इमाम अली नक़ी अल-हादी
( अलैहिस्सलाम)
अहलेबैत(अ.स.) के दसवें इमाम अहलेबैत(अ.स.)

इमाम मुहम्मद तकी अल-जव्वाद(अ.स.) के फ़र्ज़ंद और इमाम हसन अस्करी(अ.स.) के वालिद
मुख़्तसर मालूमात

लक़ब/कुनियत: अल-हादी/नक़ी, अबुल हसन
वालिद: इमाम मुहम्मद अल-तक़ी(अ.स.) |वालिदा: समाना
विलादत: 5 रजब 212 हिजरी/ 827 (15 ज़िलहिज्जा मुतबादिल)
शहादत: 3 रजब 254 हिजरी/868 ई. को मुअतज़्ज़बिल्लाह के ज़रिये ज़हर दिए जाने से (26 जमादियुस्सानी मुतबादिल तारीख़)|रौज़ा: समर्रा, इराक़
उम्र: 42 साल
इमामत की उम्र: 9 साल
इमामत का दौर: 33 साल
इमाम की ज़िन्दगी पर किताब – बी. क़ुरैशी
दूसरी किताबें
ज़िन्दगी का ख़ाका पीडीएफ – अल ज़ीशान हैदर
मुन्तहलुल आमाल – शैख़ अब्बास क़ुम्मी | जेपीसी से ख़रीदें
मशहूर ज़ियारत जामिआ कबीरा इमाम द्वारा तालीम दी गई
विकिपीडिया
इमाम की दुआओं की किताब
अहलेबैत(अ.स.) – नस्ल, मक़ाम और अहमियत

सवानिह-ए-हयात / जीवनी








आम इज़्न-ए-दुख़ूल
मख़सूस इज़्न-ए-दुख़ूल |
ज़ियारत

दरवाज़े पर मख़सूस तिलावत
اادْخُلُ يَا نَبِيَّ ٱللَّهِ
आद्खुलु या नबिय्यल्लाहि
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ नबी-ए-ख़ुदा?

اادْخُلُ يَا امِيرَ ٱلْمُؤْمِنِينَ
आद्खुलु या अमीरल-मु’मिनीन
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ अमीरुल-मु’मिनीन?

اادْخُلُ يَا فَاطِمَةُ ٱلزَّهْرَاءُ
आद्खुलु या फ़ातिमतुज़-ज़हरा
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ फ़ातिमा ज़हरा?

سَيِّدَةَ نِسَاءِ ٱلْعَالَمِينَ
सय्यिदतनिसाइ अल-आलमीन
और आलम की औरतों की सरदार?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ ٱلْحَسَنُ بْنَ عَلِيٍّ
आद्खुलु या मौलाया अल-हसनु ब्ना अलीय्यिन
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला हसन बिन अली?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ ٱلْحُسَيْنُ بْنَ عَلِيٍّ
आद्खुलु या मौलाया अल-हुसैनु ब्ना अलीय्यिन
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला हुसैन बिन अली?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ عَلِيُّ بْنَ ٱلْحُسَيْنِ
आद्खुलु या मौलाया अलिय्यु ब्नल-हुसैनी
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला अली बिन अल-हुसैन?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ مُحَمَّدُ بْنَ عَلِيٍّ
आद्खुलु या मौलाया मुहम्मदु ब्ना अलीय्यिन
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला मुहम्मद बिन अली?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ جَعْفَرُ بْنَ مُحَمَّدٍ
आद्खुलु या मौलाया जअ’फ़रु ब्ना मुहम्मदिन्
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला जअ’फ़र बिन मुहम्मद?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ مُوسَىٰ بْنَ جَعْفَرٍ
आद्खुलु या मौलाया मूसा ब्ना जअ’फ़रिन्
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला मूसा बिन जअ’फ़र?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ عَلِيُّ بْنَ مُوسَىٰ
आद्खुलु या मौलाया अलिय्यु ब्ना मूसा
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला अली बिन मूसा?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ مُحَمَّدُ بْنَ عَلِيٍّ
आद्खुलु या मौलाया मुहम्मदु ब्ना अलीय्यिन
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला मुहम्मद बिन अली?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ يَا ابَا ٱلْحَسَنِ عَلِيُّ بْنَ مُحَمَّدٍ
आद्खुलु या मौलाया या अबल-हसन अलिय्यु ब्ना मुहम्मदिन्
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला अबुल-हसन अली बिन मुहम्मद?

اادْخُلُ يَا مَوْلاَيَ يَا ابَا مُحَمَّدٍ ٱلْحَسَنُ بْنَ عَلِيٍّ
आद्खुलु या मौलाया या अबा मुहम्मद अल-हसनु ब्ना अलीय्यिन
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ मेरे मौला अबू-मुहम्मद हसन बिन अली?

اادْخُلُ يَا مَلاَئِكَةَ ٱللَّهِ
आद्खुलु या मलाइकतल्लाहि
क्या मैं दाख़िल हो सकता हूँ, ऐ अल्लाह के फ़रिश्तो

ٱلْمُوَكَّلِينَ بِهٰذَا ٱلْحَرَمِ ٱلشَّرِيفِ
अल-मुवक्कलीना बिहाज़ा अल-हरमि अश्शरीफ़ि
जिन्हें इस मुक़द्दस हरम की निगरानी पर मुक़र्रर किया गया है?


आप फिर दाहिना क़दम आगे रखते हुए मुक़द्दस रौज़े में दाख़िल हों। जब आप इमाम अबुल-हसन अल-हादी (अ.स.) की क़ब्र के पास ठहरें, अपना चेहरा क़ब्र की तरफ़ और पीठ क़िब्ला की जानिब रखते हुए, तो आप सौ मर्तबा यह पढ़ें:
اَللَّهُ اكْبَرُ
अल्लाहु अकबर
अल्लाह सबसे बड़ा है।

इसके बाद आप यह कहें



اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا ابَا ٱلْحَسَنِ
अस्सलामु अलैका या अबा अल-हसन
आप पर सलाम हो, ऐ अबुल-हसन

عَلِيُّ بْنَ مُحَمَّدٍ
अलिय्यु ब्ना मुहम्मदिन
अली, मुहम्मद के फ़र्ज़ंद

ٱلزَّكِيُّ ٱلرَّاشِدُ
अज़्ज़किय्यु अर-राशिदु
पाकीज़ा और राह दिखाने वाले

ٱلنُّورُ ٱلثَّاقِبُ
अन-नूरुस-साक़िबु
और चमकता हुआ नूर

وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ
वा रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
और आप पर अल्लाह की रहमत और बरकतें हों

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا صَفِيَّ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या सफ़िय्यल्लाह
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के ख़ास दोस्त

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا سِرَّ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या सिर्रल्लाह
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के राज़

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا حَبْلَ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या हबलल्लाह
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह की रस्सी

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا آلَ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या आलल्लाह
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के घराने

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا خِيَرةَ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या ख़ियरतल्लाह
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के चुने हुए

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا صَفْوَةَ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या सफ़वतल्लाह
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह की बरगुज़ीदा हस्ती

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا امِينَ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या अमीनल्लाह
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के अमीन

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا حَقَّ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या हक़्क़ल्लाह
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह का हक़

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا حَبِيبَ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैका या हबीबल्लाह
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के महबूब

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا نُورَ ٱلانْوَارِ
अस्सलामु अलैका या नूरल-अनवार
आप पर सलाम हो, ऐ नूरों के नूर

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا زَيْنَ ٱلابْرَارِ
अस्सलामु अलैका या ज़ैनल-अबरार
आप पर सलाम हो, ऐ नेक लोगों की ज़ीनत

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا سَلِيلَ ٱلاخْيَارِ
अस्सलामु अलैका या सलीलल-अख़यार
आप पर सलाम हो, ऐ नेक बुज़ुर्गों की नस्ल

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا عُنْصُرَ ٱلاطْهَارِ
अस्सलामु अलैका या उनसुरल-अतहार
आप पर सलाम हो, ऐ पाक हस्तियों का जौहर

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا حُجَّةَ ٱلرَّحْمٰنِ
अस्सलामु अलैका या हुज्जतर-रहमान
आप पर सलाम हो, ऐ रहमान की हुज्जत

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا رُكْنَ ٱلإِيـمَانِ
अस्सलामु अलैका या रुक्नल-ईमान
आप पर सलाम हो, ऐ ईमान का सुतून

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا مَوْلَىٰ ٱلْمُؤْمِنِينَ
अस्सलामु अलैका या मौलल-मु’मिनीन
आप पर सलाम हो, ऐ मोमिनों के मौला

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا وَلِيَّ ٱلصَّالِحِينَ
अस्सलामु अलैका या वलिय्यस-सालेहीन
आप पर सलाम हो, ऐ सालेहों के वली

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا عَلَمَ ٱلْهُدَىٰ
अस्सलामु अलैका या अलमल-हुदा
आप पर सलाम हो, ऐ हिदायत की अलामत

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا حَلِيفَ ٱلتُّقَىٰ
अस्सलामु अलैका या हलीफ़त-तक़्वा
आप पर सलाम हो, ऐ तक़्वा के साथी

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا عَمُودَ ٱلدِّينِ
अस्सलामु अलैका या अमूदद-दीन
आप पर सलाम हो, ऐ दीन के सुतून

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ خَاتَمِ ٱلنَّبِيِّينَ
अस्सलामु अलैका या ब्ना खातमिन-नबिय्यीन
आप पर सलाम हो, ऐ ख़ातमुन-नबिय्यीन के फ़र्ज़ंद

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ سَيِّدِ ٱلْوَصِيِّينَ
अस्सलामु अलैका या ब्ना सय्यिदिल-वसिय्यीन
आप पर सलाम हो, ऐ सरदार-ए-वसिय्यीन के फ़र्ज़ंद

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ يَا بْنَ فَاطِمَةَ ٱلزَّهْرَاءِ
अस्सलामु अलैका या ब्ना फ़ातिमतज़-ज़हरा
आप पर सलाम हो, ऐ फ़ातिमा ज़हरा के फ़र्ज़ंद

سَيِّدَةِ نِسَاءِ ٱلْعَالَمِينَ
सय्यिदति निसाइल-आलमीन
जो तमाम आलम की औरतों की सरदार हैं

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلامِينُ ٱلْوَفِيُّ
अस्सलामु अलैका अय्युहल-अमीनुल-वफ़िय्यु
आप पर सलाम हो, ऐ अमानतदार और वफ़ादार

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلْعَلَمُ ٱلرَّضِيُّ
अस्सलामु अलैका अय्युहल-अलमुर-रज़िय्यु
आप पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के पसन्दीदा अलम

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلزَّاهِدُ ٱلتَّقِيُّ
अस्सलामु अलैका अय्युहज़-ज़ाहिदुत-तक़िय्यु
आप पर सलाम हो, ऐ ज़ाहिद और मुत्तक़ी

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلْحُجَّةُ عَلَىٰ ٱلْخَلْقِ اجْمَعِينَ
अस्सलामु अलैका अय्युहल-हुज्जतु अला अल-ख़ल्क़ि अज्मईन
आप पर सलाम हो, ऐ तमाम मख़्लूक़ पर अल्लाह की हुज्जत

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلتَّالِي لِلْقُرْآنِ
अस्सलामु अलैका अय्युहत-ताली लिल-क़ुरआन
आप पर सलाम हो, ऐ क़ुरआन के तिलावत करने वाले

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلْمُبَيِّنُ لِلْحَلاَلِ مِنَ ٱلْحَرَامِ
अस्सलामु अलैका अय्युहल-मुबय्यिनु लिल-हलालि मिनल-हराम
आप पर सलाम हो, ऐ हलाल और हराम को वाज़ेह करने वाले

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلْوَلِيُّ ٱلنَّاصِحُ
अस्सलामु अलैका अय्युहल-वलिय्युन-नासिहु
आप पर सलाम हो, ऐ नसीहत करने वाले वली

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلطَّرِيقُ ٱلْوَاضِحُ
अस्सलामु अलैका अय्युहत-तरीक़ुल-वाज़िहु
आप पर सलाम हो, ऐ वाज़ेह राह

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكَ ايُّهَا ٱلنَّجْمُ ٱللاَّئِحُ
अस्सलामु अलैका अय्युहन-नज्मुल-लाइहु
आप पर सलाम हो, ऐ चमकता सितारा

اشْهَدُ يَا مَوْلاَيَ يَا ابَا ٱلْحَسَنِ
अश्हदु या मौलाया या अबा अल-हसन
मैं गवाही देता हूँ, ऐ मेरे मौला, ऐ अबुल-हसन

انَّكَ حُجَّةُ ٱللَّهِ عَلَىٰ خَلْقِهِ
अन्नका हुज्जतुल्लाहि अला ख़ल्क़िही
कि आप अल्लाह की हुज्जत हैं उसकी मख़्लूक़ पर

وَخَلِيفَتُهُ فِي بَرِيَّتِهِ
वा ख़लीफ़तُहू फी बरीय्यतिही
और उसकी मख़्लूक़ में उसके नुमाइंदा

وَامِينُهُ فِي بِلاَدِهِ
वा अमीनुहू फी बिलादिही
और उसके मुल्क में उसके अमीन

وَشَاهِدُهُ عَلَىٰ عِبَادِهِ
वा शाहिदुहू अला इबादिही
और उसके बंदों पर उसके गवाह

وَاشْهَدُ انَّكَ كَلِمَةُ ٱلتَّقْوَىٰ
वा अश्हदु अन्नका कलिमतुत-तक़्वा
और मैं गवाही देता हूँ कि आप तक़्वा का कलिमा हैं

وَبَابُ ٱلْهُدَىٰ
वा बाबुल-हुदा
और हिदायत का दरवाज़ा

وَٱلْعُرْوَةُ ٱلْوُثْقَىٰ
वल-उरवतुल-वुस्क़ा
और मज़बूत तरीन सहारा

وَٱلْحُجَّةُ عَلَىٰ مَنْ فَوْقَ ٱلارْضِ
वल-हुज्जतु अला मन् फ़ौक़ल-अर्द
और ज़मीन पर रहने वालों पर हुज्जत

وَمَنْ تَحْتَ ٱلثَّرَىٰ
वा मन् तहतस-सरा
और जो मिट्टी की तहों के नीचे हैं उन पर भी

وَاشْهَدُ انَّكَ ٱلْمُطَهَّرُ مِنَ ٱلذُّنُوبِ
वा अश्हदु अन्नका अल-मुतह्हरु मिनज़-ज़ुनूब
और मैं गवाही देता हूँ कि आप गुनाहों से पाक हैं

ٱلْمُبَرَّا مِنَ ٱلْعُيُوبِ
अल-मुबर्रा मिनल-उयूब
और ऐबों से पाक व बरी

وَٱلْمُخْتَصُّ بِكَرَامَةِ ٱللَّهِ
वल-मुख़्तस्सु बि-करामतिल्लाह
और अल्लाह की करामत के साथ मख़सूस

وَٱلْمَحْبُوُّ بِحُجَّةِ ٱللَّهِ
वल-महबू बि-हुज्जतिल्लाह
और अल्लाह की हुज्जत से नवाज़े गए

وَٱلْمَوْهُوبُ لَهُ كَلِمَةُ ٱللَّهِ
वल-मौहूबु लहू कलिमतुल्लाह
और जिन्हें कलिमा-ए-इलाही अता हुआ

وَٱلرُّكْنُ ٱلَّذِي يَلْجَا إِِلَيْهِ ٱلْعِبَادُ
वर-रुक्नुल-लज़ी यल्जअु इलैहिल-इबाद
और वह मज़बूत रुक्न जिसकी पनाह बंदे लेते हैं

وَتُحْيَىٰ بِهِ ٱلْبِلاَدُ
वा तुह्या बिहिल-बिलाद
और जिनके वसीले से शहर ज़िंदा होते हैं

وَاشْهَدُ يَا مَوْلاَيَ
वा अश्हदु या मौलाया
और मैं गवाही देता हूँ, ऐ मेरे मौला

انِّي بِكَ وَبِآبَائِكَ وَابْنَائِكَ مُوقِنٌ مُقِرٌّ
इन्नी बिका व बिआबाइका व अबनाइका मूक़िनुन मुक़िर्रुन
कि मैं आप पर, आपके आबा व अजदाद पर और आपके फ़र्ज़ंदों पर यक़ीन रखता हूँ और इक़रार करता हूँ

وَلَكُمْ تَابِعٌ فِي ذَاتِ نَفْسِي
व लकुम ताबिउन फी ज़ाति नफ़्सी
और अपने नफ़्सी उमूर में मैं आप सबका पैरवीकार हूँ

وَشَرَايِعِ دِينِي
व शराइइ दीनि
और अपने दीन के अहकाम में

وَخَاتِمَةِ عَمَلِي
व खातिमति अमली
और अपने अमल के अंजाम में

وَمُنْقَلَبِي وَمَثْوَايَ
व मुनक़लबी व मसवाया
और अपने लौटने और ठिकाने में

وَانِّي وَلِيٌّ لِمَنْ وَالاَكُمْ
व इन्नी वलिय्युन लिमन वालाकुम
और मैं उन लोगों का दोस्त हूँ जो आपके दोस्त हैं

وَعَدُوٌّ لِمَنْ عَادَاكُمْ
व अदुव्वुन लिमन आदाकुम
और उन लोगों का दुश्मन जो आपके दुश्मन हैं

مُؤْمِنٌ بِسِرِّكُمْ وَعَلاَنِيَتِكُمْ
मू’मिनुन बिसिर्रिकुम व अलानियतikum
मैं आपके छुपे और ज़ाहिर दोनों पर ईमान रखता हूँ

وَاوَّلِكُمْ وَآخِرِكُمْ
व अव्वलिकुम व आख़िरिकुम
और आप सबके अव्वल और आख़िर पर

بِابِي انْتَ وَامِّي
बिआबी अन्ता व उम्मी
मेरे माँ-बाप आप पर क़ुर्बान हों

وَٱلسَّلاَمُ عَلَيْكَ وَرَحْمَةُ ٱللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ
वल्लस्सलामु अलैका व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
और आप पर सलाम हो और अल्लाह की रहमत व बरकतें हों


अब आप क़ब्र को बोसा दें और अपना दाहिना फिर बायाँ रुख़सार उस पर रखकर ये अल्फ़ाज़ कहें:
اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व आलि मुहम्मद
ऐ अल्लाह! मुहम्मद और आले-मुहम्मद पर दुरूद भेज

وَصَلِّ عَلَىٰ حُجَّتِكَ ٱلْوَفِيِّ
व सल्लि अला हुज्जतिकल-वफ़िय्यि
और अपनी वफ़ादार हुज्जत पर दुरूद भेज

وَوَلِيِّكَ ٱلزَّكِيِّ
व वलिय्यिकल-ज़किय्यि
और अपने पाक वली पर

وَامِينِكَ ٱلْمُرْتَضَىٰ
व अमीनिकल-मुर्तज़ा
और अपने मुरतज़ा अमीन पर

وَصَفِيِّكَ ٱلْهَادِي
व सफ़िय्यिकल-हादी
और अपने ख़ास हादी पर

وَصِرَاطِكَ ٱلْمُسْتَقِيمِ
व सिरातिकल-मुस्तक़ीम
और तेरे सिरात-ए-मुस्तक़ीम पर

وَٱلْجَادَّةِ ٱلْعُظْمَىٰ
वल-जाद्दतिल-उज़्मा
और सबसे बड़ी राह पर

وَٱلطَّرِيقَةِ ٱلْوُسْطَىٰ
वत-तरीक़तिल-वुस्ता
और बीच की (मुतवाज़िन) तरीक़त पर

نُورِ قُلُوبِ ٱلْمُؤْمِنِينَ
नूरि क़ुलूबिल-मु’मिनीन
मोमिनों के दिलों के नूर पर

وَوَلِيِّ ٱلْمُتَّقِينَ
व वलिय्यिल-मुत्तक़ीन
और मुत्तक़ियों के वली पर

وَصَاحِبِ ٱلْمُخْلِصِينَ
व साहिबिल-मुख़लिसीन
और मुख़लिसीन के रफ़ीक़ पर

اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ سَيِّدِنَا مُحَمَّدٍ وَاهْلِ بَيْتِهِ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला सैय्यिदिना मुहम्मदिन व अह्लि बैतिही
ऐ अल्लाह! हमारे सैय्यद मुहम्मद और उनके अहलेबैत पर दुरूद भेज

وَصَلِّ عَلَىٰ عَلِيِّ بْنِ مُحَمَّدٍ
व सल्लि अला अलिय्यि ब्नि मुहम्मदिन
और अली बिन मुहम्मद पर दुरूद भेज

ٱلرَّاشِدِ ٱلْمَعْصُومِ مِنَ ٱلزَّلَلِ
अर-राशिदिल-मअ’सू़मि मिनज़-ज़लल
जो राह-ए-रास्त दिखाने वाले, और لغزش से मासूम हैं

وَٱلطَّاهِرِ مِنَ ٱلْخَلَلِ
वत-ताहिरि मिनल-ख़लल
और हर नुक़्स से पाक हैं

وَٱلْمُنْقَطِعِ إِِلَيْكَ بِٱلامَلِ
वल-मुनक़तिअि इलैका बिल-अमल
जो तेरी उम्मेद के सहारे (दुनिया से) किनारा-कश रहे

ٱلْمَبْلُوِّ بِٱلْفِتَنِ
अल-मब्लूव्वि बिल-फ़ितन
जिन्हें फ़ितनों के ज़रिये आज़माया गया

وَٱلْمُخْتَبَرِ بِٱلْمِحَنِ
वल-मुख़्तबरि बिल-मिहन
और मसाइब के ज़रिये परखा गया

وَٱلْمُمْتَحَنِ بِحُسْنِ ٱلْبَلْوَىٰ
वल-मुम्तहनि बि-हुस्निल-बलवा
और इम्तिहान में हुस्न-ए-सबर के साथ साबित-क़दम रहे

وَصَبْرِ ٱلشَّكْوَىٰ
व सब्रिश-शक्वा
और शिकायत पर सब्र करने वाले

مُرْشِدِ عِبَادِكَ
मुर्शिदि इबादिक
तेरे बंदों के मुर्शिद

وَبَرَكَةِ بِلاَدِكَ
व बरकतِ बिलादिक
तेरे शहरों के लिए बरकत

وَمَحَلِّ رَحْمَتِكَ
व महल्लि रहमतिक
तेरी रहमत के नुज़ूल का मक़ाम

ومُسْتَوْدَعِ حِكْمَتِكَ
व मुस्तव्दअि हिकमतिक
तेरी हिकमत का अमानत-ख़ाना

وَٱلْقَائِدِ إِلَىٰ جَنَّتِكَ
वल-क़ाइदि इला जन्नतिक
तेरी जन्नत की तरफ़ रहनुमा

ٱلْعَالِمِ فِي بَرِيَّتِكَ
अल-आलिमि फी बरीय्यतिक
तेरी मख़्लूक़ में आलिम

وَٱلْهَادِي فِي خَلِيقَتِكَ
वल-हादी फी ख़लीक़तिक
तेरी ख़ल्क़ में हादी

ٱلَّذِي ٱرْتَضَيْتَهُ وَٱنْتَجَبْتَهُ
अल्लज़ी इर्तज़ैतहू व अन्तजबतहू
जिसे तूने पसन्द फ़रमाया और चुन लिया

وَٱخْتَرْتَهُ لِمَقَامِ رَسُولِكَ فِي امَّتِهِ
व अख़्तर्तहू लिमक़ामि रसूलिका फी उम्मतिही
और उसे अपने रसूल की उम्मत में उनके मक़ाम के लिए मुंतख़ब किया

وَالْزَمْتَهُ حِفْظَ شَرِيعَتِهِ
वल-अलज़मतहू हिफ़्ज़ा शरीअतिही
और उसकी शरीअत की हिफ़ाज़त उस पर लाज़िम की

فَٱسْتَقَلَّ بِاعْبَاءِ ٱلْوَصِيَّةِ
फस्तक़ल्ला बिअ’बाइल-वसिय्यत
तो उसने वसिय्यत की भारी ज़िम्मेदारी उठाई

نَاهِضاً بِهَا
नाहिदन् बिहा
और उसे पूरी तरह अदा किया

ومُضْطَلِعاً بِحَمْلِهَا
व मुद्तलिअन् बिहम्लिहा
और उसके बोझ को उठाने की ज़िम्मेदारी निभाई

لَمْ يَعْثُرْ فِي مُشْكِلٍ
लम यअ’थुर फी मुश्किलिन्
न वह किसी मुश्किल में फिसले

وَلاَ هَفَا فِي مُعْضِلٍ
व ला हफ़ा फी मुअ’दिलिन्
और न किसी पेचीदगी में कमजोर पड़े

بَلْ كَشَفَ ٱلْغُمَّةَ
बल कशफ़ल-ग़ुम्मह
बल्कि उसने सारी घुटनें दूर कीं

وَسَدَّ ٱلْفُرْجَةَ
व सद्दल-फ़ुरजह
और दरारें बंद कीं

وَادَّىٰ ٱلْمُفْتَرَضَ
व अद्दल-मुफ़्तरज़
और फ़र्ज़ अदा किए

اَللَّهُمَّ فَكَمَا اقْرَرْتَ نَاظِرَ نَبِيِّكَ بِهِ
अल्लाहुम्मा फ़कमा अक़र्रर्ता नाज़िरा नबिय्यिका बिही
ऐ अल्लाह! जिस तरह तूने अपने नबी की आँखों को इससे ठंडक दी

فَرَقِّهِ دَرَجَتَهُ
फ़रक़्क़िही दरजतहू
उसी तरह उसका दर्जा बुलन्द फ़रमा

وَاجْزِلْ لَدَيْكَ مَثُوبَتَهُ
व अज्ज़िल लदैका मसूबतहू
और अपने पास उसे बेहतरीन सवाब अता फ़रमा

وَصَلِّ عَلَيْهِ
व सल्लि अलैहि
और उस पर दुरूद भेज

وَبَلِّغْهُ مِنَّا تَحِيَّةً وَسَلاَماً
व बल्लिघ्हू मिन्ना तहिय्यतन व सलामन
और हमारी तरफ़ से उसे तहिय्यत और सलाम पहुँचा

وَآتِنَا مِنْ لَدُنْكَ فِي مُوَالاَتِهِ فَضْلاًَ وَإِِحْسَاناً
व आतिना मिन लदुनका फी मुवालातिही फ़ज़्लन व इहसानन
और उसकी विलायत की वजह से हमें अपने पास से फ़ज़्ल और एहसान अता फ़रमा

وَمَغْفِرَةً وَرِضْوَاناً
व मग़फ़िरतन व रिज़वानन
और मग़फ़िरत और रिज़ा अता फ़रमा

إِِنَّكَ ذُو ٱلْفَضْلِ ٱلْعَظِيمِ
इन्नका ज़ुल-फ़ज़्लिल-अज़ीम
बेशक तू बड़े फ़ज़्ल वाला है





सलात-दुआ- रुख़्सती
ज़ियारत की नमाज़ अदा करें, फिर आप यह दुआ पढ़ें:
يَا ذَا ٱلْقُدْرَةِ ٱلْجَامِعَةِ
या ज़ल-क़ुदरतिल-जामिअह
ऐ जामेअ क़ुदरत वाले परवरदिगार!

وَٱلرَّحْمَةِ ٱلْوَاسِعَةِ
वर-रहमतिल-वासिअह
और वसीअ रहमत वाले!

وَٱلْمِنَنِ ٱلْمُتَتَابِعَةِ
वल-मिननिल-मुतताबिअह
और लगातार एहसानात करने वाले!

وَٱلآلاَءِ ٱلْمُتَوَاتِرَةِ
वल-आलाइ अल-मुतवातिरह
और पैहम नेमतें देने वाले!

وَٱلايَادِي ٱلْجَلِيلَةِ
वल-अयादिल-जलीलह
और अज़ीम इनआमात वाले!

وَٱلْمَوَاهِبِ ٱلْجَزِيلَةِ
वल-मवाहिबिल-जज़ीलह
और बहुत ज्यादा अता करने वाले!

صَلِّ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِ مُحَمَّدٍ ٱلصَّادِقِينَ
सल्लि अला मुहम्मदिन व आलि मुहम्मदिस-सादिक़ीन
मुहम्मद और आले-मुहम्मद (सच्चों) पर दुरूद भेज

وَاعْطِنِي سُؤْلِي
व अ’तिनी सुअली
और मुझे मेरा सवाल अता फ़रमा

وَٱجْمَعْ شَمْلِي
वज्मअ शम्ली
और मेरी बिखरी हालत जमा फ़रमा

وَلُمَّ شَعْثِي
व लुम्म शअ’सी
और मेरी परागंदगी दुरुस्त फ़रमा

وَزَكِّ عَمَلِي
व ज़क्कि अमली
और मेरे अमल को पाक कर दे

وَلاَ تُزِغْ قَلْبِي بَعْدَ إِِذْ هَدَيْتَنِي
व ला तुज़िघ क़ल्बी बअ’दा इज़ हदैतनी
और हिदायत देने के बाद मेरा दिल टेढ़ा न कर

وَلاَ تُزِلَّ قَدَمِي
व ला तुज़िल्ल क़दमी
और मेरे क़दम को फिसलने न दे

وَلاَ تَكِلْنِي إِلَىٰ نَفْسِي طَرْفَةَ عَيْنٍ ابَداً
व ला तकिल्नी इला नफ़्सी तर्फ़ता ऐनिन अबदन
और एक पल (आँख झपकने जितना भी) मुझे मेरे नफ़्स के हवाले न कर

وَلاَ تُخَيِّبْ طَمَعِي
व ला तुख़य्यिब तमअ’ी
और मेरी उम्मीद को नाकाम न कर

وَلاَ تُبْدِ عَوْرَتِي
व ला तुब्दी अउरती
और मेरी पोशीदा बातें ज़ाहिर न कर

وَلاَ تَهْتِكْ سِتْرِي
व ला तह्तिक सित्री
और मेरा पर्दा चाक न कर

وَلاَ تُوحِشْنِي وَلاَ تُؤْيِسْنِي
व ला तूहिश्नी व ला तुअ’यस्नी
और मुझे वहशतज़दा न कर, और मुझे मायूस न कर

وَكُنْ بِي رَؤُوفاً رَحِيماً
व कुन बी रऊफ़न रहीमन
और मुझ पर मेहरबान और रहीम रह

وَٱهْدِنِي وَزَكِّنِي
वह्दिनी व ज़क्किनी
मुझे हिदायत दे और मुझे पाकीज़ा कर

وَطَهِّرْنِي وَصَفِّنِي
व त्ह्हिरनी व सफ़्फ़िनी
और मुझे पाक कर, और मुझे साफ़-सुथरा बना

وَٱصْطَفِنِي وَخَلِّصْنِي وَٱسْتَخْلِصْنِي
वस्तफ़िनी व ख़ल्लिस्नी वस्तख़्लिस्नी
और मुझे (अपना) बरगुज़ीदा बना, मुझे निजात दे, और मुझे ख़ालिस अपने लिए चुन ले

وَٱصْنَعْنِي وَٱصْطَنِعْنِي
वस्नअनी वस्तनिअनी
और मुझे (अपने लिए) बना दे, और मुझे अपने लिए ख़ास कर ले

وَقَرِّبْنِي إِِلَيْكَ وَلاَ تُبَاعِدْنِي مِنْكَ
व क़र्रिब्नी इलैका व ला तुबाअिद्नी मिंका
और मुझे अपने क़रीब कर ले, और मुझे अपने से दूर न कर

وَٱلْطُفْ بِي وَلاَ تَجْفُنِي
वल्तुफ बी व ला तज्फ़ुनी
और मुझ पर लुत्फ़ फ़रमा, और मुझसे रुख़ न फेर

وَاكْرِمْنِي وَلاَ تُهِنِّي
व अक्रिम्नी व ला तुहिन्नी
और मुझे इज़्ज़त दे, और मुझे ज़लील न कर

وَمَا اسْالُكَ فَلاَ تَحْرِمْنِي
व मा अस्अलुका फ़ला तहरिम्नी
और जो मैं तुझसे मांगूँ, उससे मुझे महरूम न कर

وَمَا لاََ اسْالُكَ فَٱجْمَعْهُ لِي
व मा ला अस्अलुका फ़ज्मअहु ली
और जो मैं न मांगूँ, वह भी मेरे लिए जमा फ़रमा दे

بِرَحْمَتِكَ يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
बिरहमतिका या अरहमर-राहिमीन
अपनी रहमत के सदक़े, ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाले!

وَاسْالُكَ بِحُرْمَةِ وَجْهِكَ ٱلْكَرِيمِ
व अस्अलुका बिहुर्मति वज्हिकल-करीम
और मैं तुझसे तेरे वज्ह-ए-करीम की हुरमत का वास्ता देकर मांगता हूँ

وَبِحُرْمَةِ نَبِيِّكَ مُحَمَّدٍ
व बिहुर्मति नबिय्यिका मुहम्मद
और तेरे नबी मुहम्मद की हुरमत का

صَلَوَاتُكَ عَلَيْهِ وَآلِهِ
सलवातुका अलैहि व आलिही
जिन पर और जिनके अहलेबैत पर तेरी सलवात हो

وَبِحُرْمَةِ اهْلِ بَيْتِ رَسُولِكَ
व बिहुर्मति अह्लि बैति रसूलिक
और तेरे रसूल के अहलेबैत की हुरमत का

امِيرِ ٱلْمُؤْمِنِينَ عَلِيٍّ
अमीरिल-मु’मिनीना अलिय्यिन
यानी अमीरुल-मु’मिनीन अली

وَٱلْحَسَنِ وَٱلْحُسَيْنِ
वल-हसन वल-हुसैन
और हसन और हुसैन

وَعَلِيٍّ وَمُحَمَّدٍ
व अलिय्यिन व मुहम्मद
और अली और मुहम्मद

وَجَعْفَرٍ ومُوسَىٰ
व जअ’फ़रिन व मूसा
और जअ’फ़र और मूसा

وَعَلَيٍّ وَمُحَمَّدٍ
व अलिय्यिन व मुहम्मद
और अली और मुहम्मद

وَعَلِيٍّ وَٱلْحَسَنِ
व अलिय्यिन वल-हसन
और अली और हसन

وَٱلْخَلَفِ ٱلْبَاقِي
वल-ख़लफ़िल-बाक़ी
और बाक़ी रहने वाले ख़लफ़

صَلَوَاتُكَ وَبَرَكَاتُكَ عَلَيْهِمِ
सलवातुका व बरकातुका अलैहिम
उन सब पर तेरी सलवात और बरकतें हों

انْ تُصَلِّيَ عَلَيْهِمْ اجْمَعِينَ
अन् तुसल्लिया अलैहिम अज्मईन
कि तू उन सब पर दुरूद भेजे

وَتُعَجِّلَ فَرَجَ قَائِمِهِمْ بِامْرِكَ
व तुअज्जिला फ़रज क़ाइमिहिम बिअम्रिक
और अपने हुक्म से उनके क़ाइम का फ़रज जल्दी फ़रमा

وَتَنْصُرَهُ وَتَنْتَصِرَ بِهِ لِدِينِكَ
व तनसुरहु व तन्तसिर बिही लिदीनिक
और उसकी मदद फ़रमा, और उसे अपने दीन की नुसरत का ज़रिया बना

وَتَجْعَلَنِي فِي جُمْلَةِ ٱلنَّاجِينَ بِهِ
व तज्अलनी फी जुम्लतिन-नाजीन बिही
और मुझे उन लोगों में शामिल कर जो उसके वसीले से नजात पाएँ

وَٱلْمُخْلِصِينَ فِي طَاعَتِهِ
वल-मुख़लिसीन फी ताअतिही
और जो उसकी इताअत में मुख़लिस हों

وَاسْالُكَ بِحَقِّهِمْ
व अस्अलुका बिहक़्क़िहिम
और मैं तुझसे उनके हक़ का वास्ता देकर मांगता हूँ

لَمَّا ٱسْتَجَبْتَ لِي دَعْوَتِي
लम्मा इस्तज्ब्ता ली दअ’वती
कि तू मेरी दुआ क़ुबूल फ़रमा

وَقَضَيْتَ لِي حَاجَتِي
व क़ज़ैता ली हाजती
और मेरी हाजत पूरी फ़रमा

وَاعْطَيْتَنِي سُؤْلِي
व अ’तैतनी सुअली
और मुझे मेरा सवाल अता फ़रमा

وَكَفَيْتَنِي مَا اهَمَّنِي
व कफ़ैतनी मा अहम्मनी
और जो चीज़ मुझे परेशान करे, उससे मुझे किफ़ायत फ़रमा

مِنْ امْرِ دُنْيَايَ وَآخِرَتِي
मिन अम्रि दुन्याया व आख़िरती
दुनिया और आख़िरत के तमाम उमूर में

يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
या अरहमर-राहिमीन
ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाले!

يَا نُورُ يَا بُرْهَانُ
या नूरु या बुर्हान
ऐ नूर! ऐ बुर्हान!

يَا مُنِيرُ يَا مُبِينُ
या मुनीरु या मुबीन
ऐ रौशन करने वाले! ऐ वाज़ेह करने वाले!

يَا رَبِّ ٱكْفِنِي شَرَّ ٱلشُّرُورِ
या रब्बि इक्फ़िनी शर्रश-शुरूर
ऐ परवरदिगार! मुझे तमाम शरों से बचा

وَآفَاتِ ٱلدُّهُورِ
व आफ़ातिद-दुहूर
और ज़माने की आफ़तों से भी

وَاسْالُكَ ٱلنَّجَاةَ
व अस्अलुकन-नजात
और मैं तुझसे नजात मांगता हूँ

يَوْمَ يُنْفَخُ فِي ٱلصُّورِ
यौमा युन्फ़खु फ़िस-सूर
उस दिन जब सूर फूँका जाएगा

अब आप अल्लाह तआला से जो चाहें दुआ मांग सकते हैं।
और आप नीचे दी गई दुआ को जितनी बार मुमकिन हो दोहरा सकते हैं:
يَا عُدَّتِي عِنْدَ ٱلْعُدَدِ
या उद्दती इन्दा अल-उदद
ऐ मेरी मदद जब कोई मदद न हो!

وَيَا رَجَائِي وَٱلْمُعْتَمَدَ
व या रजाई वल-मुअतमद
ऐ मेरी उम्मीद और मेरा भरोसा!

وَيَا كَهْفِي وَٱلسَّنَدَ
व या कह्फ़ी वस्सनद
ऐ मेरी पनाह और मेरा सहारा!

يَا وَاحِدُ يَا احَدُ
या वाहिदु या अहदु
ऐ यकता! ऐ एक और यकता!

وَيَا قُلْ هُوَ ٱللَّهُ احَدٌ
व या क़ुल हुवा अल्लाहु अहदुन
ऐ वह जिसकी शान में कहा गया: “क़ुल हुवल्लाहु अहद”

اسْالُكَ ٱللَّهُمَّ بِحَقِّ مَنْ خَلَقْتَ مِنْ خَلْقِكَ
अस्अलुका अल्लाहुम्मा बिहक़्क़ि मन् ख़लक़्ता मिन ख़ल्क़िक
ऐ अल्लाह! मैं तुझसे तेरी मख़्लूक़ में से उन लोगों के हक़ के वसीले से मांगता हूँ जिन्हें तूने पैदा किया

وَلَمْ تَجْعَلْ فِي خَلْقِكَ مِثْلَهُمْ احَداً
व लम तज्अल फी ख़ल्क़िक मिथ्लहुम अहदन
और तूने अपनी मख़्लूक़ में किसी को उनके जैसा नहीं बनाया

صَلِّ عَلَىٰ جَمَاعَتِهِمْ
सल्लि अला जमाअतिहिम...
(अतः) उन सब पर दुरूद भेज...

अब आप अपनी हाजतें (अल्लाह तआला के सामने) पेश करें। इमाम अल-हादी (अ.) से रिवायत है कि आपने फ़रमाया, "मैंने अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल से दुआ की है कि जो शख़्स मेरे हरम में यह दुआ पढ़े, उसे नामुराद न करे।"

दोनों इमामों को रुख़्सत करना
जब आप दोनों मुक़द्दस इमामों को रुख़्सत करने का इरादा करें, तो रौज़े के क़रीब ठहरकर ये अल्फ़ाज़ कहें:
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا وَلِيَّيِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैकुमा या वलिय्ययिल्लाह
आप दोनों पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के वली

اسْتَوْدِعُكُمَا ٱللَّهَ
अस्तव्दिअुकुमा अल्लाह
मैं आप दोनों को अल्लाह के सुपुर्द करता हूँ

وَاقْرَا عَلَيْكُمَا ٱلسَّلاَمَ
व अक़्रउ अलैकुमा अस्सलाम
और आप दोनों पर सलाम पेश करता हूँ

آمَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلرَّسُولِ
आमन्ना बिल्लाहि व बिर्रसूल
हम अल्लाह पर और रसूल पर ईमान लाए

وَبِمَا جِئْتُمَا بِهِ وَدَلَلْتُمَا عَلَيْهِ
व बिमा जिअ’तुमा बिही व दलल्तुमा अलैहि
और उस पर भी जो आप दोनों लेकर आए और जिस पर आपने रहनुमाई की

اَللَّهُمَّ ٱكْتُبْنَا مَعَ ٱلشَّاهِدينَ
अल्लाहुम्मक्तुबना मअश-शाहिदीन
ऐ अल्लाह! हमें गवाहों के साथ लिख दे

اَللَّهُمَّ لاََ تَجْعَلْهُ آخِرَ ٱلْعَهْدِ
अल्लाहुम्मा ला तज्अल्हु आख़िरल-अह्दि
ऐ अल्लाह! इसे (मेरी) आख़िरी हाज़िरी क़रार न दे

مِنْ زِيَارَتِي إِِيَّاهُمَا
मिन ज़ियारती इय्याहुमा
कि मेरी इन दोनों की ज़ियारत यही आख़िरी हो

وَٱرْزُقْنِي ٱلْعَوْدَ إِِلَيْهِمَا
वरज़ुक़नी अल-अव्दा इलैहिमा
बल्कि मुझे दोबारा उनके पास आने का रिज़्क़ अता फ़रमा

وَٱحْشُرْنِي مَعَهُمَا
वह्शुरनी मअहुमा
और मुझे उन दोनों के साथ महशूर फ़रमा

وَمَعَ آبَائِهِمَا ٱلطَّاهِرِينَ
व मअ आَبाइहिमा अत-ताहिरीन
और उनके पाक आबा व अजदाद के साथ

وَٱلْقَائِمِ ٱلْحُجَّةِ مِنْ ذُرِّيَّتِهِمَا
वल-क़ाइमिल-हुज्जति मिन ज़ुर्रिय्यतिहिमा
और उनकी नस्ल से क़ाइम हुज्जत के साथ

يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
या अरहमर-राहिमीन
ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाले





اَللَّهُمَّ صَلِّ عَلَىٰ عَلِيِّ بْنِ مُحَمَّدٍ
अल्लाहुम्मा सल्लि अला अलिय्यि ब्नि मुहम्मद
ऐ अल्लाह! अली बिन मुहम्मद पर दुरूद भेज

وَصِيِّ ٱلأَوْصِيَاءِ
वसिय्यिल-अवसियाइ
जो औसिया के वसी हैं

وَإِمَامِ ٱلأَتْقِيَاءِ
व इमामिल-अतक़ियाइ
और मुत्तक़ियों के इमाम हैं

وَخَلَفِ أَئِمَّةِ ٱلدِّينِ
व ख़लफ़ि अइम्मतिद-दीन
और दीन के इमामों के जानशीन हैं

وَٱلْحُجَّةِ عَلَىٰ ٱلْخَلاَئِقِ أَجْمَعِينَ
वल-हुज्जति अला अल-ख़लाइक़ि अज्मईन
और तमाम मख़्लूक़ पर अल्लाह की हुज्जत हैं

اَللَّهُمَّ كَمَا جَعَلْتَهُ نُوراً يَسْتَضِيءُ بِهِ ٱلْمُؤْمِنُونَ
अल्लाहुम्मा कमा जअल्तहू नूरन यस्तज़ीउ बिहिल-मु’मिनून
ऐ अल्लाह! जैसे तूने उन्हें नूर बनाया जिससे मोमिनीन रौशनी हासिल करते हैं

فَبَشَّرَ بِٱلْجَزِيلِ مِنْ ثَوَابِكَ
फ़बश्शरा बिल-जज़ीलि मिन सवाबिक
तो उन्होंने तेरे बड़े सवाब की बशारत दी

وَأَنْذَرَ بِٱلأَلِيمِ مِنْ عِقَابِكَ
व अन्ज़रा बिल-अलीमि मिन इक़ाबिक
और तेरे दर्दनाक अज़ाब से डराया

وَحَذَّرَ بَأْسَكَ
व हज़्ज़रा बअसक
और तेरी गिरफ़्त से आगाह किया

وَذَكَّرَ بِآيَاتِكَ
व ज़क्करा बि-आयातिक
और तेरी आयात की याद-दिहानी कराई

وَأَحَلَّ حَلاَلَكَ
व अहल्ला हलालक
और जिसे तूने हलाल किया उसे हलाल ठहराया

وَحَرَّمَ حَرَامَكَ
व हर्रमा हरामक
और जिसे तूने हराम किया उसे हराम ठहराया

وَبَيَّنَ شَرَائِعَكَ وَفَرَائِضَكَ
व बय्यना शराइअक व फ़राइज़क
और तेरी शरीअतों और फ़राइज़ को वाज़ेह किया

وَحَضَّ عَلَىٰ عِبَادَتِكَ
व हज़्ज़ा अला इबादतिक
और तेरी इबादत की तरफ़ तरगीब दिलाई

وَأَمَرَ بِطَاعَتِكَ
व अमरा बिता’अतिक
और तेरी इताअत का हुक्म दिया

وَنَهَىٰ عَنْ مَعْصِيَتِكَ
व नहा अन मअसियतक
और तेरी नाफ़रमानी से मना किया

فَصَلِّ عَلَيْهِ
फ़सल्लि अलैहि
तो तू उन पर दुरूद भेज

أَفْضَلَ مَا صَلَّيْتَ عَلَىٰ أَحَدٍ
अफ़ज़ला मा सल्लैत अला अहद
सबसे बेहतरीन दुरूद जो तूने किसी पर भेजा हो

مِنْ أَوْلِيَائِكَ وَذُرِّيَّةِ أَنْبِيَائِكَ
मिन औलियाइक व ज़ुर्रिय्यति अंबियाइक
अपने औलिया और अपने अंबिया की नस्ल में से किसी पर

يَا إِلٰهَ ٱلْعَالَمِينَ
या इलाहल-आलमीन
ऐ तमाम जहानों के परवरदिगार




इमाम अली अल-नक़ी और इमाम अल-हसन अल-अस्करी की मुश्तरका ज़ियारत
विदाई ज़ियारत

जब आप सामर्रा (जिसे सुर्रा-मन-राआ भी कहा जाता है; मरकज़ी इराक़) पहुँचें तो ग़ुस्ल करें और मुक़द्दस रौज़ों में दाख़िल होने के तमाम आदाब अदा करें। फिर सुकून और वक़ार के साथ चलें। जब आप हरम शरीफ़ के दरवाज़े पर हों, तो दाख़िले की इजाज़त माँगें और ज़ियारत का यह सिग़ा पढ़ें, जिसे सबसे ज़्यादा मोअतबर समझा जाता है:
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا وَلِيَّيِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैकुमा या वलिय्यैल्लाह
तुम दोनों पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के वलीयो

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا حُجَّتَيِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैकुमा या हुज्जतैयिल्लाह
तुम दोनों पर सलाम हो, ऐ अल्लाह की हुज्जतो

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا نُورَيِ ٱللَّهِ فِي ظُلُمَاتِ ٱلارْضِ
अस्सलामु अलैकुमा या नूरयिल्लाह फ़ी ज़ुलुमातिल-अर्ज़
तुम दोनों पर सलाम हो, ऐ ज़मीन की तारीकियों में अल्लाह के नूर

اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا مَنْ بَدَا لِلَّهِ فِي شَانِكُمَا
अस्सलामु अलैकुमा या मन बदालिल्लाह फ़ी शानिकुमा
तुम दोनों पर सलाम हो, जिनके बारे में अल्लाह का फ़ैसला ज़ाहिर हुआ

اتَيْتُكُمَا زَائِراً
अतैतुकुमा ज़ाइरन
मैं तुम्हारे पास ज़ियारत के लिए आया हूँ

وعَارِفاً بِحَقِّكُمَا
आरिफ़न बिहक्किकुमा
तुम्हारे हक़ को पहचानते हुए

مُعَادِياً لاِعْدَائِكُمَا
मुआदियन लिअदाइकुमा
तुम्हारे दुश्मनों से दुश्मनी रखते हुए

مُوَالِياً لاِوْلِيَائِكُمَا
मुवालियन लिऔलियाइकुमा
तुम्हारे दोस्तों से वफ़ादारी रखते हुए

مُؤْمِناً بِمَا آمَنْتُمَا بِهِ
मूमिनन बिमा आमन्तुमा बिही
उस पर ईमान रखते हुए जिस पर तुम दोनों ईमान लाए

كَافِراً بِمَا كَفَرْتُمَا بِهِ
काफ़िरन बिमा कफ़रतुमा बिही
और उससे इंकार करते हुए जिससे तुम दोनों ने इंकार किया

مُحَقِّقاً لِمَا حَقَّقْتُمَا
मुहक़्क़िक़न लिमा हक़्क़क़तुमा
उसको हक़ मानते हुए जिसे तुमने हक़ ठहराया

مُبْطِلاًَ لِمَا ابْطَلْتُمَا
मुब्तिलन लिमा अब्तल्तुमा
और उसे बातिल मानते हुए जिसे तुमने बातिल ठहराया

اسْالُ ٱللَّهَ رَبِّي وَرَبَّكُمَا
असअलुल्लाह रब्बी व रब्बकुमा
मैं अल्लाह से सवाल करता हूँ जो मेरा और तुम्हारा रब है

انْ يَجْعَلَ حَظِّي مِنْ زِيَارَتِكُمَا
अन यजअला हज़्ज़ी मिन ज़ियारतिकुमा
कि मेरी ज़ियारत का हिस्सा यह क़रार दे

ٱلصَّلاَةَ عَلَىٰ مُحَمَّدٍ وَآلِهِ
अस्सलाता अला मुहम्मदिं व आलिही
कि मुहम्मद और उनकी आल पर दुरूद भेजा जाए

وَانْ يَرْزُقَنِي مُرَافَقَتَكُمَا فِي ٱلْجِنَانِ
व अन यरज़ुक़नी मुराफ़क़तकुमा फ़िल-जिनान
और मुझे जन्नतों में तुम्हारी रफ़ाक़त अता फ़रमा

مَعَ آبَائِكُمَا ٱلصَّالِحِينَ
मअ आबाइ कुमा अस्सालिहीन
तुम्हारे नेक आबा के साथ

وَاسْالَهُ انْ يُعْتِقَ رَقَبَتِي مِنَ ٱلنَّارِ
व असअलहु अन युअतिक़ रक़बती मिनन-नार
और मैं उससे मांगता हूँ कि मुझे आग से निजात दे

وَيَرْزُقَنِي شَفَاعَتَكُمَا وَمُصَاحَبَتَكُمَا
व यरज़ुक़नी शफ़ाअतकुमा व मुसाहबत कुमा
और मुझे तुम्हारी शफ़ाअत और तुम्हारी सोहबत अता फ़रमा

وَيُعَرِّفَ بَيْنِي وَبَيْنَكُمَا
व युअर्रिफ़ बैनी व बैनकुमा
और मेरे और तुम्हारे दरमियान तआरुफ़ क़ायम फ़रमा

وَلاَ يَسْلُبَنِي حُبَّكُمَا
व ला यस्लुबनी हुब्बकुमा
और मेरे दिल से तुम्हारी मुहब्बत न निकाले

وَحُبَّ آبَائِكُمَا ٱلصَّالِحِينَ
व हुब्बा आबाइ कुमा अस्सालिहीन
और तुम्हारे नेक आबा की मुहब्बत भी

وَانْ لاََ يَجْعَلَهُ آخِرَ ٱلْعَهْدِ مِنْ زِيَارَتِكُمَا
व अन ला यज्अलहु आख़िरल-अह्दि मिन ज़ियारतिकुमा
और मेरी यह ज़ियारत तुम्हारी आख़िरी ज़ियारत क़रार न दे

وَيَحْشُرَنِي مَعَكُمَا فِي ٱلْجَنَّةِ بِرَحْمَتِهِ
व यह्शुरनी मअकुमा फ़िल-जन्नति बिरहमतिही
और अपनी रहमत से मुझे जन्नत में तुम्हारे साथ महशूर फ़रमा

اَللَّهُمَّ ٱرْزُقْنِي حُبَّهُمَا
अल्लाहुम्मरज़ुक़नी हुब्बहुमा
ऐ अल्लाह! मुझे उन दोनों की मुहब्बत अता फ़रमा

وَتَوَفَّنِي عَلَىٰ مِلَّتِهِمَا
व तवफ्फ़नी अला मिल्लतिहिमा
और मुझे उनकी मिल्लत पर मौत अता फ़रमा

اَللَّهُمَّ ٱلْعَنْ ظَالِمِي آلِ مُحَمَّدٍ حَقَّهُمْ وَٱنْتَقِمْ مِنْهُمْ
अल्लाहुम्मल-अन ज़ालिमी आले मुहम्मदिन हक़्क़हुम वन्तक़िम मिनहुम
ऐ अल्लाह! जिन्होंने आले मुहम्मद का हक़ ज़ुल्म से छीन लिया, उन पर लानत फ़रमा और उनसे इंतिक़ाम ले

اَللَّهُمَّ ٱلْعَنِ ٱلاوَّلِينَ مِنْهُمْ وَٱلآخِرِينَ
अल्लाहुम्मल-अन अल-अव्वलीन मिनहुम वल-आख़िरीन
ऐ अल्लाह! उनमें से पहले वालों और बाद वालों पर लानत फ़रमा

وَضَاعِفْ عَلَيْهِمُ ٱلْعَذَابَ
व दाअ’इफ़ अलैहिमुल-अज़ाब
और उन पर अज़ाब कई गुना बढ़ा दे

وَابْلِغْ بِهِمْ وَبِاشْيَاعِهِمْ
व अब्लिघ बिहिम व बिअश्या’इहिम
और उन्हें और उनके पैरवकारों को पहुँचा दे

وَمُحِبِّيهِمْ وَمُتَّبِعِيهِمْ
व मुहिब्बीहिम व मुत्तबिअीहिम
और उनके चाहने वालों और उनके अनुयायियों को भी

اسْفَلَ دَرْكٍ مِنَ ٱلْجَحِيمِ
अस्फ़ला दरक़िन मिनल-जहीम
जहन्नम के सबसे निचले दर्जे में

إِِنَّكَ عَلَىٰ كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ
इन्नका अला कुल्लि शै’इन क़दीर
बेशक तू हर चीज़ पर क़ादिर है

اَللَّهُمَّ عَجِّلْ فَرَجَ وَلِيِّكَ وَٱبْنِ وَلِيِّكَ
अल्लाहुम्मा अ’ज्जिल फ़रज वलिय्यिका वब्नि वलिय्यिका
ऐ अल्लाह! अपने वली और अपने वली के बेटे का फ़रज जल्दी फ़रमा

وَٱجْعَلْ فَرَجَنَا مَعَ فَرَجِهِمْ
व अज्अल फ़रजना मअ फ़रजिहिम
और हमारे फ़रज को भी उनके फ़रज के साथ कर दे

يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
या अरहमर-राहिमीन
ऐ सबसे बढ़कर रहम करने वाले


आप फिर अपने लिए और अपने वालिदैन के लिए दुआ कर सकते हैं ।
अगर आप उनके रौज़ों तक पहुँच सकें, तो वहाँ दो रकअत नमाज़ अदा करें। या उस मस्जिद में, जो दोनों इमामों के घर से मुत्तसिल है—अल्लाह की सलामती उन पर हो—जहाँ वे नमाज़ अदा किया करते थे।
थोड़े से फ़र्क़ के साथ ज़ियारत
मज़कूरा ज़ियारत का यह तरीक़ा किताब *कामिलुज़-ज़ियारत* के मुताबिक़ बयान किया गया है। मगर शैख़ मुहम्मद बिन अल-मशहदी, शैख़ अल-मुफ़ीद और शहीद ने अपनी ज़ियारत की किताबों में इसे थोड़े से फ़र्क़ के साथ रिवायत किया है, यानी उन्होंने इसमें यह इज़ाफ़ा किया है:
फिर आप दोनों रौज़ों की तरफ़ बढ़ें, उन पर झुक जाएँ, उन्हें चूम लें और अपने दोनों गाल उन पर रखें। जब आप अपना सर उठाएँ, तो ऊपर बयान किया गया आख़िरी हिस्सा पढ़ें:
اَللَّهُمَّ ٱرْزُقْنِي حُبَّهُمَا
अल्लाहुम्म अरज़ुक़नी हुब्बहुमाः
ऐ अल्लाह! मुझे उन दोनों की मुहब्बत अता फ़रमा,

وَتَوَفَّنِي عَلَىٰ مِلَّتِهِمَا
व तवफ़्फ़नी अला मिल्लतिहुमाः
और मुझे उनकी राह पर मौत अता फ़रमा…

मज़कूरा ज़ियारत के आख़िर तक।
फिर उन्होंने यह इज़ाफ़ा किया: अब आप इमाम के सरहाने के पास चार रकअत नमाज़ अदा कर सकते हैं।
दोनों इमामों से रुख़्सत होना
जब आप दोनों मुक़द्दस इमामों से रुख़्सत होने का इरादा करें, तो मुक़द्दस रौज़े पर ठहर कर ये अल्फ़ाज़ कहें:
اَلسَّلاَمُ عَلَيْكُمَا يَا وَلِيَّيِ ٱللَّهِ
अस्सलामु अलैकुमा या वलिय्यैल्लाहि
तुम दोनों पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के वलीयोँ

اسْتَوْدِعُكُمَا ٱللَّهَ
अस्तौदिउकुमा अल्लाह
मैं तुम दोनों को अल्लाह के हवाले करता हूँ

وَاقْرَا عَلَيْكُمَا ٱلسَّلاَمَ
व अक़रऊ अलैकुमा अस्सलाम
और तुम दोनों पर उसकी सलामती पेश करता हूँ

آمَنَّا بِٱللَّهِ وَبِٱلرَّسُولِ
आमन्ना बिल्लाहि व बिर्रसूलि
हम अल्लाह पर और रसूल पर ईमान लाए

وَبِمَا جِئْتُمَا بِهِ وَدَلَلْتُمَا عَلَيْهِ
व बिमा जिअतुमा़ बिहि व दललतुमा़ अलैहि
और उस पर भी जो तुम दोनों लाए और जिसकी तुम दोनों ने रहनुमाई की

اَللَّهُمَّ ٱكْتُبْنَا مَعَ ٱلشَّاهِدينَ
अल्लाहुम्मा इक्तुब्ना मअश्शाहिदीन
ऐ अल्लाह! हमें गवाहों में लिख दे

اَللَّهُمَّ لاََ تَجْعَلْهُ آخِرَ ٱلْعَهْدِ
अल्लाहुम्मा ला तज्अलहु आख़िरल-अह्दि
ऐ अल्लाह! इसे मेरी आख़िरी हाज़िरी न बना

مِنْ زِيَارَتِي إِِيَّاهُمَا
मिन ज़ियारती इय्याहुमा
कि यह मेरी उनसे आख़िरी ज़ियारत हो

وَٱرْزُقْنِي ٱلْعَوْدَ إِِلَيْهِمَا
व अर्ज़ुक़्नी अल्औदा इलैहिमा
बल्कि मुझे दोबारा उनकी ज़ियारत नसीब फ़रमा

وَٱحْشُرْنِي مَعَهُمَا
वहशुरनी मअहुमा
और मुझे उन दोनों के साथ महशूर फ़रमा

وَمَعَ آبَائِهِمَا ٱلطَّاهِرِينَ
व मअ आबाइहिमा अत-ताहिरीन
और उनके पाक बाप-दादाओं के साथ

وَٱلْقَائِمِ ٱلْحُجَّةِ مِنْ ذُرِّيَّتِهِمَا
वल-क़ाइमिल-हुज्जति मिन ज़ुर्रिय्यतिहिमा
और उनकी नस्ल से क़ाइम हुज्जत के साथ

يَا ارْحَمَ ٱلرَّاحِمِينَ
या अरहमर-राहिमीन
ऐ सबसे ज़्यादा रहम करने वाला





अल-हुसैन बिन अली बिन मुहम्मद का रौज़ा
इमाम अल-हादी और इमाम अल-अस्करी (`अ) के रौज़ों के क़रीब, अल-हुसैन का रौज़ा वाक़े है, जो इमाम अल-हादी के फ़र्ज़ंद और इमाम अल-अस्करी के भाई थे, इसके अलावा रसूल-ए-अकरम ﷺ की औलाद (यानी सैय्यदात) में से कई अज़ीम शख़्सियतों के दूसरे रौज़े भी वहाँ मौजूद हैं। अगरचे मैंने ख़ुद अल-हुसैन की मुकम्मल सवानिह-ए-हयात हासिल नहीं की, लेकिन वह एक बुलंद और अज़ीम शख़्सियत मालूम होते हैं। कुछ रिवायात में ज़िक्र मिलता है कि इमाम अल-हसन अल-अस्करी (`अ) और उनके भाई अल-हुसैन को “दो पोते” कहा जाता था, और उन्हें रसूल-ए-ख़ुदा ﷺ के दो नवासों—इमाम अल-हसन और इमाम अल-हुसैन, जो इमाम अली (`अ) के फ़र्ज़ंद थे—से तशबीह दी जाती थी। उन सब पर सलाम हो।
अबूत्तैय्यिब से मरवी रिवायत के मुताबिक़, इमाम अल-महदी (`अ) की आवाज़ अल-हुसैन की आवाज़ से मिलती-जुलती थी।
अपनी किताब *शजरतुल-अवलिया* में, सय्यद अहमद अल-अरदूकानी अल-यज़्दी—जो एक दानिशमंद फ़क़ीह और मुहद्दिस थे—इमाम अली अल-हादी के बेटों का ज़िक्र करते हुए लिखते हैं कि उनके फ़र्ज़ंद अल-हुसैन मशहूर ज़ाहिदों और आबिदों में से थे और उन्होंने अपने भाई की इमामत का इकरार किया था।
गहरी तहक़ीक़ से इस अज़ीम शख़्सियत की फ़ज़ीलत और बुलंदी के और भी पहलू सामने आ सकते हैं, जो मेरी मौजूदा मालूमात से कहीं ज़्यादा होंगे।

इमाम अली अल-हादी के फ़र्ज़ंद सय्यद मुहम्मद की ज़ियारत इमाम अली अल-हादी के फ़र्ज़ंद सय्यद मुहम्मद का मशहूर रौज़ा बलद नाम के एक गाँव के क़रीब वाक़े है। यह सय्यद फ़ज़ीलत, बुलंदी और ग़ैर-मामूली करामाती निशानियों की वजह से बहुत मशहूर हैं। लोग हमेशा उनके रौज़े की ज़ियारत का शरफ़ हासिल करते हैं, मन्नतें मानते हैं, कसीर नज़राने पेश करते हैं और अल्लाह तआला से अपनी हाजतें पूरी होने की दुआ करते हैं। उस गाँव के अरब बाशिंदे उन्हें बहुत अज़ीम इज़्ज़त और एहतराम देते हैं।
कहा जाता है कि इस रौज़े से बहुत-सी करामात ज़ाहिर हुईं, जो इतनी ज़्यादा हैं कि इस किताब में उनका ज़िक्र मुमकिन नहीं। इस सय्यद की एक बड़ी फ़ज़ीलत और शरफ़ यह है कि वह इमामत के लिए अहल थे और इमाम अल-हादी (`अ) के सबसे बड़े फ़र्ज़ंद थे। इमाम अल-हसन अल-अस्करी (`अ) ने इस सय्यद के इंतिक़ाल पर ग़म का इज़हार करते हुए अपना कुर्ता फाड़ दिया।
हमारे उस्ताद, भरोसेमंद शैख़ अल-नूरी—अल्लाह उनकी क़ब्र को रौशन फ़रमाए—सय्यद मुहम्मद की ज़ियारत पर कामिल ईमान रखते थे। इसी वजह से उन्होंने उनके रौज़े की तामीर के लिए बहुत कोशिशें कीं और क़ब्र-ए-मुबारक पर यह क़त्बा लिखवाया: “यह बुलंद मक़ाम सय्यद अबू-जाफ़र मुहम्मद, फ़र्ज़ंद इमाम अबुल-हसन अली अल-हादी का रौज़ा है—अल्लाह की सलामती उन पर हो—जो बहुत अज़ीम क़द्र और बुलंद मर्तबे वाले थे।”
उनके दौर के शिया यह दावा किया करते थे कि सय्यद मुहम्मद अपने वालिद के बाद अगले इमाम होंगे, लेकिन जब सय्यद मुहम्मद का इंतिक़ाल हो गया, तो उनके वालिद ने उनके भाई अबू-मुहम्मद अल-ज़की (अल-अस्करी) को अगला इमाम मुक़र्रर फ़रमाया। इस तक़र्रुरी पर तब्सिरा करते हुए इमाम (`अ) ने अपने बेटे से फ़रमाया: “अल्लाह तआला का शुक्र ताज़ा करो, क्योंकि उसने तुम्हारे बारे में एक नया हुक्म जारी फ़रमाया है।”
सय्यद मुहम्मद के वालिद ने उन्हें बचपन में मदीना में छोड़ दिया था, लेकिन जब सय्यद मुहम्मद बीमार हुए तो वह समर्रा में अपने वालिद के पास आ गए। जब उन्होंने हिजाज़ वापस जाने की कोशिश की, तो उनकी बीमारी शदीद हो गई और इसी वजह से बलद नाम के उस गाँव में—जो समर्रा से तक़रीबन 40 किलोमीटर दूर है—उनका इंतिक़ाल हो गया। उनके इंतिक़ाल पर इमाम अल-अस्करी (`अ) ने ग़म के इज़हार में अपना कुर्ता फाड़ दिया। जब इस पर उनसे सवाल किया गया, तो इमाम (`अ) ने फ़रमाया: “हज़रत मूसा ने भी अपने भाई हज़रत हारून की वफ़ात पर अपना कुर्ता फाड़ दिया था।”
सय्यद मुहम्मद का इंतिक़ाल तक़रीबन 252 हिजरी में हुआ।