल करे,

وَيَقْضِيَ لِي حَوَائِجِي
वा यक़दिय ली हवाइजी
और मेरी हाजतें पूरी करे।

فَكُنْ لِي شَفِيعاً عِنْدَ رَبِّكَ وَرَبِّي
फ़कुन ली शफ़ीअन इन्दा रब्बिका वा रब्बी
पस आप मेरे और अपने रब के सामने मेरे शफ़ी बन जाईए,

فَنِعْمَ ٱلْمَسْؤُولُ ٱلْمَوْلَىٰ رَبِّي
फ़नि'मल-मस्उलु अलमौला रब्बी
क्योंकि मेरा रब, मालिक, बेहतरीन पुकारे जाने वाला है

وَنِعْمَ ٱلشَّفِيعُ انْتَ
वा नि'मश्शफ़ीउ अंता
और आप बेहतरीन शफ़ी हैं।

يَا مُحَمَّدُ
या मुहम्मदु
ऐ मुहम्मद ﷺ!

عَلَيْكَ وَعَلَىٰ اهْلِ بَيتِكَ ٱلسَّلاَمُ
अलैका वा अला अहले बैतिका अस्सलामु
सलाम हो आप पर और आपके अहले-बैत पर।

اَللَّهُمَّ وَاوْجِبْ لِي مِنْكَ ٱلْمَغْفِرَةَ وَٱلرَّحْمَةَ
अल्लाहुम्मा वा औजिब ली मिन्का अलमग़्फ़िरता वर रहमाता
ऐ अल्लाह! मुझ पर अपनी मग़फ़िरत, रहमत नाज़िल फ़रमा,

وَٱلرِّزْقَ ٱلوَاسِعَ ٱلطَّيِّبَ ٱلنَّافِعَ
वर रिज़क़ल वासी-अत तैय्येबन नाफ़े-आ
और मुझे अपने पास से ऐसा रिज़्क़ अता फ़रमा जो कुशादा, पाकीज़ा और नाफ़े हो,

كَمَا اوْجَبْتَ لِمَنْ اتَىٰ نَبِيِّكَ مُحَمَّداً
कमा औजब्ता लिमन अता नबीय्यका मुहम्मदन
जैसा कि तूने उस पर अता किया जो तेरे नबी मुहम्मद ﷺ के पास आया जब वो ज़िंदा थे,

صَلَوَاتُكَ عَلَيْهِ وَآلِهِ
सलावतुका अलैहि वा आलिहि
तेरी रहमत हो उन पर और उनके अहले-बैत पर,

وَهُوَ حَيٌّ فَاقَرَّ لَهُ بِذُنُوبِهِ
वा हवा हय्युन फ़अक़र्र लहु बी-ज़ुनूबेही
और उसने अपने गुनाहों का एतराफ़ किया।

وَٱسْتَغْفَرَ لَهُ رَسُولُكَ
वस्तग़्फ़र लहु रसूलुका
चुनांचे तेरे रसूल ने तेरे हुज़ूर दुआ की कि तू उसे बख़्श दे।

عَلَيْهِ وَآلِهِ ٱلسَّلاَمُ
अलैहि वा आलिहिस्सलामु
तेरी रहमत हो उन पर और उनके अहले-बैत पर।

فَغَفَرْتَ لَهُ بِرَحْمَتِكَ يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
फ़ग़फ़रता लहु बिरह़्मतिका या अरहमर्राह़िमीन
और तूने अपनी रहमत से उसे बख़्श दिया, ऐ सब से ज़्यादा रहम करने वाले।

اَللَّهُمَّ وَقَدْ امَّلْتُكَ وَرَجَوْتُكَ
अल्लाहुम्मा व क़द अम्मल्तुका व रजव्तुका
ऐ अल्लाह! अब मैं अपनी उम्मीद तुझ ही पर रखता हूँ, तुझे राज़ी करने के लिए,

وَقُمْتُ بَيْنَ يَدَيْكَ
व क़ुम्तु बैन यदैक
तेरे हुज़ूर खड़ा हूँ,

وَرَغِبْتُ إِلَيْكَ عَمَّنْ سِوَاكَ
व रग़िब्तु इलैका अम्मन सिवाका
तुझ ही को चाहता हूँ और किसी को नहीं,

وَقَدْ امَّلْتُ جَزِيلَ ثَوَابِكَ
व क़द अम्मल्तु जज़ील सवाबिका
और तेरे अज़ीम अजर की उम्मीद रखता हूँ

وَإِنِّي لَمُقِرٌّ غَيْرُ مُنْكِرٍ
व इन्नी लमुक़िर्रुन ग़ैरु मुनकिरिन
जबकि मैं अपने गुनाहों का एतराफ़ करता हूँ और इनकार नहीं करता,

وَتَائِبٌ إِلَيْكَ مِمَّا ٱقْتَرَفْتُ
व ताइबुन इलैका मिम्मा इक्तरफ्तु
मैंने जो कुछ किया है उस से तौबा करता हूँ,

وَعَائِذٌ بِكَ فِي هٰذَا ٱلْمَقَامِ
व आ़इज़ुन बिका फ़ी हाज़ल-मक़ामी
और मैं इस मक़ाम पर तुझ से पनाह माँगता हूँ

مِمَّا قَدَّمْتُ مِنَ ٱلاعْمَالِ
मिम्मा क़द-दमतो मिनल-आमाली
उन आमाल के शर से जो मैंने किए हैं,

ٱلَّتِي تَقَدَّمْتَ إِلَيَّ فِيهَا وَنَهَيْتَنِي عَنْهَا
अल्लती तक़द-दमता इलय्या फ़ीहा व नहैतनी अन्हा
हालाँकि तूने इब्तिदा ही में मुझे उनसे मना किया था, उन्हें हराम क़रार दिया था,

وَاوْعَدْتَ عَلَيْهَا ٱلعِقَابَ
व औवअद्ता अलैहा अल-इक़ाबा
और मुझे वईद दी थी कि अगर मैं नाफ़रमानी करूँगा तो सज़ा दूँगा।

وَاعُوذُ بِكَرَمِ وَجْهِكَ
व आ़ऊज़ो बिकरमि वज्हिका
और मैं तेरे जलाल वाले चेहरे की पनाह लेता हूँ

انْ تُقِيمَنِي مَقَامَ ٱلْخِزْيِ وَٱلذُّلِّ
अन तुक़ीमनी मक़ामल-ख़िज़्यि वज़-ज़ुल्ली
कि तू मुझे रुसवाई और ज़िल्लत की हालत में न डाल दे

يَوْمَ تُهْتَكُ فِيهِ ٱلاسْتَارُ
यौमा तुहतकु फ़ीहिल-अस्तारु
उस दिन जब पर्दे हटा दिए जाएँगे,

وَتَبْدُو فِيهِ ٱلاسْرَارُ وَٱلفَضَائِحُ
व तब्दु फ़ीहिल-असरारो वल फ़ज़ा इहु
राज़ और रुस्वाइयाँ ज़ाहिर हो जाएँगी,

وَتَرْعَدُ فِيهِ ٱلفَرَائِصُ
व तरअदु फ़ीहिल-फ़राइसु
और ख़ौफ़ से जिस्म की मांसपेशियाँ अकड़ जायेंगी;

يَوْمَ ٱلْحَسْرَةِ وَٱلنَّدَامَةِ
यौमल-हसरति वन नदामति
उस दिन जो नदामत और पश्चाताप का दिन होगा,

يَوْمَ ٱلآفِكَةِ
यौमल-अफ़िक़ति
झूठों को बे-नक़ाब करने का दिन होगा।

يَوْمَ ٱلآزِفَةِ
यौमल-अज़िफ़ति
क़रीब आती हुई तबाही का दिन,

يَوْمَ ٱلتَّغَابُنِ
यौमत-तग़ाबुनी
जमा किए जाने का दिन,

يَوْمَ ٱلفَصْلِ
यौमल-फ़स्लि
जुदाई का दिन,

يَوْمَ ٱلْجَزَاءِ
यौमल-जज़ा'इ
अज़ाब का दिन,

يَوْماً كَانَ مِقْدَارُهُ خَمْسِينَ الْفَ سَنَةٍ
यौमन काना मिक़दारुहू ख़म्सीना अल्फ़ा सानतिन
वो दिन जिसकी मिक़दार पचास हज़ार साल है,

يَوْمَ ٱلنَّفْخَةِ
यौमन-नफ़्ख़ति
सूर फूंके जाने का दिन,

يَوْمَ تَرْجُفُ ٱلرَّاجِفَةُ
यौमत-तरजुफुर्राजिफ़तु
वो दिन जब कांपती हुई ज़मीन कांप उठेगी,

تَتْبَعُهَا ٱلرَّادِفَةُ
तत्बअुहा अर्रादिफ़तु
और बार-बार झटकों के साथ लरज़ेगी,

يَوْمَ ٱلنَّشْرِ
यौमन-नशरी
मर्दों को ज़िंदा किए जाने का दिन,

يَوْمَ ٱلعَرْضِ
यौमल-अर्ज़ी
आग के सामने पेश किए जाने का दिन,

يَوْمَ يَقُومُ ٱلنَّاسُ لِرَبِّ ٱلعَالَمِينَ
यौमा यक़ूमुन-नासु लिरब्बिल-आलमीन
वो दिन जब तमाम इंसान रब्बुल आलमीन के सामने खड़े होंगे,

يَوْمَ يَفِرُّ ٱلْمَرْءُ مِنْ اخِيهِ
यौमा यफ़िर्रुल-मर'उ मिन अख़ीहि
वो दिन जब आदमी अपने भाई से भागेगा,

وَامِّهِ وَابِيهِ
व उम्मिहि व अबीहि
अपनी माँ और अपने बाप से,

وَصَاحِبَتِهِ وَبَنِيهِ
व साह़िबतिहि व बनीहि
अपनी बीवी और अपनी औलाद से,

يَوْمَ تَشَقَّقُ ٱلارْضُ وَاكْنَافُ ٱلسَّمَاءِ
यौमा तश़क्क़कुल-अर्ज़ू व अकनाफुस्समाइ
वो दिन जब ज़मीन और आसमान के किनारे फट जाएंगे,

يَوْمَ تَاتِي كُلُّ نَفْسٍ تُجَادِلُ عَنْ نَفْسِهَا
यौमा ताती कुल्लु नफ़्सिन तुजादिलु अन नफ़्सिहा
वो दिन जब हर जान अपनी ख़ातिर फ़रियाद करती आएगी,

يَوْمَ يُرَدُّونَ إِلَىٰ ٱللَّهِ فَيُنَبِّئُهُمْ بِمَا عَمِلُوٱ
यौमा यूरद्दूना इलल्लाहि फ़युनब्बिउहुम बिमा आमिलू
वो दिन जब वो सब अल्लाह की तरफ़ लौटाए जाएंगे जो उन्हें उनके आमाल की ख़बर देगा,

يَوْمَ لاَ يُغْنِي مَوْلَىٰ عَنْ مَوْلَىٰ شَيْئاً
यौमा ला युग़्नी मौलान अन मौलान शैयअन
वो दिन जब दोस्त अपने दोस्त के किसी काम न आएगा,

وَلاَ هُمْ يُنْصَرُونَ
व ला हुम युनसारून
और न वो मदद किए जाएंगे,

إِلاَّ مَنْ رَحِمَ ٱللَّهُ
इल्ला मन रह़िमल्लाहु
सिवाए उसके जिस पर अल्लाह रहम फरमाए।

إِنَّهُ هُوَ ٱلعَزِيزُ ٱلرَّحِيمُ
इन्नहु वा अलअज़ीज़ुल-रहीमु
यक़ीनन वो ज़बरदस्त है, रहम करने वाला है,

يَوْمَ يُرَدُّونَ إِلَىٰ عَالِمِ ٱلغَيْبِ وَٱلشَّهَادَةِ
यौमा यूरद्दूना इला आलिमिल-ग़ैबि वश्शहादति
वो दिन जब वो लौटाए जाएंगे उसकी तरफ़ जो छुपी और ज़ाहिर हर चीज़ का जानने वाला है,

يَوْمَ يُرَدُّونَ إِلَىٰ اللَّهِ مَوْلاهُمُ ٱلْحَقِّ
यौमा यूरद्दूना इल्लल्लाहि मौलाहुमुल-हक्क़ि
वो दिन जब वो पलटाए जाएंगे अल्लाह की तरफ़, अपने रब की तरफ़, जो इंसाफ़ करने वाला है,

يَوْمَ يَخْرُجُونَ مِنَ ٱلاجْدَاثِ سِرَاعاً
यौमा यूख़राजूना मिनल-अज्दासि सिराअन
वो दिन जब वो क़ब्रों से जल्दी जल्दी निकलेंगे,

كَانَّهُمْ إِلَىٰ نُصُبٍ يُوفِضُونَ
का-अन्नहुम इला नुसुबिन युफ़ीज़ून
जैसे किसी मक़सद की तरफ़ दौड़ रहे हों,

وَكَانَّهُمْ جَرَادٌ مُنْتَشِرٌ
वा का-अन्नहुम जरादुन मुन्तशिरुन
और जैसे टिड्डियाँ फैलती हैं,

مُهْطِعِينَ إِلَىٰ ٱلدَّاعِي
मुह्तीईना इला अद-दाई
बुलाने वाले की तरफ़ तेजी से बढ़ते हुए —

إِلَىٰ ٱللَّهِ
इल्लल्लाहि
अल्लाह की तरफ़,

يَوْمَ ٱلوَاقِعَةِ
यौमल-वाक़िआति
वो दिन जो लाज़मी वाक़े है,

يَوْمَ تُرَجُّ ٱلارْضُ رَجّاً
यौमा तुरज्जुअल-अर्ज़ रज्जन
जब ज़मीन ज़बरदस्त झटके के साथ हिला दी जाएगी,

يَوْمَ تَكُونُ ٱلسَّمَاءُ كَٱلْمُهْلِ
यौमा तकूनुस्समाऊ कल-मुहली
वो दिन जब आसमान पिघले हुए तांबे की तरह हो जाएगा,

وَتَكُونُ ٱلْجِبَالُ كَٱلعِهْنِ
वा तकूनुल-जिबालु कल-इहनी
और पहाड़ धुनी हुई ऊन के गालों की तरह हो जाएंगे,

وَلاَ يَسْالُ حَمِيمٌ حَمِيماً
व ला यस्अलु ह़मिमुन ह़मीमन
और कोई दोस्त अपने दोस्त से कुछ न पूछेगा,

يَوْمَ ٱلشَّاهِدِ وَٱلْمَشْهُودِ
यौमश्शाहीदि वल-मश्हूदि
वो दिन गवाह का दिन होगा और जिस पर वो गवाही देगा,

يَوْمَ تَكُونُ ٱلْمَلائِكَةُ صَفّاً صَفّاً
यौमा तकूनुल-मलाइक़तु स़फ़्फ़न स़फ़्फ़न
और वो दिन जब फ़रिश्ते सफ़ दर सफ़ आएंगे।

اَللَّهُمَّ ٱرْحَمْ مَوْقِفِي فِي ذٰلِكَ ٱليَوْمِ بِمَوْقِفِي فِي هٰذَا ٱليَوْمِ
अल्लाहुम्मर-रहम् मौक़ीफ़ी फ़ी ज़ालिकल-यौमि बिमौक़ीफ़ी फ़ी हाज़ल-यौमि
ऐ अल्लाह! उस दिन जब मुझे हिसाब के लिए रोका जाएगा, मेरी मौजूदा हालत पर रहम फ़रमा,

وَلاَ تُخْزِنِي فِي ذٰلِكَ ٱلْمَوْقِفِ بِمَا جَنَيْتُ عَلَىٰ نَفْسِي
व ला तुख़्ज़िनी फ़ी ज़ालिकल-मौक़ीफ़ि बिमा जनैतु अला नफ़्सी
और उस वक़्त मुझे मेरे उन बुरे आमाल की वजह से रुसवा न करना जो मैंने अपनी जान के ख़िलाफ़ किए हैं।

وَٱجْعَلْ يَا رَبِّ فِي ذٰلِكَ ٱليَوْمِ مَعَ اوْلِيَائِكَ مُنْطَلَقِي
वज़्अल या रब्बी फ़ी ज़ालिकल-यौमि मआ औलियाइका मुन्तलक़ी
ऐ मेरे रब! उस दिन मुझे अपने मुक़र्रब बन्दों के साथ शामिल फ़रमा,

وَفِي زُمْرَةِ مُحَمَّدٍ وَاهْلِ بَيْتِهِ عَلَيْهِمُ ٱلسَّلاَمُ مَحْشَرِي
वा फ़ी ज़ुम्रति मुहम्मदिन व अहलेबैतेहि अलैहिमुस्सलामु मह्शरी
मुझे मुहम्मद ﷺ और उनके अहले-बैत — अलैहिमुस्सलाम — की जमाअत में रख,

وَٱجْعَلْ حَوْضَهُ مَوْرِدِي
वज अल ह़ौज़हु मौरिदी
उन (यानी नबी करीम ﷺ) के हौज़ को मेरा वारिद होने का मक़ाम बना,

وَفِي ٱلغُرِّ ٱلكِرَامِ مَصْدَرِي
वा फ़िल-ग़ुर्रिल-किरामि मस्दरी
मुझे बाअज़्ज़त, रोशन पेशानी वाले गिरोह में जगह अता फ़रमा,

وَاعْطِنِي كِتَابِي بِيَمِينِي
वा आतिनी किताबि बियमीनी
और मेरा नाम-ए-आमाल मेरे दाएँ हाथ में अता फ़रमा,

حَتَّىٰ افُوزَ بِحَسَنَاتِي
ह़त्ता अफ़ूज़ बिह़सनाती
ताकि मैं अपने अजर की वजह से कामयाब हो जाऊँ,

وَتُبَيِّضَ بِهِ وَجْهِي
वा तुबैयिज़ा बिहि वज्ही
तू मेरा चेहरा रोशन कर दे,

وَتُيَسِّرَ بِهِ حِسَابِي
वा तुय्यस्सिरा बिहि हिसाबी
मेरा हिसाब आसान कर दे,

وَتُرَجِّحَ بِهِ مِيزَانِي
वा तुरज्जिहा बिहि मीज़ानी
मेरे (नेकी के) तराज़ू का पलड़ा भारी कर दे,

وَامْضِيَ مَعَ ٱلفَائِزِينَ
वा अम्दिया मआल-फ़ाइज़ीना
और मैं कामयाब लोगों में शामिल कर दे,

مِنْ عِبَادِكَ ٱلصَّالِحِينَ
मिन इबादिकस्सालिह़ीना
और मुझे अपने नेक बन्दों के साथ

إِلَىٰ رِضْوَانِكَ وَجِنَانِكَ
इला रिज़वानिका वा जिनानिका
अपनी रज़ा और जन्नतों के साथ।

إِلٰهَ ٱلعَالَمِينَ
इलाहा अलआलमीन
ऐ जहाँनों के रब!

اَللَّهُمَّ إِنِّي اعُوذُ بِكَ مِنْ انْ تَفْضَحَنِي فِي ذٰلِكَ ٱليَوْمِ
अल्लाहुम्मा इन्नी आऊज़ु बिका मिन अन तफ़-ज़ह़नी फ़ी ज़ालिकल-यौमि
ऐ अल्लाह! मैं तेरी पनाह माँगता हूँ कि उस दिन से, तू मुझे रुसवा न कर,

بَيْنَ يَدَي ٱلْخَلائِقِ بِجَرِيرَتِي
बैना यदइल-ख़लाइकि बे जरि रती
अपनी मख़लूक़ के सामने मेरे गुनाहों की वजह से

او اَنْ الْقَىٰ ٱلْخِزْيَ وَٱلنَّدَامَةَ بِخَطِيئَتِي
अव अन अल्क़िल-ख़िज़्या वन-नदामता बे ख़ती'अती
या मेरे बुरे आमाल के सबब मैं ज़िल्लत और नदामत में मुब्तिला न हो जाऊँ,

اوْ انْ تُظْهِرَ فِيهِ سَيِّئَاتِي عَلَىٰ حَسَنَاتِي
अव अन तुज़्हिरा फ़ीहि सय्यिआती अला ह़सनाती
या मेरे गुनाह नेकियों से ज़्यादा न कर दे,

اوْ انْ تُنَوِّهَ بَيْنَ ٱلْخَلاَئِقِ بِٱسْمِي
अव अन तुनव्विह़ा बैनल-ख़लाइकि बिस्मी
या मेरा नाम अपनी मख़लूक़ में ख़सारे वालों में दर्ज न कर दे।

يَا كَرِيمُ يَا كَرِيمُ
या करीमु या करीमु
ऐ सब से ज़्यादा करीम! ऐ सब से ज़्यादा करीम!

ٱلعَفْوَ ٱلعَفْوَ
अल-अफ़्वा अल-अफ़्वा
(मैं तुझ से सवाल करता हूँ) माफ़ी का, (मैं तुझ से सवाल करता हूँ) माफ़ी का,

ٱلسِّتْرَ ٱلسِّتْرَ
अस्सित्रा अस्सित्रा
(मैं तुझ से सवाल करता हूँ) पर्दा पोशी का, (मैं तुझ से सवाल करता हूँ) पर्दा पोशी का।

اَللَّهُمَّ وَاعُوذُ بِكَ مِنْ انْ يَكُونَ فِي ذٰلِكَ ٱليَوْمِ
अल्लाहुम्मा वा आऊज़ु बिका मिन अन यक़ूना फ़ी ज़ालिकल-यौमि
ऐ अल्लाह! मैं तुझ से पनाह माँगता हूँ उस दिन से

فِي مَوَاقِفِ ٱلاشْرَارِ مَوْقِفِي
फ़ी मवाक़िफिल-अश्रारि मवक़ीफ़ी
कि मुझे गुनाहगारों की सफ़ में शामिल न कर,

اوْ فِي مَقَامِ ٱلاشْقِيَاءِ مَقَامِي
अव फ़ी मक़ामिल-अशक़ियाइ मक़ामी
या मुझे बदबख़्तों की क़तार में न डाल दे।

وَإِذَا مَيَّزْتَ بَيْنَ خَلْقِكَ
वा इज़ा मय्यज़्ता बैना ख़लक़िका
जब तू अपनी मख़लूक़ के दरमियान फ़ैसला करेगा,

فَسُقْتَ كُلاًّ بِاعْمَالِهِمْ
फ़सुक्ता कुल्लन बिआमालिहिम
और हर गिरोह को उनके आमाल के मुताबिक़ -

زُمَراً إِلَىٰ مَنَازِلِهِمْ
ज़ुमरन इला मनाज़िलिहिम
उनके ठिकानों की तरफ़ गिरोहों में हाँकेगा,

فَسُقْنِي بِرَحْمَتِكَ مَعَ عِبَادِكَ ٱلصَّالِحِينَ
फ़सुक़्नी बिरह़्मतिका मआ इबादिकस्सालिह़ीना
(तो मेहरबानी फ़रमा कि) अपनी रहमत के सदक़े मुझे अपने नेक बन्दों के गिरोह में शामिल कर दे,

وَفِي زُمْرَةِ اوْلِيَائِكَ ٱلْمُتَّقِينَ
वा फ़ी ज़ुम्रति औलियाइकल-मुत्तक़ीना
और मुझे अपने परहेज़गार मुक़र्रब बन्दों के साथ

إِلَىٰ جَنَّاتِكَ يَا رَبَّ ٱلْعَالَمِينَ
इला जन्नातिका या रब्बल-आलमीन
अपनी जन्नतों में दाख़िल कर दे, ऐ जहाँनों के रब!


फिर आप रुखसत होने के वक़्त कहें ..
السَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا رَسُولَ ٱللَّهِ
अस्सलामो अलैका या रसूलल्लाहि
सलाम हो आप पर, ऐ रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلْبَشِيرُ ٱلنَّذِيرُ
अस्सलामो अलैका अय्योहल बशीरन नज़ीरो
सलाम हो आप पर, ऐ खुशख़बरी देने वाले (ईमान वालों को) और डराने वाले (अल्लाह के अज़ाब से)।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلسِّرَاجُ ٱلْمُنِيرُ
अस्सलामो अलैका अय्योहल सिराजुल मुनीरो
सलाम हो आप पर, ऐ रोशनी देने वाले चराग़।

السَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلسَّفِيرُ بَيْنَ ٱللَّهِ وَبَيْنَ خَلْقِهِ
अस्सलामो अलैका अय्योहस सफ़ीरो बैना अल्लाहि वा बैना ख़ल्क़िहि
सलाम हो आप पर, ऐ अल्लाह और उसकी मख़लूक़ के दरमियान शफ़ाअत करने वाले।

اشْهَدُ يَا رَسُولَ ٱللَّهِ انَّكَ كُنْتَ نُوراً فِي ٱلاصْلاَبِ ٱلشَّامِخَةِ
अश्हदु या रसूलल्लाहि अन्नका कुंतो नूरन फ़िल-अस्लाबिश शामिख़ति
मैं गवाही देता हूँ, ऐ रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ, कि आप बुलन्द पुश्तों में नूर थे,

وَٱلارْحَامِ الْمُطَهَّرَةِ
वल आरहामिल मुतह हरति
और पाकीज़ा रहमों में (परवरिश पाए)।

لَمْ تُنَجِّسْكَ ٱلْجَاهِلِيَّةُ بِانْجَاسِهَا
लम् तुनज्जिस्कल-जाहिलिय्यतु बिअन्जासिहा
जाहिलियत ने अपनी नापाकियों से आपको न छुआ,

وَلَمْ تُلْبِسْكَ مِنْ مُدْلَهِمَّاتِ ثِيَابِهَا
व लम् तुल्बिस्का मिन मुद्लहिम्मति सियाबिहा
और न ही अपने तारीक़ लिबास में लपेटा।

وَاَشْهَدُ يَا رَسُولَ ٱللَّهِ انِّي مُؤْمِنٌ بِكَ
व अश्हदु या रसूलल्लाहि अन्नी मु'मिनुन बिका
मैं ये भी गवाही देता हूँ, ऐ रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ, कि मैं आप पर ईमान रखता हूँ,

وَبِٱلائِمَّةِ مِنْ اهْلِ بَيْتِكَ
व बिल-अइम्मति मिन अहलेबैतिक
और आपके अहले-बैत के इमामों पर भी,

مُوقِنٌ بِجَمِيعِ مَا اتَيْتَ بِهِ
मुकीनुन बिजामीइ मा अतैत बिहि
और मैं उस सब पर ईमान रखता हूँ जो आप लाए,

رَاضٍ مُؤْمِنٌ
ऱाज़िन मु'मिनुन
इत्तमिनान और वफ़ादारी के साथ।

وَاشْهَدُ انَّ ٱلائِمَّةَ مِنْ اهْلِ بَيْتِكَ اعْلامُ ٱلْهُدَىٰ
व अश्हदु अन्नल-अइम्मता मिन अह्लि अहलेबैतिका आ़लमुल-हुदा
और मैं गवाही देता हूँ कि आपके अहले-बैत के इमाम हिदायत की निशानियाँ हैं,

وَٱلعُرْوَةُ ٱلوُثْقَىٰ
वल-उर्वतुल-वुस़्का
अल्लाह की मज़बूत रस्सी हैं,

وَٱلْحُجَّةُ عَلَىٰ اهْلِ ٱلدُّنْيَا
वल-हुज्जतु अला अहलिद दुन्या
और दुनिया के रहने वालों पर अल्लाह की हुज्जत हैं।

اَللَّهُمَّ لاَ تَجْعَلْهُ آخِرَ ٱلعَهْدِ مِنْ زِيَارَةِ نَبِيِّكَ
अल्लाहुम्मा ला तज़्अल्हू आख़िरल-अह्दि मिन ज़ियारति नबीय्यिका
ऐ अल्लाह! मेरी ये ज़ियारत तेरे नबी ﷺ — की आख़िरी ज़ियारत न बना।

عَلَيْهِ وَآلِهِ ٱلسَّلاَمُ
`अलैहि वा आलिहिस्सलामु
उन पर और उनके अहले-बैत पर सलाम हो —

وَإِنْ تَوَفَّيْتَنِي فَإِنِّي اشْهَدُ فِي مَمَاتِي
वा इन् तवफ़्फ़ैतनी फ़इन्नी अश्हदु फ़ी ममाती
अगर तू मेरी जान क़ब्ज़ करने का फ़ैसला करे, तो मैं अपनी मौत के वक़्त भी गवाही दूँगा,

عَلَىٰ مَا اشْهَدُ عَلَيْهِ فِي حَيَاتِي
अला मा अश्हदु अलैहि फ़ी हयाती
जैसी ज़िन्दगी में दी है,

انَّكَ انْتَ ٱللَّهُ لاَ إِلٰهَ إِلاَّ انْتَ
अन्नका अंता अल्लाहु ला इलाहा इल्ला अंता
कि तू ही अल्लाह है; तेरे सिवा कोई माबूद नहीं,

وَحْدَكَ لاَ شَرِيكَ لَكَ
वह्दका ला शरीक लका
तू यकता है, तेरा कोई शरीक नहीं,

وَاَنَّ مُحَمَّداً عَبْدُكَ وَرَسُولُكَ
व अन्ना मुहम्मदन अब्दुका वा रसूलुका
मुहम्मद ﷺ तेरे बन्दे और तेरे रसूल हैं,

وَانَّ ٱلائِمَّةَ مِنْ اهْلِ بَيْتِهِ اوْلِيَاؤُكَ وَانْصَارُكَ
व अन्नल-अइम्मता मिन अहले बैतिहि औलियाउका वा अन्सारुका
और आपके अहले-बैत के इमाम तेरे मुक़र्रब बन्दे, तेरे मददगार हैं।

وَحُجَجُكَ عَلَىٰ خَلْقِكَ
व हुज्जाजुका अला ख़लक़िका
तेरी मख़लूक़ पर तेरी हुज्जत,

وَخُلَفَاؤُكَ فِي عِبَادِكَ
व ख़ुलफ़ाउका फ़ी इबादिका
तेरे बन्दों में तेरे नुमाइंदे,

وَاعْلامُكَ فِي بِلاَدِكَ
व आ़लमुक़ा फ़ी बिलादिका
तेरी ज़मीनों में तेरी निशानियाँ,

وَخُزَّانُ عِلْمِكَ
व ख़ुज़्ज़ानु इल्मिका
तेरे इल्म के अमीन,

وَحَفَظَةُ سِرِّكَ
व ह़फ़ज़तु सिर्रिका
तेरे राज़ के मोहाफ़िज़,

وَتَرَاجِمَةُ وَحْيِكَ
व तराजिमतु वाहियेका
और तेरी वह़ी के मुफस्सिर।

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन वा आलि मुहम्मदिन
ऐ अल्लाह! मुहम्मद और आल-ए-मुहम्मद पर अपनी रहमतें नाज़िल फ़रमा,

وَبَلِّغْ رُوحَ نَبِيِّكَ مُحَمَّدٍ وَآلِهِ
व बल्लिग़ रुह़ा नबीय्यिका मुहम्मदिन वा आलिहि
और तेरे नबी मुहम्मद और उनके अहले-बैत की अरवाह तक,

فِي سَاعَتِي هٰذِهِ وَفِي كُلِّ سَاعَةٍ
फ़ी साअति हाज़िहि वा फ़ी कुल्लि साअतिन
इसी घड़ी और हर घड़ी,

تَحِيَّةً مِنِّي وَسَلاماً
तहिय्यतन मिन्नी वा सलामन
मेरी तरफ़ से सलाम और दुरूद पहुँचा दे।

وَٱلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا رَسُولَ ٱللَّهِ وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ
व अस्सलामु अलैका या रसूलल्लाहि वा रह़मतुल्लाहि वा बरकातुहू
ऐ रसूल-ए-ख़ुदा! आप पर सलाम हो और अल्लाह की रहमत और बरकतें हों।

لاَ جَعَلَهُ ٱللَّهُ آخِرَ تَسْلِيمِي عَلَيْكَ
ला जअलहु अल्लाहु आख़िरा तस्लीमी अलैका
अल्लाह मेरी इस सलामती को आख़िरी सलामती क़रार न दे।.





اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
ऐ अल्लाह, मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

كَمَا حَمَلَ وَحْيَكَ
कमा हमला वह=यका
जिस तरह उन्होंने तेरी वही को उठाया

وَبَلَّغَ رِسَالاَتِكَ
व बल्लग़ा रिसालतिका
और तेरे पैग़ाम पहुँचाए।

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
वा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
और मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

كَمَا أَحَلَّ حَلاَلَكَ
कमा अहल्ला हलालका
जिस तरह उन्होंने हलाल को हलाल क़रार दिया

وَحَرَّمَ حَرَامَكَ
वा हर्रमा हरामका
और हराम को हराम क़रार दिया

وَعَلَّمَ كِتَابَكَ
वा ‘अल्लमा किताबका
और तेरी किताब की तालीम दी।

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
वा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
और मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

كَمَا أَقَامَ ٱلصَّلاَةَ
कमा अक़ामा अस्सलाता
जिस तरह उन्होंने नमाज़ क़ायम की

وَآتَىٰ ٱلزَّكَاةَ
वा आता अज़्ज़काता/div>
ज़कात अदा की

وَدَعَا إِلَىٰ دِينِكَ
वा दा‘आ इला दीनिका
और तेरे दीन की तरफ़ बुलाया।

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
वा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
और मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

كَمَا صَدَّقَ بِوَعْدِكَ
कमा सद-दक़ा बिवअदिका
कि उन्होंने तेरे वादे की तस्दीक़ की

وَأَشْفَقَ مِنْ وَعِيدِكَ
वा अश्फ़क़ा मिन वअीदिका
और तेरी सज़ा से डरते रहे।

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
वा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
और मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

كَمَا غَفَرْتَ بِهِ ٱلذُّنُوبَ
कमा ग़फर्ता बिहीज़्ज़ुनूबा
जिस तरह तूने उनकी वजह से गुनाह माफ़ किए

وَسَتَرْتَ بِهِ ٱلْعُيُوبَ
वा सतरता बिहिल ‘उयूबा
ऐब छुपाए,

وَفَرَّجْتَ بِهِ ٱلْكُرُوبَ
वा फर्जता बिहिल कुरूबा
और ग़म दूर किए।

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
वा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
और मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

كَمَا دَفَعْتَ بِهِ ٱلشَّقَاءَ
कमा दफ़अता बिहिश्शक़ा-आ
जिस तरह तूने उनकी वजह से मुसीबतें हटाईं,

وَكَشَفْتَ بِهِ ٱلْغَمَّاءَ
वा कशफ़ता बिहिल ग़म्मा -आ
परेशानियाँ दूर कीं,

وَأَجَبْتَ بِهِ ٱلدُّعَاءَ
वा अजबत बिहिद्दुआ -आ
दुआ क़बूल की,

وَنَجَّيْتَ بِهِ مِنَ ٱلْبَلاَءِ
वा नज्जैता बिहि मिनल बला-आ
और बलाओं से नजात दी।

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
वा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
और मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

كَمَا رَحِمْتَ بِهِ ٱلْعِبَادَ
कमा रहिम्ता बिहिल ‘इबादा
जिस तरह तूने उनकी वजह से बन्दों पर रहमत की,

وَأَحْيَيْتَ بِهِ ٱلْبِلاَدَ
वा अह्यैता बिहिल बिलादा
ज़मीन को ज़िन्दा किया,

وَقَصَمْتَ بِهِ ٱلْجَبَابِرَةَ
वा कसम्ता बिहिल जबाबिरता
ज़ालिमों को नेस्त व नाबूद किया,

وَأَهْلَكْتَ بِهِ ٱلْفَرَاعِنَةَ
वा अहलक़्ता बिहिल फ़िरऔनता
और फ़िरऔन जैसे हाकिमों को हलाक किया।

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
वा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
और मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

كَمَا أَضْعَفْتَ بِهِ ٱلأَمْوَالَ
कमा अदअफ़्ता बिहिल अम्वाला
जिस तरह तूने उनकी वजह से माल में बरकत दी,

وَأَحْرَزْتَ بِهِ مِنَ ٱلأَهْوَالِ
वा अह-रज़ता बिहि मिनल अह-वाली
ख़ौफ़ से हिफ़ाज़त की,

وَكَسَرْتَ بِهِ ٱلأَصْنَامَ
वा कसरता बिहिल अस-नामा
बुतों को तोड़ा,

وَرَحِمْتَ بِهِ ٱلأَنَامَ
वा रहिम्ता बिहिल अन-आमा
और तमाम मख़लूक़ पर रहमत की।

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
वा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
और मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

كَمَا بَعَثْتَهُ بِخَيْرِ ٱلأَدْيَانِ
कमा बअसतहू बिखैरिल अदयान
जिस तरह तूने उन्हें सबसे बेहतरीन दीन के साथ भेजा,

وَأَعْزَزْتَ بِهِ ٱلإِيمَانَ
वा अ‘ज़ज़्ता बिहिल ईमाना
ईमान को उनके ज़रिये मज़बूत किया,

وَتَبَّرْتَ بِهِ ٱلأَوْثَانَ
वा तबर्रता बिहिल औसानी
बुतों को उनके ज़रिये तोड़ा,

وَعَظَّمْتَ بِهِ ٱلْبَيْتَ ٱلْحَرَامَ
वा ‘अज़्ज़मता बिहिल बैतल हरामा
और खाना-ए-काबा को शरफ़ बख़्शा।

وَصَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ
वा सल्लि ‘अला मुहम्मदिन
और मुहम्मद ﷺ पर रहमत नाज़िल फरमा,

وَأَهْلِ بَيْتِهِ ٱلطَّاهِرِينَ ٱلأَخْيَارِ
वा अहले बैतिहित ताहिरीनल अखय्यारी
और उनके पाक और नेक घराने पर

وَسَلِّمْ تَسْلِيماً
वा सल्लिम तस्लीमन
और उन सब पर पूरा दरूद व सलाम भेज।




Section 10 On the Birth of our Master Muhammad (saws)
The conception of the mother of our Master with the Prophet (as) who has been sent to us by the Lord of the worlds is so important to the angels, the Prophets (as) and the Messengers (as) that my heart, intellect, tongue and pen cannot describe.
His birth and Prophetic mission include many Divine Favors and benefits that I cannot fully describe.

1. The Noble Prophet (as) came after 124,000 Prophets (as).
God said the following about one of them in the Holy Qur‟an: “God chose him (as) and commanded the angels to prostrate in front of him (as) and appointed him (as) as His Prophet (as)."
It says the following about another one: “The Almighty God chose him (as) as His Friend.” It says the following about another one: “It was We that made the hills declare, in unison with him, Our Praises, at eventide and at the break of day.”Sad 38:18
It says the following about another one: “The Almighty God granted such a kingdom upon him (as) that He had not given to any of the creatures.”
It says the following about another one: “The Almighty God spoke with him (as) and granted him a high rank."
And he says about another: “The Almighty God granted him a spirit (as) from His affair and granted him (as) the ability to revive the dead.” It has spoken a lot about his (as) high rank, etc.

However, none of these Prophets (as) and Trustees (as) of the past have been given access to religious and worldly sciences as much as our Master (as) has been given. None of them gained as much of the means of human and divine etiquette which our Master Muhammad (as) gained. Muhammad (as) reached his goal and through him his nation reached such a high place that cannot be described. His (as) nation filled up the East and the West with the knowledge of his (as) religion and the blessings that God granted them.

2. The Prophet (as) only had a very short time to teach his nation the sciences that spread in all lands and amongst all worshippers. This could not have been made possible except by means of clear verses and miracles from God.
He (as) spent thirteen years in Mecca during which he (as) could not make any such efforts.
Then he (as) spent ten years in Medina during which he (as) was busy fighting with the unbelievers and suffering from the disturbances of hypocrites and ignorant people. Even if he (as) had peace in all these twenty-three years and could spend it on the sciences, still this is too short a time to spread what he (as) actually spread in the world. This is one of the major miracles of the Almighty God and His Prophet (as) that the pen and the tongue cannot describe.

3. The Prophet (as) revived wisdom and the enemies of the intellect were defeated.

4. The Prophet (as) helped the intellect after reviving it at a time when the intellect had been defeated by its enemies.

5. In a very short time, the Prophet (as) elaborately introduced the purity of the previous Prophets (as) in such a way that they themselves had not been able to do so in a long time.

6. The Prophet (as) uncovered the superior place of the previous Prophets (as), their secrets and their religious laws such that none of those who claim to report their news and works had done.

7. The Prophet (as) is superior to other Prophets (as) since he (as) is their seal, their speaker, and their first and their last in having a high rank.

8. The Prophet (as) is superior to the previous Prophets (as) since the twelve Imams (as) have come from his (as) progeny and implemented the ins and outs of the religion. One of these Imams is Al-Mahdi (as) who is called from the heavens and has a rank that none of the Prophets (as) had.

Section 9 On What is Narrated on Honoring the Seventeenth Night of Rabi ul-Awwal
The following is found in the forty-fifth part of the book Shafa al-Sudoor regarding the interpretation of the Chapter Isra of the Qur‟an compiled by Abi Bakr Muhammad ibn al-Hassan ibn Zyad known as Al-Naqash.
We read a narration regarding the ascension of the Prophet (as) that it has been on the night of the seventeenth of Rabi ul-Awwal before immigration to Medina. If what is said about the ascension on that day is true, then it is best to honor that day and respect it with performing good deeds on that night.”

Section 14 On What is Best for the Muslims To Do on the Birthday of the Prophet (as)
Know that indeed it is best to exalt each occasion based on the extent of the benefits and the goodness which accompany it.
All the Muslims have all agreed upon the fact that Muhammad (as) is the most important person born, or even the most important person ever born in the world and he has a higher rank and has more benefit than all of the creatures whose deeds and words were beneficial.
For this reason, it is best that the birthday of the Noble Prophet (as) be exalted to the extent of the nobility of the Prophethood and the benefit which he (as) has had. I have seen that the Christians and some of the Muslims exalt the birthday of Jesus (as) in such a way that no other creature in the world is exalted. I wonder why the Muslims exalt the birthday of their Prophet (as) – who is superior to all of the Prophets (as) – less than the birthday of another Divine Prophet (as). Certainly, this is improper.
It may be the case that when a person who does not have any children is blessed with a child, he becomes much happier than on the birthday of the Master of the Prophets who is the greatest creation near the Lord of the worlds! He may even exalt and glorify this occasion much more than the birthday of the Prophet (as) while this is opposed to the practice of the knowledgeable ones and it is far away from the beliefs of prosperous people.
O' the person who is acquainted with the right path, observe the etiquette of worshipping and consider the Owner of the Judgment Day! I swear to you by God! I swear to you by God! Beware that the birthday of the Seal of the Prophets (as) is not less important to you than the birthday of an individual born in this ephemeral world.
On this day you should become acquainted with the Almighty God's Favor and Blessing by creating this holy person of His for you and other worshippers and you should confess and glorify the person born on this day and seek proximity to the Threshold of the Almighty God by paying charity and praying in gratitude with the prayer which we mentioned before.
Congratulate other Muslims and proclaim the nobility of this day over other days so that the hearts of women and children become acquainted with this day and it becomes beneficial for them and causes their promotion in this world and the Hereafter.

Whoever praises something but does not glorify it and whoever exalts something but does not know what he is exalting is one of those whose behavior denies his sayings and his deeds confess to his loss and failure. This is because the Almighty God describes those who bear witness to something with their tongue but behave differently as liars and hypocrites where He says, “When the Hypocrites come to You, they say, “We bear witness that You are indeed the Messenger of Allah.” Yea, Allah knoweth that You are indeed His Messenger, and Allah beareth witness that the Hypocrites are indeed liars.” Then will this kind of confession of the hypocrites to the mission of the Noble Prophet (as) while their hearts and deeds deny what they say have any benefit for them?!

Section 15 On What to End the Birth Date of the Prophet Muhammad (as) with
In this part, what the Almighty God has shown us through the narrations and the intellect are presented.
You should do more glorification and exaltation according to the extent of glory of this great holy day since it is greater than all other occasions. Moreover, you should turn to the Threshold of the Almighty God in the last moments of this day and confess to your shortcomings in recognizing the right of this blessing and acting in His Obedience and Worship. You should ask God to help you to succeed in performing superior and more complete deeds than what you can do now to make you closer to God.
You should cry in His Presence and implore the Prophet (as) who is born on this day to present all your needs to the Almighty God. You should ask the Almighty God to perfect and correct the shortcomings of your deeds and all of the affairs of which you are not informed of but is of your interest. You should consider the Prophet (as) who is born on this day and present all your deeds to him. You should commemorate the Prophet (as) as much as you can and ask him to perfect the shortcomings of your deeds with his own perfection and present them to the Mercy, Majesty and Grandeur of the Glorious God with his own hands and the power of Prophethood, kindness and intercession.

يَا أَيُّهَا الْمُزَّمِّلُ
O you wrapped up in your mantle!
(Sūrat al-Muzzammil, No.73, Āyat 1)

The Prophet Muhammad sallal-lāhu ‘alayhi wa-ālihi wasallam as the seal of prophethood and the most beloved Prophet of Allah is addressed differently from other Prophets in the Quran. Prophet Mūsā ‘alayhis-salām is one of the Ulul ‘Azm prophets and was given the Tawrāt. He is the Prophet most often mentioned in the Quran and is known as Kalīmullāh (one who talks to Allah). In many verses Allah ‘azza wajall addresses Prophet Mūsā by name: (يَا مُوسَى إِنِّي أَنَا رَبُّكَ) O Mūsā, Indeed I am your Lord! (Q 20:11-12). In another verse: (يَا مُوسَىٰ إِنِّي اصْطَفَيْتُكَ عَلَى النَّاسِ بِرِسَالَاتِي وَبِكَلَامِي) O Mūsā, I have chosen you over the people with My messages and My speech (Q 7:144).
Other Prophets (a) are also addressed by their names:
يَا دَاوُودُ إِنَّا جَعَلْنَاكَ خَلِيفَةً فِي الْأَرْضِ
O Dāwūd! Indeed, We have made you a vicegerent on the earth (Q 38:26). يَا يَحْيَىٰ خُذِ الْكِتَابَ بِقُوَّةٍ ۖ
And O Yahya! Hold on with power to the Book! (Q 19:12).

Even Prophet ‘Īsā (a) is addressed by his name:
يَا عِيسَى ابْنَ مَرْيَمَ أَأَنتَ قُلْتَ لِلنَّاسِ اتَّخِذُونِي وَأُمِّيَ إِلَٰهَيْنِ مِن دُونِ اللَّهِ ۖ
And when Allah will say, ‘O Jesus son of Mary! Was it you who said to the people, ‘‘Take me and my mother for gods besides Allah’’? (Q 5:116).
It is only the Prophet Muhammad (s) who is not addressed directly by his name. His name is mentioned four times in the Quran but none of these four verses are a direct address to him. When Almighty Allah addresses His beloved (Habīb), he does lovingly and respectfully. The following are some verses which address him:
a) Yā Ayyuhar-Rasūl – O Messenger
يَا أَيُّهَا الرَّسُولُ لَا يَحْزُنكَ الَّذِينَ يُسَارِعُونَ فِي الْكُفْرِ O Messenger! Do not grieve for those who are active in disbelief (Q 5:41)
See also verses 5:56 and 23:51.
b) Yā Ayyuhan-Nabī – O Prophet
يَا أَيُّهَا النَّبِيُّ حَسْبُكَ اللَّهُ وَمَنِ اتَّبَعَكَ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ
O Prophet! Sufficient for you is Allah and those of the faithful who follow you (Q 8:64) See also 9:33, 33:59.
c) Yaa Ayyuhal-Muzzammil
O you wrapped up in your mantle! (Q 73:1)
d) Yaa Ayyuhal-Muddathir
O you wrapped up in your mantle! (Q 74:1)


The distinction between the way the Prophet (s) is addressed, and the way other Prophets are addressed reveals the status of the Prophet (s). He was sent for the entire universe, as the final and most beloved Prophet. He was chosen for the most important duty and was found worthy of carrying out this huge task of leading the ummah and for being a guide for all times to come. The Almighty does not choose those who will carry out heavy responsibilities at random. Unlike human beings who may place responsibilities on undeserving shoulders, Allah chooses those who can bear the responsibility and perform it well.

The addresses to the Prophet (s) in the Quran are a reminder to believers that the Prophet (s) is unlike any other human being who walked on the earth. He has a unique position with Allah, distinctive and unmatched. No other Prophet, however great he might be, can be like him. Even when Allah addresses Prophet Ibrahim (a), the friend of Allah, after the great test He puts him through, he says:
وَنَادَيْنَاهُ أَن يَا إِبْرَاهِيمُ قَدْ صَدَّقْتَ الرُّؤْيَا ۚ
We called out to him, ‘O Ibrahim! You have indeed fulfilled your vision! (Q 37:104-105).
But the Prophet (s) is special. He cannot be addressed in the same way. The Quran teaches us subtly that you too should not treat him like the others. He is more revered than to be considered as just one of the Prophets.

As we celebrate the holy birth of Prophet Muhammad this week, the ummah should be grateful to the Almighty for sending His beloved Prophet and his Ahlul Bayt (a) as its guides and leaders. May we and our progeny always love and obey them dearly!

Source : Academy of Islam