वालिद: इमाम मुहम्मद अल-तक़ी(अ.स.) |वालिदा: समाना
विलादत: 5 रजब 212 हिजरी/ 827 (15 ज़िलहिज्जा मुतबादिल)
शहादत: 3 रजब 254 हिजरी/868 ई. को मुअतज़्ज़बिल्लाह के ज़रिये ज़हर दिए जाने से (26 जमादियुस्सानी मुतबादिल तारीख़)|रौज़ा: समर्रा, इराक़
उम्र: 42 साल
इमामत की उम्र: 9 साल
इमामत का दौर: 33 साल
इमाम की ज़िन्दगी पर किताब – बी. क़ुरैशी
दूसरी किताबें
ज़िन्दगी का ख़ाका पीडीएफ – अल ज़ीशान हैदर
मुन्तहलुल आमाल – शैख़ अब्बास क़ुम्मी | जेपीसी से ख़रीदें
मशहूर ज़ियारत जामिआ कबीरा इमाम द्वारा तालीम दी गई
विकिपीडिया
इमाम की दुआओं की किताब
अहलेबैत(अ.स.) – नस्ल, मक़ाम और अहमियत
सवानिह-ए-हयात / जीवनी
मख़सूस इज़्न-ए-दुख़ूल |
ज़ियारत
दरवाज़े पर मख़सूस तिलावत
आप फिर दाहिना क़दम आगे रखते हुए मुक़द्दस रौज़े में दाख़िल हों। जब आप इमाम अबुल-हसन अल-हादी (अ.स.) की क़ब्र के पास ठहरें, अपना चेहरा क़ब्र की तरफ़ और पीठ क़िब्ला की जानिब रखते हुए, तो आप सौ मर्तबा यह पढ़ें:
इसके बाद आप यह कहें
अब आप क़ब्र को बोसा दें और अपना दाहिना फिर बायाँ रुख़सार उस पर रखकर ये अल्फ़ाज़ कहें:
सलात-दुआ- रुख़्सती
ज़ियारत की नमाज़ अदा करें, फिर आप यह दुआ पढ़ें:
يَا ذَا ٱلْقُدْرَةِ ٱلْجَامِعَةِ
या ज़ल-क़ुदरतिल-जामिअह
ऐ जामेअ क़ुदरत वाले परवरदिगार!
وَٱلرَّحْمَةِ ٱلْوَاسِعَةِ
वर-रहमतिल-वासिअह
और वसीअ रहमत वाले!
وَٱلْمِنَنِ ٱلْمُتَتَابِعَةِ
वल-मिननिल-मुतताबिअह
और लगातार एहसानात करने वाले!
وَٱلآلاَءِ ٱلْمُتَوَاتِرَةِ
वल-आलाइ अल-मुतवातिरह
और पैहम नेमतें देने वाले!
وَٱلايَادِي ٱلْجَلِيلَةِ
वल-अयादिल-जलीलह
और अज़ीम इनआमात वाले!
وَٱلْمَوَاهِبِ ٱلْجَزِيلَةِ
वल-मवाहिबिल-जज़ीलह
और बहुत ज्यादा अता करने वाले!
صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ ٱلصَّادِقِينَ
सल्लि अला मुहम्मदिन व आलि मुहम्मदिस-सादिक़ीन
मुहम्मद और आले-मुहम्मद (सच्चों) पर दुरूद भेज
وَاعْطِنِي سُؤْلِي
व अ’तिनी सुअली
और मुझे मेरा सवाल अता फ़रमा
وَٱجْمَعْ شَمْلِي
वज्मअ शम्ली
और मेरी बिखरी हालत जमा फ़रमा
وَلُمَّ شَعْثِي
व लुम्म शअ’सी
और मेरी परागंदगी दुरुस्त फ़रमा
وَزَكِّ عَمَلِي
व ज़क्कि अमली
और मेरे अमल को पाक कर दे
وَلاَ تُزِغْ قَلْبِي بَعْدَ إِِذْ هَدَيْتَنِي
व ला तुज़िघ क़ल्बी बअ’दा इज़ हदैतनी
और हिदायत देने के बाद मेरा दिल टेढ़ा न कर
وَلاَ تُزِلَّ قَدَمِي
व ला तुज़िल्ल क़दमी
और मेरे क़दम को फिसलने न दे
وَلاَ تَكِلْنِي إِلَىٰ نَفْسِي طَرْفَةَ عَيْنٍ ابَداً
व ला तकिल्नी इला नफ़्सी तर्फ़ता ऐनिन अबदन
और एक पल (आँख झपकने जितना भी) मुझे मेरे नफ़्स के हवाले न कर
وَلاَ تُخَيِّبْ طَمَعِي
व ला तुख़य्यिब तमअ’ी
और मेरी उम्मीद को नाकाम न कर
وَلاَ تُبْدِ عَوْرَتِي
व ला तुब्दी अउरती
और मेरी पोशीदा बातें ज़ाहिर न कर
وَلاَ تَهْتِكْ سِتْرِي
व ला तह्तिक सित्री
और मेरा पर्दा चाक न कर
وَلاَ تُوحِشْنِي وَلاَ تُؤْيِسْنِي
व ला तूहिश्नी व ला तुअ’यस्नी
और मुझे वहशतज़दा न कर, और मुझे मायूस न कर
وَكُنْ بِي رَؤُوفاً رَحِيماً
व कुन बी रऊफ़न रहीमन
और मुझ पर मेहरबान और रहीम रह
وَٱهْدِنِي وَزَكِّنِي
वह्दिनी व ज़क्किनी
मुझे हिदायत दे और मुझे पाकीज़ा कर
وَطَهِّرْنِي وَصَفِّنِي
व त्ह्हिरनी व सफ़्फ़िनी
और मुझे पाक कर, और मुझे साफ़-सुथरा बना
وَٱصْطَفِنِي وَخَلِّصْنِي وَٱسْتَخْلِصْنِي
वस्तफ़िनी व ख़ल्लिस्नी वस्तख़्लिस्नी
और मुझे (अपना) बरगुज़ीदा बना, मुझे निजात दे, और मुझे ख़ालिस अपने लिए चुन ले
وَٱصْنَعْنِي وَٱصْطَنِعْنِي
वस्नअनी वस्तनिअनी
और मुझे (अपने लिए) बना दे, और मुझे अपने लिए ख़ास कर ले
وَقَرِّبْنِي إِِلَيْكَ وَلاَ تُبَاعِدْنِي مِنْكَ
व क़र्रिब्नी इलैका व ला तुबाअिद्नी मिंका
और मुझे अपने क़रीब कर ले, और मुझे अपने से दूर न कर
وَٱلْطُفْ بِي وَلاَ تَجْفُنِي
वल्तुफ बी व ला तज्फ़ुनी
और मुझ पर लुत्फ़ फ़रमा, और मुझसे रुख़ न फेर
وَاكْرِمْنِي وَلاَ تُهِنِّي
व अक्रिम्नी व ला तुहिन्नी
और मुझे इज़्ज़त दे, और मुझे ज़लील न कर
وَمَا اسْالُكَ فَلاَ تَحْرِمْنِي
व मा अस्अलुका फ़ला तहरिम्नी
और जो मैं तुझसे मांगूँ, उससे मुझे महरूम न कर
وَمَا لاََ اسْالُكَ فَٱجْمَعْهُ لِي
व मा ला अस्अलुका फ़ज्मअहु ली
और जो मैं न मांगूँ, वह भी मेरे लिए जमा फ़रमा दे
بِرَحْمَتِكَ يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
बिरहमतिका या अरहमर-राहिमीन
अपनी रहमत के सदक़े, ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाले!
وَاسْالُكَ بِحُرْمَةِ وَجْهِكَ ٱلْكَرِيمِ
व अस्अलुका बिहुर्मति वज्हिकल-करीम
और मैं तुझसे तेरे वज्ह-ए-करीम की हुरमत का वास्ता देकर मांगता हूँ
وَبِحُرْمَةِ نَبِيِّكَ مُحَمَّدٍ
व बिहुर्मति नबिय्यिका मुहम्मद
और तेरे नबी मुहम्मद की हुरमत का
صَلَوَاتُكَ عَلَيْهِ وَآلِهِ
सलवातुका अलैहि व आलिही
जिन पर और जिनके अहलेबैत पर तेरी सलवात हो
وَبِحُرْمَةِ اهْلِ بَيْتِ رَسُولِكَ
व बिहुर्मति अह्लि बैति रसूलिक
और तेरे रसूल के अहलेबैत की हुरमत का
امِيرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ عَلِيٍّ
अमीरिल-मु’मिनीना अलिय्यिन
यानी अमीरुल-मु’मिनीन अली
وَٱلْحَسَنِ وَٱلْحُسَيْنِ
वल-हसन वल-हुसैन
और हसन और हुसैन
وَعَلِيٍّ وَمُحَمَّدٍ
व अलिय्यिन व मुहम्मद
और अली और मुहम्मद
وَجَعْفَرٍ ومُوسَىٰ
व जअ’फ़रिन व मूसा
और जअ’फ़र और मूसा
وَعَلَيٍّ وَمُحَمَّدٍ
व अलिय्यिन व मुहम्मद
और अली और मुहम्मद
وَعَلِيٍّ وَٱلْحَسَنِ
व अलिय्यिन वल-हसन
और अली और हसन
وَٱلْخَلَفِ ٱلْبَاقِي
वल-ख़लफ़िल-बाक़ी
और बाक़ी रहने वाले ख़लफ़
صَلَوَاتُكَ وَبَرَكَاتُكَ عَلَيْهِمِ
सलवातुका व बरकातुका अलैहिम
उन सब पर तेरी सलवात और बरकतें हों
انْ تُصَلِّيَ عَلَيْهِمْ اجْمَعِينَ
अन् तुसल्लिया अलैहिम अज्मईन
कि तू उन सब पर दुरूद भेजे
وَتُعَجِّلَ فَرَجَ قَائِمِهِمْ بِامْرِكَ
व तुअज्जिला फ़रज क़ाइमिहिम बिअम्रिक
और अपने हुक्म से उनके क़ाइम का फ़रज जल्दी फ़रमा
وَتَنْصُرَهُ وَتَنْتَصِرَ بِهِ لِدِينِكَ
व तनसुरहु व तन्तसिर बिही लिदीनिक
और उसकी मदद फ़रमा, और उसे अपने दीन की नुसरत का ज़रिया बना
وَتَجْعَلَنِي فِي جُمْلَةِ ٱلنَّاجِينَ بِهِ
व तज्अलनी फी जुम्लतिन-नाजीन बिही
और मुझे उन लोगों में शामिल कर जो उसके वसीले से नजात पाएँ
وَٱلْمُخْلِصِينَ فِي طَاعَتِهِ
वल-मुख़लिसीन फी ताअतिही
और जो उसकी इताअत में मुख़लिस हों
وَاسْالُكَ بِحَقِّهِمْ
व अस्अलुका बिहक़्क़िहिम
और मैं तुझसे उनके हक़ का वास्ता देकर मांगता हूँ
لَمَّا ٱسْتَجَبْتَ لِي دَعْوَتِي
लम्मा इस्तज्ब्ता ली दअ’वती
कि तू मेरी दुआ क़ुबूल फ़रमा
وَقَضَيْتَ لِي حَاجَتِي
व क़ज़ैता ली हाजती
और मेरी हाजत पूरी फ़रमा
وَاعْطَيْتَنِي سُؤْلِي
व अ’तैतनी सुअली
और मुझे मेरा सवाल अता फ़रमा
وَكَفَيْتَنِي مَا اهَمَّنِي
व कफ़ैतनी मा अहम्मनी
और जो चीज़ मुझे परेशान करे, उससे मुझे किफ़ायत फ़रमा
مِنْ امْرِ دُنْيَايَ وَآخِرَتِي
मिन अम्रि दुन्याया व आख़िरती
दुनिया और आख़िरत के तमाम उमूर में
يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
या अरहमर-राहिमीन
ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाले!
يَا نُورُ يَا بُرْهَانُ
या नूरु या बुर्हान
ऐ नूर! ऐ बुर्हान!
يَا مُنِيرُ يَا مُبِينُ
या मुनीरु या मुबीन
ऐ रौशन करने वाले! ऐ वाज़ेह करने वाले!
يَا رَبِّ ٱكْفِنِي شَرَّ ٱلشُّرُورِ
या रब्बि इक्फ़िनी शर्रश-शुरूर
ऐ परवरदिगार! मुझे तमाम शरों से बचा
وَآفَاتِ ٱلدُّهُورِ
व आफ़ातिद-दुहूर
और ज़माने की आफ़तों से भी
وَاسْالُكَ ٱلنَّجَاةَ
व अस्अलुकन-नजात
और मैं तुझसे नजात मांगता हूँ
يَوْمَ يُنْفَخُ فِي ٱلصُّورِ
यौमा युन्फ़खु फ़िस-सूर
उस दिन जब सूर फूँका जाएगा
يَا عُدَّتِي عِنْدَ ٱلْعُدَدِ
या उद्दती इन्दा अल-उदद
ऐ मेरी मदद जब कोई मदद न हो!
وَيَا رَجَائِي وَٱلْمُعْتَمَدَ
व या रजाई वल-मुअतमद
ऐ मेरी उम्मीद और मेरा भरोसा!
وَيَا كَهْفِي وَٱلسَّنَدَ
व या कह्फ़ी वस्सनद
ऐ मेरी पनाह और मेरा सहारा!
يَا وَاحِدُ يَا احَدُ
या वाहिदु या अहदु
ऐ यकता! ऐ एक और यकता!
وَيَا قُلْ هُوَ ٱللَّهُ احَدٌ
व या क़ुल हुवा अल्लाहु अहदुन
ऐ वह जिसकी शान में कहा गया: “क़ुल हुवल्लाहु अहद”
اسْالُكَ ٱللَّهُمَّ بِحَقِّ مَنْ خَلَقْتَ مِنْ خَلْقِكَ
अस्अलुका अल्लाहुम्मा बिहक़्क़ि मन् ख़लक़्ता मिन ख़ल्क़िक
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे तेरी मख़्लूक़ में से उन लोगों के हक़ के वसीले से मांगता हूँ जिन्हें तूने पैदा किया
وَلَمْ تَجْعَلْ فِي خَلْقِكَ مِثْلَهُمْ احَداً
व लम तज्अल फी ख़ल्क़िक मिथ्लहुम अहदन
और तूने अपनी मख़्लूक़ में किसी को उनके जैसा नहीं बनाया
صَلِّ عَلَىٰ جَمَاعَتِهِمْ
सल्लि अला जमाअतिहिम...
(अतः) उन सब पर दुरूद भेज...
अब आप अपनी हाजतें (अल्लाह तआला के सामने) पेश करें। इमाम अल-हादी (अ.) से रिवायत है कि आपने फ़रमाया, "मैंने अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल से दुआ की है कि जो शख़्स मेरे हरम में यह दुआ पढ़े, उसे नामुराद न करे।"
जब आप दोनों मुक़द्दस इमामों को रुख़्सत करने का इरादा करें, तो रौज़े के क़रीब ठहरकर ये अल्फ़ाज़ कहें:
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا وَلِيَّيِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैकुमा या वलिय्ययिल्लाह
आप दोनों पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के वली
اسْتَوْدِعُكُمَا ٱللَّهَ
अस्तव्दिअुकुमा अल्लाह
मैं आप दोनों को अल्लाह के सुपुर्द करता हूँ
وَاقْرَا عَلَيْكُمَا ٱلسَّلاَمَ
व अक़्रउ अलैकुमा अस्सलाम
और आप दोनों पर सलाम पेश करता हूँ
آمَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلرَّسُولِ
आमन्ना बिल्लाहि व बिर्रसूल
हम अल्लाह पर और रसूल पर ईमान लाए
وَبِمَا جِئْتُمَا بِهِ وَدَلَلْتُمَا عَلَيْهِ
व बिमा जिअ’तुमा बिही व दलल्तुमा अलैहि
और उस पर भी जो आप दोनों लेकर आए और जिस पर आपने रहनुमाई की
اَللَّهُمَّ ٱكْتُبْنَا مَعَ ٱلشَّاهِدينَ
अल्लाहुम्मक्तुबना मअश-शाहिदीन
ऐ अल्लाह! हमें गवाहों के साथ लिख दे
اَللَّهُمَّ لاََ تَجْعَلْهُ آخِرَ ٱلْعَهْدِ
अल्लाहुम्मा ला तज्अल्हु आख़िरल-अह्दि
ऐ अल्लाह! इसे (मेरी) आख़िरी हाज़िरी क़रार न दे
مِنْ زِيَارَتِي إِِيَّاهُمَا
मिन ज़ियारती इय्याहुमा
कि मेरी इन दोनों की ज़ियारत यही आख़िरी हो
وَٱرْزُقْنِي ٱلْعَوْدَ إِِلَيْهِمَا
वरज़ुक़नी अल-अव्दा इलैहिमा
बल्कि मुझे दोबारा उनके पास आने का रिज़्क़ अता फ़रमा
وَٱحْشُرْنِي مَعَهُمَا
वह्शुरनी मअहुमा
और मुझे उन दोनों के साथ महशूर फ़रमा
وَمَعَ آبَائِهِمَا ٱلطَّاهِرِينَ
व मअ आَبाइहिमा अत-ताहिरीन
और उनके पाक आबा व अजदाद के साथ
وَٱلْقَائِمِ ٱلْحُجَّةِ مِنْ ذُرِّيَّتِهِمَا
वल-क़ाइमिल-हुज्जति मिन ज़ुर्रिय्यतिहिमा
और उनकी नस्ल से क़ाइम हुज्जत के साथ
يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
या अरहमर-राहिमीन
ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाले
ज़ियारत की नमाज़ अदा करें, फिर आप यह दुआ पढ़ें:
अब आप अल्लाह तआला से जो चाहें दुआ मांग सकते हैं।
और आप नीचे दी गई दुआ को जितनी बार मुमकिन हो दोहरा सकते हैं:
अब आप अपनी हाजतें (अल्लाह तआला के सामने) पेश करें। इमाम अल-हादी (अ.) से रिवायत है कि आपने फ़रमाया, "मैंने अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल से दुआ की है कि जो शख़्स मेरे हरम में यह दुआ पढ़े, उसे नामुराद न करे।"
दोनों इमामों को रुख़्सत करना
जब आप दोनों मुक़द्दस इमामों को रुख़्सत करने का इरादा करें, तो रौज़े के क़रीब ठहरकर ये अल्फ़ाज़ कहें:
इमाम अली अल-नक़ी और इमाम अल-हसन अल-अस्करी की मुश्तरका ज़ियारत
विदाई ज़ियारत
जब आप सामर्रा (जिसे सुर्रा-मन-राआ भी कहा जाता है; मरकज़ी इराक़) पहुँचें तो ग़ुस्ल करें और मुक़द्दस रौज़ों में दाख़िल होने के तमाम आदाब अदा करें। फिर सुकून और वक़ार के साथ चलें। जब आप हरम शरीफ़ के दरवाज़े पर हों, तो दाख़िले की इजाज़त माँगें और ज़ियारत का यह सिग़ा पढ़ें, जिसे सबसे ज़्यादा मोअतबर समझा जाता है:
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا وَلِيَّيِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैकुमा या वलिय्यैल्लाह
तुम दोनों पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के वलीयो
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا حُجَّتَيِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैकुमा या हुज्जतैयिल्लाह
तुम दोनों पर सलाम हो, ऐ अल्लाह की हुज्जतो
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا نُورَيِ ٱللَّهِ فِي ظُلُمَاتِ ٱلارْضِ
अस्सलामु अलैकुमा या नूरयिल्लाह फ़ी ज़ुलुमातिल-अर्ज़
तुम दोनों पर सलाम हो, ऐ ज़मीन की तारीकियों में अल्लाह के नूर
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا مَنْ بَدَا لِلَّهِ فِي شَانِكُمَا
अस्सलामु अलैकुमा या मन बदालिल्लाह फ़ी शानिकुमा
तुम दोनों पर सलाम हो, जिनके बारे में अल्लाह का फ़ैसला ज़ाहिर हुआ
اتَيْتُكُمَا زَائِراً
अतैतुकुमा ज़ाइरन
मैं तुम्हारे पास ज़ियारत के लिए आया हूँ
وعَارِفاً بِحَقِّكُمَا
आरिफ़न बिहक्किकुमा
तुम्हारे हक़ को पहचानते हुए
مُعَادِياً لاِعْدَائِكُمَا
मुआदियन लिअदाइकुमा
तुम्हारे दुश्मनों से दुश्मनी रखते हुए
مُوَالِياً لاِوْلِيَائِكُمَا
मुवालियन लिऔलियाइकुमा
तुम्हारे दोस्तों से वफ़ादारी रखते हुए
مُؤْمِناً بِمَا آمَنْتُمَا بِهِ
मूमिनन बिमा आमन्तुमा बिही
उस पर ईमान रखते हुए जिस पर तुम दोनों ईमान लाए
كَافِراً بِمَا كَفَرْتُمَا بِهِ
काफ़िरन बिमा कफ़रतुमा बिही
और उससे इंकार करते हुए जिससे तुम दोनों ने इंकार किया
مُحَقِّقاً لِمَا حَقَّقْتُمَا
मुहक़्क़िक़न लिमा हक़्क़क़तुमा
उसको हक़ मानते हुए जिसे तुमने हक़ ठहराया
مُبْطِلاًَ لِمَا ابْطَلْتُمَا
मुब्तिलन लिमा अब्तल्तुमा
और उसे बातिल मानते हुए जिसे तुमने बातिल ठहराया
اسْالُ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمَا
असअलुल्लाह रब्बी व रब्बकुमा
मैं अल्लाह से सवाल करता हूँ जो मेरा और तुम्हारा रब है
انْ يَجْعَلَ حَظِّي مِنْ زِيَارَتِكُمَا
अन यजअला हज़्ज़ी मिन ज़ियारतिकुमा
कि मेरी ज़ियारत का हिस्सा यह क़रार दे
ٱلصَّلاَةَ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِهِ
अस्सलाता अला मुहम्मदिं व आलिही
कि मुहम्मद और उनकी आल पर दुरूद भेजा जाए
وَانْ يَرْزُقَنِي مُرَافَقَتَكُمَا فِي ٱلْجِنَانِ
व अन यरज़ुक़नी मुराफ़क़तकुमा फ़िल-जिनान
और मुझे जन्नतों में तुम्हारी रफ़ाक़त अता फ़रमा
مَعَ آبَائِكُمَا ٱلصَّالِحِينَ
मअ आबाइ कुमा अस्सालिहीन
तुम्हारे नेक आबा के साथ
وَاسْالَهُ انْ يُعْتِقَ رَقَبَتِي مِنَ ٱلنَّارِ
व असअलहु अन युअतिक़ रक़बती मिनन-नार
और मैं उससे मांगता हूँ कि मुझे आग से निजात दे
وَيَرْزُقَنِي شَفَاعَتَكُمَا وَمُصَاحَبَتَكُمَا
व यरज़ुक़नी शफ़ाअतकुमा व मुसाहबत कुमा
और मुझे तुम्हारी शफ़ाअत और तुम्हारी सोहबत अता फ़रमा
وَيُعَرِّفَ بَيْنِي وَبَيْنَكُمَا
व युअर्रिफ़ बैनी व बैनकुमा
और मेरे और तुम्हारे दरमियान तआरुफ़ क़ायम फ़रमा
وَلاَ يَسْلُبَنِي حُبَّكُمَا
व ला यस्लुबनी हुब्बकुमा
और मेरे दिल से तुम्हारी मुहब्बत न निकाले
وَحُبَّ آبَائِكُمَا ٱلصَّالِحِينَ
व हुब्बा आबाइ कुमा अस्सालिहीन
और तुम्हारे नेक आबा की मुहब्बत भी
وَانْ لاََ يَجْعَلَهُ آخِرَ ٱلْعَهْدِ مِنْ زِيَارَتِكُمَا
व अन ला यज्अलहु आख़िरल-अह्दि मिन ज़ियारतिकुमा
और मेरी यह ज़ियारत तुम्हारी आख़िरी ज़ियारत क़रार न दे
وَيَحْشُرَنِي مَعَكُمَا فِي ٱلْجَنَّةِ بِرَحْمَتِهِ
व यह्शुरनी मअकुमा फ़िल-जन्नति बिरहमतिही
और अपनी रहमत से मुझे जन्नत में तुम्हारे साथ महशूर फ़रमा
اَللَّهُمَّ ٱرْزُقْنِي حُبَّهُمَا
अल्लाहुम्मरज़ुक़नी हुब्बहुमा
ऐ अल्लाह! मुझे उन दोनों की मुहब्बत अता फ़रमा
وَتَوَفَّنِي عَلَىٰ مِلَّتِهِمَا
व तवफ्फ़नी अला मिल्लतिहिमा
और मुझे उनकी मिल्लत पर मौत अता फ़रमा
اَللَّهُمَّ ٱلْعَنْ ظَالِمِي آلِ مُحَمَّدٍ حَقَّهُمْ وَٱنْتَقِمْ مِنْهُمْ
अल्लाहुम्मल-अन ज़ालिमी आले मुहम्मदिन हक़्क़हुम वन्तक़िम मिनहुम
ऐ अल्लाह! जिन्होंने आले मुहम्मद का हक़ ज़ुल्म से छीन लिया, उन पर लानत फ़रमा और उनसे इंतिक़ाम ले
اَللَّهُمَّ ٱلْعَنِ ٱلاوَّلِينَ مِنْهُمْ وَٱلآخِرِينَ
अल्लाहुम्मल-अन अल-अव्वलीन मिनहुम वल-आख़िरीन
ऐ अल्लाह! उनमें से पहले वालों और बाद वालों पर लानत फ़रमा
وَضَاعِفْ عَلَيْهِمُ ٱلْعَذَابَ
व दाअ’इफ़ अलैहिमुल-अज़ाब
और उन पर अज़ाब कई गुना बढ़ा दे
وَابْلِغْ بِهِمْ وَبِاشْيَاعِهِمْ
व अब्लिघ बिहिम व बिअश्या’इहिम
और उन्हें और उनके पैरवकारों को पहुँचा दे
وَمُحِبِّيهِمْ وَمُتَّبِعِيهِمْ
व मुहिब्बीहिम व मुत्तबिअीहिम
और उनके चाहने वालों और उनके अनुयायियों को भी
اسْفَلَ دَرْكٍ مِنَ ٱلْجَحِيمِ
अस्फ़ला दरक़िन मिनल-जहीम
जहन्नम के सबसे निचले दर्जे में
إِِنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
इन्नका अला कुल्लि शै’इन क़दीर
बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है
اَللَّهُمَّ عَجِّلْ فَرَجَ وَلِيِّكَ وَٱبْنِ وَلِيِّكَ
अल्लाहुम्मा अ’ज्जिल फ़रज वलिय्यिका वब्नि वलिय्यिका
ऐ अल्लाह! अपने वली और अपने वली के बेटे का फ़रज जल्दी फ़रमा
وَٱجْعَلْ فَرَجَنَا مَعَ فَرَجِهِمْ
व अज्अल फ़रजना मअ फ़रजिहिम
और हमारे फ़रज को भी उनके फ़रज के साथ कर दे
يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
या अरहमर-राहिमीन
ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाले
आप फिर अपने लिए और अपने वालिदैन के लिए दुआ कर सकते हैं ।
अगर आप उनके रौज़ों तक पहुँच सकें, तो वहाँ दो रकअत नमाज़ अदा करें। या उस मस्जिद में, जो दोनों इमामों के घर से मुत्तसिल है—अल्लाह की सलामती उन पर हो—जहाँ वे नमाज़ अदा किया करते थे।
थोड़े से फ़र्क़ के साथ ज़ियारत
मज़कूरा ज़ियारत का यह तरीक़ा किताब *कामिलुज़-ज़ियारत* के मुताबिक़ बयान किया गया है। मगर शैख़ मुहम्मद बिन अल-मशहदी, शैख़ अल-मुफ़ीद और शहीद ने अपनी ज़ियारत की किताबों में इसे थोड़े से फ़र्क़ के साथ रिवायत किया है, यानी उन्होंने इसमें यह इज़ाफ़ा किया है:
फिर आप दोनों रौज़ों की तरफ़ बढ़ें, उन पर झुक जाएँ, उन्हें चूम लें और अपने दोनों गाल उन पर रखें। जब आप अपना सर उठाएँ, तो ऊपर बयान किया गया आख़िरी हिस्सा पढ़ें:
اَللَّهُمَّ ٱرْزُقْنِي حُبَّهُمَا
अल्लाहुम्म अरज़ुक़नी हुब्बहुमाः
ऐ अल्लाह! मुझे उन दोनों की मुहब्बत अता फ़रमा,
وَتَوَفَّنِي عَلَىٰ مِلَّتِهِمَا
व तवफ़्फ़नी अला मिल्लतिहुमाः
और मुझे उनकी राह पर मौत अता फ़रमा…
मज़कूरा ज़ियारत के आख़िर तक।
फिर उन्होंने यह इज़ाफ़ा किया: अब आप इमाम के सरहाने के पास चार रकअत नमाज़ अदा कर सकते हैं।
जब आप दोनों मुक़द्दस इमामों से रुख़्सत होने का इरादा करें, तो मुक़द्दस रौज़े पर ठहर कर ये अल्फ़ाज़ कहें:
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا وَلِيَّيِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैकुमा या वलिय्यैल्लाहि
तुम दोनों पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के वलीयोँ
اسْتَوْدِعُكُمَا ٱللَّهَ
अस्तौदिउकुमा अल्लाह
मैं तुम दोनों को अल्लाह के हवाले करता हूँ
وَاقْرَا عَلَيْكُمَا ٱلسَّلاَمَ
व अक़रऊ अलैकुमा अस्सलाम
और तुम दोनों पर उसकी सलामती पेश करता हूँ
آمَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلرَّسُولِ
आमन्ना बिल्लाहि व बिर्रसूलि
हम अल्लाह पर और रसूल पर ईमान लाए
وَبِمَا جِئْتُمَا بِهِ وَدَلَلْتُمَا عَلَيْهِ
व बिमा जिअतुमा़ बिहि व दललतुमा़ अलैहि
और उस पर भी जो तुम दोनों लाए और जिसकी तुम दोनों ने रहनुमाई की
اَللَّهُمَّ ٱكْتُبْنَا مَعَ ٱلشَّاهِدينَ
अल्लाहुम्मा इक्तुब्ना मअश्शाहिदीन
ऐ अल्लाह! हमें गवाहों में लिख दे
اَللَّهُمَّ لاََ تَجْعَلْهُ آخِرَ ٱلْعَهْدِ
अल्लाहुम्मा ला तज्अलहु आख़िरल-अह्दि
ऐ अल्लाह! इसे मेरी आख़िरी हाज़िरी न बना
مِنْ زِيَارَتِي إِِيَّاهُمَا
मिन ज़ियारती इय्याहुमा
कि यह मेरी उनसे आख़िरी ज़ियारत हो
وَٱرْزُقْنِي ٱلْعَوْدَ إِِلَيْهِمَا
व अर्ज़ुक़्नी अल्औदा इलैहिमा
बल्कि मुझे दोबारा उनकी ज़ियारत नसीब फ़रमा
وَٱحْشُرْنِي مَعَهُمَا
वहशुरनी मअहुमा
और मुझे उन दोनों के साथ महशूर फ़रमा
وَمَعَ آبَائِهِمَا ٱلطَّاهِرِينَ
व मअ आबाइहिमा अत-ताहिरीन
और उनके पाक बाप-दादाओं के साथ
وَٱلْقَائِمِ ٱلْحُجَّةِ مِنْ ذُرِّيَّتِهِمَا
वल-क़ाइमिल-हुज्जति मिन ज़ुर्रिय्यतिहिमा
और उनकी नस्ल से क़ाइम हुज्जत के साथ
يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
या अरहमर-राहिमीन
ऐ सबसे ज़्यादा रहम करने वाला
विदाई ज़ियारत
जब आप सामर्रा (जिसे सुर्रा-मन-राआ भी कहा जाता है; मरकज़ी इराक़) पहुँचें तो ग़ुस्ल करें और मुक़द्दस रौज़ों में दाख़िल होने के तमाम आदाब अदा करें। फिर सुकून और वक़ार के साथ चलें। जब आप हरम शरीफ़ के दरवाज़े पर हों, तो दाख़िले की इजाज़त माँगें और ज़ियारत का यह सिग़ा पढ़ें, जिसे सबसे ज़्यादा मोअतबर समझा जाता है:
आप फिर अपने लिए और अपने वालिदैन के लिए दुआ कर सकते हैं ।
अगर आप उनके रौज़ों तक पहुँच सकें, तो वहाँ दो रकअत नमाज़ अदा करें। या उस मस्जिद में, जो दोनों इमामों के घर से मुत्तसिल है—अल्लाह की सलामती उन पर हो—जहाँ वे नमाज़ अदा किया करते थे।
थोड़े से फ़र्क़ के साथ ज़ियारत
मज़कूरा ज़ियारत का यह तरीक़ा किताब *कामिलुज़-ज़ियारत* के मुताबिक़ बयान किया गया है। मगर शैख़ मुहम्मद बिन अल-मशहदी, शैख़ अल-मुफ़ीद और शहीद ने अपनी ज़ियारत की किताबों में इसे थोड़े से फ़र्क़ के साथ रिवायत किया है, यानी उन्होंने इसमें यह इज़ाफ़ा किया है:
फिर आप दोनों रौज़ों की तरफ़ बढ़ें, उन पर झुक जाएँ, उन्हें चूम लें और अपने दोनों गाल उन पर रखें। जब आप अपना सर उठाएँ, तो ऊपर बयान किया गया आख़िरी हिस्सा पढ़ें:
मज़कूरा ज़ियारत के आख़िर तक।
फिर उन्होंने यह इज़ाफ़ा किया: अब आप इमाम के सरहाने के पास चार रकअत नमाज़ अदा कर सकते हैं।
दोनों इमामों से रुख़्सत होना
जब आप दोनों मुक़द्दस इमामों से रुख़्सत होने का इरादा करें, तो मुक़द्दस रौज़े पर ठहर कर ये अल्फ़ाज़ कहें:
समर्रा इमामों की ज़ियारत पीडीएफ
ज़ियारत 3-कॉलम पीडीएफ
पीपीटीएक्स | पीडीएफ - पीपीटी
समर्रा की तमाम ज़ियारतें पीडीएफ
10वें इमाम की नमाज़
डेस्कटॉप पेज
इमाम पर 70 वीडियो
इमाम हादी – दुनिया का एक करिश्मा (एबीटीवी फेसबुक पेज)
ज़ियारत 3-कॉलम पीडीएफ
पीपीटीएक्स | पीडीएफ - पीपीटी
समर्रा की तमाम ज़ियारतें पीडीएफ
10वें इमाम की नमाज़
डेस्कटॉप पेज
इमाम पर 70 वीडियो
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अल-हुसैन बिन अली बिन मुहम्मद का रौज़ा
इमाम अल-हादी और इमाम अल-अस्करी (`अ) के रौज़ों के क़रीब, अल-हुसैन का रौज़ा वाक़े है, जो इमाम अल-हादी के फ़र्ज़ंद और इमाम अल-अस्करी के भाई थे, इसके अलावा रसूल-ए-अकरम ﷺ की औलाद (यानी सैय्यदात) में से कई अज़ीम शख़्सियतों के दूसरे रौज़े भी वहाँ मौजूद हैं। अगरचे मैंने ख़ुद अल-हुसैन की मुकम्मल सवानिह-ए-हयात हासिल नहीं की, लेकिन वह एक बुलंद और अज़ीम शख़्सियत मालूम होते हैं। कुछ रिवायात में ज़िक्र मिलता है कि इमाम अल-हसन अल-अस्करी (`अ) और उनके भाई अल-हुसैन को “दो पोते” कहा जाता था, और उन्हें रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ के दो नवासों—इमाम अल-हसन और इमाम अल-हुसैन, जो इमाम अली (`अ) के फ़र्ज़ंद थे—से तशबीह दी जाती थी। उन सब पर सलाम हो।
अबूत्तैय्यिब से मरवी रिवायत के मुताबिक़, इमाम अल-महदी (`अ) की आवाज़ अल-हुसैन की आवाज़ से मिलती-जुलती थी।
अपनी किताब *शजरतुल-अवलिया* में, सय्यद अहमद अल-अरदूकानी अल-यज़्दी—जो एक दानिशमंद फ़क़ीह और मुहद्दिस थे—इमाम अली अल-हादी के बेटों का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि उनके फ़र्ज़ंद अल-हुसैन मशहूर ज़ाहिदों और आबिदों में से थे और उन्होंने अपने भाई की इमामत का इकरार किया था।
गहरी तहक़ीक़ से इस अज़ीम शख़्सियत की फ़ज़ीलत और बुलंदी के और भी पहलू सामने आ सकते हैं, जो मेरी मौजूदा मालूमात से कहीं ज़्यादा होंगे।
इमाम अली अल-हादी के फ़र्ज़ंद सय्यद मुहम्मद की ज़ियारत इमाम अली अल-हादी के फ़र्ज़ंद सय्यद मुहम्मद का मशहूर रौज़ा बलद नाम के एक गाँव के क़रीब वाक़े है। यह सय्यद फ़ज़ीलत, बुलंदी और ग़ैर-मामूली करामाती निशानियों की वजह से बहुत मशहूर हैं। लोग हमेशा उनके रौज़े की ज़ियारत का शरफ़ हासिल करते हैं, मन्नतें मानते हैं, कसीर नज़राने पेश करते हैं और अल्लाह तआला से अपनी हाजतें पूरी होने की दुआ करते हैं। उस गाँव के अरब बाशिंदे उन्हें बहुत अज़ीम इज़्ज़त और एहतराम देते हैं।
कहा जाता है कि इस रौज़े से बहुत-सी करामात ज़ाहिर हुईं, जो इतनी ज़्यादा हैं कि इस किताब में उनका ज़िक्र मुमकिन नहीं। इस सय्यद की एक बड़ी फ़ज़ीलत और शरफ़ यह है कि वह इमामत के लिए अहल थे और इमाम अल-हादी (`अ) के सबसे बड़े फ़र्ज़ंद थे। इमाम अल-हसन अल-अस्करी (`अ) ने इस सय्यद के इंतिक़ाल पर ग़म का इज़हार करते हुए अपना कुर्ता फाड़ दिया।
हमारे उस्ताद, भरोसेमंद शैख़ अल-नूरी—अल्लाह उनकी क़ब्र को रौशन फ़रमाए—सय्यद मुहम्मद की ज़ियारत पर कामिल ईमान रखते थे। इसी वजह से उन्होंने उनके रौज़े की तामीर के लिए बहुत कोशिशें कीं और क़ब्र-ए-मुबारक पर यह क़त्बा लिखवाया: “यह बुलंद मक़ाम सय्यद अबू-जाफ़र मुहम्मद, फ़र्ज़ंद इमाम अबुल-हसन अली अल-हादी का रौज़ा है—अल्लाह की सलामती उन पर हो—जो बहुत अज़ीम क़द्र और बुलंद मर्तबे वाले थे।”
उनके दौर के शिया यह दावा किया करते थे कि सय्यद मुहम्मद अपने वालिद के बाद अगले इमाम होंगे, लेकिन जब सय्यद मुहम्मद का इंतिक़ाल हो गया, तो उनके वालिद ने उनके भाई अबू-मुहम्मद अल-ज़की (अल-अस्करी) को अगला इमाम मुक़र्रर फ़रमाया। इस तक़र्रुरी पर तब्सिरा करते हुए इमाम (`अ) ने अपने बेटे से फ़रमाया: “अल्लाह तआला का शुक्र ताज़ा करो, क्योंकि उसने तुम्हारे बारे में एक नया हुक्म जारी फ़रमाया है।”
सय्यद मुहम्मद के वालिद ने उन्हें बचपन में मदीना में छोड़ दिया था, लेकिन जब सय्यद मुहम्मद बीमार हुए तो वह समर्रा में अपने वालिद के पास आ गए। जब उन्होंने हिजाज़ वापस जाने की कोशिश की, तो उनकी बीमारी शदीद हो गई और इसी वजह से बलद नाम के उस गाँव में—जो समर्रा से तक़रीबन 40 किलोमीटर दूर है—उनका इंतिक़ाल हो गया। उनके इंतिक़ाल पर इमाम अल-अस्करी (`अ) ने ग़म के इज़हार में अपना कुर्ता फाड़ दिया। जब इस पर उनसे सवाल किया गया, तो इमाम (`अ) ने फ़रमाया: “हज़रत मूसा ने भी अपने भाई हज़रत हारून की वफ़ात पर अपना कुर्ता फाड़ दिया था।”
सय्यद मुहम्मद का इंतिक़ाल तक़रीबन 252 हिजरी में हुआ।
इमाम अल-हादी और इमाम अल-अस्करी (`अ) के रौज़ों के क़रीब, अल-हुसैन का रौज़ा वाक़े है, जो इमाम अल-हादी के फ़र्ज़ंद और इमाम अल-अस्करी के भाई थे, इसके अलावा रसूल-ए-अकरम ﷺ की औलाद (यानी सैय्यदात) में से कई अज़ीम शख़्सियतों के दूसरे रौज़े भी वहाँ मौजूद हैं। अगरचे मैंने ख़ुद अल-हुसैन की मुकम्मल सवानिह-ए-हयात हासिल नहीं की, लेकिन वह एक बुलंद और अज़ीम शख़्सियत मालूम होते हैं। कुछ रिवायात में ज़िक्र मिलता है कि इमाम अल-हसन अल-अस्करी (`अ) और उनके भाई अल-हुसैन को “दो पोते” कहा जाता था, और उन्हें रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ के दो नवासों—इमाम अल-हसन और इमाम अल-हुसैन, जो इमाम अली (`अ) के फ़र्ज़ंद थे—से तशबीह दी जाती थी। उन सब पर सलाम हो।
अबूत्तैय्यिब से मरवी रिवायत के मुताबिक़, इमाम अल-महदी (`अ) की आवाज़ अल-हुसैन की आवाज़ से मिलती-जुलती थी।
अपनी किताब *शजरतुल-अवलिया* में, सय्यद अहमद अल-अरदूकानी अल-यज़्दी—जो एक दानिशमंद फ़क़ीह और मुहद्दिस थे—इमाम अली अल-हादी के बेटों का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि उनके फ़र्ज़ंद अल-हुसैन मशहूर ज़ाहिदों और आबिदों में से थे और उन्होंने अपने भाई की इमामत का इकरार किया था।
गहरी तहक़ीक़ से इस अज़ीम शख़्सियत की फ़ज़ीलत और बुलंदी के और भी पहलू सामने आ सकते हैं, जो मेरी मौजूदा मालूमात से कहीं ज़्यादा होंगे।
इमाम अली अल-हादी के फ़र्ज़ंद सय्यद मुहम्मद की ज़ियारत इमाम अली अल-हादी के फ़र्ज़ंद सय्यद मुहम्मद का मशहूर रौज़ा बलद नाम के एक गाँव के क़रीब वाक़े है। यह सय्यद फ़ज़ीलत, बुलंदी और ग़ैर-मामूली करामाती निशानियों की वजह से बहुत मशहूर हैं। लोग हमेशा उनके रौज़े की ज़ियारत का शरफ़ हासिल करते हैं, मन्नतें मानते हैं, कसीर नज़राने पेश करते हैं और अल्लाह तआला से अपनी हाजतें पूरी होने की दुआ करते हैं। उस गाँव के अरब बाशिंदे उन्हें बहुत अज़ीम इज़्ज़त और एहतराम देते हैं।
कहा जाता है कि इस रौज़े से बहुत-सी करामात ज़ाहिर हुईं, जो इतनी ज़्यादा हैं कि इस किताब में उनका ज़िक्र मुमकिन नहीं। इस सय्यद की एक बड़ी फ़ज़ीलत और शरफ़ यह है कि वह इमामत के लिए अहल थे और इमाम अल-हादी (`अ) के सबसे बड़े फ़र्ज़ंद थे। इमाम अल-हसन अल-अस्करी (`अ) ने इस सय्यद के इंतिक़ाल पर ग़म का इज़हार करते हुए अपना कुर्ता फाड़ दिया।
हमारे उस्ताद, भरोसेमंद शैख़ अल-नूरी—अल्लाह उनकी क़ब्र को रौशन फ़रमाए—सय्यद मुहम्मद की ज़ियारत पर कामिल ईमान रखते थे। इसी वजह से उन्होंने उनके रौज़े की तामीर के लिए बहुत कोशिशें कीं और क़ब्र-ए-मुबारक पर यह क़त्बा लिखवाया: “यह बुलंद मक़ाम सय्यद अबू-जाफ़र मुहम्मद, फ़र्ज़ंद इमाम अबुल-हसन अली अल-हादी का रौज़ा है—अल्लाह की सलामती उन पर हो—जो बहुत अज़ीम क़द्र और बुलंद मर्तबे वाले थे।”
उनके दौर के शिया यह दावा किया करते थे कि सय्यद मुहम्मद अपने वालिद के बाद अगले इमाम होंगे, लेकिन जब सय्यद मुहम्मद का इंतिक़ाल हो गया, तो उनके वालिद ने उनके भाई अबू-मुहम्मद अल-ज़की (अल-अस्करी) को अगला इमाम मुक़र्रर फ़रमाया। इस तक़र्रुरी पर तब्सिरा करते हुए इमाम (`अ) ने अपने बेटे से फ़रमाया: “अल्लाह तआला का शुक्र ताज़ा करो, क्योंकि उसने तुम्हारे बारे में एक नया हुक्म जारी फ़रमाया है।”
सय्यद मुहम्मद के वालिद ने उन्हें बचपन में मदीना में छोड़ दिया था, लेकिन जब सय्यद मुहम्मद बीमार हुए तो वह समर्रा में अपने वालिद के पास आ गए। जब उन्होंने हिजाज़ वापस जाने की कोशिश की, तो उनकी बीमारी शदीद हो गई और इसी वजह से बलद नाम के उस गाँव में—जो समर्रा से तक़रीबन 40 किलोमीटर दूर है—उनका इंतिक़ाल हो गया। उनके इंतिक़ाल पर इमाम अल-अस्करी (`अ) ने ग़म के इज़हार में अपना कुर्ता फाड़ दिया। जब इस पर उनसे सवाल किया गया, तो इमाम (`अ) ने फ़रमाया: “हज़रत मूसा ने भी अपने भाई हज़रत हारून की वफ़ात पर अपना कुर्ता फाड़ दिया था।”
सय्यद मुहम्मद का इंतिक़ाल तक़रीबन 252 हिजरी में हुआ।
