रजब की पहली जुमेरात की रात को बहुत अहमियत दी जाती है, ख़ास तौर पर अल्लाह से अपना ताल्लुक़ मज़बूत करने के लिए। रोज़े और इबादत के अलावा, उलमा यह भी तजवीज़ करते हैं कि अल्लाह की रज़ा के लिए उसकी मख़लूक़ की ख़िदमत की जाए।
रसूल-ए-ख़ुदा (स.अ.) से मंक़ूल है कि ये नमाज़ें मग़फ़िरत का ज़रिया हैं और क़ब्र की पहली रात अल्लाह तआला इस नमाज़ का सवाब बेहतरीन, रौशन और फसीह सूरत में भेजेगा।
माह-ए-रजब की पहली जुमेरात को रोज़ा रखने की तजवीज़ की जाती है 12 रकअत नमाज़ इशा और निस्फ़-शब के दरमियान पढ़ी जाती है (हालाँकि आम तौर पर मग़रिब और इशा के दरमियान पढ़ी जाती है)
नियत/इरादा "रिजा मतलूब" का हो और मुस्तहब (तजवीज़-शुदा) की नीयत न की जाए
नोट : अगरचे यह नमाज़ इक़बाल-ए-आमाल में मज़कूर है, मगर इसे अनस बिन मालिक से रिवायत किया गया है जो अहलेबैत (अ.) के मुख़ालिफ़ थे, इसलिए इसकी सनद/सेहत की तस्दीक़ नहीं की गई। कुछ उलमा इसके बजाय नमाज़-ए-जाफ़र तैय्यार पढ़ने का कहते हैं।
12 रकअत नमाज़ का तरीक़ा यह है
छः मर्तबा २-२ रकअत करके पढ़ी जाए। हर रकअत में सूरह अल-हम्द के बाद 3 मर्तबा सूरह अल-क़द्र और 12 मर्तबा सूरह इख़लास पढ़ें
नमाज़ मुकम्मल करने के बाद :
रब्बिघफ़िर वर-हम वतजावज़ अ'म्मा तअ'लमु इन्नका अन्तल अ'लिय्युल अ'ज़म
ऐ परवरदिगार! बख़्श दे, रहम फ़रमा, और जो तू जानता है उससे दरगुज़र फ़रमा; बेशक तू बुलन्द और अज़ीम है।
फिर सज्दा में जाएँ और 70 मर्तबा कहें:
سُبُّوحٌ قُدُّوسٌ رَبُّ ٱلْمَلاَئِكَةِ وَٱلرُّوحِ
सुब्बूह़ुन क़ुद्दूस रब्बुल मलाएकति वर-रूह
पाक और बेहद पाक है फ़रिश्तों और रूह का परवरदिगार।