ज़्यारत अमीनुल्लाह
इमाम अली (अ.) की ज़ियारत
यह ज़ियारत बहुत ज़्यादा मुअ़तबर और बाअज़मत है। अल्लामा मजलिसी फ़रमाते हैं कि मत्न और सनद के लिहाज़ से यह सबसे बेहतरीन सिग़ा है और तमाम मुक़द्दस मज़ारात पर इसे पढ़ना मुस्तहब है।
ज़ियारत की अहमियत



अल्लामा मजलिसी (रह.) इस ज़ियारत को मत्न और सनद के लिहाज़ से तमाम ज़ियारतों में सबसे अफ़ज़ल क़रार देते हैं; और इज़ाफ़ा फ़रमाते हैं कि तमाम मुक़द्दस मज़ारात पर इस ज़ियारत का पढ़ना मुनासिब है; जैसा कि जाबिर से, इमाम बाक़िर (अ.) के हवाले से, भरोसेमंद सनद के साथ नक़्ल हुआ है।
इमाम सज्जाद (अ.) इमाम अली (अ.) की ज़ियारत के लिए गए, क़ब्र के क़रीब रुके, रोए और फिर यह ज़ियारत पढ़ी:
اَلسَّلَامُ عَلَیْكَ یَا اَمِیْنَ اللّٰهِ فِیْ اَرْضِهٖ
अस्सलामु अलैक या अमीनल्लाह फ़ी अरज़िही
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह की ज़मीन में उसके अमीन

وَ حُجَّتَهٗ عَلٰی عِبَادِهٖ
व हज्जतहू अला इबादिही
और उसके बन्दों पर उसकी हुज्जत

اَلسَّلَامُ عَلَیْكَ یَا اَمِیْرَ الْمُؤْمِنِیْنَ
अस्सलामु अलैक या अमीरल मोमिनीन
आप पर सलाम हो, ऐ अमीरुल मोमिनीन

اَشْهَدُ اَنَّكَ جَاهَدْتَ فِی اللّٰهِ حَقَّ جِهَادِهٖ
अश्हदु अन्नका जाहद्ता फ़िल्लाहि हक़्क़ा जिहादिही
मैं गवाही देता हूँ कि आपने अल्लाह की राह में वैसा ही जिहाद किया जैसा उसका हक़ था

وَ عَمِلْتَ بِكِتَابِهٖ
व अमिल्ता बि किताबिही
और आपने उसकी किताब पर अमल किया

وَ اتَّبَعْتَ سُنَنَ نَبِیِّهٖ
वत्तबा‘ता सुनना नबिय्यिही
और उसके नबी की सुन्नत की पैरवी की

صَلَّی اللّٰهُ عَلَیْهِ وَ اٰلِهٖ
सल्लल्लाहु अलैहि वा आलिही
अल्लाह की रहमत हो उन पर और उनकी आल पर

حَتّٰی دَعَاكَ اللّٰهُ اِلیٰ جِوَارِهٖ
हत्ता दआका अल्लाहु इला जिवारिही
यहाँ तक कि अल्लाह ने आपको अपने क़ुर्ब में बुला लिया

فَقَبَضَكَ اِلَیْهِ بِاِخْتِیَارِهٖ
फ़क़बज़का इलैहि बिख़्तियारिही
तो उसने अपनी मर्ज़ी से आपको अपनी तरफ़ उठा लिया

وَ اَلْزَمَ اَعْدَاۤئَكَ الْحُجَّۃَ
व अलज़मा अअदाअका अलहुज्जत
और आपके दुश्मनों पर हुज्जत क़ायम कर दी

مَعَ مَالَكَ مِنَ الْحُجَجِ الْبَالِغَۃِ عَلٰی جَمِیْعِ خَلْقِهٖ
मअ मा लक मिन अलहुजजिल बालिग़ति अला जमीअ ख़ल्क़िही
जबकि तमाम मख़लूक़ पर आपके पास मुकम्मल दलीलें मौजूद थीं

اَللّٰهُمَّ فَاجْعَلْ نَفْسِیْ مُطْمَئِنَّۃً بِقَدَرِكَ
अल्लाहुम्मा फ़जअल नफ़्सी मुत्मइन्नतन बि क़दरिका
ऐ अल्लाह! मेरी जान को तेरी तक़दीर पर मुत्मइन कर दे

رَاضِیَۃً بِقَضَاۤئِكَ
राज़ियतन बि क़ज़ाइका
तेरे फ़ैसले पर राज़ी रहने वाली बना दे

مُوْلَعَۃً بِذِكْرِكَ وَ دُعَاۤئِكَ
मूलअतन बि ज़िक्रिका व दुआइका
तेरे ज़िक्र और दुआ की शौक़ीन बना दे

مُحِبَّۃً لِصَفْوَۃِ اَوْلِیَاۤئِكَ
मुहिब्बतन लि सफ़्वति औलियाइका
तेरे चुने हुए औलिया से मोहब्बत करने वाली बना दे

مَحْبُوْبَۃً فِیْ اَرْضِكَ وَ سَمَاۤئِكَ
महबूबतन फ़ी अरज़िका व समाइका
तेरी ज़मीन और आसमान में मक़बूल बना दे

صَابِرَۃًعَلٰی نُزُوُلِ بَلَاۤئِكَ
साबिरतन अला नुज़ूलि बलाइका
तेरी आज़माइशों पर सब्र करने वाली बना दे

شَاكِرَۃً لِفَوَاضِلِ نَعْمَاۤئِكَ
शाकिरतन लि फ़वाज़िलि नअमाइका
तेरी नेमतों पर शुक्र अदा करने वाली बना दे

ذَاكِرَۃً لِسَوَابِغِ اٰلَاۤئِكَ
ज़ाकिरतन लि सवाबिग़ि आलाइका
तेरे लगातार एहसानों को याद रखने वाली बना दे

مُشْتَاقَۃً اِلیٰ فَرْحَتِ لِقَاۤئِكَ
मुश्ताक़तन इला फ़रहति लिक़ाइका
तेरी मुलाक़ात की ख़ुशी की आरज़ू रखने वाली बना दे

مُتَزَوِّدَۃً التَّقْوٰی لِیَوْمِ جَزَاۤئِكَ
मुतज़व्विदतन त्तक़वा लि यौमि जज़ाइका
तेरे बदले के दिन के लिए तक़वा का ज़ाद रखने वाली बना दे

مُسْتَنَّۃً بِسُنَنِ اَوْلِیَاۤئِكَ
मुस्तन्नतन बि सुननि औलियाइका
तेरे औलिया की सुन्नतों पर चलने वाली बना दे

مُفَارِقَۃً لِاَخْلَاقِ اَعْدَاۤئِكَ
मुफ़ारिक़तन लि अख़लाक़ि अअदाइका
तेरे दुश्मनों के अख़लाक़ से जुदा रहने वाली बना दे

مَشْغُوْلَۃً عَنِ الدُّنْیَا بِحَمْدِكَ وَ ثَنَاۤئِكَ۔
मशग़ूलतन अनिद्दुन्या बि हम्दिका व सना’इका
और दुनिया से बेपरवाह होकर तेरी हम्द व सना में मशग़ूल बना दे


اَللّٰهُمَّ اِنَّ قُلُوْبَ الْمُخْبِتِیْنَ اِلَیْكَ وَالِهَۃٌ
अल्लाहुम्मा इन्ना क़ुलूबल मुख़बितीना इलैका वालिहतुन
ऐ अल्लाह! बेशक जो लोग तेरे सामने आज़िज़ी इख़्तियार करते हैं, उनके दिल तेरी तरफ़ खिंचे चले आते हैं,

وَ سُبُلَ الرَّاغِبِیْنَ اِلَیْكَ شَارِعَۃٌ
व सुबुलर राग़िबीना इलैका शारिअतुन
और जो तुझसे उम्मीद रखते हैं उनके रास्ते खुले हुए हैं,

وَ اَعْلَامَ الْقَاصِدِیْنَ اِلَیْكَ وَاضِحَۃٌ
व अअलामल क़ासिदीना इलैका वाज़िहतुन
और जो तेरी तरफ़ क़स्द करते हैं उनके निशान बिल्कुल वाज़ेह हैं,

وَ اَفْئِدَۃَ الْعَارِفِیْنَ مِنْكَ فَازِعَۃٌ
व अफ़इदतल आरिफ़ीना मिंका फ़ाज़िअतुन
और जो तुझे पहचानते हैं उनके दिल तेरी ही पनाह की तरफ़ दौड़ते हैं,

وَ اَصْوَاتَ الدَّاعِیْنَ اِلَیْكَ صَاعِدَۃٌ
व अस्वातद दाइना इलैका साअिदतुन
और जो तुझे पुकारते हैं उनकी आवाज़ें तेरी बारगाह तक बुलंद होती हैं,

وَ اَبْوَابَ الْاِجَابَۃِ لَهُمْ مُفَتَّحَۃٌ
व अब्वाबल इजाबति लहुम मुफ़त्तहतुन
और उनके लिए क़बूलियत के दरवाज़े खुले हुए हैं,

وَ دَعْوَۃَ مَنْ نَاجَاكَ مُسْتَجَابَۃٌ
व दअवत मन्न नाजाका मुस्तजाबतुन
और जो तुझसे तनहाई में मुनाजात करता है उसकी दुआ क़बूल होती है,

وَ تَوْبَۃَ مَنْ اَنَابَ اِلَیْكَ مَقْبُوْلَۃٌ
व तौबत मन्न अनाबा इलैका मक़बूलतुन
और जो तेरी तरफ़ पलट आता है उसकी तौबा क़बूल की जाती है,

وَ عَبْرَۃَ مَنْ بَكٰی مِنْ خَوْفِكَ مَرْحُوْمَۃٌ
व अब्रतम मन्न बका मिन ख़ौफ़िका मरहूमतुन
और जो तेरे ख़ौफ़ से रोता है उसका आँसू रहमत का सबब बनता है,

و وَ الْاِغَاثَۃَ لِمَنِ اسْتَغَاثَ بِكَ مَوْجُوْدَۃٌ
वल इग़ासता लिमन इस्तग़ासा बिका मौजूदा तुन
और जो तुझसे फ़रियाद करता है उसके लिए मदद मौजूद है,

وَ الْاِعَانَۃَ لِمَنِ اسْتَعَانَ بِكَ مَبْذُوْلَۃٌ
वल इआनता लिमन इस्तआना बिका मब्ज़ूलतुन
और जो तुझसे मदद चाहता है उसके लिए मदद बख़्शी जाती है,

وَ عِدَاتِكَ لِعِبَادِكَ مُنْجَزَۃٌ
व इदातिका लि इबादिका मुंज़ज़तुन
और अपने बन्दों से किए हुए तेरे वादे पूरे होकर रहते हैं,

وَ زَلَلَ مَنِ اسْتَقَالَكَ مُقَالَۃٌ
व ज़लल मन्न इस्तक़ालका मुक़ालतुन
और जो तुझसे अपने لغزشों की माफ़ी चाहता है उसकी لغزشें माफ़ कर दी जाती हैं,

وَ اَعْمَالَ الْعَامِلِیْنَ لَدَیْكَ مَحْفُوْظَۃٌ
व अअमालल आमिलीना लदैका महफ़ूज़तुन
और जो अमल करने वाले हैं उनके आमाल तेरे पास महफ़ूज़ रहते हैं,

وَ اَرْزَاقَكَ اِلَی الْخَلَاۤئِقِ مِنْ لَّدُنْكَ نَازِلَۃٌ
व अरज़ाक़का इलल ख़लाइक़ि मिन लदुनका नाज़िलतुन
और तेरी तरफ़ से तमाम मख़लूक़ पर रोज़ियाँ नाज़िल होती रहती हैं,

وَ عَوَاۤئِدَ الْمَزِیْدِ اِلَیْھِمْ وَاصِلَۃٌ
व अवाइदल मज़ीदि इलैहिम वासिलतुन
और तेरी तरफ़ से बढ़ती हुई नेमतें उन तक पहुँचती रहती हैं,

وَ ذُنُوْبَ الْمُسْتَغْفِرِیْنَ مَغْفُوْرَۃٌ
व ज़ुनूबल मुस्तग़फ़िरीना मग़फ़ूरतुन
और इस्तिग़फ़ार करने वालों के गुनाह बख़्श दिए जाते हैं,

وَ حَوَاۤئِجِ خَلْقِكَ عِنْدَكَ مَقْضِیَّۃٌ
व हवाइज़ि ख़लक़िका इन्दका मक़ज़िय्यतुन
और तेरी मख़लूक़ की हाजतें तेरे पास पूरी की जाती हैं,

وَ جَوَاۤئِزَ السَّاۤئِلِیْنَ عِنْدَكَ مُوَفَّرَۃٌ
व जवाइज़स साइलिना इन्दका मुवफ़्फ़रतुन
और माँगने वालों के लिए तेरे पास इनामात भरपूर हैं,

وَ عَوَاۤئِدَ الْمَزِیْدِ مُتَوَاْتِرَۃٌ
व अवाइदल मज़ीदि मुतवातिरतुन
और तेरी बढ़ती हुई नेमतें लगातार जारी रहती हैं,

وَ مَوَاۤئِدَ الْمُسْتَطْعِمِیْنَ مُعَدَّۃٌ
व मवाइदल मुस्तत्अिमीना मुअद्दतुन
और रोज़ी चाहने वालों के लिए दस्तरख़्वान तैयार हैं,

وَ مَنَاهِلَ الظِّمَاۤئِ مُتْرَعَۃٌ
व मनाहिलज़ ज़िमाइ मुतरअतुन
और प्यास बुझाने के चश्मे लबालब हैं,

اَللّٰهُمَّ فَاسْتَجِبْ دُعَاۤئِیْ
अल्लाहुम्मा फ़स्तजिब दुआई
ऐ अल्लाह! मेरी दुआ क़बूल फ़रमा,

وَ اقْبَلْ ثَنَاۤئِیْ
वक़बल सनाई
और मेरी हम्द-ओ-सना क़बूल कर,

وَ اجْمَعْ بَیْنِیْ وَ بَیْنَ اَوْلِیَاۤئِیْ
वज्मअ बयनी व बयना औलियाई
और मुझे मेरे औलिया के साथ जमा फ़रमा,

بِحَقِّ مُحَمَّدٍ وَّ عَلِیٍّ
बिहक़्क़ि मुहम्मदिन व अलीय्यिन
मुहम्मद और अली के हक़ के वासिते से,

وَ فَاطِمَۃَوَٱلْحَسَنِ وَٱلْحُسَيْنِ
व फ़ातिमता वलहसन वलहुसैन
और फ़ातिमा, हसन और हुसैन के वासिते से,

اِنَّكَ وَلِیُّ نَعْمَاۤئِیْ
इन्नका वलिय्यु नअमाई
बेशक तू ही मेरी नेमतों का मालिक है,

وَ مُنْتَهٰی مُنَایَ
व मुन्तहा मुनाया
और मेरी तमाम आरज़ुओं की इंतिहा है,

وَ غَایَۃُ رَجَاۤئِیْ فِیْ مُنْقَلَبِیْ وَ مَثْوَایَ۔
व ग़ायतर रजाई फ़ी मुनक़लबी व मस्वाया
और मेरे लौटने और ठहरने की जगह में मेरी उम्मीदों की आख़िरी मंज़िल तू ही है।


किताब कामिलुज़-ज़ियारात में इस ज़ियारत के इस सिग़े के साथ नीचे लिखे अल्फ़ाज़ भी शामिल किए गए हैं:

اَنْتَ اِلٰهِیْ وَ سَیَّدِیْ وَ مَوْلَایَ
अन्ता इलाही व सय्यिदी व मौलाया
तू ही मेरा माबूद, मेरा आका और मेरा मौला है।

اغْفِرْ لِاَوْلِیَاۤئِنَا
इग़्फ़िर लि औलियाइना
हमारे दोस्तों (औलिया) को बख़्श दे,

وَ كُفَّ عَنَّا اَعْدَاۤئَنَا
व कुफ्फ़ अन्ना अअदाइना
और हमारे दुश्मनों को हमसे दूर रख,

وَ اشْغَلْهُمْ عَنْ اَذَانَا
व अश्ग़िलहुम अन्न अज़ाना
और उन्हें हमें तकलीफ़ पहुँचाने से मशग़ूल कर दे,

وَ اَظْهِرْ كَلِمَۃَ الْحَقِّ
व अज़हिर कलिमतल हक़्क़
और कलिमा-ए-हक़ को ज़ाहिर व ग़ालिब कर दे,

وَ اجْعَلْهَا الْعُلْیَا
वजअल्हा अल-उल्या
और उसे सबसे बुलंद बना दे,

وَ اَدْحِضْ كَلِمَۃَ الْبَاطِلِ
व अद्हिज़ कलिमतल बातिल
और कलिमा-ए-बातिल को मिटा दे,

وَ اجْعَلْهَا السُّفْلیٰ
वजअल्हा अस्सुफ़ला
और उसे सबसे नीचा कर दे,

اِنَّكَ عَلٰی كُلِّ شَیْئٍ قَدِیْرٌ۔
इन्नका अला कुल्लि शयइन क़दीरुन
बेशक तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है।


2] मफ़ातीहुल जिनान: पेज 698; मिस्बाहुल मुतहज्जिद: पेज 738; और मिस्बाहुज़ ज़ाइर: पेज 474, और मज़ार-ए-आगा जमाल ख़्वांसारी: पेज 98 में हल्के से फ़र्क़ के साथ।

ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह के बाद पढ़ी जाने वाली रुख़सती ज़ियारत मुसन्निफ़ फ़रमाते हैं: मैंने किताब “अल-इक़बाल” और किताब “सहीफ़ा अस-सादिक़िय्यह” (मरहूम सय्यद इब्न ताऊस रह.) में और दो हस्तलिखित नुस्ख़ों में देखा है कि ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह के बाद पढ़ी जाने वाली एक रुख़सती ज़ियारत, जो इमाम जाफ़र अस-सादिक़ (अ.) से रिवायत है, बयान की गई है।
जाबिर कहते हैं: जब मैंने इमाम जाफ़र अस-सादिक़ (अ.) को ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह के बारे में बताया, जो इमाम मुहम्मद अल-बाक़िर (अ.) से रिवायत है, तो आपने फ़रमाया:
“जब तुम अहलेबैत-ए-अतहार (अ.) के रौज़ों से रुख़्सत होने का इरादा करो, तो ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह के बाद यह दुआ भी शामिल करो:
اَلسَّلَامُ عَلَيْكَ اَيُّهَا الْاِمَامُ وَ رَحْمَةُ اللهِ وَ بَرَكَاتُهٗ اَسْتَوْدِعُكَ اللهَ وَ عَلَيْكَ السَّلَامُ وَ رَحْمَةُ اللهِ وَ بَرَكَاتُہٗ.
अस्सलामु अलैक अय्युहल इमामु व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू अस्तौदिउकल्लाह व अलैकस्सलामु व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
ऐ इमाम! आप पर सलाम हो और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकतें हों। मैं आपको अल्लाह के हवाले करता हूँ, और आप पर सलाम हो और अल्लाह की रहमत और उसकी बरकतें हों।

اٰمَنَّا بِالرَّسُوْلِ وَ بِمَا جِئْتُمْ بِهٖ وَ دَعَوْتُمْ اِلَيْهِ.
आमन्ना बिर्रसूलि व बिमा जिअतुम बिही व दअव्तुम इलैहि
हम रसूल पर ईमान लाए और उस पर भी जो तुम लेकर आए और जिसकी तरफ़ बुलाया।

اَللّٰهُمَّ لَا تَجْعَلْهُ اٰخِرَ الْعَهْدِ مِنْ زِيَارَتِيْ وَلِيَّكَ.
अल्लाहुम्मा ला तजअल्हु आख़िरल अह्दि मिन ज़ियारती वलिय्यक
ऐ अल्लाह! इसे अपने वली की ज़ियारत का मेरा आख़िरी अहद न बना।
اَللّٰهُمَّ لَا تَحْرِمْنِيْ ثَوَابَ مَزَارِهِ الَّذِيْ اَوْجَبْتَ لَهٗ وَ يَسِّرْ لَنَا الْعَوْدَ اِلَیْہِ اِنْ شَآءَ اللهُ تَعَالٰى‏.
अल्लाहुम्मा ला तहरिम्नी सवाबा मज़ारिहिल्लज़ी औजब्द्ता लहू व यस्सिर लनल औदा इलैहि इन शाअल्लाहु तआला
ऐ अल्लाह! मुझे उसके मज़ार के सवाब से महरूम न कर, जिसे तूने उसके लिए मुक़र्रर किया है, और अगर अल्लाह तआला चाहे तो हमें दुबारा उसकी ज़ियारत आसान फ़रमा।