ख़ुदा ने तमाम इंसानों को "आज़ाद मर्ज़ी" दी है। उस ने पैग़ंबर (स) के ज़रिए हिदायत और क़वानीन भेजे हैं।
हमें उन को पहचानने और उन की इताअत करने की ज़रूरत है, आज़ाद मर्ज़ी से।
उस के बाद हम ज़िंदगी के मक़सद, इबादत और अपनी रूह को बुलंद करने के क़ाबिल हो सकते हैं ताकि नजात और दायमी इनामात हासिल कर सकें।
like
खाना-पीना, शादी, ,
लेन-देन और
मौत
इन तरीकों को तफ्सील (विस्तारपूर्वक) जानें,जैसे
रोज़ाना की नमाज़ों के तरीक़े,
रोज़े ,
ख़ुम्स ,
अम्र बिल मारूफ़ की शर्तें वग़ैरा
इस्लामी क़ानून क़ुरआन और मासूमीन, और अहल-ए-बैत (अ) की रिवायतों (हदीसों) से लिए गए हैं।
जैसे उलमा (उलमा-ए-कराम) जो असूल व ज़वाबित के तहत इंतेहाई जामे (व्यापक) हौज़ा प्रणाली (निज़ाम) के ज़रिए फ़िक़ह का मुतालआ करते हैं और मिसाली ज़िंदगी गुज़ारते हैं।
इसलिए दौरे हाज़िर (समकालीन) के एक सब से ज़्यादा इल्म वाले माहिर की पैरवी (तक़लीद) करना मंतिकी, अक़्ली और लाज़मी है।
आज के पाकीज़ा इस्लाम और इस के क़वानीन का माख़ज़ और सिलसिला हैं मासूमीन (अ:स) अहल-ए-बैत (अ:स) ->और उनके सहाबा और इनके बाद ->आलिम, उलमा , जिन्होंने 1400 साल से ज़्यादा अर्से तक हदीस और पाकीज़ा इस्लाम को मुरत्तब/नक़्ल किया है।