कर्बला के बाद के वाक़्यात | ख़ुत्बात - बीबी ज़ैनब (स) | ख़ुत्बात इमाम सज्जाद (अ) | क़ाफ़िला ए फ़ख़र फ़िल्म यूट्यूब (Youtube)
तमाम ख़ुत्बात का एक मुकम्मल पीडीएफ़
वाक़ये कर्बला के बाद - अहल ए बैत (अ:स) का दमिश्क़ (शाम) में मुबारक सरों के साथ दाख़िला
शेख़ कफ़'अमी, शेख़ बहाई और मोहद्दिस काशानी रिवायत करते हैं कि माह-ए-सफ़र की पहली तारीख़ को इमाम हुसैन (अ.स.) का सर दमिश्क़ में लाया गया। यज़ीद ने इसे अपने सामने रखा और अपनी छड़ी से उसके दाँतों को छेड़ते हुए कहा, "काश मेरे क़बीले के वो लोग जो बद्र में मारे गए थे, और वो जो (उहद की जंग में) ख़ज़रज क़बीले को नेज़े के ज़ख़्मों की वजह से मातम करते हुए देखते थे, आज यहाँ होते।
बीबी ज़ैनब के ख़ुत्बों ने कूफ़ा को हिला कर रख दिया था। कूफ़ा के लोग पछतावे में मुब्तिला हो गए थे। शहर में बेक़रारी फैल गई थी। बाज़ारों में सरगोशियां हो रही थीं: 'हम ने क्या कर दिया? हम ने नबी के नवासे को दावत कैसे दी और फिर उसे कर्बला में बेदरदी से क़त्ल करने के लिए छोड़ दिया? हम कैसे नबी के नवासे की बेटियों को ग़ुलामों की तरह गलियों में घूमने दे सकते हैं? हम ने क्या कर दिया?'
दरबारे यज़ीद (ल:अ)
जब आख़िर कार क़ाफ़िला दमिश्क के मज़ाफ़ात में पहुँचा तो उमर सअद को एक पैग़ाम मिला कि क़ैदियों को दारुल हुकूमत में दाख़िल न किया जाए जब तक यज़ीद ने तमाम तैयारियाँ मुकम्मल न कर ली हों।
यज़ीद ने तमाम सफ़ीरों, ग़ैर मुल्की मुअज़्ज़ज़ीन और शहरियों के रहनुमाओं को अपने दरबार में मदऊ किया। लोगों को हुक्म दिया गया कि सड़कों पर क़तारें बना लें। मोसीकारों को मोसीकी बजाने के लिए कहा गया और रक़ासों को सड़कों पर रक़्स करने का हुक्म दिया गया। ऐसी थीं वो तक़रीबात जो ख़लीफ़ा ने इस्लाम के मुक़द्दस नबी के नवासे और नवासियों के दाख़िले के लिए मुनज़्ज़म की थीं जो इस्लामी सल्तनत के दारुल हुकूमत में पहुँचे थे!
बीबी सकीना
बीबी सकीना इमाम हुसैन की सबसे छोटी बेटी थीं। वो एक पुरजोश बच्ची थीं, मोहब्बत और ख़ुशी से भरी हुई। सब सकीना से मोहब्बत करते थे। वो बहुत मज़हबी भी थीं। उन्हें क़ुरआन पाक की तिलावत करना और अपनी नमाज़ें कभी न छोड़ना बहुत पसंद था। दो साल की उम्र से ही वो इस बात का बहुत ख़्याल रखती थीं कि अवामी मक़ामात पर उनका सर और चेहरा सही तौर पर ढका हुआ हो।
सकीना इमाम हुसैन की सबसे प्यारी बेटी थीं। हमारा इमाम अकसर कहा करते थे, "एक घर बग़ैर सकीना के जीने के क़ाबिल नहीं होगा!" उनके चेहरे पर हमेशा एक मीठी और ख़ुशगवार मुस्कुराहट रहती थी और उनका मिज़ाज बहुत दोस्ताना था। दूसरे बच्चे और बड़े दोनों उनकी सोहबत को पसंद करते थे। वो बहुत सखी थीं और जो कुछ उनके पास होता वो दूसरों के साथ बांटती थीं।
अज़ा-ए-हुसैन दमिश्क में
कर्बला के सानेहे ने हिजाज़ और इराक़ में अहल-ए-बैत के लिए गहरी हमदर्दी पैदा कर दी थी। यहां तक कि दमिश्क में भी कुछ लोगों ने पूछना शुरू कर दिया कि क्या नबी पाक के ख़ानदान के अफ़राद पर इतनी ज़्यादा मुसीबतें डालना ज़रूरी था।जब छोटी सी प्यारी सकीना का इंतेक़ाल हुआ और दमिश्क के लोगों को इस नन्ही बच्ची की मौत के बारे में पता चला जिसे उन्होंने देखा था और पसंद किया था, तो उन्होंने यज़ीद के ज़ुल्म के बारे में खुल कर बातें करना शुरू कर दीं। यज़ीद को डर था कि लोग उसके ख़िलाफ़ बग़ावत न कर दें। अब वो क़ैदियों से जान छुड़ाने के लिए बेचैन था। उसने इमाम ज़ैनुल आबिदीन को बुलाया और कहा कि वो उन्हें आज़ाद करने और शोहदा की मौत का मुआवज़ा देने के लिए तैयार है। उसने चौथे इमाम से ये भी पूछा कि क्या वो दमिश्क में रहना चाहते हैं या मदीना वापस जाना चाहते हैं। इमाम ज़ैनुल आबिदीन ने जवाब दिया कि वो अपनी फुफी ज़ैनब से मशवरा करेंगे।
सय्यदा ज़ैनब (स.अ.) का ख़ुत्बा दरबार-ए-इब्न ज़ियाद, कूफ़ा
सय्यदा ज़ैनब (स.अ.), जो इमाम अली बिन अबी तालिब (अ.स.) की बेटी हैं, ने इब्न ज़ियाद के महल में कूफ़ा के लोगों को मुख़ातिब करते हुए फ़रमाया::
अब सुनो! ऐ कूफ़ा वालो! ऐ फ़ख़्र करने वालो! ऐ धोके बाज़ो! ऐ अहद से फिर जाने वालो! ख़बरदार! तुम्हारी फ़रियाद कभी ख़त्म न हो और तुम्हारी आह-ओ-बुका कभी न रुके। बेशक तुम्हारी मिसाल उस औरत की है जो अपने हाथों से काता हुआ धागा ख़ुद ही उधेड़ देती है। तुमने अपने वादे फ़रेब से तोड़ दिए हैं और तुम्हारे अंदर सिर्फ़ ज़ाहिरी बनावट, ख़ुद पसन्दी, ग़ुरूर और बेईमानी रह गई है।तुमने नौकरों की चापलूसी और दुश्मनों की इश्वा-गरी को अपनी आदात बना लिया है।
तुम्हारी मिसाल उस घास की तरह है जो क़ब्रिस्तान में उगती है या उस ज़ेवर की मानिंद है जो मुर्दा के जिस्म पर सजा होता है। ख़बरदार! तुमने अपने लिए क्या बुरा अंजाम तैयार किया है जिसने तुम पर अल्लाह का ग़ज़ब नाज़िल कर दिया है और तुमने आख़िरत में अज़ाब का मक़ाम हासिल कर लिया है। तुम मेरे भाई के लिए रो रहे हो? बेशक अल्लाह की क़सम! तुम्हें रोना चाहिए, क्योंकि तुम इसके मुस्तहक़ हो। ज़्यादा से ज़्यादा रोओ और कम हंसो, क्योंकि तुम ज़िल्लत में मुलव्विस हो चुके हो और ऐसी रसवाई में फंस चुके हो जिसे कभी धो नहीं सकोगे।
तुम अपने आप को नबियों के मअदन और ख़त्म-ए-नबुव्वत के फ़र्ज़न्द के ख़ून से कैसे पाक करोगे, जो जवानी-ए-जन्नत के सरदार, मैदान-ए-जंग के सिपहसालार और तुम्हारे गिरोह के पनाहगाह थे। वो तुम्हारे लिए सुकून का मक़ाम थे और तुम्हारी भलाई के ज़ामिन थे।
वो तुम्हारे ज़ख़्मों को मंदमिल करते और जो भी शर तुम्हारी तरफ़ आता, उससे तुम्हें बचाते थे। तुम उनके पास आते थे जब आपस में झगड़ते थे। वो तुम्हारे बेहतरीन मुशीर थे और तुम उन पर भरोसा करते थे, और वो तुम्हारे रास्ते का चराग़ थे। ख़बरदार! तुमने अपने लिए क्या बुरा अंजाम तैयार किया है और क़यामत के दिन के लिए अपनी गर्दन पर क्या बोझ रख लिया है। हलाकत! हलाकत! तबाही! तुम्हारी तलाश बेकार हो जाए और तुम्हारे हाथ मफ़लूज हो जाएं कि तुमने अपनी रोज़ी की देखभाल हवाओं के सुपुर्द कर दी है।
तुमने अल्लाह के ग़ज़ब में एक जगह पाई है, जबकि तुम्हारे माथे पर ज़िल्लत और बदबख़्ती की मोहर साबित हो चुकी है। अफ़सोस तुम पर! क्या तुम जानते हो कि तुमने मुहम्मद (स.अ.व.) के प्यारे फ़र्ज़न्द को क़त्ल कर दिया? और तुमने उनसे कौन सा अहद तोड़ा? और उनके कौन से अज़ीज़ ख़ानदान को सड़कों पर निकाला? और उनसे कौन सा हिजाब-ए-हुरमत छीना? और उनसे कौन सा ख़ून बहाया? तुमने क्या बुरा काम किया है कि इसकी वजह से आसमान गिरने को है और ज़मीन बिखरने को है, और पहाड़ इतने बोझल हो गए हैं कि ज़मीन और आसमान भी उनका बोझ उठाने से क़ासिर हैं। तुम्हारे मामलात की दुल्हन गंजी, अजनबी, बे-हया, अंधी, बदसूरत और ग़मगीन है।
तुम्हें हैरानी है कि आसमानों से ख़ून क्यों बरस रहा है। आख़िरत का अज़ाब इससे ज़्यादा ज़िल्लत अन्गेज़ है और वहां कोई मददगार नहीं होगा। इस मोहलत को तुम्हें लापरवाह न कर दे, क्योंकि अल्लाह, जो ज़बरदस्त और बुलंद है, के ख़िलाफ़ कोई इक़्दाम नहीं कर सकता, और इंतक़ाम लेना उससे कभी नहीं टलता। नहीं, हरगिज़ नहीं, तुम्हारा रब तुम्हारे लिए घात में है।
यज़ीद से मुलाक़ात और बीबी ज़ैनब (अलैहिस्सलाम) और इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अलैहिस्सलाम)
के ख़ुत्बे की 10 मिनट की वीडियो क्लिप
[अंग्रेज़ी सबटाइटल्स के साथ].
http://www.youtube.com/watch?
बाक़र शरीफ़ अल-क़ुराशि की किताब : "ईमाम ज़ैनुल आबेदीन की ज़िन्दगी" से लिया गया :-
वही और रिसालत" की अक़लमंद ख़वातीन को क़ैदी बना कर कूफ़ा ले जाया गया, तो उमवी फौज ने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वाअलिहि वसल्लम) के मोअत्तर पौधे और जन्नत के जवानों के सरदार पर अपनी फतह को ज़ाहिर करने के लिए अपनी फतह के नक़ारे बजाए और अपने झंडे बुलंद किए। मुस्लिम अल-जस्सास ने इस मंज़र को बयान करते हुए कहा: "इब्न ज़ियाद ने मुझे कूफ़ा में गवर्नर के घर की मरम्मत करने के लिए बुलाया। जब मैं दरवाज़ों पर पलस्तर कर रहा था, मैंने कूफ़ा के हर कोने से चीखें सुनीं, तो मैं महल के ख़ादिम के पास गया और उससे पूछा: "कूफ़ा में यह शोर क्यों है?"
ख़ादिम ने जवाब दिया: "इस वक़्त, वह एक बाग़ी (खारिज़ी) का सर लेकर आएंगे जिसने यज़ीद के ख़िलाफ़ बग़ावत की थी।"
मैंने पूछा: "यह बाग़ी कौन है?"
"हुसैन बिन अली" जवाब मिला।
मुस्लिम अल-जस्सास ने कहा: "तो मैंने ख़ादिम को छोड़ दिया, अपने चेहरे पर हाथ मारा यहां तक कि मुझे अंधा होने का ख़तरा हुआ, मैंने पलस्तर से हाथ धोए, महल छोड़ दिया, और कननास की तरफ़ चला गया। जब मैं लोगों के साथ क़ैदियों और सरों के आने का इंतज़ार कर रहा था, चालीस ऊंट आए जिन पर ख़वातीन और बच्चे सवार थे, और अली बिन हुसैन एक बे-कजावा ऊंट पर सवार आए। उनकी गर्दन के दोनों तरफ़ से ख़ून बह रहा था। वह रो रहे थे और यह अशआर दोहरा रहे थे: ऐ बदकिरदार क़ौम, तुम्हारे इलाक़े को पानी न मिले,
[1] हयात अल- इमाम अल-हुसैन (अ:स) - वॉल-3 पेज 324 - 325.
ऐ क़ौम जिसने हमारे हक़ में हमारे नाना का एहतराम न किया, हमें बोझ उठाने वाले नंगे ऊंटों पर सवार कर के ले जा रहे हो, गोया हमने तुम्हारे लिए कोई दीन क़ायम नहीं किया![1][1]
जदलम बिन बशीर ने कहा: "जब मैं 61 हिजरी में कूफ़ा आया, तो अली बिन हुसैन औरतों के साथ कर्बला से कूफ़ा आए, उनके इर्द-गिर्द सिपाही थे। वह नंगे ऊंटों पर सवार थे। लोग उन्हें देखने के लिए बाहर निकल आए, तो कूफ़ा की औरतों ने उन पर रोया और मातम किया। मैंने देखा कि अली बिन हुसैन बीमारी से निढाल थे, उनकी गर्दन में ज़ंजीरें थीं और वह हथकड़ियां पहने हुए थे।[2] वह कमज़ोर आवाज़ में कह रहे थे: ‘यह हम पर रो और मातम कर रहे हैं! तो फिर हमें किसने क़त्ल किया?’[3]"
[3]”कूफ़ा वालों ने इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अलैहिस्सलाम) को घेर लिया, इस लिए उन्होंने सोचा कि उन्हें ख़िताब करना चाहिए ताकि उन्हें ये मालूम हो कि उन्होंने खुद पर और उम्मत पर क्या गुनाह किया है। इमाम (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह की हम्द व सना की, और फिर फ़रमाया: "ऐ लोगों! जो मुझे पहचानता है वो जानता है, और जो नहीं जानता, उसे मैं बता दूँ कि मैं अली बिन हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब हूँ। मैं उस शख्स का बेटा हूँ जिसकी हरमत पामाल की गई, जिसका माल लूट लिया गया, जिसके बच्चों को क़ैद कर लिया गया। मैं उस शख्स का बेटा हूँ जिसे फ़रात के किनारे बेदर्दी से ज़बह किया गया, ना खून के इंतकाम में और ना ही विरासत की वजह से। मैं उस शख्स का बेटा हूँ जो बदतर तरीक़े से क़त्ल किया गया। ये मेरे फ़ख़्र के लिए काफ़ी है।
“"ऐ लोगों! मैं तुम्हें अल्लाह के नाम पर क़सम देकर कहता हूँ: क्या तुम नहीं जानते कि तुमने मेरे वालिद को ख़त लिखा और फिर उन्हें धोखा दिया? क्या तुमने उन्हें अपना अहद, अपना वादा, और अपनी बैअत नहीं दी, फिर तुमने उनके ख़िलाफ़ जंग की? तुम बर्बाद हो जाओ उसके लिए जो तुमने अपनी जानों के साथ किया है, और अपनी बिगड़ी हुई सोच की वजह से!
[1]लिया गया, p. 333.
[2] शेख अल मुफ़ीद-,
"अल अमली" पेज 143.
[3] अब्द अल्लाह -
मक़्तल अल हुसैन
तुम किस नज़र से
वो ग़ुलाम जिन्होंने तारीख़ के चेहरे को सियाह किया, ज़ोर ज़ोर से रोने लगे और मातम करने लगे, और आपस में कहने लगे: “तुम बर्बाद हो चुके हो, और तुम्हें इसका इल्म भी नहीं है।”
इमाम (अलैहिस्सलाम) ने अपना ख़ुत्बा जारी रखते हुए फ़रमाया:“अल्लाह उस शख्स पर रहम करे जो मेरी नसीहत पर अमल करे, जो अल्लाह, उसके रसूल, और उनके अहल-ए-बैत के बारे में मेरी मीरास की हिफ़ाज़त करे, क्योंकि हमारे पास रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वाअलिहि वसल्लम) की सीरत में बेहतरीन नमूना मौजूद है।”
चुनांचे सब ने एक ज़बान हो कर कहा: “ऐ रसूल अल्लाह के बेटे, हम सुनेंगे और इताअत करेंगे, और हम आपकी अमानत की हिफ़ाज़त करेंगे। हम आपसे मुँह नहीं मोड़ेंगे, ना ही आपकी नाफ़रमानी करेंगे; लिहाज़ा, हमें हुक्म दें, अल्लाह आप पर रहम करे, हम आपके साथ जंग करेंगे जब आप जंग करेंगे, और हम सुलह करेंगे जब आप सुलह करेंगे; हम उनसे बरा'अत का एलान करते हैं जिन्होंने आप पर ज़ुल्म किया और आपके साथ नाहक़ किया।”
इमाम (अलैहिस्सलाम) ने इस झूटी फ़रमानबर्दारी के जवाब में फ़रमाया: “तुमसे ये मुमकिन नहीं है, ऐ धोखा देने वालो और मक्कार क़ौम! तुम्हारी ख़्वाहिश तुमसे बहुत दूर है। क्या तुम मेरे पास इस तरह आना चाहते हो जैसे तुम मेरे वालिद के पास आए थे? नहीं, उन फ़रिश्तों के रब की क़सम जो ऊपर जाते हैं और नीचे आते हैं, ज़ख़्म अभी तक नहीं भरा। मेरे वालिद कल ही क़त्ल किए गए, और उनका अहल-ए-बैत भी, और रसूल अल्लाह, मेरे वालिद, और मेरे ख़ानदान पर जो नुक़्सान पहुँचाया गया है, उसे अभी तक भुलाया नहीं जा सकता। इसका दर्द, अल्लाह की क़सम, मेरे दोनों पहलुओं के दरमियान है और इसकी तल्ख़ी मेरे हलक़ और तालू के दरमियान है। इसका घुटन मेरे सीने में बैठा हुआ है।” फिर इमाम (अलैहिस्सलाम) ने ख़ामोशी इख़्तियार की और उन धोखा बाज़ लोगों से मुँह मोड़ लिया जो इंसानियत के लिए रूसवाई का निशान बने हुए थे। यही वो लोग थे जिन्होंने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वाअलिहि वसल्लम) के मोअत्तर पौधे (यानि इमाम हुसैन) को क़त्ल किया, जो उन्हें आज़ाद कराने और उमवियों के ज़ुल्म व सितम से बचाने के लिए आए थे। इसके बाद, उन्होंने तौबा की और उन पर रोए।"
[1] इब्न नामा - मुसीरुल
अहसन
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वाअलिहि वसल्लम) के अहल-ए-बैत के क़ैदियों को कूफ़ा के गवर्नर इब्न मर्जाना (यानी उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद) के महल में दाख़िल किया गया। जब ज़ालिम इब्न मर्जाना ने इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अलैहिस्सलाम) को देखा जो बीमारी की शिद्दत से निढाल थे, तो उसने उनसे पूछा: "तुम कौन हो?"”
इमाम (अलैहिस्सलाम) ने जवाब दिया:
"मैं अली बिन हुसैन हूँ।"इमाम ने एहतियात से जवाब दिया: "मेरा एक बड़ा भाई भी था जिसका नाम अली था, जिसे तुमने क़त्ल किया। वह क़यामत के दिन तुमसे हिसाब लेगा।"
इब्न ज़ियाद ग़ुस्से से फट पड़ा और इमाम पर चिल्लाया: "अल्लाह ने उसे क़त्ल किया!" इमाम ने बहादुरी और साबित क़दमी से जवाब दिया: "अल्लाह मौत के वक़्त जानें क़ब्ज़ करता है; कोई भी अल्लाह की इजाज़त के बग़ैर नहीं मरता।" इब्न मर्जाना हैरान रह गया, वह नहीं जानता था कि इस नौजवान क़ैदी को क्या जवाब दे जिसने कुरआन के हवाले देकर उसे शिकस्त दी थी, इसलिए उसने ग़ुस्से में आकर कहा: "तुम्हें यह जुर्रत कैसे हुई कि तुम मुझसे इस तरह जवाब दो!"
ज़ालिम गुनहगार इब्न मर्जाना ने अपने एक तलवार-बदार को हुक्म दिया: "इस लड़के को ले जाओ और उसका सर क़लम कर दो!"
अक्लमंद ख़ातून सैयदा ज़ैनब, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वाअलिहि वसल्लम) की पोती, ने इमाम को अपने हाथों में ले लिया और बहादुरी से इब्न मर्जाना से कहा: "ऐ इब्न ज़ियाद, जो ख़ून तुमने बहाया है वह तुम्हारे लिए काफ़ी है! क्या तुमने वाक़ई इसके अलावा किसी और को ज़िंदा छोड़ा है? अगर तुम इसे क़त्ल करना चाहते हो, तो मुझे भी इसके साथ क़त्ल कर दो!"
ज़ालिम ने उनकी बहादुरी की तारीफ़ की और हैरत से तलवार-बदार से कहा: "इसे इनके लिए छोड़ दो! इनके रिश्ते की हैरतअंगेज़ बात है; वह इसके साथ क़त्ल होने की ख़्वाहिश रखती हैं!"
अगर सैयदा ज़ैनब का यह बहादुराना इक़दाम न होता, तो इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अलैहिस्सलाम) को क़त्ल कर दिया जाता और इमाम हुसैन (अलैहिस्सलाम) की बाक़ी नस्ल, जो ज़मीन पर भलाई और इज़्ज़त का ज़रिया थी, को मिटा दिया जाता। अपनी किताब 'अल-रिसाइल' में जाहीज़ ने नक़ल किया है कि इब्न मर्जाना ने अपने साथियों से इमाम ज़ैनुल आबिदीन के बारे में कहा: "मुझे इन्हें क़त्ल करने दो, क्योंकि वह इस नस्ल (यानी नस्ल-ए-हुसैन) का बाक़ी मन्दा हैं, इस लिए मैं इनके ज़रिए इस सिंग को काट दूँगा, इस बीमारी को ख़त्म कर दूँगा, और इस माद्दे को ख़त्म कर दूँगा।"
ताहम, उन्होंने उन्हें इमाम को क़त्ल करने से बाज़ रहने की तलक़ीन की, क्योंकि वह समझते थे कि इमाम अपनी बीमारी से तबाह हो जाएंगे।[1][1]”
नबी पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वआलिहि वसल्लम) की औरतों और बच्चों को कैदी बना कर दमिश्क ले जाया गया। उन की हालत ऐसी थी कि जिसे देख कर किसी की भी रूह पिघल जाती। कूफ़ा के तमाम लोग अपने नबी के कैदियों को देखने के लिए निकल आए। मर्द और औरतें उन पर रो रहे थे। इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अलैहुस्सलाम) उनके रविये पर हैरान हुए और फरमाया: "उनहोंने हमें कत्ल किया और तुम हम पर रो रहे हैं!"[3][3]”
[1] हयात अल ईमाम अल-हुसैन, वॉल-3, पेज-345-347
[2] मिर-अत अल-ज़माँ फ़ी तवारीख़ अल-अयाँ पेज-98, इब्न-अल-जौज़ी वॉल-5, इब्न साद, तबक़ात
[3] मिर-अत अल-ज़माँ फ़ी तवारीख़ अल-अयाँ पेज-99
गुनाहगार शमर बिन ज़िल-जौशन ने हुक्म दिया कि इमाम ज़ैनुल आबिदीन की गर्दन में रस्सी डाली जाए। ताऱीखदानो ने कहा: "इमाम ज़ैनुल आबिदीन ने इस पूरे सफर के दौरान उन बदतमीज़ लोगों से एक भी लफ़्ज़ न कहा, न ही उन से किसी चीज़ का सवाल किया, क्योंकि वे जानते थे कि ये लोग बदकार और क़मीने हैं, और वे उनकी किसी भी दरख़्वास्त का जवाब नहीं देंगे।"
कैदियों का काफिला दमिश्क के करीब एक मक़ाम पर पहुँचा और वहाँ रुका क्योंकि उमय्यदों ने शहर को सजाने की तैय्यारी की थी ताकि अपने जशनऔर इस फतह को ज़ाहिर किया जा सके जो अबू सफ़ीयान के पोते ने अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वआलिहि वसल्लम) के पोते पर हासिल की थी।
जब दमिश्क पूरी तरह सजा दिया गया, तो नबी पाक (सल्लल्लाहु अलैहि वआलिहि वसल्लम) के अहलेबैत (अ:स) के कैदियों को शहर में दाख़िल किया गया।
एक बूढ़ा शामी, जो झूठी अफवाहों की वजह से गुमराह हो चुका था, इमाम ज़ैन अल-आबिदीन (अलैहिस्सलाम) के करीब आया और उनसे कहने लगा: "सब तारीफें अल्लाह के लिए हैं जिसने तुम्हें नेस्तनाबूद किया और गवर्नर को तुम पर ग़लबा अता किया।"
इमाम (अलैहिस्सलाम) ने इस बूढ़े शामी की तरफ देखा। इमाम ने समझ लिया कि यह बूढ़ा शामी हक़ीक़त को समझने से क़ासिर है और उमवियों के झूठे मीडिया से धोखा खा चुका है, तो इमाम ने उससे पूछा: "शेख़, क्या आपने कुरआन पढ़ा है?"
"जी हाँ," उस शख्स ने जवाब दिया।इमाम (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया: "क्या आपने वह आयत पढ़ी है जिसमें कहा गया है: 'कहो, मैं तुमसे इस पर कोई अजर नहीं मांगता सिवाए इसके कि तुम मेरे अक़रबा से मोहब्बत करो,' और वह आयत जिसमें कहा गया है: 'और (नबी के) अक़रबा को उनके हक़ दो,' और वह आयत जिसमें कहा गया है: 'और जान लो कि जो कुछ तुम ग़नीमत में हासिल करते हो, उसमें से पांचवां हिस्सा अल्लाह के लिए है और रसूल के लिए है और (नबी के) अक़रबा के लिए है'? ”
[1] अनसाब अल-अशराफ़, सवाल-1/वॉल 1
इमाम ने फ़रमाया: "अल्लाह की क़सम, हम ही वह अक़रबा हैं जिनका इन तमाम आयतों में ज़िक्र है।" फिर इमाम ने उससे पूछा: "शेख़, क्या आपने यह अल्फ़ाज़ पढ़े हैं: 'बेशक अल्लाह चाहता है कि ऐ नबी के घर वालो, तुमसे हर क़िस्म की नापाकी दूर करे और तुम्हें खूब पाकीज़ा बनाए'?" ”
“"जी हाँ," उसने जवाब दिया।“इमाम ने फ़रमाया: "हम वही अहल-ए-बैत हैं जिन्हें अल्लाह ने आयत-ए-तथहीर के ज़रिये मुन्तख़ब किया है।"
बूढ़ा शामी कांपने लगा। उसने तमन्ना की कि ज़मीन उसे निगल ले इससे पहले कि उसने यह अल्फ़ाज़ कहे होते। फिर उसने इमाम से पूछा: "मैं आपको अल्लाह के वास्ते पूछता हूँ, क्या वाक़ई आप वही हैं?"”
“इमाम ने जवाब दिया: "हमारे नाना, अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम) की क़सम, हम ही हैं, इसमें कोई शक नहीं।"
तभी बूढ़ा शामी इमाम ज़ैन अल-आबिदीन (अलैहिस्सलाम) के हाथों पर गिर गया और उन्हें चूमने लगा। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, और उसने कहा: "मैं अल्लाह के सामने उन लोगों से बराअत का ऐलान करता हूँ जिन्होंने आपको क़त्ल किया!"
बूढ़े शामी ने इमाम से अपने पिछले गुस्ताखाना कलिमात पर माफ़ी तलब की, तो इमाम (अलैहिस्सलाम) ने उसे माफ़ कर दिया।
[1]”[1] हयात अल-ईमाम-अल-हुसैन, वॉल 3, पेज . 371.
यज़ीद के सिपाहियों ने इमाम हुसैन (अ:स) की औरतों और बच्चों को इस तरह रस्सियों से बांध दिया जैसे भेड़ों को बांधा जाता है। रस्सी का एक सिरा इमाम ज़ैन अल-आबिदीन (अ:स) के गले में था, फिर उनकी फूफी जनाब ज़ैनब (सलामुल्लाह अलैहा) के गले में, और इसी तरह अल्लाह के रसूल अल्लाह (स:अ:व:व) की तमाम बेटियों के गले में था। जब भी वह चलते हुए थक जाते तो यज़ीद के सिपाही उन्हें कोड़े मारते। उन्हें इसी हालत में ले जाया गया जिसका खौफ़ पहाड़ों को फाड़ दे और उन्हें यज़ीद के सामने ला खड़ा किया। तो इमाम ज़ैन अल-आबिदीन (अ:स) ने उसकी तरफ रुख़ किया और उससे पूछा: "आपका क्या ख़याल है कि हमारे नाना, अल्लाह के रसूल (स:अ:व:व), का रद्द-ए-अमल क्या होता अगर उन्होंने हमें इस हालत में देखा होता?" ज़ालिम यज़ीद धड़ाम से गिर पड़ा। उसके दरबार में मौजूद तमाम अफ़राद रो पड़े। यज़ीद ने इस मनलाक मंजर का दर्द महसूस किया, उसने कहा: "अल्लाह इब्न मरजाना (इब्न ज़ियाद) को बुरा माने, अगर उसका आप के साथ कोई रिश्ता होता तो वह आप के साथ यह ना करता; वह आपको इस हालत में ना भेजता।" फिर ज़ालिम यज़ीद ने रस्सियों को काटने का हुक्म दिया, इमाम ज़ैन अल-आबिदीन (अ:स) की तरफ रुख़ किया और उनसे कहा: "ऐ अली, तुमने कैसे देखा जो अल्लाह ने तुम्हारे वालिद हुसैन (अ:स) के साथ किया?"
इमाम हुसैन (अ:स) के बहादुर बेटे (ज़ैन अल-आबिदीन) ने सुकून और इत्मीनान के साथ जवाब दिया: "जो मुसीबत ज़मीन या तुम्हारे अपने नफ़्सों पर आती है, वह एक किताब में पहले से लिखी होती है, इससे पहले कि हम उसे उजागर करें; यह अल्लाह के लिए आसान है, ताकि तुम उस चीज़ पर ग़म ना करो जो तुम्हें मिलती है और उस चीज़ पर फ़ख़्र ना करो जो तुम्हें मिलती है। और अल्लाह उन लोगों को पसंद नहीं करता जो ख़ुदपरस्त और फ़ख़्र करने वाले हैं।"
ज़ालिम यज़ीद गुस्से से फट पड़ा, उसकी ख़ुशी ख़त्म हो गई, और उसने यह अल्फ़ाज़ पढ़े: "जो मुसीबत तुम पर आती है वह तुम्हारे हाथों के आमाल की वजह से है।" इमाम ने उससे कहा: "यह (आयत) उन लोगों के लिए है जो ज़ुल्म करते हैं, ना कि उनके लिए जो ज़ुल्म का शिकार होते हैं।" फिर उसने उससे रुख़ मोड़ लिया और उसे और उसकी हैसियत को हक़ीर समझा।
[1]यज़ीद ने तमाम लोगों को अपने महल में आने की इजाज़त दी, तो उसके महल का हाल लोगों से भर गया जो उसके झूठे फतह पर मुबारकबाद देने आए थे। वह ख़ुश और मुतमइन था, क्योंकि दुनिया उसके सामने झुक गई थी, और बादशाही सिर्फ़ उसकी थी। उसने ख़तीब को हुक्म दिया कि वह मिंबर पर चढ़े और इमाम हुसैन और उनके वालिद अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ:स) पर तुहमत लगाए। [1] माख़्ज़ (लिया गया) पेज 376.
ख़तीब ने मिंबर पर चढ़ कर नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम) के पाक ख़ानदान की ग़ीबत की, और फिर यज़ीद और उसके वालिद मुआविया की झूठी तारीफ की। तब इमाम ज़ैन अल-आबिदीन (अ:स) ने उसे टोका, कहते हुए: "अफ़सोस है तुम पर, ख़तीब! तुमने मख़लूक़ की रज़ा के लिए ख़ालिक़ का ग़ज़ब खरीदा है, तो अपनी जगह जहन्नम में ले लो।"
फिर इमाम ने यज़ीद की तरफ रुख़ किया और उससे कहा: "क्या आप मुझे इस मिंबर पर चढ़ने की इजाज़त देते हैं ताकि मैं एक ऐसा ख़ुत्बा दूं जो अल्लाह, अल-अज़ीज़, को ख़ुश करे और इन लोगों के लिए भलाई का बाइस हो?"
हाज़िरीन इस बीमार जवान से हैरान रह गए, जिसने ख़तीब और गवर्नर को टोका जब कि वह क़ैदी था। यज़ीद ने इनकार किया, लेकिन लोगों ने इसरार किया। उन्होंने उससे कहा: "अगर वह मिंबर पर चढ़ेगा तो वह नीचे नहीं उतरेगा जब तक कि वह मुझे और अबू सफ़यान के ख़ानदान को बेनक़ाब ना करे।"
लोगों ने पूछा: "यह बीमार जवान क्या करेगा?"
लोग इमाम को नहीं जानते थे। वह समझते थे कि वह आम लोगों की तरह हैं, लेकिन ज़ालिम यज़ीद उन्हें जानता था, उसने लोगों से कहा: "यह वो लोग हैं जो इल्म के साथ पले बढ़े हैं।"
लोगों ने दबाव डाला यहाँ तक कि यज़ीद ने मान लिया। इमाम मिंबर पर चढ़े और तारीख़ में सबसे शानदार ख़ुत्बा दिया। उन्होंने लोगों को रुला दिया। लोगों में उलझन पैदा हुई क्योंकि इमाम का ख़ुत्बा उनके दिलों और जज़्बात पर क़ाबू पा गया।
यह वह कुछ है जो उन्होंने कहा:
"ऐ लोगो, हमें छह चीज़ें दी गईं और सात चीज़ों के साथ हम पर फ़ज़्ल किया गया: हमें इल्म, बर्दबारी, नर्मी, फ़साहत, बहादुरी, और हमारे दिलों में मोहब्बत अता की गई। हम पर इस लिए फ़ज़्ल किया गया कि हम में से मुन्तख़ब नबी मुहम्मद (स:अ:व:व) आए, अल-सिद्दीक़, अल-तय्यार, अल्लाह और नबी का शेर (स:अ:व:व), दुनिया की औरतों की सरदार फ़ातिमा ज़हरा (स:अ), और इस क़ौम के जन्नत के जवानों के सरदार आए।"
अपने ख़ानदान का तारुफ़ कराने के बाद, इमाम ने उनके नमायां फ़ज़ाइल को बयान करते हुए अपने ख़ुत्बे को जारी रखा।:
जो मुझे पहचानता है वह जानता है, और जो नहीं पहचानता, उसे मैं बताता हूँ कि मैं कौन हूँ और किस ख़ानदान से ताल्लुक रखता हूँ: मैं मक्का और मिना का बेटा हूँ; मैं ज़मज़म और सफ़ा का बेटा हूँ; मैं उसका बेटा हूँ जिसने चादर के किनारों से ज़कात अदा किया; मैं उस बेहतरीन शख्स का बेटा हूँ जिसने कभी तहबंद और कपड़े पहने (हज के); मैं उस बेहतरीन शख्स का बेटा हूँ जिसने कभी चप्पल पहनी और नंगे पांव चला; मैं उस बेहतरीन शख्स का बेटा हूँ जिसने कभी काबा का तवाफ़ किया और सफ़ा और मरवा के दरमियान सई की; मैं उस बेहतरीन शख्स का बेटा हूँ जिसने हज अदा किया और तलबिया कहा (लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक); मैं उसका बेटा हूँ जिसे बुराक़ पर हवाई सफर कराया गया; मैं उसका बेटा हूँ जिसे मस्जिद अल-हराम से मस्जिद अल-अक्सा तक ले जाया गया, पस, पाक है वो ज़ात जिसने (अपने बंदे को) सफर कराया; मैं उसका बेटा हूँ जिसे जिब्राइल ने सदरतुल मुन्तहा तक पहुँचाया; मैं उसका बेटा हूँ जिसने (अपने रब के) इतना करीब किया की वह दो कमानों के बराबर या उससे भी ज़्यादा करीब हो गया; मैं उसका बेटा हूँ जिसने आसमानों के फ़रिश्तों की इमामत की; मैं उसका बेटा हूँ जिस पर क़ादिर मुतलक़ ने वही की जो वही थी; मैं मुहम्मद अल-मुस्तफ़ा का बेटा हूँ; मैं अली अल-मुर्तज़ा का बेटा हूँ; मैं उसका बेटा हूँ जिसने मखलूक से उस वक्त तक लड़ाई की जब तक उन्होंने कहा: "अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।" मैं उसका बेटा हूँ जिसने अल्लाह के रसूल (स:अ:व:व) के सामने दो तलवारों से वार किया और दो नेज़ों से हमला किया, दो बार हिजरत की, दो बार (नबी से) बैअत की, दो क़िब्लों की तरफ़ नमाज़ पढ़ी, बद्र और हुनैन में (काफिरों से) लड़ाई की और अल्लाह पर कभी भी इतना भी कुफ्र नहीं किया जितना कि एक पलक झपकने में होता है। मैं बेहतरीन मोमिनों का बेटा हूँ, नबियों का वारिस हूँ, काफिरों को तबाह करने वाला हूँ, मुसलमानों का क़ायद हूँ, मुजाहिदीन का नूर हूँ, इबादतगुज़ारों का ज़ेवर हूँ, रोने वालों का ताज हूँ, सब्र करने वालों में सबसे ज्यादा साबिर हूँ, यासीन के ख़ानदान से सब्र करने वालों में सबसे बेहतर हूँ, और दुनिया के बाशिंदों के रब के रसूल का बेटा हूँ। मैं उसका बेटा हूँ जिसकी मदद जिब्राइल ने की, जिसकी हिमायत मीकाईल ने की। मैं उसका बेटा हूँ जिसने मुसलमानों का दिफ़ा किया, बैअत के बाद पलटने जाने वालों , ज़ालिमों और मुरतदों को क़त्ल किया, अपने दुश्मनों से लड़ाई की, क़ुरैश में से उन लोगों में सबसे अफ़ज़ल हूँ जो जंग के लिए रवाना हुए, मोमिनों में सबसे पहले अल्लाह को जवाब देने वाला हूँ, तमाम पिछले लोगों पर सबक़त लेने वाला हूँ, जारिहिन को तोड़ने वाला हूँ, दहरियों को तबाह करने वाला हूँ, अल्लाह के मुनाफ़िकों के खिलाफ़ तीर हूँ, इबादतगुज़ारों की हिकमत की ज़बान हूँ, अल्लाह के दीन का हिमायती हूँ, अल्लाह के मामले का मोहाफ़िज़ हूँ, अल्लाह की हिकमत का बाग़ हूँ, अल्लाह के इल्म का हामिल हूँ, बर्दबार, सख़ी, मेहरबान, पाक, अबतही, राज़ी, आसानी से राज़ी होने वाला, बहादुर, दिलेर, साबिर, रोज़ेदार, शाइस्ता, साबित क़दम, इज़्ज़तदार, कमर तोड़ने वाला, इत्तहादियों को बिखेरने वाला, सबसे ज्यादा पुरसुकून, घोड़े को आज़ाद करने में सबसे बेहतर, ज़बान में सबसे ज्यादा बहादुर, अज़्म में सबसे मजबूत, सबसे ज्यादा ताकतवर, एक शेर, मुसलसल बारिश कराने वाला हूँ जिसने उन्हें (दुश्मनों को) जंगों में तबाह किया और हवा में बिखेर दिया, हिजाज़ का शेर, मोजिज़े का मालिक, इराक का दनबा, नस के मुताबिक और लियाक़त के लिहाज़ से इमाम, मक्की, मदनी, अबतही, तिहामी, ख़ैआनी, अक़बा, बदरी, अहदी, शजरी, मुहाजिर, अरबों का सरदार, जंग का शेर, मशअरीन का वारिस, दो नवासों (हसन और हुसैन) का बाप, मोजिज़ात का ज़ाहिर करने वाला, लश्करों को मुन्तशर करने वाला, चमकता हुआ शिहाब-ए-साक़िब, रोशनी का पैरोक़ार, अल्लाह का ग़ालिब शेर, हर तालिब की दरख़्वास्त, हर ग़ालिब पर ग़ालिब, ये मेरे दादा अली इब्ने अबी तालिब हैं। मैं फातिमा, पाकदामन का बेटा हूँ। मैं औरतों की सरदार का बेटा हूँ। मैं पाक, कुंवारी (ख़ातून) का बेटा हूँ। मैं रसूल के हिस्से का बेटा हूँ, अल्लाह उन पर और उनके ख़ानदान पर रहमत नाज़िल फ़रमाए।[1] मैं उसका बेटा हूँ जिसका खून बहाया गया। मैं उसका बेटा हूँ जिसे कर्बला में ज़बह किया गया। मैं उसका बेटा हूँ जिस पर जिन्नात ने अंधेरों में रोया और जिसके लिए हवा में परिंदे रोए। [2][2]”
इमाम (अ:स) मुसलसल फरमाते रहे "मैं हूँ...." यहाँ तक कि लोगों के दरमियान आह-ओ-बका शुरू हो गई। यज़ीद ने सोचा कि कहीं फसाद न बरपा हो जाए, क्योंकि इमाम (अ:स) ने अपने खिताब के ज़रिये एक सक़ाफ़ती बग़ावत शुरू कर दी थी जब उन्होंने शामीयों के सामने अपना तारुफ़ करवाया और उन्हें वो हक़ायक बताए जो वो नहीं जानते थे। चनाँचे यज़ीद ने मोअज़्ज़िन को अज़ान देने का हुक्म दिया और वो बोला: "अल्लाहु अकबर!"”
इमाम (अ:स) ने उसकी तरफ रुख़ कर के फ़रमाया: "तुमने उस अज़ीम हस्ती को बड़ा कहा है जो नाक़ाबिल-ए-पैमाइश है और जिसे हवास से महसूस नहीं किया जा सकता, अल्लाह से बड़ा कोई नहीं है।"
मोअज़्ज़िन ने कहा: "अशहदु अल्ला इलाहा इल्लल्लाह!"
अली बिन हुसैन (अ:स) ने फ़रमाया: "मेरे बाल, मेरी खाल, मेरा गोश्त, मेरा खून, मेरा दिमाग़, और मेरी हड्डियाँ गवाही देती हैं कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं है।"
मोअज़्ज़िन ने कहा: "अशहदु अन्ना मुहम्मदन रसूलुल्लाह!"
इमाम (अ:स) ने यज़ीद की तरफ रुख़ किया और उससे पूछा: "यज़ीद, मुहम्मद तुम्हारे नाना हैं या मेरे? अगर तुम कहो कि वो तुम्हारे नाना हैं तो तुम झूटे हो, और अगर तुम कहो कि वो मेरे नाना हैं, तो फिर तुमने उनके ख़ानदान को क्यों क़त्ल किया?"
[1]”यज़ीद ख़ामोश हो गया और कोई जवाब न दे सका, क्योंकि अज़ीम नबी इमाम ज़ैनुल आबिदीन (अ:स)के नाना थे। यज़ीद का नाना अबू सुफ़यान था जो नबी (स:अ:व:व) का जानी दुश्मन था। शामीयों को एहसास हो गया कि वो गुनाहों में डूबे हुए हैं, और ये कि उमवी हुकूमत ने उन्हें गुमराह करने में कोई कसर न छोड़ी थी।
इमाम (अ:स) ने अपने खिताब को नबी के ख़ानदान का तारुफ़ कराने तक महदूद रखा। उन्होंने उन्हें बताया कि नबी का ख़ानदान अल्लाह के नज़दीक बहुत बुलंद मक़ाम रखता है, कि उन्होंने इस्लाम के दुश्मनों के खिलाफ़ जिहाद किया, और कि उन्होंने बहुत सी तकलीफें बर्दाश्त कीं। इमाम (अ:स) ने इन मुआमलात के अलावा कुछ नहीं कहा। मैं (मुसन्निफ़) समझता हूँ कि इन मुआमलात तक महदूद रहना सब से ज्यादा हैरतअंगेज़ एहतियात और फ़साहत की इंतिहाई क़िस्मों में से है। इसकी वजह यह है कि शामी नबी के ख़ानदान के बारे में कुछ नहीं जानते थे, सिवाए उन झूटी बातों के जो झूटे उलमा ने उनके खिलाफ़ गढ़ रखी थीं; हुकूमत और उसके अज्रती गुलामों ने शामीयों को नबी के ख़ानदान से दुश्मनी और उमवियों की इताअत पर परवान चढ़ाया था।
बहरहाल, इमाम (अ:स) के खिताब का शामीयों पर बहुत बड़ा असर हुआ, जिन्होंने खुफ़िया तौर पर एक दूसरे को उमवियों के झूटे ज़राए इब्लाग़ के बारे में बताया, और उस मायूसी और नुक्सान के बारे में बात की जिस में वो मुब्तिला थे, चनाँचे उनका यज़ीद [1] के बारे में रवैया तबदील हो गया और वो उसे हिक़ारत की नज़र से देखने लगे।
ईमाम सज्जाद (अ:स) के ख़ुत्बे के एक और तर्जुमा
दरबारे यज़ीद में ईमाम सज्जाद (अ:स) का ख़ुत्बा
अल्लाह तआला की हम्द व सना के बाद, इमाम (अलैहिस्सलाम) ने फरमाया: "ऐ लोगो! हमें छः फज़ाइल अता किए गए और सात बरतरियों से सरफ़राज़ किया गया: इल्म, बर्दबारी, सखावत, फसाहत, शुजात और मोमिनीन के दिलों में मोहब्बत और हमें इस बात से बरतरी दी गई कि नबी मुख़्तार, मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम) हम में से हैं। और सिद्दीक हम में से हैं। और परों वाला हम में से है। और हम में से अल्लाह का शेर और नबी का शेर है। और हम में से ख़वातीन की सरदार, फ़ातिमा, पाकीज़ा हैं। और हम में से इस उम्मत के दो बेहतरीन नवासे और जन्नत के दो नौजवानों के सरदार हैं।
जो मुझे जानते हैं वो जानते हैं, जो नहीं जानते, उन्हें मेरे ख़ानदान और नसब के बारे में बताया जाएगा। मैं मक्का और मिना का बेटा हूँ। मैं ज़मज़म और सफ़ा का बेटा हूँ। मैं उसका फ़र्ज़न्द हूँ जिसने ज़कात को अपनी चादर के कोने में उठाया था। मैं उनमें से हूँ जो बेहतरीन चादर और कम्बल ओढ़ते थे। मैं उनमें से हूँ जो कभी जूते पहनते और कभी नंगे पाँव चलते थे। मैं उनमें से हूँ जो काबा का तवाफ़ करते थे या सई करते थे। मैं उनमें से हूँ जो हज के लिए गए और 'लब्बैक' की तिलावत की।
मैं उसका फ़र्ज़न्द हूँ जो बुराक़ की पुश्त पर सवार हुआ। मैं उसका फ़र्ज़न्द हूँ जिसे रात के वक़्त मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक्सा तक ले जाया गया। पाक है वो जो रात के वक़्त उसे ले गया। मैं उसका फ़र्ज़न्द हूँ जिसे जिब्राईल (अलैहिस्सलाम)
सिदरतुल मुन्तहा)तक ले गए।. मैं उसका फ़र्ज़न्द हूँ जो दो कमानों के फ़ासले पर या इससे भी कम था। मैं उसका बेटा हूँ जिसने आसमान के फ़रिश्तों की इमामत की। मैं उसका फ़र्ज़न्द हूँ जिस पर अल्लाह ने वो कुछ नाज़िल किया जो उसने नाज़िल किया। मैं मुहम्मद मुस्तफ़ा (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम) का बेटा हूँ।
मैं अली मुरतज़ा (अलैहिस्सलाम) का बेटा हूँ। मैं उसका बेटा हूँ जिसने मखलूकात की नाक पर ऐसी ज़र्ब लगाई कि वो कहने लगे: "अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं।" मैं उसका बेटा हूँ जिसने नबी की ख़िदमत में दो तलवारों से जेहाद किया, दो नेज़ों से वार किए, दो हिजरतें कीं, दो बैअतें कीं, दो क़िब्लों की तरफ़ नमाज़ पढ़ी, बद्र और हुनैन की लड़ाइयों में हिस्सा लिया और एक लम्हे के लिए भी अल्लाह का इंकार नहीं किया। मैं सालेह मोमिनीन का बेटा हूँ, नबियों का वारिस हूँ, मुर्तद्दों का ख़ात्मा करने वाला हूँ, मुसलमानों का क़ाइद हूँ, मज़हबी जंगजूओं की रौशनी हूँ, इबादतगुज़ारों का ज़ेवर हूँ, रोने वालों का ताज हूँ, सबर करने वालों में सबसे ज़्यादा सबर वाला हूँ, बेहतरीन नमाज़ गुज़ार हूँ, ख़ानदान-ए-यासीन में से हूँ, और रब्बुल आलमीन के रसूल का ख़ानदान हूँ। मैं उसका फ़र्ज़न्द हूँ जिसे जिब्राईल ने हिमायत दी और मीकाईल ने मदद की। मैं मुसलमानों की इज़्ज़त के मुहाफ़िज़ और नाकसीन, क़ासितीन और मारिकीन के क़ातिल का बेटा हूँ।
1और वो जो ज़ालिम दुश्मनों के ख़िलाफ़ जेहाद करने वाला है, वो जो क़ुरैश के दरमियान सबसे मुअज्ज़ज़ है और वो जो अल्लाह की पुकार पर सबसे पहले ईमान लाया, सबसे सीनियर, मुजरिमों को सज़ा देने वाला, मुशरिकों का ख़ात्मा करने वाला और मुनाफ़िक़ीन के ख़िलाफ़ अल्लाह का तीर है। इबादतगुज़ारों की हिकमत की ज़बान, अल्लाह के दीन का मददगार और अल्लाह के अम्र का मालिक, इलाही हिकमत का मुहाफ़िज़ और ख़ुदा के इल्म का ख़ज़ाना उसे अता किया गया था। सखी, ख़ुश बयान और पाकीज़ा, जिसकी वजह से मक्का के वादियों के लोग ख़ुश और मसरूर हुए।
बाहदुर जंगजू, सबर करने वाला रोज़ा दार, रात का मुख़लिस इबादतगुज़ार, बहादुर, कमर काटने वाला, गरोहों को मुंतशिर करने वाला, जो दिल के सबसे मजबूत और सबसे ज़्यादा फ़ातेह था। सबसे ज़्यादा निडर ज़बान, सबसे ज़्यादा पुख्ता इरादे वाला, एक बाहदुर शेर और शदीद हमला करने वाला।
1 जंगों में वो उन्हें मार कर बकरियों और भेड़ों की तरह मुंतशिर और तबाह कर देता था। हिजाज़ का शेर, मुअजिज़ा दिखाने वाला, इराक़ का रहनुमा। इमाम, हक़ और मज़हबी नुसूस के ज़रिए मुक़र्रर, मक्का और मदीना का बाशिंदा, बतहा और तहामा का रहनुमा, ख़ैफ और अक़बा का बाशिंदा, बद्र और उहद में मौजूद, शजरह के तहत बैअत करने वाला, अरबों में मुहाजिर, उनका सरदार, जंगों में शेर की मानिंद, दो निशानियों का वारिस, दो नवासों का बाप, मुअजिज़े दिखाने वाला और अफ़्वाज को मुंतशिर करने वाला। एक रौशन सितारा, रौशनी की सूरत। अल्लाह का फ़ातेह शेर, हर ख़्वाहिश करने वाले का मक़सद, हर फ़ातेह पर ग़ालिब, वही हैं जो हमारे दादा अली बिन अबी तालिब (अलैहिस्सलाम) हैं।
मैं फ़ातिमा ज़हरा (सल्लामुल्लाह अलैहा) का बेटा हूँ। मैं ख़वातीन की सरदार का बेटा हूँ। मैं उस पाक और पाकीज़ा ख़ातून का बेटा हूँ। मैं नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व आलेही वसल्लम) के महबूब का बेटा हूँ।
1इसके बाद इमाम (अलैहिस्सलाम) ने कर्बला के मसाएब का ज़िक्र किया, जिससे दरबार में अफ़रातफ़री मच गई। इमाम ने दरबार में तुग़्यानी और मसाएब का ज़िक्र किया जो मुकम्मल न हो सका क्योंकि यज़ीद ने अज़ान देने का हुक्म दिया, क्योंकि वो जानता था कि फ़ज़ाइल का इंकार करना आसान है, लेकिन मसाएब का इंकार करना मुमकिन नहीं। इस ख़ुत्बे में ग़ौर करने की बात ये है कि इमाम ने इब्तिदा में तमाम इस्लामी अलामात का ज़िक्र किया और अपनी विरासत का ऐलान किया और उसके बाद अपने बड़ों की फ़ज़ीलत बयान की ताकि देखें कि इनमें से किसका ताग़ूत चैलेंज करता है। लेकिन कर्बला की तारीख़ गवाह है कि यज़ीद ख़ुत्बे के किसी हिस्से को चैलेंज नहीं कर सका।
इसके बरअक्स, उसने अज़ान शुरू करवा दी, जो इमाम की वाज़ेह फ़तह का ऐलान था; वो जो नबुव्वत को बनी हाशिम की तरफ़ से एक ड्रामा क़रार देता था, वही "अशहदु अन्ना मुहम्मदन रसूल अल्लाह" का ऐलान करवा रहा था,
1 ख़्वारिज़्मी, मक़्तल 2/69-70और इमाम (अलैहिस्सलाम) ने उसी मुकाम पर अपने हुक़ूक़ का ऐलान किया और इमामत के ज़िक्र की बुनियाद रखी जो नबुव्वत के साथ जारी है; ये वही अमल है जो आज तक जारी है और शाही दरबारों की तबाही के बाद भी मज़लूमियत की बुनियादें क़ायम हैं।"
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