हज़रत जाबिर (इब्न अब्दुल्लाह अल-अंसारी) से, इमाम अल-बाक़िर (अ.) के हवाले से रिवायत है कि इमाम ज़ैनुल-आबिदीन (अ.) एक मर्तबा इमाम अली (अ.) की मुक़द्दस क़ब्र की ज़ियारत के लिए तशरीफ़ ले गए। आप क़ब्र के पास खड़े हुए, रोए, और ये अल्फ़ाज़ अदा फ़रमाए:
इसके बाद इमाम अल-बाक़िर (अ.) ने इज़ाफ़ा फ़रमाया, “बेशक हमारे शियाओं में से जो भी अमीरुल-मोमिनीन (अ.) की क़ब्र पर या किसी भी इमाम (अ.) की क़ब्र पर ये अल्फ़ाज़ अदा करेगा, उसकी दुआ नूर की सीढ़ी पर ऊपर उठाई जाएगी, जिस पर रसूलुल्लाह (स.) की अंगूठी की मुहर होगी, और वह इसी तरह महफ़ूज़ रखी जाएगी यहाँ तक कि उसे आल-ए-मुहम्मद के क़ायम (यानी इमाम महदी) तक पहुँचा दिया जाएगा; और वह उस दुआ पढ़ने वाले को बशारत, सलाम और इज़्ज़त के साथ क़ुबूल करेगा।” ज़ियारत अमीनुल्लाह को इमाम अली (अ.) की आम (जनरल) ज़ियारतों में से एक, ईदुल-ग़दीर के दिन पढ़ी जाने वाली ज़ियारतों में से एक, और ऐसी जामे’ ज़ियारतों में से एक समझा जाता है जो तमाम पाक इमामों के हरमों में पढ़ी जा सकती है।
सहीफ़ा महदी से
ज़ियारत अमीनुल्लाह और इसके फ़वाइद
हमने ज़ियारत अमीनुल्लाह कुछ वजहों से बयान की है:
इमाम अल-बाक़िर (अ.) फ़रमाते हैं, “बेशक हमारे शियाओं में से जो भी अमीरुल-मोमिनीन (अ.) की क़ब्र पर या किसी भी इमाम (अ.) की क़ब्र पर ये अल्फ़ाज़ अदा करेगा, उसकी दुआ नूर की सीढ़ी पर ऊपर उठाई जाएगी, जिस पर रसूलुल्लाह (स.) की अंगूठी की मुहर होगी, और वह इसी तरह महफ़ूज़ रखी जाएगी यहाँ तक कि उसे आल-ए-मुहम्मद के क़ायम (यानी इमाम महदी (अ.)) तक पहुँचा दिया जाएगा; और वह उस शख़्स को बशारत, सलाम और इज़्ज़त के साथ क़ुबूल करेगा।”
यह ज़ियारत उन ज़ियारतों में से है जिसे ख़ुद इमाम महदी (अ.) ने भी पढ़ा है, जैसा कि हाज अली बग़दादी की ज़ियारत वाले वाक़िआ में बयान हुआ है।
हाज अली बग़दादी से मुलाक़ात वाले वाक़िआ में इमाम महदी (अ.) साफ़ तौर पर बयान फ़रमाते हैं और ज़ोर देते हैं कि यह ज़ियारत तमाम ज़ियारतों में सबसे अफ़ज़ल है।
उस वाक़िआ से जो अहम नुक्ता समझ में आता है वह ये है कि यह ज़ियारत जामे’ और आम ज़ियारतों के गिरोह से ताल्लुक़ रखती है, जिसे तमाम इमामों (अ.) के लिए और उनके हरमों में पढ़ा जा सकता है; जैसा कि हज़रत ने काज़मैन शहर में इमाम काज़िम और इमाम जव्वाद (अ.) के मुक़द्दस हरमों में यह ज़ियारत पढ़ी। दरहक़ीक़त, यह नुक्ता इमाम बाक़िर (अ.) की रिवायत में भी वाज़ेह तौर पर बयान हुआ है।
मरहूम मुहद्दिस क़ुम्मी फ़रमाते हैं: यह ज़ियारत सनद की एतिबार से मुकम्मल हुज्जत रखती है, और तमाम दुआओं व ज़ियारतों की किताबों में आई है।
अल्लामा मजलिसी (रह.) इस ज़ियारत को मत्न और सनद—दोनों के लिहाज़ से तमाम ज़ियारतों में अफ़ज़ल क़रार देते हैं; और इज़ाफ़ा फ़रमाते हैं: तमाम मुक़द्दस मज़ारात में इस ज़ियारत को पढ़ना मुनासिब है; जैसा कि जाबिर ने इमाम बाक़िर (अ.) से मज़बूत सनद के साथ रिवायत की है कि—
इमाम सज्जाद (अ.) इमाम अली (अ.) की ज़ियारत के लिए तशरीफ़ ले गए, क़ब्र के क़रीब रुके, रोए, फिर इसे पढ़ा:
यह क़ाबिले-ज़िक्र है कि ज़ियारत अमीनुल्लाह को इमाम अली (अ.) की आम ज़ियारतों में से एक, ईदुल-ग़दीर के दिन की ख़ास ज़ियारतों में से एक, और ऐसी जामे’ ज़ियारतों में से एक समझा जाता है जो तमाम पाक इमामों (अ.) के हरमों में पढ़ी जा सकती है।
अल्लामा मजलिसी (रह.) इस ज़ियारत को मत्न और सनद के लिहाज़ से तमाम ज़ियारतों में सबसे अफ़ज़ल क़रार देते हैं; और इज़ाफ़ा फ़रमाते हैं कि तमाम मुक़द्दस मज़ारात पर इस ज़ियारत का पढ़ना मुनासिब है; जैसा कि जाबिर से, इमाम बाक़िर (अ.) के हवाले से, भरोसेमंद सनद के साथ नक़्ल हुआ है।
इमाम सज्जाद (अ.) इमाम अली (अ.) की ज़ियारत के लिए गए, क़ब्र के क़रीब रुके, रोए और फिर यह ज़ियारत पढ़ी:
और मेरे लौटने और ठहरने की जगह में मेरी उम्मीदों की आख़िरी मंज़िल तू ही है।
किताब कामिलुज़-ज़ियारात में इस ज़ियारत के इस सिग़े के साथ नीचे लिखे अल्फ़ाज़ भी शामिल किए गए हैं:
اَنْتَ اِلٰهِیْ وَ سَیَّدِیْ وَ مَوْلَایَ
अन्ता इलाही व सय्यिदी व मौलाया
तू ही मेरा माबूद, मेरा आका और मेरा मौला है।
اغْفِرْ لِاَوْلِیَاۤئِنَا
इग़्फ़िर लि औलियाइना
हमारे दोस्तों (औलिया) को बख़्श दे,
وَ كُفَّ عَنَّا اَعْدَاۤئَنَا
व कुफ्फ़ अन्ना अअदाइना
और हमारे दुश्मनों को हमसे दूर रख,
وَ اشْغَلْهُمْ عَنْ اَذَانَا
व अश्ग़िलहुम अन्न अज़ाना
और उन्हें हमें तकलीफ़ पहुँचाने से मशग़ूल कर दे,
وَ اَظْهِرْ كَلِمَۃَ الْحَقِّ
व अज़हिर कलिमतल हक़्क़
और कलिमा-ए-हक़ को ज़ाहिर व ग़ालिब कर दे,
وَ اجْعَلْهَا الْعُلْیَا
वजअल्हा अल-उल्या
और उसे सबसे बुलंद बना दे,
وَ اَدْحِضْ كَلِمَۃَ الْبَاطِلِ
व अद्हिज़ कलिमतल बातिल
और कलिमा-ए-बातिल को मिटा दे,
وَ اجْعَلْهَا السُّفْلیٰ
वजअल्हा अस्सुफ़ला
और उसे सबसे नीचा कर दे,
اِنَّكَ عَلٰی كُلِّ شَیْئٍ قَدِیْرٌ۔
इन्नका अला कुल्लि शयइन क़दीरुन
बेशक तू हर चीज़ पर क़ुदरत रखने वाला है।
2] मफ़ातीहुल जिनान: पेज 698; मिस्बाहुल मुतहज्जिद: पेज 738; और मिस्बाहुज़ ज़ाइर: पेज 474, और मज़ार-ए-आगा जमाल ख़्वांसारी: पेज 98 में हल्के से फ़र्क़ के साथ। ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह के बाद पढ़ी जाने वाली रुख़सती ज़ियारत
मुसन्निफ़ फ़रमाते हैं: मैंने किताब “अल-इक़बाल” और किताब “सहीफ़ा अस-सादिक़िय्यह” (मरहूम सय्यद इब्न ताऊस रह.) में और दो हस्तलिखित नुस्ख़ों में देखा है कि ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह के बाद पढ़ी जाने वाली एक रुख़सती ज़ियारत, जो इमाम जाफ़र अस-सादिक़ (अ.) से रिवायत है, बयान की गई है।
जाबिर कहते हैं: जब मैंने इमाम जाफ़र अस-सादिक़ (अ.) को ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह के बारे में बताया, जो इमाम मुहम्मद अल-बाक़िर (अ.) से रिवायत है, तो आपने फ़रमाया:
“जब तुम अहलेबैत-ए-अतहार (अ.) के रौज़ों से रुख़्सत होने का इरादा करो, तो ज़ियारत-ए-अमीनुल्लाह के बाद यह दुआ भी शामिल करो: